गुर्जर प्रतिहार वंश का अंतिम शासक कौन था , प्रतिहार राजा नागभट्ट प्रथम की राजधानी कौन सी नगरी थी , प्रतिहार वंश का महानतम राजा कौन था , मिहिर भोज किसका पुत्र था , गुर्जर प्रतिहार वंश PDF , गुर्जर प्रतिहार वंश प्रश्न , गुर्जर प्रतिहार वंश के राजाओं के नाम , गुर्जर प्रतिहार वंश का वास्तविक संस्थापक , गुर्जर प्रतिहार ke Question , प्रतिहार वंश की मंडोर शाखा , प्रतिहार राजपूत वंश , गुर्जर वंश की , राजस्थान में गुर्जर प्रतिहार वंश ,
राजस्थान में गुर्जर प्रतिहार वंश
गुर्जर प्रतिहार वंश :- गुर्जर प्रतिहार वंश की स्थापना नागभट्ट नामक एक सामन्त ने 725 ई. में की थी। उसने राम के भाई लक्ष्मण को अपना पूर्वज बताते हुए अपने वंश को सूर्यवंश की शाखा सिद्ध किया। अधिकतर गुर्जर सूर्यवंश का होना सिद्द करते है तथा गुर्जरो के शिलालेखो पर अंकित सूर्यदेव की कलाकृर्तिया भी इनके सूर्यवंशी होने की पुष्टि करती है।आज भी राजस्थान में गुर्जर सम्मान से मिहिर कहे जाते हैं, जिसका अर्थ सूर्य होता है, विद्वानों का मानना है कि इन गुर्जरो ने भारतवर्ष को लगभग 300 साल तक अरब-आक्रन्ताओं से सुरक्षित रखकर प्रतिहार (रक्षक) की भूमिका निभायी थी, अत: प्रतिहार नाम से जाने जाने लगे।रेजर के शिलालेख पर प्रतिहारो ने स्पष्ट रूप से गुर्जर-वंश के होने की पुष्टि की हैनागभट्ट प्रथम बड़ा वीर था। उसने सिंध की ओर से होने से अरबों के आक्रमण का सफलतापूर्वक सामना किया। साथ ही दक्षिण के चालुक्यों और राष्ट्रकूटों के आक्रमणों का भी प्रतिरोध किया और अपनी स्वतंत्रता को क़ायम रखा। नागभट्ट के भतीजे का पुत्र वत्सराज इस वंश का प्रथम शासक था, जिसने सम्राट की पदवी धारण की, यद्यपि उसने राष्ट्रकूट राजा ध्रुव से बुरी तरह हार खाई। वत्सराज के पुत्र नागभट्ट द्वितीय ने 816 ई. के लगभग गंगा की घाटी पर हमला किया, और कन्नौज पर अधिकार कर लिया। वहाँ के राजा को गद्दी से उतार दिया और वह अपनी राजधानी कन्नौज ले आया।
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राजस्थान में प्रतिहार वंश की उत्पत्ति :- राजपूतों की उत्पत्ति का सर्वमान्य सिद्धान्त चन्दबरदाई ने अपने ग्रंथ पृथ्वीराज रासौ के माध्यम से दिया था। पृथ्वीराज रासौ के अनुसार सिरोही के मांउण्ट आबू में वशिष्ट मुनि ने अग्नि यज्ञ किया था। इस यज्ञ से चार वीर पुरूष उत्पन्न हुए थे। प्रतिहार, परमार, चालूक्य (सोलंकी), चैहान (चह्मान)। इन चार वीर पुरूषों की उत्पति राक्षसों का सहांर करने के लिए हुई थी। यहाँ राक्षस विदेशी आक्रमणों को कहा गया है। विदेशी आक्रमणों में प्रमुख अरबी आक्रमण को कहा गया हैं। प्रतिहारों ने राजस्थान में प्रमुखतः भीनमाल (जालौर) पर शासन किया। प्रतिहारों ने 7वीं शताब्दी से लेकर 11वीं शताब्दी के बीच अरबी आक्रमणों का सफलतम मुकाबला किया।
