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राजस्थान के संत संप्रदाय
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जसनाथजी :- हम्मीर जाट एवम् रूपादे के पोष्य पुत्र, जन्मस्थान- कतरियासर (बीकानेर), गुरु- गोरखनाथ
जसनाथजी ने गौरखमालिया (कतरियासर) नामक स्थान पर तप एवं 24 वर्ष की अवस्था में जीवित समाधि ली, चलाया गया पंथ- जसनाथी सम्प्रदाय, रचना- कोड़ा, सिंभूदड़ा, सिकन्दर लोदी ने जसनाथजी को कतरियासर के आस-पास की भूमि दान में दी, प्रधान पीठ- कतरियासर, जसनाथी सम्प्रदाय के कुल 36 नियम है, जोकि सिंभुदड़ा ग्रन्थ में है, अग्निनृत्य- जसनाथी सम्प्रदाय के सिद्दों के द्वारा जलते हुए अंगारों पर किया जाने वाला नृत्य। नृत्य में प्रयुक्त अंगारों को मतीरा कहा जाता है तथा फतेह-फतेह घोष के साथ नृत्य किया जाता है, अन्य स्थल- लिखमादेसर (बीकानेर),
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जाम्भोजी/जंभनाथजी :- वंश- पंवारवंशीय राजपूत, पिता- लोहट, माता- हंसादे, जन्मस्थान- पीपासर (नागौर), समाधि- मुकाम/तालवा, (नोखा तहसील, बीकानेर), इन्होंने वैष्णव, जैन, मुसलमान धर्म की अच्छी बातों को मिलाकर बिश्नोई पंथ चलाया, प्रधान पीठ- मुकाम/तालवा, रचना- जंभवाणी, जंभसागर, शब्दवाणी, जंभसंहिता, व बिश्नोई धर्म प्रकाश, बिशनोई पंथ के कुल 29 नियम है, जोकि जंभसागर ग्रंथ में लिखित है, शुद्धता, सत्याचरण व अहिंसा पर बल दिया गया है, जाम्भोजी ने पाहल नामक अभिमंत्रित जल पिलाकर शिष्यों को बिश्नोई पंथ में लाए, जांभोजी को पर्यावरण वैज्ञानिक एवम् गूंगा व गहला कहा जाता है, अन्य स्थल- जांगलू (बीकानेर), रामड़ासर, जांभा (जोधपुर), वे स्थल जहां जांभोजी ने उपदेश दिए साथरी कहलाते है, बिश्नोई पंथ के आराध्य विष्णु हैं तथा जांभोजी को बिशन नाम से जाना जाता है, जांभोजी ने समराथल से बिश्नोई पंथ की स्थापना की, बिश्नोई लोग अंतिम क्रिया के दौरान शव को दफनाते है, बिश्नोई पंथ के लोग नीले वस्त्र धारण नहीं करते है।
संत दादू :- जन्मस्थान- अहमदाबाद (गुजरात), उपाधि- राजस्थान का कबीर, गुरु- वृन्दावन, रचना- दादू रा दूहा, दादू री वाणी, संत दादू अपने साहित्य में हिन्दी मिश्रित सधुक्कड़ी भाषा का उपयोग करते थे, समाधि- दादूखोल (नरैना/नारायणा) जयपुर, चलाया जाने वाला पंथ- दादूपंथ, प्रधान पीठ- नरैना/ नारायणा, शिष्य- गरीबदास, मिस्किनदास, सुन्दरदास, रज्जबदास, संत सुन्दरदासजी ने संत दादू से गेटोलाव (दौसा) में दीक्षा ली, संत सुन्दरदासजी की