राजस्थानी साहित्य

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राजस्थानी साहित्य :- राजस्थानी भाषा के साहित्य की संपूर्ण भारतीय साहित्य म अपनी एक अलग पहचान है। राजस्थानी का चीन साहित्य अपनी विषालता एवं अगाधता मे इस भाषा की गरिमा, प्रोढ़ता एवं जीवन्तता का सूचक है । अनकानेक ग्रन्थों के नष्ट हो जाने के बाद भी हस्तलिखित ग्रन्थों एवं लोक साहित्य का जितना विषाल भण्डार राजस्थानी साहित्य का है, उतना षायद ही अन्य भाषा में हो। विपुल राजस्थानी साहित्य के निर्माणकर्ताओं को षैलीगत एवं विषयगत भित्रताओं के कारण निम्र पांच भागों कें विभक्त कर सकतें है
1) जैन साहित्य,
2) चारण, साहित्य
3) ब्राह्यण साहित्य
4) संत साहित्य,
5) लोक साहित्य।

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जैन साहित्य :- जैन धर्मावलम्बियों गथा- जैन आचार्यो, मुनियों, यतियों, एवं श्रावको तथा जैन धर्म से प्रभावित साहित्यकारों द्वारा वृहद् मात्रा में रचा गया साहित्य जैन साहित्य कहलाता है । यह साहित्य विभित्र प्राचीन मंदिरों के ग्रन्थागारों विपुल मात्रर मंे संग्रहित है । यह साहित्य धार्मिक साहित्य है जो गद्य एवं पद्य दोनों में उपलब्ध हे ।

चारण साहित्य :- राजस्थान के चारण आदि विरूद्ध गायक कवियाॅ द्वारा रचित अन्याय कृतियों को सम्मिलित रूप् से चारण साहित्य कहते है । चारण साहित्य मुख्यतः पद्य में रचा गया हे । इसमे वीर कृतियों का बाहुल्य है ।

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ब्राह्यण साहित्य :- राजस्थानी साहित्य में ब्राह्यण साहित्य अपेक्षाकृत कम मात्रा में उपलब्ध है कान्हड़दे प्रबन्ध, हम्मीरायण, बीसलदेव रासौ, रणमल छंद आदि प्रमुख गन्ंथ इस श्रेणी के ग्रन्थ है।

संत साहित्य :- मध्यकाल में भक्ति आन्दोलन की धारा में राजस्थान की षांत एवं सौम्य जलवायु मे इस भू-भाग पर अनेक निर्गुणी एवं सगुणी संत-महात्माओं का आविर्भाव हुआ। इन उदारमना संतों ने ईष्वर भक्ति में एवं जन-सामान्य कल्याणार्थ विपुल साहित्य की रचाना यहाॅ की लोक भाषा में की है । संत साहित्य अंधिकांषतः प़द्यमय ही है ।

लौक साहित्य :- राजस्थानी साहित्य में सामान्यजन द्वारा प्रचलित लोक षैली में रचे गये साहित्य की भी अपार थापी विद्यमान है । यह साहित्य लोक गाथाओं, लोकनाट्यों कहावतों, पहेलियो एवं लोक गीतों के रूप में विद्यमान है ।

