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राजस्थान के प्रमुख बाँध व परियोजना
भाखड़ा नांगल बाँध परियोजना :- भाखड़ा नांगल परियोजना पंजाब में सतलुज नदी पर स्थित भारत की सबसे बड़ी बहुउद्देशीय नदी घाटी परियोजना है। यह राजस्थान, पंजाब और हरियाणा की संयुक्त परियोजना है। इसमें राजस्थान की हिस्सेदारी 15.2 प्रतिशत है। भाखड़ा नांगल बाँध भूकंपीय क्षेत्र में स्थित विश्व का सबसे ऊँचा गुरुत्वीय बाँध है। यह बाँध हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर ज़िले में सतलुज नदी पर बनाया गया है। यह बाँध 261 मीटर ऊँचे टिहरी बाँध के बाद भारत का दूसरा सबसे ऊँचा बाँध है। इसकी उँचाई 255.55 मीटर (740 फीट) है, अमेरिका का हुवर बाँध 743 फीट ऊँचा है। बाँध का निर्माण सन 1948 में शुरू हुआ था और यह 1963 में पूरा हुआ। सन 1970 में यह बाँध पूर्ण रूप से कार्य करने लगा था। इस बाँध के पीछे बनी झील का नाम ‘गोविन्द सागर’ है, जो सिक्खों के 10वें गुरु गोविन्द सिंह के नाम पर है। यह बाँध वर्ष 1963 में राष्ट्र को समर्पित किया गया था। इसकी सहायक ‘इंदिरा सागर परियोजना’ के अंतर्गत राजस्थान तक इंदिरा नहर का विकास किया गया है, जोभारत की सबसे बड़ी नहर प्रणाली है। इसका मुख्य उद्देश्य सिंचाई एवं विद्युत उत्पादन है। इस परियोजना से श्रीगंगानगर, हनुमानगढ़, सीकर, झुंझुनू एवं चुरू ज़िलो को विद्युत प्राप्त होती है। पंजाब, हिमाचल प्रदेश, राजस्थान तथा हरियाणा इससे लाभान्वित होने वाले राज्य हैं। भाखड़ा नांगल बाँध से 250 छोटे-बड़े क़स्बों और अनेक उद्योगों को लाभ मिलता है। इस बाँध की कुल जल विद्युत उत्पादन क्षमता 1325 मेगावाट है। बाँध से ‘बिस्त दोआब नहर सरहिंद नहर नरवाना शाखा नहर’ आदि निकाली गयी हैं।
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कोसी बाँध परियोजना :- कोसी परियोजना भारत तथा नेपाल की संयुक्त परियोजना है। कोसी नदी को अपनी विनाशकारी बाढ़ों के लिया जाना जाता है। इस कारण इसे बिहार का शोक भी कहते हैं। इस नदी पर जल के नियंत्रण के लिए भारत सरकारऔर नेपाल सरकार ने 1954 में एक सयुंक्त समझौते पर तैयार किये थे। इस परियोजना के अंतर्गत चार इकाइयों पर काम किया गया है, नेपाल में हनुमान नगर के निकट संपूर्ण कंक्रीट से बना 1140 मीटर लंबा अवरोधक बाँध, कोसी नदी के बाएँ किनारे से नहर निकाल कर नेपाल के सप्तारी ज़िले और बिहार के पूर्णिया व सहरसा ज़िलों की सिंचाई होती है। इसी नहर पर 40 मेगावाट का विद्युत-गृह बनाया गया है, दाहिने किनारे से निकलने वाली पश्चिमी कोसी नहर से बिहार के दरभंगा और नेपाल के सप्तारी ज़िलों की सिंचाई होती है, पूर्वी कोसी नहर का विस्तार रजरूप नहर के रूप में कर दिया गया है। इससे बिहार के मुंगेर व सहरसा ज़िलों को लाभ मिल रहा है, बाढ़ को रोकने के लिए कोसी के दाहिने और बाएँ किनारों के बीच एक 240 कि.मी. लंबा तटबंध बनाया गया है।
