राजस्थान के प्रमुख मेले और त्यौहार

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राजस्थान के प्रमुख मेले और त्यौहार

भारत के विभिन्न प्रदेशों में राजस्थान का विशिष्ट महत्व है राजस्थान का नाम लेते ही उन रणबाकुरों वीरों एवं देशभक्तों की स्मृति आ जाती है उस राजपूती शौर्य का स्मरण आ जाता है, जिसके लिए वह सहस्त्र वर्षो तक प्रसिद्ध रहा. इसी प्रकार सांस्कृतिक द्रष्टि से भी राजस्थान के जन जीवन में अनेक परम्परागत विशेषताएं द्रष्टिगत होती है भारत के अन्य भागों की तरह ही राजस्थान में भी रक्षाबंधन, दशहरा, होली, दीपावली आदि त्यौहार एवं पर्व मनाएं जाते है |
परन्तु इनके अतिरिक्त कुछ ऐसे पर्व एवं मेले भी है जो केवल राजस्थान में ही आयोजित किये जाते है वस्तुतः इन राजस्थानी पर्वो के द्वारा ही यहाँ की सांस्कृतिक झाँकी, जन जीवन में व्याप्त धार्मिक आस्था एवं रीती रिवाजों का आसानी से परिचय मिल जाता है |

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राजस्थान के प्रमुख पर्व त्यौहार (Important Festivals of Rajasthan) :-
गणगौर त्यौहार (Ganagaur festival)- गणगौर राजस्थान का प्रमुख त्यौहार है. गणगौर का अर्थ होता है. गण और गौर अर्थात शिव के गण व पार्वती, शिव और पार्वती. यह त्यौहार चैत्र सुदी चार दिनों तक चलता है कुवारीं कन्याएँ अच्छा वर पाने के लिए तथा विवाहित स्त्रियाँ अखंड सौभाग्य के लिए गणगौर की पूजा करते है राजस्थान में बिना गण की गणगौर जैसलमेर की प्रसिद्ध है इन 18 दिनों तक कुवारी कन्याएँ कई दिनों तक उपवास करती है उनके उपवास तब तक चलते रहते है जब तक कि वे उजणी (व्रत समाप्ति की दावत) नही कर देती
गणगौर का इतिहास (History of Gangaur)- गाँव मुहल्ले की कन्याएँ रंग बिरंगे वस्त्रो से सजकर एवं मनोरम श्रृंगार कर समूह बनाकर गीत गाती हुई बाग़ बगीचों में जाती है और वहां गणगौर की पूजा करती है वे वहां कलशों को फूलों एवं दुर्वाओं से सजाकर उन्हें सिर पर रखकर गीत गाती हुई घर आती है चैत्र शुक्ल पक्ष की तीज चौथ को जयपुर में कई स्थानों पर लवाजमे के साथ गणगौर की सवारी निकलती है इस दिन गणगौर का मेला बूंदी में भरता है.
गणगौर की कहानी (Story of gangor)- गणगौर की तरह राजस्थान में श्रावणी तीज का पर्व भी बड़े उल्लास से मनाया जाता है. गर्मी की ऋतू के बाद श्रावण शुरू होते ही बाग़ बगीचों में, आँगन- पिछवाडों में झूले पड़ जाते है जिन पर स्त्रियाँ एवं बच्चे मस्ती से झूलने लगते है
गणगौर का मेला (Fair of gangor)- स्त्रियाँ सोलह श्रृंगार करती है तीज और चौथ के दिन सभी स्त्रियाँ पुरुष तथा बालक बालिकाएं गाँव के बाहर तालाब पर एवं बागों में एकत्र हो जाते है और फिर मधुर गीतों के साथ झूले झूलने लगते है बड़े कस्बों व्व्व्वेवं शहरों में तीज माता की सवारी लवाजमे के साथ सवारी निकाली जाती है राजस्थान में श्रावणी तीज से त्यौहारों एवं पर्वो का सिलसिला शुरू हो जाता है जो गणगौर तक चलता रहता है. इस कारण राजस्थान में श्रावणी तीज का अत्यंत महत्व है |
तीज का त्योहार (Festival of Teej)- राजस्थान में गणगौर और तीज के अलावा कई पर्व त्यौहार आते है यहाँ शीतलाष्टमी का पर्व भी श्रद्धा के साथ मनाया जाता है इसे राजस्थानी में ” बास्योड़ा” भी कहा जाता है. राजस्थान में बैशाख शुक्ल तृतीया को आखातीज/अक्षय तृतीया का त्यौहार भी बड़े धूमधाम से मनाया जाता है |
वस्तुतः यह प्रमुख रूप से कृषकों का त्यौहार है इस दिन किसान नई फसल का स्वागत करते है. काश्तकारों के घरों में ज्यादातर विवाह भी इसी दिन होते है इस त्यौहार का भी राजस्थान के सांस्कृतिक जीवन में अत्यंत महत्व है |

