राजस्थान मे किसान आंदोलन

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1.) बिजौलिया किसान आंदोलन :- बिजौलिया किसान आंदोलन मेवाड़ रियासत में हुआ था जिसे धाकड़ जाट किसान आंदोलन भी कहा जाता है। 1897 ई. में साधू सिताराम दास के नेतृत्व में बिजौलिया किसान आन्दोलन की षुरूआत हुई। उस समय बिजोलिया के ठिकानेदार राव कृष्णसिंह थे और महाराणा फतेह सिंह थे बिजोलिया के किसानों से भू राजस्व निर्धारण और संग्रहण के लिए लाटा कुंता पद्धति प्रचलित थी इसके अंतर्गत किसान अपनी मेहनत की कमाई से भी वंचित रह जाता था |

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2.) बेंगु किसान आंदोलन ,चित्तौड़गढ़ :- बिजोलिया किसान आन्दोलन से प्रभावित चित्तौड़गढ़ रियासत में बेगू किसान आंदोलन 1921 में मेनाल नामक स्थान पर किसानों से लाग बाग और उनकी लगान के कारण रामनारायण चौधरी के नेतृत्व में शुरू हुआ किसानो ने रामनाराणण चौधरी के नेतृत्व में बेगू में किसान सभा आयोजित की। उन्होंने फैसला किया कि ना तो फसल का कुंता कराया जायेगा और ना ही लगाते दी जाएगी, बेगू की जागीरदार ठाकूर अनूपसिंह ने सभा पर फायरिंग करवा दी। जिसमें रूपाजी धाकड़ व कृपा जी धाकड़ दो किसान मारे गए। अतः आन्दोलन और तेज हुआ। आंदोलन की शुरूआत रामनारायण चौधरी ने की बाद में इसकी बागड़ोर विजयसिंह पथिक ने सम्भाली थी।
ठाकुर अनूपसिंह को किसानों के आगे झुकना पड़ा। अनूप सिंह ने किसानों की मागे मान ली। अंग्रेजों ने अनूपसिंह को नजरबंद कर दिया और अनूपसिंह व किसानों के मध्य समझौते को बोल्शेविक समझोते का नाम दिया। आन्दोलन की जांच के लिए ट्रेच आयोग का गठन किया किसानों ने उसका बहिष्कार किया 13 जुलाई 1923 को किसानों की अहिंसक सभा पर ट्रेंच द्वारा लाठीचार्ज करवाया गया रूपा जी, कृपा जी नामक दो किसान शहीद हुए, पथिक जी ने बेगू आंदोलन की बागडोर संभाली और अंततः आंदोलन के कारण बने दबाव से बेगू ठीकाने में व्याप्त मनमानी के राजगढ़ ठाकुर शाही के स्थान पर बंदोबस्त व्यवस्था लागू की गई |

3.) अलवर में किसान आंदोलन :- अलवर में बाड़ों में सुअर पालन किया जाता था, जब कभी इन सुअर को खुला छोड़ा जाता था, तब ये फसल नष्ट कर देते थे। जिसका किसानों ने विरोध किया, जबकि सरकार ने सुअरों को मारने पर पाबंदी लगा रखी थी। लेकिन अंत में 1921 में सरकार के द्वारा सुअरों को मारने की अनुमति दे दी एवं आंदोलन शांत हो गया।

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4.) नीमूचणा किसान आंदोलन :- 1923-24 मेंअलवर के महाराजा जयसिंह द्वारा लगान की दर बढ़ाने पर 14 मई, 1925 को नीमूचणा गांव में 800 किसानों ने एक सभा आयोजित की जिस पर पुलिस ने गोलियां चलाई जिसमें सैकड़ों किसान मारे गए। गांधीजी ने इस आंदोलन को जलियांवालाबाग कांड – ‘Dyrism Double Distilled’ से भी वीभत्स की संज्ञा दी । सरकार को लगान के बारे में किसानों के समक्ष झुकना पड़ा आंदोलन रुक गया |