इंदिरा सागर बाँध परियोजना :- इंदिरा सागर परियोजना (इंसाप) मध्यप्रदेश राज्य में सरदार सरोवर बाँध के प्रतिप्रवाह (अपस्ट्र्रीम) में स्थित एक बहुउद्देशीय परियोजना है । इस परियोजना के अन्तर्गत मीटर ऊँचाई एवं 653 मीटर लम्बा कांक्रीट गुरूत्व बाँध निर्मित किया गया है, जिसकी उपयोगी भंडारण क्षमता 9750 किमी मिलियन घन मीटर (79 मिलियन एकड़ फीट) है । इस परियोजना के अन्तर्गत 160 क्यूमेक शीर्ष प्रवाह वाली 24865 क़िमी लम्बी एक मुख्य नहर का निर्माण किया जा रहा है, जिससे 169 लाख हेक्टेयर के क्षेत्र में वार्षिक सिंचाई तथा खण्डवा जिले के ग्रामीण इलाके में 74 मिलियन घनमीटर (006 मिलियन एकड़ फीट) पेयजल की आपूर्ति की जाएगी । बाँध से 1,000 मेगावॉट (125 मेगावॉट प्रति यूनिट क्षमता की 8 यूनिटें) स्थापित विद्युत क्षमता वाले बाँध के दाँये तट पर निर्मित उपसतही विद्युत गृह के द्वारा जल विद्युत उत्पादन किया जा रहा है, परियोजना से मध्य प्रदेश की ओंकारेश्वर एवं महेश्वर निचली परियोजनाओं द्वारा विद्युत उत्पादन के पश्चात् सरदार सरोवर परियोजना के लिऐ महेश्वर के माध्यम से 10015 मिलियन घन मीटर (812 मिलियन एकड़ फीट) जल नियंत्रित रूप में छोड़ा जाएगा । इस परियोजना की 1988-89 के मूल्य स्तर पर अनुमानित लागत रू 1993.67 क़रोड़ थी, जिसके लिए योजना आयोग द्वारा सितम्बर, 1989 में निवेश स्वीकृत प्रदान की गई थी । मध्य प्रदेश शासन ने परियोजना की संशोधित प्रशासकीय स्वीकृति रू 2167.67 क़रोड़ प्रदान की है, जिसमें परियोजना क्षेत्र के लिए किए जाने वाले पर्यावरण सुरक्षा उपायों की लागत भी शामिल है । 16 मई, 2000 को मध्य प्रदेश सरकार एवं राष्ट्रीय जलविद्युत विकास निगम के मध्य एक समझौते पर हस्ताक्षर किए गए, जिसके अनुसार मध्य प्रदेश सरकार एवं राष्ट्रीय जलविद्युत विकास निगम ने इंदिरा सागर एवं ओंकारेश्वर परियोजना के निर्माण कार्यों को उनके बीच बने एक संयुक्त उपक्रम के द्वारा पूर्ण कराने का निर्णय लिया। तदानुसार इंदिरा सागर परियोजना एवं ओंकारेश्वर परियोजना के बाँध युनिट (I) एवं विद्युत गृह युनिट (II) के अन्तर्गत के कार्यों को पूर्ण कर उनका प्रबन्ध करने के लिए कम्पनी अधिनियम 1956 के अन्तर्गत नर्मदा जल विद्युत विकास निगम का गठन किया गया । इस संयुक्त उपक्रम में राष्ट्रीय जल विद्युत विकास निगम की बड़ी शेयर पूंजी 51 प्रतिशत रखी गई । नर्मदा जलविद्युत विकास निगम ने इंदिरा सागर एवं ओंकारेश्वर परियोजनाओं की यूनिट- I एवं यूनिट-III के कार्यों की नवम्बर, 2000 में अपने अधीन ले लिया था ।