रचना- सुन्दरविलास, ज्ञानसुन्दर, सुन्दरसागर, सुन्दरदास जी का प्रधान कार्यक्षेत्र सांगानेर था। इन्होंने संपुर्ण जीवन सैनिक की वेशभूषा में दादूजी के उपदेशों का प्रचार किया, रज्जबजी- रज्जबजी आजीवन दूल्हे के वेश में घूमते रहे और दादू के उपदेशों का प्रचार किया, रज्जबजी की रचना- रज्जबवाणी, सर्वंगी, अलख-दरीबा दादूपंथ के सत्संग स्थल, 1570 में संत दादू ने अकबर से मुलाकात की, संत दादू के 52 शिष्य 52 स्तम्भ/थाम कहलाते है, दादूपंथ का अभिवादन शब्द- सत्यराम, दादूपंथ के लोग सदा अविवाहित रहते हैं तथा बच्चा गोद लेकर अपनी प्रथा चलाते है, दादूपंथी अन्तिम क्रिया में मृत शरीर को जंगल में खुला छोड़ देते है, शाखाएं- खालसा- नरैना शाखा, नागा- सैनिक वृति संत जिसकी स्थापना सुन्दरदास जी ने की, खाकी- अपने शरीर पर राख मलते है, उत्तरादे- उत्तर दिशा में जाने वाले, विरक्त/निरंग- घूमक्कड़ साधु |
संतलालदासजी :- जन्मस्थान- धौलीदूब (अलवर), बचपन का नाम- खुदाबक्श, इन्होंने गद्दनचिश्ती से दिक्षा प्राप्त की, मुसलमान होते हुए भी रामभक्त, हिन्दु-मुस्लिम एकता पर बल, उपाधि- मेवात का कबीर, समाधि स्थल- बाघोली (अलवर), मृत्युस्थल- नगला जहाज (भरतपुर), चलाया गया पंथ- लालदासी पंथ, प्रधान पीठ- धौलीदूब (अलवर), सर्वाधिक मान्यता मेव जाति में है।
संत पीपा :- मूल नाम- प्रताप सिंह खिंची, पिता- कड़ावा राव, माता- लक्ष्मीवती, जन्मस्थान- गागरोण दुर्ग, गुरु- रामानन्दजी, संत पीपा को राजस्थान में भक्ति आंदोलन का जनक कहा जाता है, मुख्य मंदिर- समधड़ी (बाड़मेर), दर्जी समुदाय के आराध्य देव, इन्होंने फिरोजशाह के साथ युद्ध किया एवं उसे पराजित किया, संत पीपा की छतरी गागरोण दुर्ग में स्थित है, संत पीपा की गुफा टोडाराय (टोंक) में स्थित है।
संत धन्ना :- जन्मस्थान- धुवनग्राम (टोंक), गुरु- रामानन्दजी, इनके उपदेश धन्नाजी की आरती नामक ग्रंथ में संकलित है, धन्नाजी द्वारा रचित चार पद गुरु ग्रंथसाहिब में संकलित है, संत धन्ना ने भगवान कृष्ण की मूर्ति को बलपूर्वक भोजन करवाया, समाधि- गलताजी |
मीरा :- पिता- रतनसिंह, जन्मस्थान- कुड़की ग्राम (पाली), पति का नाम- भोजराज, बचपन का नाम- पेमल, मीरा की भक्ति सखा माधुर्य भाव की थी, उपाधि- संत शिरोमणि एवं राजस्थान की राधा, रचना- पदावलियाँ, रूक्मणी मंगल, सत्यभामा जी नू रूसणूं, नरसी मेहता री हुण्डी, नरसीजी रो मायरो (रतना खाती द्वारा संकलित), मेड़ता में स्थित चार भुजा नाथ मंदिर को मीरा का मन्दिर कहा जाता है, मीरा का अन्य मंदिर चितौड़गढ़ दुर्ग में राणा सांगा द्वारा निर्मित है, गुरु- रैदास, मीरा भगवान कृष्ण की जिस कालेरंग की मूर्ति की पूजा किया करती थी, वह मूर्ति जगत शिरोमणि मंदिर मे स्थापित है, निधन- द्वारका