राजस्थानिक साहित्य गद्य एवं पद्य दोनो मे रचा गया है । इसका लेखन मुख्यतः निम्र विधाओं में किया गया है –
1) ख्यात :- राजस्थानी साहित्य के इतिहासपरक ग्रन्थ, जनको रचना तत्कालीन षाासकों ने अपनी मान मर्यादा एवं वंषावली के चित्रत हेतु करवाई ‘ख्यात‘ कहलाते है । मुहणोत नैणसी री ख्यात, दयालदास को बीकानेर रां राठौड़ा री ख्यात आदि प्रसिद्ध है ।
2) वंषावली :- इस श्रेणी की रचनाओं में राजवंषो की वंषावलियाॅ विस्तृत विवरण सहित लिखी गई हे जैसे राठौड़ा री वंषावली, राजपूनों री वंषावली आदि।
3) वात :- वात का अर्थ कथा या कहानी से है । राजस्थान मे ऐतिहासिक, पौराणिक, प्रेम परक एवं काल्पनिक कथानकां पर वात साहित्य अपार है।
4) प्रकास :- किसी वंष अथवा व्यक्ति विषेष की उपलब्धियाॅ या घटना विषेष पर प्रकाष डालने वाली कृतियाॅं ‘प्रकास‘ कहलाती है । राजप्रकास, पाबू प्रकास, उदय प्रकास आदि इनके मुख्य उदाहरण है।
5) वचनिका :- यह एक गद्य-पद्य तुकान्त रचना होती है, जिससे अन्त्यानुप्रास मिलता है राजस्थानी साहित्य में अचलदास खाॅची री वचनिका एवं राठौड़ रतनसिंह जी महेस दासोत से वचनिका प्रमुख है । वचनिका मुख्यतः अपभ्रंष मिश्रित राजसथाानी मे लिखी हुई है ।
6) मरस्या :- राजा या किसी व्यक्ति विषेष को मृत्योपरांत षोक व्यक्त करने के लिए रचित काव्य, जिसमें उसके व्यक्ति के चारित्रिक गुणों के अलावा अन्य क्रिया-कलापों का वर्णन किया जाता है ।
7) दवावैत :- यह उर्दू-फारसी की षब्दावली से युक्त राजस्थानी कलात्मक लेखन षैली है, किसी की प्रषंसा दोहों के रूप में की जाती है ।
8) रासी :- राजाआं की प्रषंसों में लिखे गए काव्य् ग्रन्थ जिनमें उनके युद्ध अभियानों व वीरतापुर्ण कत्यों के विवरण के साथ उनके राजवंष का विवरण भी मिलता है । बीसलदेव रासी, पृथ्वीराज रासौ आदि मुख्य रासौ ग्रन्थ है |
9) वेलि :- राजस्थानी वेलि साहित्य में यहाॅ के षासकों एवं सामन्तों की वीरता, इतिहास, विद्वता,उदरता , प्रेम-भावना, स्वामिभक्ति, वंषावली आदि घटनाओं का उल्लेख होता है । पृथ्वीराज राठोड़ लिखित ‘वेलि किसन रूकमणिरी ‘ प्रसिद्ध वेलि ग्रन्थ है ।
10) विगत :- यह भी इतिहास परक ग्रन्थ लेखन की षैली है । ‘मारवाड़ रा परगना री विगत्‘ इस षैली की प्रमुख रचना है ।

राजस्थान साहित्य की विशेषताएं :-
1) राजस्थानी साहित्य गद्य-पद्य की विषिष्ट लोकपरक षैलियों यथा- ख्यात, वात, वेलि, वचनिका दवावैत आदि रूपों में रचा गया है ।
2) राजस्थाानी साहित्य में वीर रस एवं श्रृंगार रस का अद्भूद समन्वय देखने को मिलता है । यहाॅ के कवि कमल एवं तलवार के धनी रहे है अतः इन्हांने इन दानों विरोधाभासी रसों की अद्भूत समन्वय अपने सहित्य लेखन में किया है ।
3) जीवन आदर्षौ एवं जीवन मुल्यों का पोषण राजस्थाानी साहित्य में मातृभूमि के प्रति दिव्य प्रेम, स्वामीभक्ति स्वाभीमान, स्वधर्मनिष्ठ, षरणागत की रक्षा, नारी के ष्षील की रक्षा आदि जीवन मुल्यों एवं आादर्षो को पर्याप्त महत्व दिया है ।

