राज्यों का पुनर्गठन

भाषाई आधार पर राज्यों का पुनर्गठन कब किया गया , भारत में भाषाई राज्यों का निर्माण क्यों किया गया , स्वतंत्रता के बाद भारत में राज्यों का पुनर्गठन कैसे हुआ , 1956 में भारत में कितने राज्य और कितने संघीय क्षेत्र गठित किए गए , राज्यों का पुनर्गठन , राज्यों का पुनर्गठन PDF , नए राज्यों का गठन , राज्यों का गठन वर्ष , राज्यों के निर्माण / गठन के लिए किस आयोग का निर्माण किया गया , राज्य पुनर्गठन आयोग क्या है , राज्य पुनर्गठन अधिनियम कब पारित हुआ , शुरुआत में राज्य का निर्माण किस आधार पर किया गया ,

राज्यों का पुनर्गठन

क्या राज्यों के गठन के और भी तरीके हो सकते थे :- भौगौलिक, धार्मिक और आर्थिक लेकिन भौगोलिक आधार पर गठन किसी भी प्रकार अनुकूल नहीं होता और अगर किया भी जाता तो देश में कुल मिलाकर चार या पांच राज्य ही बनते आर्थिक आधार पर गठन संभव ही नहीं था रह गया धार्मिक तो लार्ड कर्जन ने 20वीं सदी की शुरुआत में जो बंगाल विभाजन किया था वह एक त्रासदी थी जिसे ब्रिटिश सरकार ने बाद में बंगाल का एकीकरण करके ठीक किया पर अंग्रेजों ने जाते-जाते इसी आधार पर देश का बंटवारा भी कर दिया और इस त्रासदी को ठीक नहीं किया जा सका, इसके उलट महात्मा गांधी मानते थे कि प्रांतीय भाषाएं देश को एक सूत्र में पिरोकर रख सकती हैं शायद इसीलिए या सिर्फ इत्तेफ़ाक है कि धर्म के नाम पर जो हुआ उसे विभाजन कहा गया और भाषा के आधार पर जो हुआ उसे पुनर्गठन आइये देखें, यह कैसे हुआ

यह भी पढ़े :
किसान आंदोलन

तत्कालीन राजनैतिक परिदृश्य :- उस वक़्त तीन श्रेणी के राज्य थे पहली श्रेणी में वे नौ राज्य थे जो तत्कालीन ब्रिटिश सरकार में गवर्नर के अधीन थे और जो अब निर्वाचित गवर्नरों और विधान पालिका द्वारा शाषित थे इनमें असम, बिहार, मध्य प्रदेश (मध्य प्रान्त और बिहार), मद्रास, उड़ीसा, पंजाब और उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल और बॉम्बे आते थे, दूसरी श्रेणी उन राज्यों की थी जो पहले रियासतदारों के अधीन थे और जिन्हें अब राज प्रमुख और विधान पालिकाएं संभाल रही थीं इनमें मैसूर, पटियाला, पूर्वी पंजाब, हैदराबाद, राजपूताना के इलाक़े, सौराष्ट्र और त्रावनकोर शामिल थे |

Advertisements

आयोग का प्रस्ताव :- आयोग ने इन तीनों श्रेणियों को ख़त्म करके नए राज्य बनाने का प्रस्ताव दिया था तत्कालीन मद्रास प्रान्त से तेलगु, कन्नड़, तमिल और मलयालम भाषाई बहुलता वाले इलाकों को अलग-अलग करके आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, मद्रास और केरल को बनाना प्रस्तावित किया गया था उधर, उत्तर में यानी हिंदी भाषाई इलाकों में राजस्थान, बिहार, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के बनाने का प्रस्ताव दिया गया था, ठीक उसी प्रकार, पूर्व के राज्यों का गठन हुआ उड़ीसा और जम्मू-कश्मीर में कोई परिवर्तन नहीं किया गया जबकि दिल्ली, मणिपुर और अंडमान निकोबार को केंद्र शासित प्रदेश माना गया |