गवरी बाई :- जन्मस्थान- डूंगरपुर, उपाधि- बागड़ की मीरा, महारावल शिवसिंह ने गवरीबाई के लिए डूंगरपुर में बालमुकुन्द मंदिर का निर्माण करवाया।
मुस्लिम संत :- ख्वाजा मुइनुद्दीन चिश्ती (1135-1233), पिता- ख्वाजा सैयद, माता- बीबी साहेनुर, जन्मस्थान- संजर/संजरी (फारस), इनका बचपन खुरासान में बीता, पृथ्वीराज चौहान तृतीय के शासन काल में मोहम्मद गौरी के साथ भारत आए।
1) निधन- अजमेर
2) मुख्यस्थल- अजमेर
3) मुख्य मेला- रज्जब 1 से 6 तक
4) अजमेर स्थित दरगाह का निर्माण गयासुद्दीन तुगलक ने करवाया।
5) मुगल बादशाह अकबर ने दरगाह को सांभर तक की भूमि दान में दी।
6) मान्यता/उपाधि- गरीबनवाज
7) उपदेश- रास्ते अलग अलग है पर मंजिल एक।
8) ख्वाजा साहब का उर्स रज्जब महीने की पहली तिथि से नौ दिन तक मनाया जाता है।
9) दरगाह में स्थित बड़ी देग अकबर द्वारा एवं छोटी देग जहांगीर द्वारा दान में दी गई।
10) ये हजरत शेख उस्मान हारूनी के शिष्य थे।
11) मुहम्मद गौरी ने इनको सुल्तान-उल-हिन्द की उपाधी प्रदान की।
शक्कर पीर बाबा :-
1) मुख्यस्थल- नरहड़ (चिड़ावा)
2) उपाधि- बांगड़ का धनी
3) उर्स- भाद्रपद कृष्णाष्टमी (श्रीकृष्ण जन्माष्टमी)
4) शेख सलीम चिश्ती के गुरू थे।
शेख हमीदुद्दीन नागौरी :-
1) मुख्य स्थान- नागौर
2) पृथ्वीराज चौहान तृतीय के शासनकाल में मोहम्मद गोरी के साथ भारत आए।
3) इन्हें सुल्तान-ए-तारकीन (त्याग का सम्राट) तथा सन्यासियों का सुल्तान भी कहा जाता है।
4) इनका उर्स राजस्थान का दूसरा सबसे बड़ा उर्स है।
पीर फखरूद्दीन :-
1) दाउदी बोहरा सम्प्रदाय के आराध्य।
2) मुख्य स्थान- गलियाकोट (डूँगरपुर)
3) इनकी छतरी कैलादेवी के मन्दिर के सामने स्थित है।
4) इन्हें संन्यासियों का सुल्तान कहते है।
सैफुद्दीन :-
1) मुख्य स्थान- नागौर
2) जन्मस्थान- बगदाद
3) भारत में कादरी सम्प्रदाय के संस्थापक
राजस्थान के प्रमुख सम्प्रदाय :-
1) नाथ सम्प्रदाय
2) संस्थापक- नाथमुनी
3) आराध्य- शिव
4) अन्य प्रमुख संत- मच्छेन्द्रनाथ, गोरखनाथ, भर्तृहरि, गोपीचंद
5) प्रधान पीठ- महामन्दिर (जोधपुर)
6) नाथ संम्प्रदाय के आयस देवनाथ ने जोधपुर में उत्तराधिकार संघर्ष के दौरान मानसिंह के राजा बनने की भविष्यवाणी की थी।
7) दो शाखाएं – माननाथी पंथ (महामन्दिर, जोधपुर प्रधान पीठ है, बेराग पंथ- प्रधान पीठ राताडुंगा (पुष्कर)
रामानन्दी सम्प्रदाय :-
