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विश्व की प्रमुख वनस्पति
प्राकृतिक वनस्पति :- प्राकतिक वनस्पति में वे पौधे सम्मिलित किए जाते है, जो मानव की प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष सहायता के बिना उगते हैं और अपने आकार, संरचना तथा अपनी आवश्यकताओं को प्राकृतिक पर्यावरण के अनुसार ढाल लेते हैं। इस दृष्श्टि से कृषि फसलों तथा फलों के बागों को प्राकृतिक वनस्पति के वर्ग में सम्मिलित नहीं किया जा सकता। प्राकतिक वनस्पति का वह भाग जो मानव हस्तक्षेप से रहित है, अक्षत वनस्पति कहलाता है। भारत में अक्षत वनस्पति हिमालय थार मरूस्थल, सुन्दरवन आदि अगम्य क्षेत्रों में पाया जाती है।
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वनस्पति और वन में अन्तर – वनों के प्रकार :- वनों के प्रकार कई भौगोलिक तत्त्वों पर निर्भर करते हैं जिसमें वश्र्षा, तापमान, आर्द्रता, मिट्टी, समुद्र-तल से उँचाई तथा भूगर्भिक संरचना महत्वपूर्ण हैं। इन तत्त्वों के प्रभावाधीन देश के विभिन्न भागों में भिन्न-भिन्न प्रकार के वन उगते हैं। इस आधार पर वनों का निम्नलिखित वर्गीकरण किया जाता है।
1.) उष्णकटिबन्धीय सदापर्णी वन
2.) उष्णकटिबन्धीय पर्णपाती अथवा मानसूनी (Tropical Deciduous or Monsoon Forests)
3.) उष्णकटिबन्धीय (Tropical Dry Forests)
4.) मरूस्थलीय (Arid Forests)
5.) डेल्टाई वन (Delta Forests)
6.) पर्वतीय वन (Mountainous Forests)
1.) उष्णकटिबन्धीय सदापर्णी वन (Tropical Evergreen Forests) ये वन भारत के अत्यधिक आद्र्र्र तथा उष्ण भागों में मिलते हैं। इन क्षेत्रों में औसत वार्षिक वश्र्षा 200 से.मी. से अधिक तथा सापेक्ष आर्द्रता 70% से अधिक होती है। औसत तापमान 20 से. के आस-पास रहता है। उच्च आर्द्रता तथा तापमान के कारण ये वन बड़े सघन तथा उँचे होते हैं। विभिन्न जाति के वृक्षों के पत्तों के गिरने का समय भिन्न होता है जिस कारण सम्पूर्ण वन दृश्य सदापर्णी रहता है। ये वृक्ष 45 से 60 मीटर ऊँचे होते हैं, महत्वपूर्ण वृक्ष रबड़, महोगनी, एबोनी, नारियल, बाँस, बेंत तथा आइरन वुड हैं। ये वन मुख्यतः अण्डमान निकोबार द्वीप-समूह, असम, मेघालय, नागालैण्ड, मणिपुर, मिजोरम, त्रिपुरा एंव पश्चिमी बंगाल तथा पश्चिमी घाट की पश्चिमी ढालों एंव पष्श्चिमी तटीय मैदान पर पाए जाते हैं। इस प्रकार इन वनों का क्षेत्राफल लगभग 46 लाख हेक्टेयर है। ये वन आर्थिक दृष्श्टि से अधिक उपयोगी नहीं है।