5.) मारवाड़ में किसान आन्दोलन :- मारवाड़ में भी किसानों पर बहुत अत्याचार होता था। 1923 ई० में जयनारायण व्यास ने ‘मारवाड़ हितकारी सभा’ का गठन किया और किसानों को आन्दोलन करने हेतु प्रेरित किया, परन्तु सरकार ने ‘मारवाड़ हितकारी सभा’ को गैर – कानूनी संस्था घोषित कर दिया, सरकार ने किसान आन्दोलन को ध्यान में रखते हुए मारवाड़ किसान सभा नामक संस्था का गठन किया, परन्तु उसे सफलता प्राप्त नहीं हुई। अब सरकार ने आन्दोलन का दमन करने हेतु दमन की नीती का सहारा लिया, परन्तु उससे भी कोई लाभ नहीं हुआ, चण्डावल तथा निमाज नामक गाँवों के किसानों पर निर्ममता पूर्वक अत्याचार किये गये तथा डाबरा में अनेक किसानों को निर्दयता पूर्वक मार दिया गया। इससे सम्पूर्ण देश में उत्तेजना की लहर फैल गई, किन्तु सरकार ने इसके लिए किसानों को उत्तरदायी ठहराया, आजादी के बाद भी जागीरदार कुछ समय तक किसानों पर अत्याचार करते रहे, परन्तु राज्य में लोकप्रिय सरकार के गठन के बाद किसानों को खातेदारी के अधिकार मिल गये।

6.) बूंदी किसान आंदोलन :- बूंदी किसान आंदोलन को बरड़ किसान आंदोलन भी कहते हैं। 1926 में पंडित नैनू राम शर्मा के नेतृत्व में बूंदी के किसानों ने लगान लाग बाग की ऊंची दरों के विरुद्ध आंदोलन छेड़ा। इनके नेतृत्व में डाबी नामक स्थान पर किसानों का एक सम्मेलन बुलाया, पुलिस ने किसानों पर गोलिया चलाई, जिसमें झण्डा गीत गाते हुए नानकजी भील शहीद हो गए, कुछ समय बाद माणिकलाल वर्मा ने इसका नेतृत्व किया। यह आंदोलन 17 वर्षं तक चला एवं 1943 में समाप्त हो गया।

7.) मातृकुण्डिया किसान आंदोलन, चित्तौड़गढ़ :- मातृकुण्डिया किसान आंदोलन 22 जून, 1880 में हुआयह एक जाट किसान आंदोलन था। इसका मुख्य कारण नई भू-राजस्व व्यवस्था थी। इस समय मेवाड़ के शासक महाराणा फतेहसिंह थे।

8.) भोमट का भील आन्दोलन :- 1918 ई० में मेवाड़ सरकार के प्रशासनिक सुधारों के विरुद्ध भोमट के भीलों ने आन्दोलन छेड़ दिया। गोविन्द गुरु ने भीलों में एकता स्थापित करने का प्रयास किया। मोतीलाल तेजावत ने भील आन्दोलन का नेतृत्व किया, जिसके कारण इस आन्दोलन ने और जोर पकड़ लिया, भीलों ने लागत तथा बेगार करने से इनकार कर दिया। सरकार ने आन्दोलन को कुचलने के लिए दमन – चक्र का सहारा लिया, किन्तु उसे सफलता नहीं मिली। इस आन्दोलन से भीलों को अनेक सुविधाएँ प्राप्त हुई। भीलों में सर्वप्रथम मोतीलाल तेजावत ने राजनीतिक चेतना जागृत की। इसके बाद भीलों की आर्थिक स्थिति को सुधारने तथा उनके अन्ध – विश्वासों को दूर करने के लिए बनवासी संघ की स्थापना की गई।

9.) दूधवा-खारा किसान आंदोलन :- यह बीकानेर रियासत के चुरू में हुआ। बीकानेर रियासत के दूधवाखारा व कांगड़ा गांव के किसानों ने जागीरदारों के अत्याचार व शोषण के विरुद्ध आंदोलन किया। इस समय बीकानेर के शासक शार्दुलसिंजी (गंगासिंहजी के पुत्र) थे। इस आंदोलन का नेतृत्व रघुवरदयाल गोयल, वैद्य मघाराम, हनुमानसिंह आर्य के द्वारा किया गया। जागीरदारों ने किसानों पर भीषण अत्याचार किए गए आंदोलन को कुचल दिया |

10.) शेखावटी किसान आंदोलन :- सीकर मे ठाकुर कल्याण सिंह द्वारा 1922 ईस्वी में 25% से 50% तक भूमि लगान वसूल किए जाने के कारण किसानों ने व्यापक आंदोलन प्रारंभ कर दिया यह आंदोलन पलथाना, कटराथल, गोधरा, कुन्दनगांव आदि गांवों में फैला हुआ था। खुड़ी गांव और कुन्दन गांव में पुलिस द्वारा की गई कार्यवाही में अनेक किसान मारे गये। शेखावटी किसान आंदोलन में जयपुर प्रजामण्डल का योगदान था। 1946 में हीरालाल शास्त्री के माध्यम से आंदोलन समाप्त हुआ, शेखावाटी आंदोलन सीकर आंदोलन का ही विस्तार था जिसमें झुनझुनु चुरु क्षेत्र के किसानों द्वारा विभिन्न स्थान पर सामंतो एवं ठाकुर के शोषण के विरुद्ध आवाज उठाई गई |