1) आराध्य- निर्गुण निराकार राम
2) संस्थापक- रामानन्दजी (उत्तरी भारत में भक्ति आंदोलन का जनक)
3) राजस्थान में रामानन्दी सम्प्रदाय की स्थापना कृष्णदास पयहरि ने की थी।
4) प्रधान पीठ- गलताजी
5) रामानन्दी सम्प्रदाय को प्रोत्साहित करने के लिए सवाई जयसिंह ने भरपुर प्रयास किया।
6) सवाई जयसिंह के दरबारी कवि भट्ट कवि कृष्ण कलानिधि ने रामरासा ग्रंथ की रचना की।
रसिक सम्प्रदाय :-
1) आराध्य- कृष्ण
2) प्रधान पीठ- रैवासा (सीकर)
3) संस्थापक- अगरदासजी
4) यह रामानन्दी सम्प्रदाय से निकला है।
रामस्नेही सम्प्रदाय :-
1) आराध्य- निर्गुण निराकार राम
2) यहाँ रा अर्थ राम, म का अर्थ मुहम्मद से लिया जाता है।
3) संस्थापक- रामचरणजी
4) रामचरणजी का जन्मस्थान- सोडा ग्राम (टोंक)
5) वास्तविक नाम- रामकिशन
6) गुरु का नाम- कृपाराम
7) ग्रंथ- अर्णभवाणी
8) संत रामचरणजी ने रामस्नेही सम्प्रदाय की शाहपुरा (भीलवाड़ा) शाखा की स्थापना की।
9) संत दरियावजी ने रामस्नेही सम्प्रदाय की रेण (नागौर) शाखा की स्थापना की।
10) संत हरिरामदासजी ने रामस्नेही सम्प्रदाय की सिंहथल (बीकनेर) शाखा की स्थापना की।
11) संत रामदासजी ने रामस्नेही सम्प्रदाय की खेड़ाया (जोधपुर) शाखा की स्थापना की।12) रामस्नेही सम्प्रदाय का प्रमुख मेला फुलडोल मेला चैत्र कृष्णा एकम् से पंचमी तक शाहपुरा (भीलवाड़ा) में लगता है।
रामानुजन सम्प्रदाय :-
1) संस्थापक- रामानुजाचार्य
2) रामानुजाचार्य ने श्री भाष्य ग्रंथ लिखकर विशिष्टाद्वेत सिद्धांत का प्रतिपादन किया।
निम्बार्क/हंस/सनक सम्प्रदाय :-
1) आराध्य- राधा-कृष्ण
2) संस्थापक- निम्बकाचार्य
3) प्रधान पीठ- सलेमाबाद (अजमेर)
4) इन्होंने वेदान्त परिजात भाष्य नामक ग्रंथ लिखकर द्वेताद्वेत /भेदाभेद दर्शन का प्रतिपादन किया।
वल्लभ सम्प्रदाय :-
1) संस्थापक- वल्लभाचार्य
2) आराध्य- कृष्ण के बाल रूप की पुजा पर बल
3) दिन में 8 बार पुजा होती है।
4) प्रधान पीठ- नाथद्वारा
5) वल्लभाचार्य ने अणुभाष्य ग्रंथ लिखकर शुद्धाद्वेत सिद्धांत का प्रतिपादन किया।
6) किशनगढ़ शासक सावंतसिंह ने इसी सम्प्रदाय के प्रभाव में आकर स्वयं का नाम नागरीदास रखा।
7) मुलमंत्र – श्रीकृष्णशरम्गमः
वल्लभ सम्प्रदाय की 7 पीठे :-
1.) श्रीनाथ जी (नाथद्वारा)
2.) द्वारिकाधीश जी (कांकरोली)
3.) मदन मोहन मालवीय जी (करोली)
4.) मथुरेशजी (कोटा)
5.) गोकुलचन्द्रजी (कामवन, भरतपुर)
6.) गोकुलनाथजी (गोकुल, उत्तरप्रदेश)
7.) बालकृष्णजी (सुरत, गुजरात)
निरंजनी सम्प्रदाय :-
1) संस्थापक- हरिरामदास जी
