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वायुमंडल क्या है
वायुमंडल क्या है :- वायुमंडल पृथ्वी के चारों ओर हवा के विस्तृत भंडार को कहते हैं यह सौर विकिरण की लघु तरंगों को पृथ्वी के धरातल तक आने देता है , परंतु पार्थिव विकिरण की लंबी तरंगों के लिए अवरोधक बनता है इस प्रकार यह ऊष्मा को रोककर विशाल “ग्लास हाउस” की भांति कार्य करता है , जिससे पृथ्वी पर औसतन 15 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान बना रहता है यही तापमान पृथ्वी पर जीव मंडल के विकास का आधार है, यद्यपि वायु मंडल का विस्तार लगभग 29000 किलोमीटर ऊंचाई तक मिलता है परंतु वायु मंडल का 99% भार सिर्फ 32 किलोमीटर तक ही सीमित है |
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वायुमंडल का संघटन :- वायुमंडल में अनेक गैसों का मिश्रण है ! सर्वाधिक मात्रा में नाइट्रोजन तथा उसके बाद क्रमशा ऑक्सीजन , आर्गन व कार्बन डाइऑक्साइड का स्थान आता है इसके अलावा जलबाष्प , धूल के कण तथा अन्य अशुद्धियां भी असमान मात्रा में वायुमंडल में मौजूद रहती हैं विभिन्न गैसों की 99% भाग मात्र 32 किलोमीटर की ऊंचाई तक सीमित है , जबकि धूल कणों व जलवाष्प का 90% भाग अधिकतम 10 किलोमीटर की ऊंचाई तक मिलता है |
1) नाइट्रोजन ( N2 ) – 78%
2) ऑक्सीजन ( O2 ) – 21%
3) आर्गन ( Ar ) – 0.93 %
4) कार्बन डाइऑक्साइड – 0.03%
5) वायुमंडल की विभिन्न परतें ( Layer of Atmosphere )
वायुमंडल की परतों को मुख्यता पांच भागों में बांटा गया है :-
1) क्षोभमण्डल ( 0 से 8/18 किमी ) :- यह मण्डल जैव मण्डलीय पारिस्थितिकी तंत्र के लिए सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है क्योंकि मौसम संबंधी सारी घटनाएं इसी में घटित होती हैं।
मौसम संबंधी सभी परिवर्तन इसी में होनें के कारण इसे परिवर्तन मंडल भी कहते हैं !
प्रति 165 मीटर की ऊंचाई पर वायु का तापमान 1 डिग्री सेल्सियस की औसत दर से घटता है। इसे सामान्य ताप पतन दर कहते है, इस मण्डल की सीमा विषुवत वृत्त के ऊपर 18 किमी की ऊंचाई तक तथा ध्रवों के ऊपर लगभग 8 किमी तक है, ऊपरी क्षोभमंडल में जेट वायुधारा प्रवाहित होती है, जलबाष्प , धूलकणों का अधिकांश भाग इसी में मिलता है !
2) समतापमण्डल :- इसका विस्तार 8 या 18 किमी से 50 किमी तक होता है, इसमें ओजोन परत ( 15 से 35 किमी ) पाऐ जानें के कारण इसे ओजोन मंडल भी कहते हैं, ओज़ोन गैस सौर्यिक विकिरण की हानिकारक पराबैंगनी किरणों को सोख लेती है और उन्हें भूतल तक नहीं पहुंचने देती है तथा पृथ्वी को अधिक गर्म होने से बचाती हैं, इस मण्डल में प्रारंभ में तापमान स्थिर रहता है तथा 20 किमी के बाद बढनें लगता है ! ऐसा ओजोन गैसों की उपस्थिति के कारण होता है , जोकि पराबैगनी किरणों को अबशोषित कर तापमान बढा देती हैं , समताप मण्डल बादल तथा मौसम संबंधी घटनाओं से मुक्त रहता है।
इस मण्डल के निचले भाग में जेट वायुयान के उड़ान भरने के लिए आदर्श दशाएं हैं।
3) मध्य मण्डल ( 50 से 80 किमी ) :- इसका विस्तार 50-55 किमी से 80 किमी तक है, इस मण्डल में तापमान ऊंचाई के साथ घटता जाता है तथा लगभग -100 डिग्री सेंटीग़्रेट तक पहुच जाता है , जोकि वायुमंडल का न्युनतम तापमान हैं ! व इसकी ऊपरी सीमा से बाद पुन: ताप में व्रद्धि होने लगती है !