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राजस्थान के प्रमुख उत्सव मेले (Major Festival Fairs of Rajasthan) :-
उपर्युक्त प्रमुख पर्वो एवं त्यौहारों के अतिरिक्त राजस्थान में विशेष धार्मिक पर्व मेले भी भरते है प्राय ये मेले तीर्थ स्थानों पर भरते है. परन्तु कुछ पशु मेले ऐसे होते है. जिनमे हजारों पशु गाय, बैल, ऊंट, भैस, भेड़, घोड़े एवं गधे आदि बिक्री के लिए इक्कठे होते है. इन मेलों में पुष्कर, तिलवाड़ा, परबतसर, अलवर, भरतपुर, धौलपुर, करौली, गोगामेड़ी आदि के मेले प्रसिद्ध है
पुष्कर का मेला कार्तिक में, तिलवाड़ा का मेला चैत्र में, परबतसर का मेला भाद्रपद में, कोलायतजी का मेला कार्तिक में, चारभुजा का मेला भादों में, केसरियानाथ का मेला धुलेव उदयपुर में चैत्र माह में, रामदेवजी का मेला जोधपुर और जैसलमेर में भादो माह में, रानी सती का मेला झुंझुनू में भादों माह में, बाणेश्वर का माघ में, बानगंगा वैशाख में, गोगामेड़ी का भादों में केलवाड़ा कोटा का मेला वैशाख में भरता है. इनके अलावा मंडोर में वीरपूरी का मेला भरता है इस मेले में मारवाड़ के प्रसिद्ध वीरों एवं हिन्दू देवी देवताओं का स्मरण वन्दन किया जाता है

प्रमुख त्यौहार एवं उनकी तिथियाँ :-
1) गणगौर फाल्गुन शुक्ल 15 से चेत्र षुक्ला 3 तक
2) महाषिवरात्री फाल्गनु कृष्ण पक्ष-13 (त्रयोदषी)
3) दीपावली कार्तिक कृष्ण पक्ष-अमावस्या
4) रक्षाबन्धन श्रावणमास पूर्णिमा
5) होली फाल्गुनमास पूर्णिमा
6) जन्माष्टमी भाद्रपदश्कृष्णपक्ष अष्टमी
7) गणेष चतुर्थी भाद्रपद शुक्लपक्ष चैथ
8) रामनवमी चेत्र षुक्ल पक्ष नवमी
9) क्रिसमस डे 25 दिसम्बर
10) मुहर्रम मुहर्रम माह की दस तारीख
11) ईद-उलफितर शव्वाल की पहली तारीख
12) तीज भाद्रपद कृष्णपक्ष तृतीया
13) पर्युषण भाद्रपद मास
14) दषहरा आश्विन शुक्लपक्ष दषमी
15) ईदउलजुहा जित्कार की दसवीं तारीख

अंतरराष्ट्रीय पतंग महोत्सव :-
राजस्थान में अंतर्राष्ट्रीय पतंग महोत्सव कुछ साल पहले ही जयपुर में शुरू हुआ था, और यह राजस्थान के सबसे ज्यादा प्रतीक्षित और भव्य समारोह में से एक बन गया है। इसकी आधिकारिक तिथि 14 जनवरी है, मकर संक्रांति के दिन जो तीन दिन तक जारी होती है। यह त्यौहार जयपुर के पोलो ग्राउंड में मनाया जाता है, जहां दुनिया भर से सबसे अच्छे पतंग उड़ाने वाले अपने पतंग उड़ने वाले कौशल दिखाते हैं। पूरे आकाश में कई डिजाइनों और आकृतियों के पतंग के साथ रंगीन हो जाता है। सबसे रोमांच क्षण आता है, जब पतंग काटा जाता है और लोग उत्तेजना के साथ चिल्लाना शुरू करते हैं।
राजस्थान रिवाज और परंपरा का राज्य है। राजस्थान के लोग अपने पूर्वजों के शब्दों का पालन करते हैं और अपने जीवन शैली को उन्ही के अनुसार बनाए रखते हैं। पतंग उड़ाना राजस्थान के लोगों का एक अभिन्न हिस्सा है। वे कई अवसरों में पतंग उड़ते हैं, विशेष रूप से मकर संक्रांति के अवसर पर, जो पूरे देश में पतंग का एक उत्सव है। इस त्योहार पर सभी राज्यों के लोग भारत में पतंग उड़ते हैं। अंतर्राष्ट्रीय पतंग महोत्सव जयपुर में हर साल आयोजित किया जाता है। और पूरे विश्व से पर्यटक इसमें भाग लेने के लिए यहां आते हैं।राजस्थान के प्रमुख मेले और त्यौहार,