साहित्य में प्रथम :-
1)राजस्थान की प्राचिनतम रचना :- भरतेष्वर बाहूबलिघोर ( लेखकः वज्रसेन सूरि – 1168 ई. के लगभग), भाषा -मारू गुर्जन, विवरण – भारत और बाहूबलि के बीच हुए युद्ध का वर्णन ।
2) संवतोल्लेख वाली प्रथम राजस्थानी रचना :- भारत बाहूबलि रास (1184 ई,) में ष्षलिभद्र सूरि द्वारा रचित ग्रंथ भारू गुर्जर भाष में रचित रास परम्परा में सर्वप्रथम और सर्वाधिक पाठ वाला खण्ड काव्य।
3) वचनिका षैली की प्रथम सषक्त रचना :- अचलदास खींची से वचनिका (षिवदास गाडण)
4) राजस्थानी भाषा का सबसे पहला उपन्यास :- कनक सुन्दर (1903, में भरतिया द्वारा लिखित श्री नारायण अग्रवाल का ‘चाचा‘ राजस्थानी का दूसरा उपन्यास है । )
5) राजस्थानी का प्रथम नाटक :- केसर विलास (1900- षिवचन्द्र भरतिया)
6) राजस्थानी में प्रथम कहानी :- विश्रांत प्रवास (1904- षिवचन्द्र भरतिया) (इस प्रकार षिवचन्द्र भरलिया राजस्थानी उपन्यास नाटक और कहानी के प्रथम लेखक माने जाते है ।)
7) स्वातंत्र्योत्तर काल का प्रथम राजस्थानी उपन्यास :- आभैपटकी (1956- श्रीलाल नथमल जोषी) |
8) आधुनिक राजस्थानि की प्रथम काव्यकृति :- बादली (चन्द्रसिंह विरकाली) । यह स्वतंत्र प्रकृति की प्रथम महत्त्वपुर्ण कृति है ।