2.) उष्णकटिबन्धीय पर्णपाती अथवा मानसूनी वन (Tropical Deciduous or Monsoon Forests) ये वन 100 से 200 सेटीमीटर वार्षिक वश्र्षा वाले क्षेत्रों में पाए जाते हैं। इन वनों का विस्तार गंगा की मध्य एंव निचली घाटी अर्थात् भाबर एवं तराई प्रदेश, पूर्वी मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ का उत्तरी भाग, झारखण्ड, पष्श्चिमी बंगाल, उड़ीसा, आन्ध्र प्रदेष्श, महाराश्ष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु तथा केरल के कुछ भागों में मिलता है। प्रमुख पेड़ साल, सागवान, ष्शीशम, चन्दन, आम आदि हैं। ये पेड़ ग्रीश्म ऋतु के आरम्भ में अपनी पत्तियां गिरा देते हैं। इसलिए ये पतझड़ के वन कहलाते हैं। इनकी ऊँचाई 30 से 45 मीटर होती है। ये इमारती लकड़ी प्रदान करते हैं जिससे इनका आर्थिक महत्व अधिक है। ये वन हमारे 25% वन-क्षेत्रा पर फैले हुए है।
3.) उष्णकटिबन्धीय शुष्क वन (Tropical Dry Forests) ये वन उन क्षेत्रों में पाए जाते हैं जहाँ वार्षिक वर्षा 50 से 100 सेंटीमीटर होती है। इसमें महाराश्ष्ट्र, आन्ध्र प्रदेश, कर्नाटक तथा तमिलनाडु के अधिकांष्श भाग, पष्श्चिमी तथा उत्तरी मध्य प्रदेष्श, पूर्वी राजस्थान, उत्तर प्रदेष्श का दक्षिण-पष्श्चिमी भाग तथा हरियाणा सम्मिलित हैं। इन वनों के मुख्य वृक्ष ष्शीशम, बबूल, कीकर, चन्दन, सिरस, आम तथा महुआ हैं। ये वृक्ष ग्रीश्म ऋतु के आरम्भ में अपने पत्ते गिरा देते हैं।वर्षा अपेक्षाकृत कम होने के कारण ये वृक्ष मानसूनी वनों के वृक्षों से छोटे होते हैं। इन वृक्षों की लम्बाई 6 से 9 मीटर होती है। अधिकांष्श वृक्षों की जड़ें लम्बी तथा मोटी होती है जिससे ये जल को अपने अन्दर समाए रखते हैं। इनकी लकड़ी आर्थिक दृष्टि से मूल्यवान होती है। इस वर्ग के अधिकांष्श वनों को काटकर कृश्षि ष्शुरू की गई है। अब ये वन केवल 52 लाख हेक्टयेर भूमि पर ही पाए जाते हैं।
4.) मरूस्थलीय वन (Arid Forests) ये वन उन क्षेत्रों में पाए जाते हैं जहाँ वार्षिक वश्र्षा 50 सेंटीमीटर से कम होती है। इनका विस्तार राजस्थान, दक्षिण-पश्चिमी पंजाब तथा दक्षिण-पष्श्चिमी हरियाणा में है। इनमें बबूल, कीकर तथा फ्राष्श जैसे छोटे आकार वाले वृक्ष एवं झाड़ियाँ होती है। ष्शुष्श्क जलवायु के कारण इनके पत्ते छोटे, खाल मोटी तथा जड़ें गहरी होती है।
5.) डेल्टाई वन (Delta Forests) इन्हें मेनग्रुव (Mangrove), दलदली (Swampy) अथवा ज्वारीय (Tidal) वन भी कहते हैं। ये वन गंगा-व्रह्मपुत्रा, महानदी, गोदावरी, कृष्णा, कावेरी आदि नदियों के डेल्टाओं में उगते हैं, इस कारण इन्हें डेल्टाई वन कहते हैं। सबसे महत्वपूर्ण गंगा-ब्रह्मपुत्रा डेल्टा का सुन्दरवन है। इसमें सुन्दरी नामक वृक्ष की बहुलता है जिस कारण इसे सुन्दर वन कहते हैं। ये वन बड़ें गहन होते है तथा ईधन और इमारती लकड़ी प्रदान करते हैं।
6.) पर्वतीय वन (Montane Forests) जैसा कि इनके नाम से ही विदित है, ये वन भारत के पर्वतीय प्रदेष्शों में पाए जाते हैं। भौगोलिक दृष्श्टि से इन्हें उत्तरी या हिमालय वन तथा दक्षिणी या प्रायद्वीपीय वनों में बाँटा जा सकता है।
वास्तविक वनावरण के प्रतिशत के आधार पर भारत के राज्यों को चार प्रदेशों में विभाजित किया गया है।
1.) अधिक वनावरण वाले प्रदेश
2.) मध्यम वनावरण वाले प्रदेश
3.) कम वनावरण वाले प्रदेश
4.) बहुत कम वनावरण वाले प्रदेश