पतंग महोत्सव का इतिहास :-
जयपुर में अंतरराष्ट्रीय पतंग महोत्सव का एक लंबा इतिहास रहा है। पतंगों की उड़ान की प्रथा मकर संक्रांति से जुड़ी हुई है। लोग अपने छतों से, पतंग उड़ाने के दिन धन्य दिन मनाते हैं। इस त्योहार पर पतंग उड़ने की प्रतियोगिताओं का भी आयोजन किया जाता है।
मकर संक्रांति पर पतंग उड़ते हैं क्योंकि उन्हें सूरज की रोशिनी से फायदे मिलते हैं। सर्दियों के दौरान, हमारा शरीर संक्रमित हो जाता है और खांसी और सर्दी से ग्रस्त होता है और इस मौसम में त्वचा भी शुष्क होती है। जब सूर्य उत्तरिया में चलता है, तो उसकी किरण शरीर के लिए दवा के रूप में कार्य करती है। पतंग उड़ने के दौरान मानव शरीर निरंतर सूर्य की किरणों से उजागर होता है, जो अधिकांश संक्रमणों और सूक्ष्मता को समाप्त करता है।

पतंग महोत्सव का समारोह :-
जयपुर का अंतरराष्ट्रीय पतंग महोत्सव एक शानदार आयोजन बन गया है। यह बड़ी भागीदारी में लोग आते है। त्योहार का उद्घाटन जयपुर पोलो ग्राउंड में होता है। त्योहार को दो वर्गों में विभाजित किया गया है, एक पतंग युद्ध है और दूसरा फ्रेंडली पतंग फ्लाइंग सत्र है। काइट त्योहार जयपुर पोलो ग्राउंड में उद्घाटन किया जाता है। उत्सव के अंतिम दिन और पुरस्कार वितरण भी तीन दिन बाद उम्मेद भवन पैलेस के शाही परिसर मेंआयोजित किया जाता है।
बच्चे पतंगों के माध्यम से एक-दूसरे को खेलने और हारने के लिए अपनी छतों पर मिलते हैं। मकर संक्रांति जनवरी के महीने में मनाई जाती है।जनवरी में आसमान में हर रंग के पतंग जैसे गेरु, लाल, नीले, पीले, हरे, फेशिया, इंडिगो, गेरु, गुलाबी, नारंगी एक रमणीय दृश्य होता है।राजस्थान के प्रमुख मेले और त्यौहार,

गंगौर महोत्सव :-
गंगौर महोत्सव सबसे रंगीन बिरंगा और राजस्थान के लोगों के सबसे महत्वपूर्ण त्यौहारों में से एक है। यह त्यौहार भगवान शिव और उनकी पत्नी पार्वती को समर्पित है। “गन” भगवान शिव के लिए है और “गौर” देवी गौरी के लिए है वह त्यौहार हिंदू कैलेंडर महीने “चैत्र” के पहले दिन शुरू होता है। नवविवाहित लड़कियाँ 18 दिन तक वर्त रखती है जिसे पूजा की पूरी प्रक्रिया माना जाता है और एक समय भोजन करती हैं। कई अविवाहित लड़कियाँ भी अपने जीवन में अच्छे पति को पाने के लिए उपवास रखती है। महिलाएं अपने हाथों और पैरों पर महेंदी लगाती हैं और घेवर जैसी स्वादिष्ट मिठाईयाँ बनाती हैं। साथ ही अपने दोस्तों और रिश्तेदारों में वितरित करती हैं। घेवर राजस्थान की मिठाई है जो मित्रों और रिश्तेदारों में बाँटी जाती है।
गंगौर जीवन साथी चुनने का वर्ष का सबसे अच्छा समय माना जाता है। विभिन्न स्थानों से आये पुरुषों और महिलाओं को एक दूसरे से मिलने और बातचीत करने का अवसर मिलता है। कई अपना साथी चुनकर शादी भी कर लेते हैं। गंगौर सर्दियों के अंत में और वसंत की शुरूआत में होली के आसपास पूरे राजस्थान में मनाया जाता है। गंगौर का विशाल आयोजन जयपुर, उदयपुर, जोधपुर, जैसलमेर, बीकानेर और नाथद्वारा में किया जाता है। उदयपुर में, गंगौर मेवाड़ महोत्सव के जैसा है।
इस त्यौहार के अंतिम दिन, गौरी की छवि के साथ एक जुलूस, शहर के पैलेस के ज़ानानी-देवोधी से शुरू होता है। यह जुलूस फिर त्रिपोलिया बाजार, छोटे चौपाड़, गंगौरी बाज़ार, चौग्न स्टेडियम से गुजरता है और आखिर में तालकटोरा के निकट पहुँता है