राजस्थानी साहित्य की प्रमुख रचनाए :- 
1) ग्रन्थ एवं लेखक पृथ्वीराज रासौ (कवि चन्द्र बरदाई) :- इसमें अजमेर के अन्तिम चैहान सम्राट- पृथ्वीराज चैहान तृतीय के जीवन चरित्र एवं युद्धों का वर्णन । यह पिंगल में रचित वीर रस का महाकाव्य है । माना जाता है कि चन्द बरदाई पृथ्वीराज चैहान का दरबारी कवि एवं मित्र था ।
2) खुमाण रासौ ( दलपत विजय :- पिंगल भाषा के इस ग्रन्थ में मेवाड़ के बापा रावल से लेकर महाराजा राजसिंह तक के मेवाड़ षासकों का वर्णन है।
3) विरूद छतहरी, किरतार बावनौ (कवि दुरसा आढ़ा) :- विरूद् छतहरी महाराणा प्रताप को षौर्य गाथा है और किरतार बावनौ में उस समय की सामाजिक एवं आर्थिक स्थिति को बतलाया गया है दुरसा आढ़ा अकबर के दरबारी कवि थे। इनकी पीतल की बनी मूर्ति अचलगढ़ के अचलेव्श्रर मंदिर में विद्यमान है ।
4) बीकानेर रां राठौड़ा री ख्यात (दयालदास सिंढायच) :- दो खंडोे के ग्रन्थ में जोधपुर एवं बीकानेर के राठौड़ों के प्रारंम्भ से लेकर बीकानेर के महाराजा सरदार सिंह सिंह के राज्यभिषक तक की घटनाओं का वर्णन है ।
5) सगत रासौ (गिरधर आसिया) मनु प्रकाषन :-इस डिंगल ग्रन्थ में महाराणा प्रताप के छोटे भाई षक्तिसिंह का वर्णन हे । यह 943 छंदों का प्रबंध काव्य है । कुछ पुस्तकों में इसका नाम सगतसिंह रासौ भी मिलता है |
6) हम्मीर रासौ (जोधराज) :- इस काव्य ग्रन्थ में रणथम्भौर षासक राणा चैहान की वंषावली व अलाउद्दीन खिलजी से युद्ध एवं उनकी वीरता आदि का विस्तृत वर्णन है।
7) पृथ्वीराज विजय (जयानक) :- संस्कृत भाषा के इस काव्य ग्रन्थ में पृथ्वीराज चैहान के वंषक्रम एवं उनकी उपलब्धियाॅ का वर्णन किया गया है। इसमें अजमेर के विकास एवं परिवेष की प्रामाणिक जानकारी है ।
8) अजीतोदय (जगजीवन भट्ट) :-मुगल संबंधों का विस्तृत वर्णन है । यह संस्कृत भाषा में है ।
9) ढोला मारू रा दूहा (कवि कल्लोल :- डि़भाषा के श्रृंगार रस से परिपुर्ण इस ग्रन्थ में ढोला एवं मारवणी के प्रेमाख्यान का वर्णन है ।
10) गजगुणरूपक (कविया करणीदान) :- इसमें जोधपुर के महाराजा गजराज सिंह के राज्य वैभव तीर्थयात्रा एवं युद्धों का वर्णन है गाडण जोधपुर महाराजा गजराज सिंह के प्रिय कवि थे ।
11) सूरज प्रकास (कविया करणीदान) :-इसमें जोधपुर के राठौड़ वंष के प्रारंभ से लेकर महाराजा अभयसिंह के समय तक की घटनाओं का वर्णन है । साथ ही अभयसिंह एवं गुजरात के सूबेदार सरबुलंद खाॅ के मध्य युद्ध एवं अभयसिंह की विजय का वर्णन हे ।
12) एकलिंग महात्म्य (कान्हा व्यास) :-यह गुहिल षासकों की वंषावाली एवं मेवाड़ के राजनैतिक व सामाजिक संगठन की जानकारी प्रदान करता है ।
13) मूता नैणसी री ख्यात मारवाड़ रा परगना री विगत (मुहणौत नैणसी) :- जोधपुर महाराजा जसवंतसिंह – प्रथम के दीवान नैणसी की इस कृति में राजस्थान के विभिन्न राज्यों के इतिहास के साथ-साथ समीपवर्ती रियासतों (गुजरात, काठियावाड़ बघेलखंड आदि) के इतिहास पर भी अच्छा प्रकाष डाला गया है। नैणसी को राजपूताने का ‘अबुल फ़जल‘ भी कहा गया है। मारवाड़ रा परगना री विगत को राजस्थान का गजेटियर कह सकते है
14) पद्मावत (मलिक मोहम्मद जाबसी) :- 1543 ई़, लगभग रचित इस महाकाव्य में अलाउद्दीन खिलजी एवं मेवाड़ के षासक रावल रतनसिंह की रानी पद्मिनी को प्राप्त करने की इच्छा थी।
15) विजयपाल रासौ (नल्ल सिंह) :- पिंगल भाषा के इस वीर-रसात्मक ग्रन्थ में विजयगढ़(करौली) के यदुवंषी राजा विजयपाल की दिग्विजय एवं पंग लड़ाई का वर्णन है । नल्लसिंह सिरोहिया षाखा का भाट था और वह विजयगढ़ के ययुवंषी नरेष विजयपाल का आश्रित कवि था।
16) नागर समुच्चय (भक्त नागरीदास) :-यह ग्रन्थ किषनगढ़ के राजा सावंतसिंह (नागरीदास) की विभित्र रचनाओं का संग्रह है सावंतसिंह ने राधाकृष्ण की प्रेमलीला विषयक श्रृंगार रसात्मक रचनाए की थी।
17) हम्मीर महाकाव्य (नयनचन्द्र सूरि) :- संस्कृत भाषा के इस ग्रन्थ में जैन मुनि नयनचन्द्र सूरि ने रणथम्भौर के चैहान षासकों का वर्णन किया है ।
18) वेलि किसन रूक्मणि री (पृथ्वीराज राठौड़) :- सम्राट अकबर के नवरत्नों में से कवि पृथ्वीराज बीकानेर षासक रायसिंह के छोटे भाई तथा ‘पीथल‘ नाम से साहित्य रचना करते थे। इन्होंने इस ग्रन्थ में श्री कृष्ण एवं रूक्मणि के विवाह की कथा का वर्णन किया है । दुरसा आढ़ा ने इस ग्रन्थ को पाॅचवा वेद व 19वाॅ पुराण कहा है। बादषाह अकबर ने इन्हें गागरोन गढ़ जागीर में दिया था।