राजस्थान में गुर्जर प्रतिहार वंश का इतिहास :- गुर्जर प्रतिहारों की कुल देवी चामुण्डा माता (जोधपुर) थी, प्रतिहारों की उत्पति के बारे में अलग-अलग विद्वानों के अलग-अलग मत हैं। आर. सी. मजूमदार के अनुसार प्रतिहार लक्ष्मण जी के वंशज थें। मि. जेक्सन ने प्रतिहारों को विदेशी माना, गौरी शंकर हीराचन्द औझा प्रतिहारों को क्षत्रिय मानते हैं। भगवान लाल इन्द्र जी ने गुर्जर प्रतिहारों को गुजरात से आने वाले गुर्जर बताये। डॉ. कनिंघगम ने प्रतिहारों को कुषाणों के वंशज बताया। स्मिथ स्टैन फोनो ने प्रतिहारों को कुषाणों को वंशज बताया। मुहणौत नैणसी ने गुर्जर प्रतिहारों को 26 शाखाओं में वर्णित किया। सबसे प्राचीन शाखा मण्डोर की मानी जाती है। राजस्थान के इतिहास के कर्नल जेम्स टॉड ने इनको विदेशी- शक, कुषाण, हूण व सिथीयन के मिश्रण की पाँचवीं सन्तान बताया था। प्रतिहारों ने मण्डोर, भीनमाल, उज्जैन तथा कनौज को अपनी शक्ति का प्रमुख केन्द्र बनाकर शासन किया था।
हरीष चन्द्र (रोहिलद्धि) :- हरीष चन्द्र ने मण्डोर की स्थापना की तथा प्रतिहार वंश की राजधानी भी मण्डोर को बनाकर शासन आरम्भ किया। हरीष चन्द्र को गुर्जर प्रतिहारों का मूल पुरूष अर्थात् संस्थापक माना जाता है, हरीष चन्द्र के समकालीन कनौज का अयोग्य शासक इन्द्रायुद्ध कन्नौज के महान शासक हर्षवर्धन की मृत्यु के बाद बना था। इन्द्रायद्ध के समय बंगाल में पाल वंश की स्थापना गोपाल तथा दक्षिण भारत में राष्ट्रकूट वंश की स्थापना दन्तीदुर्ग ने की थी।
प्रतिहार शासकों में झोट प्रतिहार एकमात्र ऐसा शासक था जो वीणा वादक था, इसने रावल जाति को अपने दरबारी के रूप में नियुक्त किया था।
नागभट्ट प्रथम (730-756 ई. ) :- इसने प्रतिहार वंश की राजधानी भीनमाल को बनाया, भीनमाल की यात्रा चीनी यात्री ह्वेनसांग ने की। ह्वेनसांग ने भीनमाल को पीलीभोलों के नाम से पुकारा था। भीनमाल की प्रतिहार वंश की शाखा को रघुवंशी प्रतिहार शाखा भी कहते है।
नागभट्ट प्रथम के काल में राजस्थान में अरबी आक्रमण प्रारम्भ हो गये थे। इन आक्रमणों का नागभट्ट प्रथम ने सफलतम मुकाबला किया। इसलिए नागभट्ट प्रथम को प्रतिहार साम्राज्य का वास्तविक संस्थापक माना जाता है। इसके दरबार को नागावलोक दरबार कहते थे। ग्वालियर अभिलेख में नागभट्ट को मलेच्छों (अरबियों) का नाशक कहा गया है। नागभट्ट प्रथम को क्षत्रिय ब्राह्मण, राम का प्रतिहार, नागावलोक, नारायण की मूर्ति का प्रतीक, इन्द्र के दंभ का नाश करने वाला भी कहा गया है, अरबी आक्रमणों का मुकाबला करने के लिए चाहिए थी सेना और सेना को देने के लिए चाहिए था धन, नागभट्ट प्रथम ने अपने पूर्वजों का संचित धन मुकाबलों में बर्बाद कर दिया था। इसलिए परेशान होकर इसने अपनी शक्ति का केन्द्र उज्जैन (अवन्ती) को बनाया था अर्थात् अपनी दूसरी राजधानी उज्जैन (मध्यप्रदेश) बनाई थी। नागभट्ट के उत्तराधिकारी कक्कुक व देवराज बने थे। देवराज को उज्जैन का शासक कहा जाता था।
वत्सराज (783-795 ई.) :- वत्सराज के समकालीन कन्नौज का अयोग्य शासक इन्द्रायुद्ध ही था, कन्नौज गंगा व यमुना के दोआब के बीच स्थित है। दो नदियों के बीच का क्षेत्र दोआब कहलाता हैं, तथा यह क्षेत्र अतिउपजाऊ होता हैं, वत्सराज ने कन्नौज के अयोग्य शासक इन्द्रायुद्ध को देखकर उस पर आक्रमण किया तथा इन्द्रायुद्ध को हराया भी था। लेकिन यह बात बंगाल में पाल वंश शासक धर्मपाल को पसंन्द नहीं आई इसलिए धर्मपाल ने वत्सराज पर आक्रमण किया। धर्मपाल आया तो था जीतने पर स्वयं मुंगेर के युद्ध में हार गया, दक्षिणी भारत में राष्ट्रकूट वंश के शासक ध्रुव प्रथम को इस बात का पता था कि