गज महोत्सव :-
राजस्थान के जयपुर शहर में मनाया जाने वाला एक लोकप्रिय त्यौहार है। यह होली के दिन, आमतौर पर मार्च के महीने में मनाया जाता है। इस महोत्सव में पोलो और हाथियों का नृत्य पेश किया जाता है जो बच्चों को अपनी ओर आकर्षित करता है। इस महोत्सव की शुरूआत एक सुंदर जलूस में सजे हुए हाथियों, ऊंट, घोड़ों और लोक नर्तकियों से होती है।
जानवरों के मालिक या महावत हाथियों को चमकिले रंगों से सजाते है। झूल, जो शीशे और सुंदर कढ़ाई किया हुआ गद्दी का कपड़ा है जो हाथियों द्वारा पहना जाता है। और भारी आभूषणों से सजाया जाता है। गजिनी के चलते समय उसके पैरों की हिलती हुई झाँझर देखने में आनंद आता है।
इस महोत्सव में हाथियों पर सबसे ऊपर की ओर बैठे लोग गुलाल उड़ाते है। सबसे सुंदर सजे हाथी को पुरस्कार दिया जाता है। पोलो, हाथियों की दौड़, हाथियों के बीच टग-ऑफ- वार और 19 पुरुष और महिलाओं को महोत्सव में शामिल किया गया है। यह महोत्सव राजस्थान पर्यटन द्वारा आयोजित किया जाता है, गज महोत्सव राजस्थान का एक अनूठा महोत्सव है। यह महोत्सव मार्च और अप्रैल के बीच होली के समय महान उत्साह के साथ मनाया जाता है, त्यौहार मनोरंजक कारकों से भरा है। हाथियों को एक शाही जीव माना जाता है उसे सुंदर ढ़ंग से सजाया जाता है क्योंकि वे महोत्सव में आकर्षण का केन्द्र होते है। हाथियों की दौड़, हाथियों की परेड, पोलो खेल जैसे अद्भुत कार्यक्रमों को यात्री देख सकते है। गजिनी भी इस सुंदर झाँकियों में भाग लेती है। सबसे सुंदर गजिनी को इनाम भी दिया जाता है। लोग हाथियों को सजाकर और उन्हें रंग लगाकर अद्भुत तरह से होली खेलते है।
गज महोत्सव में भाग लेना एक जीवनकाल अनुभव है। जयपुर सभी यातायातों से भलि-भांति जुड़ा हुआ है। गज महोत्सव चौगन स्टेडियम जयपुर के प्राचीन शहर के दाहिनी और मध्य में त्रिपोलिया गेट या सिटी पैलेस की तरफ है। इसका प्रवेश नि: शुल्क है और समय आमतौर पर शाम 4 से 7 तक का होता है।

गणेश चतुर्थी :-
अन्य त्यौहारों की तरह राजस्थान में गणेश चतुर्थी भी बड़े उत्साह और भक्ति से मनायी जाती है। यह त्यौहार भगवान गणेश को समर्पित है। भगवान गणेश, भगवान शिव और देवी पार्वती के सबसे छोटे पुत्र थे और कार्तिकेय उनके बड़े भाई थे जिनका वाहन मोर है। भगवान गणेश का वाहन या वाहना एक मूषक है। वे आध्यात्मिक महत्वकांक्षी मार्गों पर सभी बाधाओं को दूर करने का विश्वास रखने वाले प्रभु हैं, और वे सांसारिक और आध्यात्मिक सफलता प्रदान करते हैं। वे सद्भाव और शांति के प्रभु हैं।
राजस्थान में, गणेश चतुर्थी के अवसर पर, गणेश जी की मूर्ति को लाल कपड़े से ढका जाता है और लाल फूलों की माला पहनाई जाती है फिर मूर्ति कई घरों के प्रवेश द्वारों पर रखी जाती है। हल्दी और कुमकुम के साथ एक छोटी पूजा की थाल को भी प्रवेश द्वार पर रखी जाती है, जिससे कि दर्शन करने वाले लोग अपने माथे और गले पर तिलक लगा सके, क्योंकि इसे बहुत शुभ माना जाता है। आमतौर पर घर में मोतीचूर के लड्डू बनाए जाते हैं, जो पहले भगवान गणेश को भोग लगाए जाते है क्योंकि इसे उनका पसंदीदा मिठाई मानी जाती है और फिर प्रसाद के रूप में भक्तों में वितरित किया जाता है।
राजस्थान में सबसे प्रसिद्ध गणेश मंदिर रंथाम्बोर में स्थित है और भगवान गणेश को समर्पित यह मंदिर रंथाम्बोर किले में स्थित है, जो सवाई मधोपुर से लगभग 12 किलोमीटर की दूरी पर है। यह राज्य के सबसे महत्वपूर्ण गणेश मंदिरों में से एक है। मंदिर में हमेशा बहुत सारी क्रियाएं होती रहती हैं क्योंकि लोग मानते हैं कि शादी का पहला निमंत्रण भगवान गणेश को भेजा जाना चाहिए क्योंकि वे सभी बाधाओं को दूर कर देते हैं। यह मंदिर गणेश चतुर्थी उत्सव का स्थल है, जहां सभी भक्त भजनों गाते है। नारंगी रंग जिसमें मूर्ति रंग किया जाता है, इस उत्सव का पवित्र रंग बन जाता है। मूर्ति को हर दिन सुंदर सोने के आभुषणों से और मैरीगोल्ड की माला से सजाया जाता है।राजस्थान के प्रमुख मेले और त्यौहार,