19) कान्हड़दे प्रबन्ध (पद्मनाभ) :- पद्मनाभ जालौर षासक अखैराज के दरबारी कवि थे । इस ग्रन्थ में इन्होंने जालौर के वीर षासक कान्हड़दे एवं अलाउद्दीन खिलजी के मध्य हुए यु़द्ध एवं कान्हड़दे के पुत्र वीरमदे अलाउद्दीन की पुत्री फिरोजा के प्रेम प्रसंग का वर्णन किया हे ।
20) राजरूपक (वीरभाण) मनु प्रकाषन :- इस डिंगल ग्रन्थ में जोधपुर महाराजा अभयसिंह एवं गुजरात के सूबेदार सरबुलंद खाॅ के मध्य युद्ध (1787 ई,) का वर्णन है।
21) बिहारी सतसई (महाकवि बिहारी) :- मध्यप्रदेष में जन्में कविवर बिहारी जयपुर नरेष मिर्जा राजा जयसिंह के दरबारी कवि थे। ब्रजभाषा में रचित इनका यह प्रसिद्ध ग्रन्थ श्रृंगार रस की उत्कृष्ट रचना है ।
22) बाॅकीदास री ख्यात (बाॅकीदास) (1838-90 ई,) :- जोधपुर के राजा मानसिंह के काव्य गुरू बाॅकीदास द्वारा रचित यह ख्यात राजस्थान का इतिहास जानने का स्त्रोत है । इनके ग्रन्थों का संग्रह ‘बाॅकीदास ग्रन्थवली‘ के नाम से प्रकाषित है । इनकें अन्य ग्रन्थ मानजसोमण्डल व दातार बावनी भी है।
23) कुवलमयाला (उद्योतन सूरी) :- इस प्राकृत ग्रन्थ की रचना उद्योतन सूरी ने जालौर में रहकर 778 ई, के आसपास की थी जो तत्कालीन राजस्थान के सांस्कृतिक जीवन की अच्छी झाकी प्रस्तुत करता है ।
24) ब्रजनिधि ग्रन्थावली :- यह जयपुर के महाराजा प्रतापसिंह द्वारा रचित काव्य ग्रन्थों का संकलन है ।
25) हम्मीद हठ,सुर्जन :- बूंदी षासन राव सुर्जन के आश्रित कवि चन्द्रषेखर द्वारा रचित।
26) प्राचीन लिपिमाला,राजपुताने का इनिहास (पं.गौरीषंकर औझा) :- पं. गौरीषंकर हीराचन्द्र ओझा भारतीय इतिहास साहित्य के पुरीधा थे, जिन्होंने हिन्दी में सर्वप्रथम भारतीय लिपी का षास्त्र लेखन कर अपना नाम गिनीज बुक मे लिखवाया। इन्होंने राजस्थान के देषी राज्यों का इतिहास भी लिखा है । इनका जन्म सिरोही रियासत में 1863 ई. में हुआ था।
27) वचनिया राठौड़ रतन सिंह महे सदासोत री(जग्गा खिडि़या) :- इस डिंगल ग्रंथ में जोधपुर महाराजा जसवंतंिसंह के नेतृत्व में मुगल सेना एवं मूगल सम्राट षाहजहाॅ के विद्रोही पुत्र औरंगजेब व मुराद की संयुक्त सेना के बीच धरमत (उज्जैन, मध्यप्रदेष) के युद्ध मंे राठौड़ रतनसिंह के वीरतापूर्ण युद्ध एवं बलिदान का वर्णन हे ।
28) बीसलदेव रासौ (नरपति नाल्ह) :- इसमें अजमेर के चैहान षासन बीसलदेव (विग्रहरा चतुर्थ) एवं उनकी रानी राजमती की प्रेमगाथा का वर्णन है ।
29) रणमल छंद (श्रीधर व्यास) :- इनमें से पाटन के सूबेदार जफर खाॅ एवं इडर के राठौड़ राजा रणमल के युद्ध (संवर्त 1454) का वर्णन है। दुर्गा सप्तषती इनकी अन्य रचना है।श्रीधर व्यास राजा रणमल का समकालीन था।
30) अचलदास खींची री वचनीका (षिवदास गाडण) :- सन् 1430-35 के मध्य रचित इस डिंगल ग्रन्थ में मांडू के सुल्तान हौषंगषाह एवं गागरौन के षासक अचलदास खींची के मध्य हुए युद्ध (1423 ई.) का वर्णन है एवं खींची षासकों की संक्षिप्त जानकारी दी गई है।
31) राव जैतसी रो छंद(बीठू सूजाजी) :- डिंगल भाषा के इस ग्रन्थ में बाधर के पुत्र कामरान एवं बीकानेर नरेष राव जैतसी के मध्य हुए युद्ध का वर्णन है ।
32) रूक्मणी हरण, नागदमण(सायांजी झूला) :- ईडन नेरष राव कल्याणमल के आश्रित कवि सायंाजी द्वारा इन डंगल ग्रन्थों की रचना की गई।
33) वंष भास्कर(सूर्यमल्ल मिश्रण)(1815-1868 ई.) :- वष भास्कर को पूर्ण करने का कार्य इनके दत्तक पुत्र मुरारीदान ने किया था। इनके अन्य ग्रन्थ है -बलवंत विलास, वीर सतसई व छंद-मयूख उम्मेदसिंह चरित्र, बुद्धसिंह चरित्र।
34) वीर विनोद (कविराज ष्यामलदास दधिवाडि़या) :- मेवाड (वर्तमाान भीलवाड़ा) में 1836 ई. में जन्में एवं महाराण सज्जन के आश्रित कविराज ष्यामलदास ने अपने पर प्रारंभ की । चार खंडों में रचित इास ग्रन्थ पर कविराज की ब्रिटिष सरकार द्वारा ‘केसर-ए-हिन्द‘ की उपाधि प्रदान की गई । इस ग्रन्थ में मेंवाड़ के विस्तृत इतिहास वृृत्त सहित अन्य संबंधित रियासतों का भी इतिहास वर्णन हं । मेवाड़ महाराणा सज्जनसिंह ने ष्यामलदास को ‘कविराज‘ एवं सन् 1888 मं ‘महामहोपाध्याय‘ की उपाधि से विभूषि किया था ।
35) चेतावणीरा चुॅगट्या (केसरीसिंह बाहरठ) मनु प्रकाषन :- इन दोहों के माध्यम से कवि केसरीसिंह बारहठ ने मेवाड के स्वाभिमानी महाराजा फतेहसिंह को 1903 ई, के दिल्ली में जाने से रोका था। ये मेवाड़ के राज्य कवि थे।