4) आयन मण्डल ( 80 से 640 किमी ) :- इस मण्डल में ऊंचाई के साथ ताप में तेजी से वृद्धि होती है, इसमें विद्युत आवेशित कणों की अधिकता होती है ,जिहें आयन कहा जाता है ! इन्ही की अधिकता के कारण इस मंडल का नाम आयन मंडल है ! ये कण रेडियो तरंगों को भूपृष्ठ पर परावर्तित करते हैं और बेतार संचार को संभव बनाते हैं।
5) बाह्यमण्डल ( 640 किमी से ऊपर ) :- इसे वायुमण्डल का सीमांत क्षेत्र कहा जाता है। इस मण्डल की वायु अत्यंत विरल होती है, यहां गैसों का घनत्व बहुत कम पाया जाता है , यहां हाइट्रोजन व हीलियम गैसों की प्रधानता होती है !
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वायुमण्डल में जलवाष्प एवं गैसों :- वायुमण्डल पृथ्वी के चारों ओर सैकड़ों कि.मी. की मोटाई में लपेटने वाले गैसीय आवरण को कहते हैं। वायुमण्डल विभिन्न गैसों का मिश्रण है जो पृथ्वी को चारों ओर से घेरे हुए है। निचले स्तरों में वायुमण्डल का संघटन अपेक्षाकृत एक समान रहता है। वायुमण्डल गर्मी को रोककर रखने में एक विशाल ‘कांच घर’ का काम करता है, जो लघु तरंगों और विकिरण को पृथ्वी के धरातल पर आने देता है, परंतु पृथ्वी से विकसित होने वाली तरंगों को बाहर जाने से रोकता है। इस प्रकार वायुमण्डल पृथ्वी पर सम तापमान बनाए रखता है। वायुमण्डल में जलवाष्प एवं गैसों के अतिरिक्त सूक्ष्म ठोस कणों की उपस्थिति भी ज्ञात की गई है।
वायुमंडल का संघटन –
1) घटक – आयतन के अनुसार प्रतिशत
2) नाइट्रोजन – 78.08
3) ऑक्सीजन – 20.9
4) आर्गन – 0.93
5) कार्बन डाईऑक्साइड – 0.03
6) निऑन – 0.0018
7) हीलियम – 0.0005
8) ओज़ोन – 0.00006
9) हाइड्रोजन – 0.00005
10) मीथेन – अल्प मात्रा
11) क्रिप्टन – अल्प मात्रा
12) ज़ेनॉन – अल्प मात्रा
शुद्ध और शुष्क वायु में नाइट्रोजन 78 प्रतिशत, ऑक्सीजन 21 प्रतिशत, आर्गन 0.93 प्रतिशत, कार्बन डाई ऑक्साइड 0.03 प्रतिशत तथा हाइड्रोजन, हीलियम, ओज़ोन, निऑन, जेनान, आदि अल्प मात्रा में उपस्थित रहती हैं। नम वायुमण्डल में जल वाष्प की मात्रा 5 प्रतिशत तक होती है। वायुमण्डीय जल वाष्प की प्राप्ति सागरों, जलाशयों, वनस्पतियों तथा मृदाओं के जल से होती है। जल वाष्प की मात्रा भूमध्य रेखा से ध्रुवों की ओर घटती जाती है। जल वाष्प के कारण ही बादल, कोहरा, पाला, वर्षा, ओस, हिम, ओला, हिमपात होता है। वायुमण्डल में ओजोन परत की पृथ्वी और उस पर रहने वाले जीवों के लिए बड़ी ही महत्त्वपूर्ण भूमिका है। यह परत सूर्य से आने वाली उच्च आवृत्ति की पराबैंगनी प्रकाश की 93-99% मात्रा अवशोषित कर लेती है, जो पृथ्वी पर जीवन के लिये हानिकारक है। ओजोन की परत की खोज 1913 में फ़्राँस के भौतिकविद फैबरी चार्ल्स और हेनरी बुसोन ने की थी।