राजस्थान का दशहरा महोत्सव :-
दशहरा के अवसर पर, लोग की जुलूस ले जाते हैं जो रामायण के विभिन्न पात्रों को दर्शाता है। लोग मानते हैं कि भगवान राम और सीता, लक्ष्मण और भारत जैसे अन्य रामायण वर्णों से जीवन के मूल्यों को लेना चाहिए। इस उद्देश्य को पूरा करने के लिए, हर साल दशहरा से पहले, ‘रामलीला’ महाकाव्य ‘रामायण’ पर एक खेल है, जो उन लोगों को दिखाया गया है जहां प्रदर्शन राम के जीवन पर आधारित हैं। रामदाला विजयाशशमी पर रावण के विध्वंस के साथ समाप्त ।दसरा रात में, रावण, विशाल भाई कुंभकर्ण और बेटे मेघनाद के विशाल विशाल पुतलों का निर्माण ओपे मैदान में किया जाता है, जहां अभिनेता राम, सीता और लक्ष्मण के रूप में कपड़े पहने जाते हैं और इन पुतलों पर आग की तीर मारते हैं, जो पटाखों से भरा होता है। पटाखों के विस्फोट के साथ, पुतलों को जला दिया गया और दर्शकों ने विजय की चिल्लाहट की।

दीवाली महोत्सव :-
दिवाली को ‘दीपावली’ भी कहा जाता है जो भारत के हर कोने में बड़े उत्साह और भक्ति से मनाया जाता है। इसे रोशनी के त्यौहार के रूप में भी जाना जाता है, राजस्थान में दीवाली सभी धर्मों के लोगो द्वारा मनाई जाती है। दीवाली कई कारणों से मनायी जाती है। कुछ लोग दिवाली इसलिए मनाते है क्योकिं माना जाता है कि लूनर कैलेंडर के अनुसार यह हिंदू नव वर्ष की शुरुआत का प्रतीक है। लेकिन अधिकांश लोग इसे बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में मनाते है।

दीवाली पर्व का इतिहास :-
दीवाली का पर्व कैसे शुरू हुआ
हिंदू महाकाव्य ‘रामायण’ के अनुसार, जब भगवान राम रावण को मारकर अयोध्या वापस लौटे थे तब पहली बार दीवाली मनाई गयी थी। माना जाता है कि जब भगवान राम लक्ष्मण, सीता और हनुमान के साथ अयोध्या लौटे थे, तब अयोध्यावासियों ने अपने घरों में तेल के दीपक जलाये थे और अंधेरी रात को रौशन कर दिया था। तब से लेकर अब तक, दीवाली या दीपावली हर वर्ष बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में मनायी जाती है।

राजस्थान में दीवाली त्यौहार –
राजस्थान में दीवाली को बड़े ही आनंद और खुशी के साथ मनाया जाता है। भारत के अन्य हिस्सों की तरह, राजस्थान में दिवाली 5 दिनों की अवधि के लिए मनायी जाती है। धनतेरस से शुरू होकर, छोटी दीवाली, बडी (मुख्य) दीवाली, पडवा और भाईदूज तक मनायी जाती है। दीवाली की तैयारी पहले से ही शुरू हो जाती है। लोग अपने घरों को सजाते है और मिठाई बनाते है, नए कपड़े, आभूषण खरीदते हैं। दीवाली का आखिरी दिन आश्विन मास का 15 वां दिन है (हिंदू कैलेंडर के महीने में) जो अक्टूबर और सितंबर के महीने में आता है।
दीवाली पर लोग मिट्टी के दीये जलाते है रंगोली बनाते है, पूजा करते है, रिश्तेदारों, पड़ोसियों को मिठाई बाटँते है और बम-पटाखे जलाते है। ये सभी काम दूज का चांद या अमावस्या को आनंद के साथ किये जाते है। मिट्टी के दीपक, जिसे ‘दीया’ या ‘दीप’ भी कहा जाता है, जो घी लैंप, गणेश लैंप या मोमबत्तीयों को घरो के बाहर, फर्श पर, दरवाजों के किनारे पर रखा जाता है। माना जाता है कि ये सबकुछ ‘विघ्नहर्ता भगवान गणेश और धन की देवी लक्ष्मी के स्वागत के लिए किया जाता है।
दीवाली पर व्यापारी अपने बई-खाते की पूजा करते हैं और अपने नए खातों को लिखना शुरू करते हैं। दीवाली पर आतिशबाजियाँ होती हैं बच्चों ने कई तरह के पटाखे जलाते है परिवार अपने रिश्तेदारों और पड़ोसियों के साथ उपहार और मिठाई बाटँते है।