कन्नौज को लेकर प्रतिहार व पाल वंषों के मध्य मुकाबला हो रहा है। इसलिए राष्ट्रकूट वंश के शासक ध्रुव प्रथम ने प्रतिहार वंश के शासक वत्सराज पर आक्रमण किया तथा उसको हराया था, यहाँ पर कन्नौज को लेकर तीन वंशों (प्रतिहार, पाल, राष्ट्रकूट) के मध्य मुकाबले हुए थे इसलिए इसको त्रिपक्षीय संघर्ष के नाम से जाना जाता हैवत्सराज ने भीनमाल में राजसूय यज्ञ किया था। वत्सराज वैष्णव धर्म को संरक्षण देता था, इसलिए जयवराह भी कहा जाता था। वत्सराज ने माण्डी वंश को हराया था। इसलिए उसको रणहस्तिन भी कहा गया है।
वत्सराज के दरबार में उद्योतन सूरी (ग्रंथ- कुवलयमाला,778 ई.) व जिनसेन सूरी (ग्रंथ-हरिवंश पुराण) रहते थे। वत्सराज ने जोधपुर के ओसिया में महावीर स्वामी के मंदिर का निर्माण करवाया जो पश्चिमी भारत का सबसे प्राचीन जैन मंदिर है।
नागभट्ट द्वितीय (795-833 ई.) :- वत्सराज व रानी सुन्दर देवी का पुत्र नागभट्ट द्वितीय था जिसने 806 ई. से 808 ई. के मध्य राष्ट्रकूट वंश के शासक गोविन्द तृतीय से युद्ध किया, इस युद्ध में नागभट्ट द्वितीय की पराजय हुई, इस पराजय के पश्चादत् नागभट्ट द्वितीय ने हिम्मत नहीं हारी और अपनी तैयारी में वापस लग गया लेकिन गोविन्द तृतीय वृद्ध हो गया तथा अपनी घरेलू समस्या में फँस गया जिसका नागभट्ट द्वितीय ने फायदा उठाकर आक्रमण कर दिया, और कन्नौज के शासक चन्द्रायुद्ध को हराकर कन्नौज पर अधिकार किया और अपनी राजधानी बनाई तथा इसके साथ ही प्रतिहारों की कन्नौज शाखा का आरम्भ किया, नागभट्ट द्वितीय ने बंगाल के शासक धर्मपाल को पराजित कर मुंगेर पर अधिकार किया तथा अरबी आक्रमणों को रोका तथा नागभट्ट द्वितीय ने परमभट्टारक, महाराजाधिराज, परमेश्वंर की उपाधियाँ धारण की और त्रिपक्षीय संघर्ष को समाप्त करने का श्रेय नागभट्ट को जाता है, नागभट्ट द्वितीय ने बुचकेला (जोधपुर) में एक विष्णु तथा शिव मंदिर बनवाया, जो वर्तमान में शिव तथा पार्वती के मंदिर के रूप में विख्यात है। सन् 833 ई. में नागभट्ट द्वितीय ने गंगा में जल समाधि ली।
रामभद्र (833-836 ई.) :- 833 से 836 तक नागभट्ट द्वितीय का पुत्र प्रतिहारों का शासक बना तथा रामभद्र के समय मण्डौर के प्रतिहार स्वतंत्र हो गए। रामभद्र ने अपने शासनकाल में कोई विशेष उपलब्धि हासिल नहीं की। रामभद्र को पालों के विरूद्ध हार का सामना करना पड़ा।
मिहिर भोज प्रथम (836-889 ई.) :- रामभद्र का पुत्र मिहिर भोज प्रथम 836 में प्रतिहारों का शासक बना इनकी माता का नाम अप्पादेवी था। मिहिर भोज उत्तरी भारत का अपने समय का सबसे शक्तिशाली शासक था, इस शासक के बारे में जानकारी ग्वालियर के शिलालेख/प्रशस्ति से मिलती हैं तथा इस शासक के बारे जानकारी अरबी यात्री सुलेमान देता है, सुलेमान ने मिहिरभोज को इस्लाम का सबसे बड़ा शत्रु व अरबों के प्रति शत्रु भाव रखने वाला बताया। मिहिरभोज वैष्णव धर्म का संरक्षक था यह भगवान विष्णु का उपासक था इसलिए आदिवराह व प्रभास पाटन आदि उपाधियों से विभूषित किया गया, मिहिर भोज अपने पिता रामभद्र की हत्या कर शासक बना, इस कारण मिहिर भोज इतिहास में प्रतिहारों में पितृहंता कहलाता हैं। इसने राष्ट्रकूट वंश के शासक कृष्ण तृतीय को हराकर मालवा पर अधिकार कर लिया तथा