आयोग का बॉम्बे और विदर्भ :- तत्कालीन बॉम्बे राज्य में से बनासकांठा जिले के आबू रोड, कन्नड़भाषी धारवाड़, बेलगाम, बीजापुर आदि को निकालकर अलग करने की बात कही गई और हैदराबाद के मराठीभाषी ओस्मानाबाद, औरंगाबाद, परभनी, नांदेड के साथ-साथ कुछ और सौराष्ट्र इलाकों को इसमें जोड़ने का प्रस्ताव दिया गया. उधर, विदर्भ में मध्यप्रदेश के मराठी बहुल इलाक़ों जैसे नागपुर, यवतमाल, अमरावती, बुलढाणा, वर्धा, भंडारा आदि का समावेश होना था

बॉम्बे सिटिज़न्स कमेटी और संयुक्त महाराष्ट्र परिषद की भिड़ंत :- बॉम्बे सिटिज़न्स कमेटी व्यापारियों का गुट था जिसमें पुरुषोत्तमदास ठाकुरदास और जेआरडी टाटा जैसे दिग्गज थे इनकी मांग थी कि बॉम्बे शहर को अलग रखकर एक पूर्ण राज्य के माफिक दर्ज़ा दिया जाए इसके पीछे उनकी दलील थी कि बॉम्बे में देश भर के लोग रहते हैं यह भी कि यह बहु-भाषाई शहर है जिसमें मराठी बोलने वाले महज़ 43 फीसदी ही हैं. और भी कई बातें कही गईं जैसे कि बॉम्बे देश की आर्थिक राजधानी है और इसकी भौगोलिक स्थिति बाक़ी महाराष्ट्र से इसे अलग करती है कमेटी की मांग थी कि इसे एक छोटे भारत जैसे मॉडल के रूप में पेश किया जाना चाहिए, इंडिया आफ्टर गांधी’ में रामचंद्र गुहा लिखते हैं कि कमेटी के ‘बॉम्बे बचाओ’ अभियान के पीछे दरअसल, गुजरातीभाषी लोगों का प्रभाव था जो यह सोचते थे कि अगर बॉम्बे महाराष्ट्र में मिला दिया गया तो मराठी लोगों का प्रदेश की राजनीति में वर्चस्व बढ़ जाएगा जिससे उनके हितों का नुकसान हो सकता है. उनकी योजना को मुंबई के सांसद एसके पाटिल का समर्थन था जिनकी अपनी महत्वकांक्षाएं थीं, उधर, संयुक्त महाराष्ट्र परिषद् इसके ख़िलाफ़ थी उसको बॉम्बे के बिना विदर्भ मंज़ूर नहीं था पुणे के सांसद एनवी गाडगिल परिषद के साथ थे उनका कहना था कि जब अन्य जगहों पर भाषा पर आधारित पुनर्गठन हुआ है तो बॉम्बे को क्यों अलग किया जा रहा है उन्होंने संसद में एक जबर्दस्त भाषण भी दिया था जिसमें उन्होंने मराठियों का देश की आजादी और आर्थिक प्रगति में योगदान याद दिलाया था भीमराव अम्बेडकर के अलावा जनसंघ के नेता भी कुछ ऐसा ही मत रखते थे इत्तेफ़ाक की बात है कि नेहरू भाषा के आधार पर राज्य बनने के मत में नहीं थे और उनके साथ खड़े थे जनसंघ के श्यामाप्रसाद मुखर्जी विडंबना देखिये ये दोनों ही इस मुद्दे पर अपनी-अपनी पार्टी में अलग-थलग पड़ गए थे |