मुस्लिम लेखकों की कृतियाँ :- तारीख-ए-फरिश्ता(मुहम्मद कासिम फरिष्ता) तारीख कासिम फारिष्ता-इस ग्रन्थ में महाराण कुंभा, मारवाड़ षासन राजमल की गतिविधियां मेवाड-ईडर संबंधों व अकबर द्वारा अजमेर में करवाये गये निर्माण कार्यो के बारे में जानकारी मिलती है ।
तारीख-ए-षेरषाही- अब्बास खाॅ सरवानी ने इस ग्रन्थ में गिरी सुमेल युद्ध (षेरषाह सूरी एवं जोधपुर के राव मालदेव मध्य) का वर्णन किया है । सरवानी युद्ध केसमय षेरषाह की सेना मंे मौजूद था, तुजुक-ए-बाबरी (बाबर)-प्रथम मुगल बादषाह जहीरूद्दीन मुहम्मद बाबर द्वारा तुर्की भाषा में लिखित आत्महत्या बाबर तैमूर लंग का वंषज था। इस ग्रन्थ से खानवा के युद्ध के बारे में जानकारी मिलती है, आइने अकबरी एवं अकबरनामा (अबुल फजल)- अकबर के नवरत्नों मे से एक अबुल फजल द्वारा अकबर की जीवनी आइनेअकबरी तथा ऐतिहासिक ग्रन्थ अकबरनामा लिखे गये । अकबरनामा में तैमूर से हुमाॅयू तक वंष इतिहास दिया हुआ हे एवं अकबर के काल का विस्तृत वर्णन है । अबुल फजल द्वारा अकबर को लिखे गये पत्रों में संकलन रूक्कत ए अबुल फजल कहलाता है ।