नागौर महोत्सव :-
नागौर मवेशी महोत्सव जनवरी-फरवरी के दौरान नागौर के अनूठे राजपूत शहर में आयोजित किया जाता है। नागौर जोधपुर और बीकानेर के बीच स्थित एक छोटा सा शहर है। नागौर महोत्सव राजस्थान के सबसे प्रसिद्ध आकर्षणों में से एक है और दुनियाभर से हजारों पर्यटकों यहाँ आते है।
नागौर महोत्सव / मेला प्रमुख मेलों में से एक है, हर साल नागौर के राजपूत कस्बे में आयोजित होता है नागौर मेला अधिकतर जनवरी-फरवरी के बीच की अवधि में शुरू होता है। इसके अतिरिक्त यह प्रसिद्ध रामदेवजी पशु मेला या नागौर मवेशी मेला के रूप में भी जाना जाता है, यह मूल रूप से एक मवेशी मेला है और हर साल यहाँ करीब 75,000 ऊंट, बैल और घोड़ों का व्यापार होता है। बल्कि व्यापार की सरासर मात्रा पहली बार यात्रियों को आश्चर्यजनक कर देती है।
नागौर मेले में और तड़का लगाने के लिए, टॉग ऑफ़ वॉर, ऊंट और बैल दौड़ और डंके जैसी मजेदार कार्यक्रम के साथ-साथ जोधपुर के लोक संगीत पूरे त्यौहार में एक असली मजा जोड़ देता है। नागौर मेले की सबसे अद्भुत विशेषताओं में से एक लाल मिर्च का बाजार है जो मेले में लगाया जाता है।
नागौर का लाल-मिर्च बाजार या “मिर्ची बाजार” हर तरह से लोकप्रिय रूप से जाना जाता है जो एशिया का सबसे बड़ा बाजार है। नागौर सभी बड़े शहरों के साथ सड़क और रेल से जुड़ा हुआ है। निकटतम रेलवे स्टेशन मेर्ता (80 किमी) और निकटतम हवाई अड्डा जोधपुर (140 किमी) है।

पुष्कर ऊंट मेला :-
राजस्थान पुष्कर ऊंट मेला, जिसे भारत में ‘पुष्कर मेला’ के रूप में जाना जाता है, राजस्थान में पुष्कर शहर में आयोजित वार्षिक पांच दिवसीय ऊंट और पशु मेला है। पुष्कर इस पुष्कर ऊंट मेले के लिए विशेष रूप से जाना जाता है और यह मेला भारत के मवेशियों का सबसे बड़ा व्यापार है। यह दुनिया का सबसे बड़ा ऊंट मेलों में से एक है, और पशुधन को खरीदने और बेचने सबसे बड़ा मेला है । यह एक महत्वपूर्ण पर्यटक आकर्षण बन गया है और इसकी हाइलाइट मटका फाद, सबसे लंबे मूंछें, और दुल्हन प्रतियोगिता जैसी प्रतिस्पर्धाएं बन गई हैं जो हजारों पर्यटकों को आकर्षित करती है। .
पुष्कर मेला के अधिकांश आयोजन मेला ग्राउंड पर होते हैं,जो की एक विशाल स्टेडियम। पुष्कर मेले में कुछ आकर्षक आयोजन हैं घोड़े और ऊंट दौड़, टग ऑफ वॉर, पारंपरिक ग्रामीण गेम, कुश्ती, पगड़ी और मूंछी प्रतियोगिताएं और प्अनेको रदर्शन। महिलाएं एक प्रतियोगिता के लिए दीवार पर खूबसूरत पेंटिंग बनाती हैं जिसे सांसारिक प्रतियोगिता कहा जाता है। एक शाम यहां पर स्थानीय लोगों द्वारा सांस्कृतिक कार्यक्रमों का अनुसरण किया जाता है। पुष्कर मेला ऊंट, गाय, भेड़ और बकरियों की खरीद और बिक्री के बारे में है, जो स्थानीय लोगों द्वारा किया जाता है और वे शहरों और गाओं से ग्राहकों को लुभाने आते हैं। मेले का एक अनुष्ठान है जो पुष्कर झील में डुबकी लेना है। यह कार्तिक एकदशी से कार्तिक पूर्णिमा पांच दिनों के लिए मनाया जाता है।
पुष्कर कैमल मेला 2017 में आकर्षण
पुष्कर ऊंट फेयर सामाजिक और संगीत अवसरों जैसे रोमांचक गतिविधियों के साथ जीवन का आनंद लेने के लिए एक शानदार अवसर है, रोमांचक ऊंट सफारी और परंपरागत शिविरों में रहने के कारण आपको लगता है कि आप पुष्कर से हैं। पुष्कर मेला जीवन भर का एक यादगार अनुभव है जो यात्रियों के दिमाग में तैरता है और उन्हें और भी अधिक के लिए तरस देता है।
1) ऊंट रेस
2) गोरबंद – ऊंट की सजावट
3) ऊंट और हॉर्स नृत्य
4) कबड्डी मैच (स्थानीय वी / एस आगंतुक)
5) सांस्कृतिक कार्यक्रम
6) पुष्कर मेला 2017 तिथियाँ
पुष्कर मेला 2017 दिनांक – नवंबर 08 से 15। हर साल पुष्कर मेला हिंदू महीने का कार्तिक (अक्टूबर / नवंबर) में होता है, इस साल पुष्कर मेला 8 से 15 नवंबर के बीच आयोजित किया जाएगा। होटल उनकी क्षमता से भरे रहते है। इस भव्य वार्षिक आयोजन में भाग लेने के लिए यहां हजारों तीर्थयात्रियों, पर्यटकों और ग्रामीणों अपने मवेशी, घोड़ों और ऊंट के झुंड के साथ आते हैं।