11.) किषोरीदेवी महिला आंदोलन :- सीहोर के ठाकुरद्वारा जाट महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार के विरोध में 25 अप्रैल 1934 को कटराथल नामक स्थान पर सरदार हरलालसिंह की पत्नि किषोरदेवी के नेतृत्व में जाट महिलाओं का एक सम्मेलन बुलाया गया। जिसमें लगभग 10,000 महिलाओं ने भाग लिया। श्रीमती रमादेवी, श्रीमती दुर्गादेवी, श्रीमती उत्तमादेवी ने इस आंदोलन में सक्रिय भाग लिया था।ठाकुर देशराज की पत्नी श्रीमती उत्तमा देवी के ओजस्वी भाषण ने महिलाओं में साहस और निर्भयता का संचार किया किषोरीदेवी के प्रयासों से शेखवाटी क्षेत्र में राजनैतिक चेतना जागृत हुई।

12.) मेव किसान आंदोलन :- यह अलवर व भरतपुर (मेवात) में हुआ। मेव जाति का आंदोलन 1931 में ही शुरू हुआ था अलवर, भरतपुर के मेव बाहुल्य क्षेत्र को मेवात कहते हैं। यह लगान विरोधी आंदोलन था। आंदोलन का नेतृत्व मोहम्मद अली के द्वारा किया गया। 1932 में तो इसका नेतृत्व यासीन खान ने किया अलवर के किसानों ने लगान देने से इनकार कर दिया 1933 में ब्रिटिश सरकार ने किसानों की कुछ मांगे मानकर आंदोलन रुका |

13.) जयसिंहपुरा किसान हत्याकाण्ड :- 21 जून 1934 को डूंडलोद के ठाकुर के भाई ईश्वर सिंह ने जयसिंहपुरा में खेत जोत रहे किसानों पर अंधाधुंध गोलियां बरसाई जिसमें अनेक किसान शहीद हुए। जयपुर रियासत में जयसिंहपुरा शहीद दिवस मनाया गया , ईश्वर सिंह व उसके साथियों पर मुकदमा चलाया गया उन्हें कारावास की सजा हुई जयपुर राज्य में यह प्रथम मुकदमा था जिसमें जाट किसानों के हत्यारों को सजा दिलाना संभव हो सका |

14.) सीकर शेखावाटी किसान आंदोलन :- जयपुर रियासत में सीकर टिकाने के ठाकुर कल्याण सिंह द्वारा बड़ी हुई दर् के विरोध में लगान वसूलने पर राजस्थान जाट क्षेत्रीय सभा (1931) के तत्वाधान में पलथाना में जाट सम्मेलन 1933 आयोजित किया गया इसके बाद 13 अगस्त 1934 को एवं तत्पश्चात 15 मार्च 1935 को वे किसानों व जागीरदारों के मध्य समझौतों का पालन न करने पर इस मुद्दे को अखिल भारतीय स्तर पर तथा जून 1935 को प्रसन्न के माध्यम से (हाउस ऑफ कॉमंस )में उठाया गया फलस्वरुप जयपुर महाराजा के साथ मध्यस्ता में समझौता हुआ |

15.) जाट किसान आंदोलन :- 22 जून 1880 को चित्तौड़गढ़ के रशिम परगना स्थित मातृकुंडिया नामक स्थान पर हजारों जाट किसानों ने भू राजस्व व्यवस्था के विरुद्ध जबरदस्त प्रदर्शन किया उस समय मेवाड़ महाराणा फतेह सिंह अवयस्क थे |

16.) जयपुर राज्य प्रजामंडल द्वारा जाट सम्मेलन :- 3 दिसंबर 1945 को जयपुर राज्य प्रजामंडल द्वारा ताज सर नामक स्थान पर विशाल जाट सम्मेलन का आयोजन किया गया प्रजामंडल समिति के सदस्य हीरालाल शास्त्री टीकाराम पालीवाल सरदार हरलाल सिंह और एडवोकेट श्री विद्याधर कुल्हारी थे, इनके द्वारा प्रस्तुत प्रतिवेदन राज्य के भूमि सुधारों के इतिहास में मैग्नाकार्टा कहा जा सकता है यह एक संपूर्ण दस्तावेज था जिसमें किसानों से संबंधित सभी समस्याओं भूमि का स्थाई बंदोबस्त Lagaan की न्यायोचित दर भूमि पर किसान का स्वामित्व बेदखली के विरुद्ध सुरक्षा लाग बाग वह बेगार तथा खेतों पर लगाए गए पेड़ों के अधिकार आदि का समाधान प्रस्तुत किया गया था |

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