अधिक वनावरण वाले प्रदेश :- इस प्रदेश में 40 प्रतिशत से अधिक वनावरण वाले राज्य सम्मिलित हैं। असम के अलावा सभी पूर्वी राज्य इस वर्ग में शामिल हैं। जलवायु की अनुकूल दशाएँ मुख्य रूप से वर्षा और तापमान अधिक वनावरण में होने का मुख्य कारण हैं। इस प्रदेश में भी वनावरण भिन्नताएँ पायी जाती हैं। अंडमान और निकोबार द्वीप समूह और मिजोरम, नागालैंड और अरुणाचल प्रदेश के राज्यों में कुल भौगोलिक क्षेत्रा के 80 प्रतिशत भाग पर वन पाए जाते हैं। मणिपुर, मेघालय, त्रिपुरा, सिक्किम और दादर और नगर हवेली में वनों का प्रतिशत 40 से 80 प्रतिशत के बीच है।
मध्यम वनावरण वाले प्रदेश :- इसमें मध्य प्रदेश, उड़ीसा, गोवा, केरल, असम और हिमाचल प्रदेश सम्मिलित हैं। गोवा में वास्तविक वन क्षेत्रा 33.79 प्रतिशत है, जो कि इस प्रदेश में सबसे अधिक है। इसके बाद असम और उड़ीसा का स्थान है। अन्य राज्यों में कुल क्षेत्रा के 30 प्रतिशत भाग पर वन हैं।
कम वनावरण वाले प्रदेश :- यह प्रदेश लगातार नहीं है। इसमें दो उप-प्रदेश हैं: एक प्रायद्वीप भारत में स्थित है। इसमें महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, और तमिलनाडु शामिल हैं। दूसरा उप-प्रदेश भारत में है। इसमें उत्तर प्रदेश और बिहार राज्य शामिल हैं।
बहुत कम वनावरण वाले प्रदेश :- भारत के उत्तर-पश्चिमी भाग को इस वर्ग में रखा जाता है। इस वर्ग में शामिल राज्य हैं: राजस्थान, पंजाब, हरियाणा और गुजरात। इसमें चंडीगढ़ और दिल्ली दो केंद्र शासित प्रदेश भी हैं। इनके अलावा पश्चिम बंगाल का राज्य भी इसी वर्ग में है। भौतिक और मानवीय कारणों से इस प्रदेश में बहुत कम वन हैं।
वनस्पति :- उष्ण से लेकर उत्तर ध्रुव तक विविध प्रकार की जलवायु के कारण भारत में अनेक प्रकार की वनस्पतियां पाई जाती हैं, जो समान आकार के अन्य देशों में बहुत कम मिलती हैं। भारत को आठ वनस्पति क्षेत्रों में बांटा जा सकता है- पश्चिमी हिमाचल, पूर्वी हिमाचल, असम, सिंधु नदी का मैदानी क्षेत्र, दक्कन, गंगा का मैदानी क्षेत्र, मालाबार और अंडमान और निकोबार द्वीप समूह, पश्चिमी हिमाचल क्षेत्र कश्मीर के कुमाऊं तक फैला है। इस क्षेत्र के शीतोष्ण कटिबंधीय भाग में चीड़, देवदार, शंकुधारी वृक्षों (कोनिफर) और चौड़ी पत्ती वाले शीतोष्ण वृक्षों के वनों का बाहुल्य है। इससे ऊपर के क्षेत्रों में देवदार, नीली चीड़, सनोवर वृक्ष और श्वेत देवदार के जंगल हैं। अल्पाइन क्षेत्र शीतोष्ण क्षेत्र की ऊपरी सीमा से 4,750 मीटर या इससे अधिक ऊंचाई तक फैला हुआ है। इस क्षेत्र में ऊंचे स्थानों में मिलने वाले श्वेत देवदार, श्वेत भोजपत्र और सदाबहार वृक्ष पाए जाते हैं। पूर्वी हिमालय क्षेत्र सिक्किम से पूर्व की ओर शुरू होता है और इसके अंतर्गत दार्जिलिंग, कुर्सियांग और उसके साथ लगे भाग आते हैं। इस शीतोष्ण क्षेत्र में ओक, जायवृक्ष, द्विफल, बड़े फूलों वाला सदाबहार