पुष्कर ऊंट मेले मैं कैसे पहुंचे –
पुष्कर सड़क और रेल के माध्यम से अपनी अच्छी संपर्क के कारण कई पर्यटकों को आकर्षित करती है। प्रमुख अजमेर शहर से 14 किमी की दूरी पर स्थित, पुष्कर टैक्सी और बसों द्वारा अजमेर के माध्यम से आसानी से पहुंचा जा सकता है। पुष्कर का अपना रेलवे स्टेशन है, लेकिन अजमेर रेलवे स्टेशन प्रमुख स्टेशनों के साथ-साथ अन्य स्थलों के लिए अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। निकटतम हवाई अड्डा पुष्कर से 131 किलोमीटर दूर जयपुर अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा है। आप जयपुर हवाई अड्डे से टैक्सी या बस ले सकते है।

मुहर्रम महोत्सव :-
राजस्थान में उत्सव मनाने के लिए कई त्यौहार हैं और हर त्यौहार में विभिन्न धर्माों के लोग समान उमंग और उत्साह से मनाते देखा गया है। त्यौहार राजस्थान में नहीं बल्कि पूरे भारत में महत्वपूर्ण कारणों में से एक है, जो विभिन्न धर्म के लोगों के बीच सद्भाव और शांति का प्रचार करते हैं।
मुहर्रम राजस्थान और भारत का सबसे महत्वपूर्ण और प्रमुख त्यौहार है। राजस्थान का मुस्लिम समुदाय बड़े उत्साह और खुशी से मुहर्रम का त्यौहार मनाता है। मुहर्रम के दौरान पूरा राजस्थान बहुत अलग दिखाई देता है।

मुहर्रम त्यौहार का इतिहास –
मुहर्रम मुसलमानों के प्रमुख त्यौहारों में से एक है। मुस्लिम समुदाय का मुख्य भाग शिया इस त्यौहार को मनाता है। मुस्लिम समुदाय पैगम्बर मोहम्मद, हज़रत इमाम हुसैन के पोते को श्रृद्धांजलि देने के लिए मुहर्रम मनाती है। मुहर्रम को हज़रत इमाम हुसैन की शहीदी के स्मरण में मनाया जाता है।
मुस्लिम के मुताबिक मुहर्रम इस्लामिक नए साल का पहला महीना भी है, जिसका उल्लेख परमेश्वर द्वारा चार पवित्र महीनों में हुआ है। मुस्लिम समुदाय के शिया लोग मुहर्रम की पहली रात को शोक करते हैं। मुहर्रम दो महीने और आठ दिन तक जारी रहता है। लेकिन आख़िरी दिन सबसे बुरे महत्वपूर्ण होते हैं क्योंकि ये दिन वे दिन थे जब याजिद ने हुसैन, उनके परिवार और उनके अनुयायियों पर हमला किया था। जिसे प्रसिद्ध कर्बला की लड़ाई के रूप में भी जाना जाता है हुसैन ने बहादुरी के साथ लड़ाई की लेकिन यजिद सेना अधिक प्रचंड थी। आखिरकार, हुसैन को मार दिया गया और उनकी बहादुरी को आज भी मुहर्रम महोत्सव के रूप में याद किया जाता है।