इसने पाल वंश के शासक देवपाल व विग्रह पाल को हराकर अन्तिम रूप से कन्नौज पर अपना अधिकार जमाया, मिहिर भोज के समय चाँदी व ताँबे के सिक्के मिले है। इन सिक्कों पर श्री मदआदिवराह शब्द अंकित है। बग्रमा अभिलेख (उतरप्रदेश) में मिहिरभोज को सम्पूर्ण पृथ्वी को जीतने वाला बताया गया है, स्मरणीय तथ्य – सुलेमान ने प्रतिहार व पाल वंश के शासकों के उस समय की आर्थिक, सामाजिक व राजनीतिक स्थितियों का वर्णन किया हैं, इसने मिहिर भोज को बरूआ भी कहा था तथा हिन्दुस्तान को काफिरों का देश बताया था।
महेन्द्रपाल प्रथम:- 889 ई :- मिहिरभोज का पुत्र मेहन्द्रपाल प्रथम प्रतिहारों का शासक बना तथा महेन्द्रपाल के दरबारी राजशेखर ने इसे निर्भय नरेश कहा था। इसका दरबारी साहित्यकार एवं गुरू राजशेखर था। महेन्द्रपाल प्रथम के गंरथ कर्पूरमंजरी, काव्यमीमांसा, बाल रामायण, बाल महाभारत तथा हरविलास प्रमुख है, महेन्द्रपाल प्रथम को रघुकुल चूड़ामणी, निर्भयराज व निर्भय नरेन्द्र, महीषपाल तथा महेन्द्रायुध आदि नामों से भी पुकारा जाता है। महेन्द्रपाल प्रथम ने परमभट्टारक, परमभागवत, परमेश्व र आदि उपाधियाँ धारण की, महेन्द्रपाल प्रथम के पश्चाहत् इसका पुत्र भोज द्वितीय राजा बना लेकिन इसकी कोई विशेष उपलब्धि नहीं थी 914 में उसके सोतेले भाई महिपाल प्रथम ने उससे राज्य छीन लिया। इतिहासकार बी.एन.पाठक ने अपने ग्रन्थ ‘उत्तर भारत का राजनैतिक इतिहास‘ में प्रतिहार शासक महेन्द्रपाल प्रथम को ‘‘हिन्दू भारत का अन्तिम महान् हिन्दू सम्राट‘’ माना हैं।
महिपाल प्रथम :- गुर्जर प्रतिहारों का अंतिम प्रभावशाली राजा था। महिपाल प्रथम के शासनकाल से प्रतिहारों का पतन शुरू होता हैं, महिपाल प्रथम को गुरू राजशेखर ने आर्यावर्त का महाराजाधिराज व रघुकुल मुकुटमणी के नाम से पुकारा तथा इनको विनायकपाल एवं हेरम्भपाल के नाम से भी जाना जाता हैं, बगदाद के अरब यात्री अलमसूदी ने कन्नौज की यात्रा की। इसके सिंहासन पर बैठते ही राष्ट्रकूट वंश के नरेश इन्द्र तृतीय ने कन्नौज पर आक्रमण कर दिया और कन्नौज को अपने अधिकार में कर लिया तथा महिपाल प्रथम राष्ट्रकूटों से पराजित होकर कन्नौज से भाग गया, लेकिन चन्देल नरेश की सहायता से महिपाल ने पुनः कन्नौज पर अधिकार कर लिया।
महेन्द्रपाल द्वितीय :- महिपाल के बाद महिपाल प्रथम व प्रज्ञाधना का पुत्र महेन्द्रपाल द्वितीय गद्दी पर बैठा। इसके पश्चापत् देवपाल राजा बना, इसके समय चन्देलों ने स्वतंत्र राज्य बना लिया तथा विजयपाल के समय गुजरात में चालुक्य राजाओं ने अपने आप को स्वतंत्र बना लिया तथा इसके बाद में राज्यपाल शासक बना।
राजपाल/राज्यपाल :- प्रतिहार शासक राज्यपाल के समय महमूद गजनवी ने कन्नौज पर आक्रमण किया जिससे डरकर राज्यपाल/राजपाल कन्नौज छोड़कर भाग गया।
राजपाल की कायरता के कारण भारतीय राजाओं ने संघ बनाकर इसे मार डाला। इसके बाद त्रिलोचनपाल प्रतिहारों का शासक बना, जो महमूद गजनवी का आक्रमण नहीं झेल पाया।
यशपाल :- प्रतिहार वंश का अंतिम शासक बना इस प्रकार प्रतिहारों के साम्राज्य का 1093 ई. में पतन हो गया। 11वीं शताब्दी में कन्नौज पर गहड़वाल वंश ने अपना अधिकार स्थापित कर लिया।
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