विभिन्न मण्डल :- वायुमण्डल का घनत्व ऊंचाई के साथ-साथ घटता जाता है। वायुमण्डल को 5 विभिन्न परतों में विभाजित किया गया है।
1) क्षोभमण्डल
2) समतापमण्डल
3) मध्यमण्डल
4) तापमण्डल
5) बाह्यमण्डल
क्षोभमण्डल :- यह मण्डल जैव मण्डलीय पारिस्थितिकी तंत्र के लिए सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है क्योंकि मौसम संबंधी सारी घटनाएं इसी में घटित होती हैं। प्रति 165 मीटर की ऊंचाई पर वायु का तापमान 1 डिग्री सेल्सियस की औसत दर से घटता है। इसे सामान्य ताप पतन दर कहते है। इस मण्डल की सीमा विषुवत वृत्त के ऊपर 18 कि.मी. की ऊंचाई तक तथा ध्रवों के ऊपर लगभग 8 कि.मी. तक है।
समतापमण्डल :- इसकी मोटाई 50 कि.मी. से 55 कि.मी. तक है। इस मण्डल में तापमान स्थिर रहता है तथा इसके बाद ऊंचाई के साथ बढ़ता जाता है। समताप मण्डल बादल तथा मौसम संबंधी घटनाओं से मुक्त रहता है। इस मण्डल के निचले भाग में जेट वायुयान के उड़ान भरने के लिए आदर्श दशाएं हैं। इसकी ऊपरी सीमा को ‘स्ट्रैटोपाज’ कहते हैं। इस मण्डल के निचले भाग में ओज़ोन गैस बहुतायात में पायी जाती है। इस ओज़ोन बहुल मण्डल को ओज़ोन मण्डल कहते हैं। ओज़ोन गैस सौर्यिक विकिरण की हानिकारक पराबैंगनी किरणों को सोख लेती है और उन्हें भूतल तक नहीं पहुंचने देती है तथा पृथ्वी को अधिक गर्म होने से बचाती हैं।
मध्यमण्डल :- इसका विस्तार 50-55 कि.मी. से 80 कि.मी. तक है। इस मण्डल में तापमान ऊंचाई के साथ घटता जाता है तथा मध्यमण्डल की ऊपरी सीमा मेसोपाज पर तापमान 80 डिग्री सेल्सियस बताया जाता है।
तापमण्डल :- इस मण्डल में ऊंचाई के साथ ताप में तेजी से वृद्धि होती है। तापमण्डल को पुनः दो उपमण्डलों ‘आयन मण्डल’ तथा ‘आयतन मण्डल’ में विभाजित किया गया है। आयन मण्डल, तापमण्डल का निचला भाग है जिसमें विद्युत आवेशित कण होते हैं जिन्हें आयन कहते हैं। ये कण रेडियो तरंगों को भूपृष्ठ पर परावर्तित करते हैं और बेतार संचार को संभव बनाते हैं। तापमण्डल के ऊपरी भाग आयतन मण्डल की कोई सुस्पष्ट ऊपरी सीमा नहीं है। इसके बाद अन्तरिक्ष का विस्तार है।
बाह्यमण्डल :- इसे वायुमण्डल का सीमांत क्षेत्र कहा जाता है। इस मण्डल की वायु अत्यंत विरल होती है।
General Science Notes |
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