तारीख-उल हिन्द (अलबरूनी) :- अलबरूनी द्वारा लिखित इस ग्रन्थ में 1000ई, के आसपास की राजस्थान की सामाजिक आर्थिक स्थिति के बारे मं जानकारी मिलती है, तारीख-ए -यामिनी (अलउतबी)-अलउतबी के इस ग्रन्थ में महमूद गजनवी के राजपूतों के साथ हुए संधर्षो की जानकारी प्राप्त होती है, तारीख-ए-अलाई खजाईनुल -फतुह- अमीर खुसरो ने इस गन्थ मंे अलाउद्दीन खिलजी एवं मेवाड़ के राणा रतनसिंह के युद्ध (130 ई.) एवं सती प्रथा का वर्णन किया है । खुसरो युद्धों में खिलजी के साथ ही था।

प्रमुख रचनाकार – रचनाएँ :-
1) तैस्सीतोर एल पी – ए डिस्क्रीप्टिव केटलोग ऑफ दि बार्डिक एण्ड हिस्टोरिकल क्रोनिक
2) पन्निक,के, एम, -हिज हाइनेस दि महाराजा ऑफ जार्ज टोमस
3) फ्रैंकलिब विलियम, – मिलट्री ममोयर्स ऑफ जार्ज टोमस
4) फारेस्ट जी, डब्ल्यु – ए हिस्ट्री ऑफ दि इण्डियन म्युटिनी
5) बर्नियर – ट्रावल्स इन दि मुगल एम्पायर (1656 -68)
6) वी, पी, मैनन – दि स्टोरी ऑफ दि इंटीग्रेषन ऑफ दि इण्डियन स्टेट्स
7) टामस रो – दि एम्बेसी ऑफ सर टामस रो टू दि कोर्ट ऑफ दि ग्रेट मुगल
8) षारंगधर – षारंगधर संहिता संस्कृत भाषा का प्रसिद्ध वैद्यक ग्रन्थ है।
9) महत्त्वपूर्ण तथ्यः डिंगल और पिंगलः डिंगल और पिंगल राजस्थानी साहित्य की प्रमुख शेलियाँ हें
10) डिंगल‘ शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग राजस्थान के प्रसिद्ध कवि आसिंयाँ बकिदास ने अपनी रचना
11) कुकविचतीसी (वि.स.1871) में किया । डिंगल साहित्य प्रधानत वीर रसात्मक।

डिंगल पिंगल :-
1)पश्चिमी राजस्थानी (मारवाड़ी) का साहित्यिक रूप।
2) डिंगल का अधिकांष साहित्य चारण कवियों द्वारा लिखित
3) विकास गुर्जरी अपभ्रंष से।
4) ग्रंथ राजरूपक वचनिका राठौड़ रतनसिंह महेसदासौत रो अलचदास खींची री वचनिका, राव जैतसी रौ छंद, रूक्मणि हरण, नागदमण, रागतरासौ, ढोला मारू रा दूहा। ब्रजभाषा एवं सूची राजस्थानी का साहित्यिक रूप, अधिकांष साहित्य भाट जाति के कवियों द्वारा लिखित विकास शोरसैनी अप |

Rajasthan Art And Culture Notes

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