वृक्ष और छोटी बेंत के जंगल पाए जाते हैं। असम क्षेत्र में ब्रह्मपुत्र और सुरमा घाटियां आती हैं जिनमें सदाबहार जंगल हैं और बीच बीच में घनी बांसों तथा लंबी घासों के झुरमुट हैं। सिंधु के मैदानी क्षेत्र में पंजाब, पश्चिमी राजस्थान और उत्तरी गुजरात के मैदान शामिल हैं। यह क्षेत्र शुष्क और गर्म है और इसमें प्राकृतिक वनस्पतियां मिलती हैं। गंगा के मैदानी क्षेत्र का अधिकतर भाग कछारी मैदान है और इनमें गेहूं, चावल और गन्ने की खेती होती है। केवल थोड़े से भाग में विभिन्न प्रकार के जंगल हैं। दक्कन क्षेत्र में भारतीय प्रायद्वीप की सारी पठारी भूमि शामिल है, जिसमें पतझड़ वाले वृक्षों के जंगलों से लेकर तरह-तरह की जंगली झाडि़यों के वन हैं। मालाबार क्षेत्र के अधीन प्रायद्वीप तट के साथ-साथ लगने वाली पहाड़ी तथा अधिक नमी वाली पट्टी है। इस क्षेत्र में घने जंगल हैं। इसके अलावा, इस क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण व्यापारिक फसलें जैसे नारियल, सुपारी, काली मिर्च, कॉफी और चाय, रबड़ तथा काजू की खेती होती है। अंडमान क्षेत्र में सदाबहार, मैंग्रोव, समुद्र तटीय और जल प्लावन संबंधी वनों की अधिकता है। कश्मीर से अरुणाचल प्रदेश तक के हिमालय क्षेत्र (नेपाल, सिक्किम, भूटान, नागालैंड) और दक्षिण प्रायद्वीप में क्षेत्रीय पर्वतीय श्रेणियों में ऐसे देशी पेड़-पौधों की अधिकता है ,जो दुनिया में अन्यत्र कहीं नहीं मिलते।
वन संपदा की दृष्टि से भारत काफी संपन्न है। उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार पादप विविधता की दृष्टि से भारत का विश्व में दसवां और एशिया में चौथा स्थान है। लगभग 70 प्रतिशत भूभाग का सर्वेक्षण करने के बाद अब तक भारतीय वनस्पति सर्वेक्षण संस्था ने पेड़-पौधों की 46,000 से अधिक प्रजातियों का पता लगाया है। वाहिनी वनस्पति के अंतर्गत 15 हजार प्रजातियां हैं। देश के पेड़-पौधों का विस्तृत अध्ययन भारतीय सर्वेक्षण संस्था और देश के विभिन्न भागों में स्थित उसके 9 क्षेत्रीय कार्यालयों तथा कुछ विश्वविद्यालयों और अनुसंधान संगठनों द्वारा किया जा रहा है।
वनस्पति नृजाति विज्ञान के अंतर्गत विभिन्न पौधों और उनके उत्पादों की उपयोगिता के बारे में अध्ययन किया जाता है। भारतीय वनस्पति सर्वेक्षण ने ऐसे पेड़ पौधों का वैज्ञानिक अध्ययन किया है। देश के विभिन्न जनजातीय क्षेत्रों में कई विस्तृत नृजाति सर्वेक्षण किए जा चुके हैं। वनस्पति नृजाति विज्ञान की दृष्टि से महत्वपूर्ण पौधों की 800 प्रजातियों की पहचान की गई और देश के विभिन्न जनजातियों क्षेत्रों से उन्हें इकट्ठा किया गया है।
कृषि, औद्योगिक और शहरी विकास के लिए वनों के विनाश के कारण अनेक भारतीय पौधे लुप्त हो रहे है। पौधों की लगभग 1336 प्रजातियों के लुप्त होने का खतरा है तथा लगभग 20 प्रजातियां 60 से 100 वर्षों के दौरान दिखाई नहीं पड़ी हैं। संभावना है कि ये प्रजातियां लुप्त हो चुकी हैं। भारतीय वनस्पति सर्वेक्षण रेड डाटा बुक नाम से लुप्त प्राय पौधों की सूची प्रकाशित करता है।