राजस्थान में मुहर्रम महोत्सव –
राजस्थान में, मुहर्रम के दसवें दिन पर बहुत से जुलूस निकलता है जिसे ‘अशराह’ कहा जाता है। राजस्थान के कई हिस्सों से यह जुलूस कई सेवकों के साथ निकलता है। जुलूस में हुसैन और उसकी मकबरे के बैनर, मॉडल और प्रतिकृतियां भी होती हैं। इन प्रतिकृतियों की विशेषता इनकी सजावट है जो अभ्रक और सोने से की जाती है। जुलूस में कुछ लोग दुख जताने के लिए अपने शरीर को उगाहाते है। वे बलपूर्वक अपने शरीर पर धातु से बनी जंजीरों को मारते है जो इस त्यौहार का एक हिस्सा है। जुलूस के दौरान लोग ‘हां हुसैन’ भी बोलते है एक सफेद घोड़ा भी इस जुलूस का हिस्सा है जो युद्ध के पश्चात हुसैन के घोड़े, दुल दुल को दर्शाता है।
राजस्थान में मुहर्रम महोत्सव के दौरान, शिया समुदाय के लोग कई रस के ठेले लगाते हैं और सभी को मुफ्त में बांटते है। ऐसा मुहर्रम के पहले दस दिनों तक चलता है। मुहर्रम की तारीख और समय निश्चित नहीं है और यह साल-दर-साल बदलता रहता है।

मेवाड़ महोत्सव :-
मेवाड़ महोत्सव इसलिए प्रसिद्ध है क्योंकि यह वसंत मौसम के स्वागत के लिए मनाया जाता है। यह गणगौर त्यौहार के साथ मनाया जाता है, और इसका अपना एक अद्वितीय आकर्षण है। गणगौर त्यौहार राजस्थान की महिलाओं के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। इस त्यौहार के दौरान महिलाएं नये कपड़े पहनकर त्यौहार में शामिल होती है।
वे सभी मिलकर ईसर और गंगौर की तस्वीरों को सजाती है और फिर धार्मिक जलूस में उन्हें शहर के विभिन्न हिस्सों में ले जाया जाता है। जुलूस इस त्यौहार का एक हिस्सा है और पचोला झील के गंगौर घाट पर खत्म होता है।

ब्रज महोत्सव :-
राजस्थान में हर साल होली के कुछ दिन पहले फरवरी-मार्च माह में भरतपुर में बृज उत्सव या ब्रह्मत महोत्सव मनाया जाता है। यह ब्रज महोत्सव भगवान कृष्ण को समर्पित है। इस उत्सव के दौरान लोग या भगवान कृष्ण के भक्त एक स्थान पर इकट्ठा होते है और बहुत उत्साह और भक्ति के साथ इस महोत्सव को मनाते हैं। यह महोत्सव भगवान कृष्ण और उनकी प्रिय राधा को समर्पित, उनके सच्चे प्रेम का जश्न मनाते हैं।
ब्रज महोत्सव का मुख्य आकर्षण रासलीला नृत्य है, जो राधा और कृष्ण की अन्नत प्रेम कहानी को दर्शाता है। नर्तक रंगीन वेशभूषा पहनते है, और भरतपुर के लोग नृत्य करते है और भगवान कृष्ण और राधा को याद करते है। भरतपुर का कस्बा शाम के समय ब्रज महोत्सव के समय और उससे पहले लोक संगीत से महोत्सव में जोश और मंत्रमुग्ध कर देने वाला बहुत फलता-फूलता दिखाई देता है पर लोकगीतों की आवाज से तेजी से बढ़ता जाता है जो हवा को भरता है और लोगों को लुभाता है। सभी लोगों, पुरुषों या महिलाओं, युवा या बूढ़े, इस ब्रज महोत्सव में भाग लेते हैं और उत्साही प्रवाह से दूर ले जाते हैं। पूरे स्थान को शानदार रंगों में चित्रित किया गया है और रंगों से छिड़कने से कोई भी बचा नहीं है।

राजस्थान की बहु रंग संस्कृति :-
राजस्थान के हस्तशिल्प मेले में आप राजस्थान के कलाकारों की असाधारण शिल्प कौशल देख सकते हैं। इस मेले में आप अनन्य चीजे जैसे राजस्थानी कढ़ाई, कुंदन गहने, मीनाकारी गहने, मिरर काम कपड़े और अन्य वस्तुवे देख सकते हैं। यदि आप जैसलमेर के मशहूर रेगिस्तान महोत्सव में जाते हैं तो आपको यहाँ कई आश्चर्यजनक चीजे देखने को मिलेंगी जिसमें पगड़ी ट्राइंग प्रतियोगिता, ऊंट पोलो , साँप का खेल और मुछो की प्रतियोगिता ।
त्यौहारों में राजस्थान के कई व्यंजन भी शामिल हैं जो आपको जरूर खाना चाहिए। त्योहार जनवरी के महीने में शुरू होता है और तीन दिन तक रहता है और पूर्णिमा के साथ खत्म होता है।

Rajasthan Art and Culture Ke Question Answer

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