राज्य पुनर्गठन आयोग की स्थापना कब हुई थी :- आजादी के बहुत पहले से ही भारत में किसी आधार पर प्रांतों को बनाये जाने की माँग की जाने लगी थी। 1920 में स्वयं कांग्रेस सरकार ने इस माँग को स्वीकार भी कर लिया था। परंतु स्वतंत्रता के बाद जब केन्द्र की कांग्रेस सरकार इस तरफ ध्यान न देकर अंग्रेजों की भाँति ही गणराज्य की नई इकाइयों का निर्माण करने लगी तो लोगों में भाषा और संस्कृति के आधार पर प्रांतों के पुनर्गठन की माँग उठने लगी, स्वतंत्रता के प्रारंभिक तीन-चार वर्षों में कांग्रेसी सरकार ने लोगों की इस माँग की तरफ विशेष नहीं दिया। कांग्रेस के कई बङे नेताओं, जिनमें पं.जवाहलाल नेहरू भी शामिल थे, को यह आशंका उत्पन्न हो गई थी, कि भाषा और संस्कृति के आधार पर राज्यों का पुनर्गठन करने से विघटनकारी प्रवृत्तियों को बल मिलेगा। जिससे देश की राजनीतिक एवं सांस्कृतिक एकता के लिए खतरा उत्पन्न हो जायेगा, परंतु इस समस्या ने एक व्यापक आंदोलन का रूप धारण कर लिया। आंध्र में भाषा के आधार पर आंध्र राज्य की स्थापना की माँग को लेकर चलाये जाने वाले आंदोलन ने उग्र रूप धारण कर लिया और मद्रास प्रांत दंगों की लपेट में आ गया।

भाषाओं के आधार पर प्रांतों के निर्माण की माँग :- सरदार पटेल ने भारतीय गणराज्य की इकाइयों का निर्माण तो कर दिया परंतु भारत के लोगों को इससे संतोष नहीं हुआ, उनका तर्क था कि अंग्रेजों के शासनकाल में भारत के प्रांतों का निर्माण किसी सिद्धांत के आधार पर नहीं किया गया था, जैसे-2 भारत में अंग्रेजी राज्य का क्षेत्र बढता गया, वैसे-2 नये-2 प्रांत भी अस्तित्व में आते गये।विजित क्षेत्रों का किसी उचित आधार पर गठन नहीं किया गया।

राज्य-पुनर्गठन आयोग की नियुक्ति :- आंध्र राज्य की स्थापना ने इस आंदोलन को शक्ति और गति प्रदान कर दी। भारत के कुछ राज्यों को भी भाषा के आधार पर राज्यों के पुनर्गठन की माँग जोर पकङने लगी।केन्द्र सरकार दंगे-फसाद का दृश्य पुनः दोहराना नहीं चाहती थी। अतः दिसंबर, 1953 ई. में प्रधानमंत्री ने संसद में इस संबंध में घोषणा की कि भारत सरकार राज्यों के पुनर्गठन के बारे में शीघ्र ही एक आयोग नियुक्त करने वाली है, इस घोषणा से भावी दंगे-फसाद की आशंका समाप्त हो गयी।सरकार ने अपना वचन निभाते हुए तीन सदस्यों वाला एक आयोग गठित कर दिया जो राज्य -पुनर्गठन आयोग कहलाया।

धर आयोग :- भाषा के आधार पर राज्यों का पुनर्गठन उचित है या नहीं, इसकी जांच के लिए संविधान सभा के अध्यक्ष राजेंद्र प्रसाद ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के अवकाशप्राप्त न्यायाधीश एस. के. धर की अध्यक्षता में 1948 में चार सदस्यीय आयोग की नियुक्ति की. इस आयोग ने राष्ट्रीय एकता को खतरा एवं प्रशासन को भारी असुविधा का तर्क देकर भाषा के आधार पर राज्यों का पुनर्गठन का विरोध किया और प्रशासनिक सुविधा के आधार पर राज्यों के पुनर्गठन का समर्थन किया |

राज्य पुनर्गठन आयोग :- राज्य पुनर्गठन अयोग के अध्यक्ष फजल अली थे इसके
अन्य सदस्य प० हृदयनाथ कुंजरू और सरदार के एम. पणिक्कर थे राज्य पुनर्गठन अधिनियम 1 नवम्बर 1956 ई० में पास किया गया इसके अनुसार भारत में 14 राज्य एवं 6
केंद्र शासित प्रदेश स्थापित किए गए ये थे |

Rajasthan Polity Ke Impotence Question Answer

आज हम इस पोस्ट के माध्म से आपको भारत की जलवायु की संपूर्ण जानकारी इस पोस्ट के माध्यम से आपको मिल गई  अगर आपको यह पोस्ट अच्छी लगे तो आप इस पोस्ट को जरूर अपने दोस्तों के साथ शेयर करना

Leave a Comment

App