यह क्षेत्र पौधों की 4000 प्रजातियों के साथ बेहद समृद्ध है, हिमालय की एक श्रृंखला में होने के कारण इसकी प्राकृतिक वनस्पति में उल्लेखनीय विविधता है।इसकी ‘जलवायु विविधताओं के अलावा विशेष रूप से तापमान, वर्षा,पहाड़ो की उचाई ,घाटियों की प्रकृति वनस्पति की विविधता एवं अनुशासित विकास को निर्धारित करती है|इस क्षेत्र के वनस्पतियों को ट्रोपिहाल, हिमालयी उप-उष्णकटिबंधीय और उप अल्पाइन और अल्पाइन वनस्पति में वर्गीकृत किया जा सकता है।अल्पाइन और उप अल्पाइन जोन औषधीय पौधों की सबसे बड़ी संख्या के सबसे प्राकृतिक आवास के रूप में माना जाता है।विभिन्न मापदंडों को ध्यान में रखते हुए, इस क्षेत्र की वनस्पति, मोटे तौर पर चार भागों में विभाजित किया जा सकता है
उप-उष्णकटिबंधीय वन :- इस तरह के जंगल का क्षेत्र 300 मीटर और 1500 मीटर की ऊंचाई के बीच स्थित है और इसमें निम्नलिखित वन समुदाय शामिल हैं, साल (शोरो रोबस्टा) समुदाय यह पौधों की एक पर्णपाती प्रकार का समूह है जो 300 मीटर से 1000 मीटर तक ऊंचाई में पाया जाता है।इस समुदाय की पेड़ प्रजातियों में सेमेकरपस एनाकार्डियम, हल्दु (एडीना कॉर्डिफ़ोलिया), बॉह्निआ वाहिली, मधुका लांगफोलिया, कैसिया फास्टुला आदि हैं।
चीड़ / पाइन (पिनस रॉक्सबरी) समुदाय :-यह सदाबहार पौधों का समुदाय मुख्य रूप से शुष्क पहाड़ी ढलानों में 1200 मीटर से 800 मीटर के बीच पाए जाते हैं। वनों की जमीन अक्सर स्पष्ट होती है|हालांकि, पायरस पशिया, डाल्बर्गिया सेरीशिया, कैसाना एल्पाटिका, साइजीगियम कमिनी अन्य प्रजातिएं पाइन के साथ विकसित होती हैं, विजयसार(एंजेलहार्डिया स्पिसिकेट) समुदाय:- यह एक पर्णपाती प्रकार का पौधा समुदाय है जो कि छायादार और, गीली जगह में 800 मीटर से 1500 मीटर ऊंचाई पाया जाता है |पेपर सपियम ऑनसिग्ने,दल्बर्गिया सीसोओ,
साइज़ीगियम कमिनी इसकी कुछ अन्य प्रजातियाँ हैं, रामल (मकारंगा पस्तुलता) समुदाय:- यह एक पर्णपाती पौधों का समुदाय है जो मुख्य रूप से ढलानों या नदी के क्षेत्र में पाया जाता है।इस समुदाय में मुख्य रूप से मल्लोटस फिलिपिनेंसिस, टूना सेरता आदि पौधों हैं, फलीयाल ओक (कुरेकस ग्लोका) समुदाय:-यह सदाबहार समुदाय 1500 मीटर ऊंचाई तक छायादार और नम जगह में पाया जाता है।पेरुस पशिया, एम्ब्लका ऑफिफ़ाइनलिस और बुश कॉलिकारपा अर्बोरिया जैसे पेड़, रुबस एलिप्टिकस इस समुदाय के अन्य सहयोगी हैं, चेयर पाइन और बनी ओक समुदाय:-यह समुदाय मुख्य रूप से ऊंचाई 1500 मीटर से 1800 मीटर के बीच पाया जाता है|मिरिका एस्कलेंटा, रोडोडेन्ड्रोन आर्बोरियम, पीयरस पशिया आदि इस समुदाय की अन्य पेड़ प्रजातियां हैं।