2) वास्तविक नाम- हरिसिंह सांखला (पहले डाकू थे)
3) प्रधानपीठ- गाढ़ा (नागौर)
चरणदासी सम्प्रदाय :-
1) संस्थापक- चरणदासजी
2) प्रारम्भिक नाम- रणजीत
3) प्रधान पीठ- डेहरा (अलवर)
4) दो शिष्याएं- दयाबाई और सहजोबाई
5) चरणदासजी ने 1739 में हुए नादिरशाह के आक्रमण की भविष्यवाणी की थी।
6) इस सम्प्रदाय के 42 नियम है।
अलखिया सम्प्रदाय :-
1)संस्थापक- संतदासजी
2) प्रधान पीठ- दांतड़/दंतेवाड़ा (भीलवाड़ा)
महत्वपूर्ण तथ्य :-
* संत रैदास जो कि रामानन्द के शिष्य एवं मीरा के गुरु थे, की छतरी चितौड़गढ़ दुर्ग में स्थित है।
* भक्त कवि दुर्लभ को राजस्थान का नरसिंह कहा जाता है। इनका कार्यक्षेत्र डूँगरपुर, बाँसवाड़ा था।
* संत मावजी के उपदेश चोपड़ा नामक ग्रंथ में संकलित है। इनका कार्यक्षेत्र डूँगरपुर, बाँसवाड़ा था। इनकी पुत्री जनक कुमारी ने डुँगरपुर में वेणेश्वर धाम की स्थापना की।
* गोरखनाथजी ने हठयोग चलाया।
* जैन धर्म के आचार्य भिक्षु (भीकमजी) ने जैनधर्म मे तेरापंथ की स्थापना की।
* जैन धर्म के आचार्य महाप्रज्ञ ने प्रेक्षाध्ययन सिद्धांत का प्रतिपादन किया।
* आचार्य तुलसी ने अणुव्रत सिद्धांत का प्रतिपादन किया।
* औरंगजेब के काल में 1699 में हिन्दु मंदिरों को तोड़े जाने के डर से श्री नाथजी की प्रतिमा वृंदावन से लाई गई। फरवरी 1672 में मेवाड़ महाराणा राजसिंह की अनुमति से बनास नदी के किनारे पर सिहाड़ गांव वर्तमान नाथद्वारा में स्थापीत की गई।
राजस्थान में प्रचलित धर्म :-
* हिन्दु धर्म/सनातन धर्म
1) अनेक जातियाँ व प्रचलित मत
2) प्रमुख ग्रंथ- रामायण, महाभारत
3) राजस्थान में सर्वाधिक जनसंख्या- जयपुर
4) राजस्थान में प्रतिशत जनसंख्या- डूँगरपुर
* जैन धर्म :-
1) वास्तवकि संस्थापक- महावीर स्वामी
➤ प्रथम तीर्थंकर- ऋषभदेव/आदिनाथ
➤ 23 वें तीर्थंकर- पार्श्वनाथ
➤ 24 वें तीर्थंकर- महावीर स्वामी
➤ जैन साहित्य को सम्मिलित रूप से आगम कहा जाता है।
➤ दो शाखाएँ- श्वेताम्बर, दिगम्बर
➤ राजस्थान में जैन धर्म की सर्वाधिक जनसंख्या- उदयपुर
➤ सर्वाधिक प्रतिशत जनसंख्या- करौली
➤ राजस्थान में जैन धर्म के प्रमुख स्थान- धुलैव (उदयपुर), घाणेराव (पाली), आमेर, रणकपुर, माउण्ट आबू, नारलाई (पाली), लाँडनू (नागौर)
* इस्लाम धर्म :-
1) प्रर्वतक- मुहम्मद साहब
2) प्रमुख ग्रंथ- कुरान
3) दो शाखाएं – शिया (धार्मिक रूप से निरपेक्ष एवं परिवार नियोजन के पक्ष में) व सुन्नी (धार्मिक रूप से कट्टर, परिवार नियोजन के विरूद्ध एवं बहु विवाह के समर्थक)
4) राजस्थान में इस्लाम धर्म की सर्वाधिक जनसंख्या- जैसलमेर