li>, रियांज ओक(क्वार्सरस लानिगिनोसा)समुदाय:उपरोक्त दो समुदायों की भांति ही यह समुदाय भी सदाबहार है|और 2000 से 2500 मीटर ऊंचाई पर पाया जाता है, तिलोंज ओक (क्यू फ्लोरबुन्डा) समुदाय:-यह समुदाय 2200 मीटर और 2700 मीटर ऊंचाई के बीच होता है।इस जंगल की सह-प्रभावशाली प्रजातियां आर। अरबोरेम, ल्योनिया ओवलिफोलिया, लिटिया उंबोरा आदि हैं।
उप-शीतोष्ण वन :- इस क्षेत्र के वन समुदाय को आम तौर पर 1800 मीटर से 2800 मीटर ऊँचाई मिल जाती है। इस क्षेत्र से संबंधित वनस्पति समुदाय हैं, देवदार (सिडरस देवदार) समुदाय:-पौधों के ये सदाबहार समुदाय 1800 मीटर से 2200 मीटर ऊंचाई के बीच पाए जाते हैं।इस समुदाय से संबंधित झाड़ियां रूबस एल्डिटीस और बरबेरीस एसिटिका हैं, उतीस (एलनस नेपेलसिस):-आमतौर पर यह पर्णपाती पौधों का समुदाय 1400 से 2200 मीटर ऊंचाई के बीच पाया जाता है।इस समुदाय की कुछ महत्वपूर्ण प्रजातियां रुबस एल्डिटीस और बीटुला अल्नोइड हैं।
हॉर्स चेस्टनट (एस्कुल्स इंडिका) समुदाय:-यह पर्णपाती समुदाय 2000 और 2500 मीटर ऊंचाई के बीच होता है|इस समुदाय से संबंधित पेड़ों की प्रजातियां बीटाला अल्नोइड, जुगलन्स रेगिआ और लिट्सी उम्बोसा हैं, कल (पिनस वालेचिना) समुदाय:-यह हमेशा हरा जंगल 2100 मीटर से 2800 मीटर ऊंचाई तक पाया जाता है, बांज ओक (क्वैर्सस ल्यूकोट्रियोचोफोर) समुदाय:-यह भी 1800 मीटर और 2200 मीटर ऊंचाई के बीच एक सदाबहार पौधे का समुदाय है, रियांज ओक(क्वार्सरस लानिगिनोसा)समुदाय:उपरोक्त दो समुदायों की भांति ही यह समुदाय भी सदाबहार है|और 2000 से 2500 मीटर ऊंचाई पर पाया जाता है।
तिलोंज ओक (क्यू फ्लोरबुन्डा) समुदाय:-यह समुदाय 2200 मीटर और 2700 मीटर ऊंचाई के बीच होता है।इस जंगल की सह-प्रभावशाली प्रजातियां आर। अरबोरेम, ल्योनिया, ओवलिफोलिया, लिटिया उंबोरा आदि हैं।
उप अल्पाइन वन समुदाय :- यह पौधों का समुदाय 2800 से 3800 मीटर ऊंचाई पर पाया जाता है। भोज पेटा, बेटला उपयोग खारसु ओक, क्यूएस्मेकरपीफोलिया और सिल्वर फ़िर (एबिस पंड्रो), इस समुदाय की मुख्य प्रजातियां हैं।
उप-शीतोष्ण वन :- इस क्षेत्र का सबसे आंतरिक समुदाय 3800 और 5000 मीटर ऊंचाई के बीच है। कम झाड़ियों और घास वाले घास के मैदान इस समुदाय की सामान्य श्रेणियां हैं|ऊंचाई में वृद्धि के साथ पौधे का आकार अधिक छोटा और कुशन जैसा होता है।
पशुवर्ग :- अल्मोड़ा और बाहरी इलाके के उप-अल्पाइन जोन तेंदुए, लंगुर, हिमालयी काले भालू, ककार, गैल आदि के लिए एक प्राकृतिक अभयारण्य हैं।जबकि उच्च ऊंचाई वाले क्षेत्र में कस्तूरी हिरण,हिम तेंदुए,नीली भेड़,थार आदि पाए जाते हैं|पूरे क्षेत्र में पक्षियों की एक उल्लेखनीय विविधता है|जिसमें शानदार रंगों एवं डिजाइन पक्षी जैसे मोर,भूरा क्वेल, काला तीतर, सीटी सीने, चाकोर, मोनल तेंदुआ चीर तीतर, कोक्लास तीतर आदि शामिल हैं|निम्नलिखित तालिका से जीव और उनके पसंदीदा वनस्पतियों के बीच के संबंध स्पष्ट होंगे
General Science Notes |
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