5) प्रतिशत रूप में- अजमेर
6) फिरोजशाह तुगलक एवं औरंगजेब के शासनकाल में राजस्थान के हिन्दुओं को धर्म परिवर्तन कर मुसलमान बनाया गया जोकि कायमखानी कहलाए। राजस्थान में कायमखानी मुसलमान फतेहपुर, लक्ष्मणगढ़ (सीकर), मण्डावा, नवलगढ़ (झुंझनु) में मिलते है।
* ईसाई धर्म :-
1) प्रवर्तक- ईसा मसीह
2) जन्मस्थान- यरूशलम
3) यरूशलम तीन धर्म यहूदी, ईसाई व इस्लाम की आस्था का केन्द्र है।
4) दो शाखाएं- कैथोलिक (धार्मिक कर्मकाण्डों, मूर्तिमूजा व पोप की सत्ता मे विश्वास), प्रोटेस्टेन्ट (धार्मिक कर्मकाण्डों में विश्वास नहीं, पोप की सत्ता के विरूद्ध)
5) राजस्थान में ईसाई धर्म की सर्वाधिक जनसंख्या- अजमेर
6) राजस्थान में ईसाई धर्म की सर्वाधिक प्रतिशत जनसंख्या- बाँसवाड़ा
* सिक्ख धर्म :-
1) संस्थापक- गुरुनानक
2) जन्मस्थान- तलवंडी (पाकिस्तान)
3) प्रमुख ग्रंथ- गुरु ग्रंथ साहिब
1.) गुरुनानक
2.) गुरु अंगद- गुरुमुखी लिपि
3.) गुरु अमरदास- 22 गद्दियो की स्थापना
4.) गुरु रामदास- स्वर्ण मंदिर की नींव रखी
5.) गुरु अर्जुनदेव- स्वर्ण मंदिर का निर्माण कार्य पूर्ण करवाया एवं गुरु ग्रंथ साहिब का संकलन करवाया।
6.) गुरु हरगोविन्द- सिक्ख पंथ को सैनिक स्वरूप प्रदान किया।
7.) गुरु हरराय- सिक्ख पंथ व्याप्त सामजिक बुराईयाँ दूर की।
8.) गुरु हरकिशन- शिक्षा के प्रसार हेतु महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
9.) गुरु तेगबहादुर- धर्म हेतु आत्मबलिदान किया।
10.) गुरु गोविन्द सिंह- इन्होंने 13 अप्रेल, 1699 को खालसा पंथ की शुरूआत की। गुरु प्रथा समाप्त कर गुरुगंथ साहिब को सर्वोच्च घोषित किया।
4) राजस्थान में सिक्ख धर्म की सर्वाधिक जनसंख्या- गंगानगर, हनुमानगढ़
5) गुरुद्वारे- गुरुद्वारा बुढ़ा जोहड़ (बबला गांव, रायसिंह नगर, गंगानगर), डाडा पम्माराम का डेरा (श्री विजयनगर)
* बौद्ध धर्म :-
1) प्रवर्तक- महात्मा बुद्ध
2) प्रमुख ग्रंथ- विनयपिटक, सुतपिटक, अभिधम्म पिटक।
3) शाखाएँ- हीनयान (ये शाखा महात्मा बुद्ध को साधारण मानव मानती है।), महायान (ये शाखा महात्मा बुद्ध को ईश्वर का अंश मानती है।)
4) राजस्थान में बौद्ध धर्म की सर्वाधिक जनसंख्या- अलवर, जयपुर
5) बौद्ध का राजस्थान में प्रमुख केन्द्र- विराटनगर (यहाँ प्रथम वस्त्र निर्माण के साक्ष्य एवं बौद्ध चेत्यालय मिले है।)
* पारसी धर्म :-
1) संस्थापक – जरथ्रुस्ट
2) प्रमुख ग्रंथ – जेन्दा अवेस्ता
3) पारसी धर्म के लोग अग्नि व सूर्य के उपासक होते है।
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