गण्डक बाँध परियोजना :- गण्डक परियोजना भारत की नदी घाटी परियोजनाओं में से एक है। इसकी शुरुआत सन 1961 में हुई थी। यह बिहार और उत्तर प्रदेश की सम्मिलित परियोजना है तथा इससे नेपाल को भी लाभ मिलता है। इस परियोजना की निम्नलिखित इकाइयाँ हैं-
वाल्मीकि नगर के निकट 740 मीटर लंबा एक बैराज़ बनाया गया है, पूर्वी मुख्य नहर या तिरहुत नहर के द्वारा बिहार के चंपारण, मुजफ्फरपुर, दरभंगा, वैशाली, समस्तीपुर तथा नेपाल के परसावारा और राउतहाट ज़िलों की सिंचाई होती है, पूर्वी मुख्य नहर पर 15 मेगावाट विद्युत क्षमता की एक इकाई लगाई गयी है, पश्चिमी मुख्य नहर के दो भाग हैं अ) पश्चिमी गंडक नहर – इस नहर से उत्तर प्रदेश के गोरखपुर, देवरिया, भैरहवा, महाराजगंज और कुशीनगर ज़िले लाभान्वित होते हैं
ब) सारण नहर – इस नहर से बिहार के कुछ ज़िलों की सिंचाई होती है।
चम्बल बाँध परियोजना :- चम्बल परियोजना भारत की नदी घाटी परियोजनाओं में से एक है। इस परियोजना के अंतर्गत तीन बाँध, पाँच बिजलीघर और एक बड़ा बैराज़ बनाया गया है। यह परियोजना मध्य प्रदेश व राजस्थान की सरकार का सयुंक्त उपक्रम है। चम्बल परियोजना के प्रथम चरण में ‘गाँधी सागर बाँध’, द्वितीय चरण में ‘राणा प्रताप सागर बाँध’ और तीसरे चरण में ‘जवाहर सागर बाँध’ बनाए गये थे।
टिहरी बाँध नदी घाटी परियोजना :- यह भारत की एक प्रमुख नदी घाटी परियोजना हैं। टिहरी बांध दो महत्वपूर्ण हिमालय की नदियों भागीरथी तथा भीलांगना के संगम पर बना है टिहरी बांध दुनिया में उच्चतम बांधों में गिना जायेगा, टिहरी बांध करीब 260.5 मीटर ऊंचा, जो की भारत का अब तक का सबसे ऊंचा बाँध है, भारत का अब तक का सबसे ऊंचा बाँध बाख्डा नागल बंद था जो करीब २२६ मीटर ऊंचा था टिहरी बांध से 3,22 मिलियन घन मीटर पानी को संसय की उम्मीद है इसके जलाशय से तक़रीबन 2,70,000 हेक्टेयर भूमि की सिंचाई और तक़रीबन 346 मेगावाट पनबिजली की उत्पन्न की उम्मीद है बांध पूरी तरह से डूब टिहरी शहर और 23 गांवों, जबकि 72 अन्य गांवों को आंशिक रूप से लाभ होगा। टिहरी जल विद्युत परियोजना के अंतर्गत तीन मुख्य इकाइयाँ स्थापित की गयी हैं-
1) टिहरी बाँध और जल विद्युत इकाई – 1000 मेगावाट
2) कोटेशवर जल विद्युत परियोजना – 400 मेगावाट
3) टिहरी पम्प स्टोरेज परियोजना – 1000 मेगावाट
वर्तमान में इसकी स्थापित क्षमता 2400 मेगावाट है। ‘भारत सरकार’ ने यहाँ अतिरिक्त 1000 मेगावाट की इकाई लगाने की मंज़ूरी दे दी है। टिहरी बाँध परियोजना पर केंद्र सरकार ने 75 प्रतिशत व राज्य सरकार ने 25 प्रतिशत धन व्यय किया है। यह परियोजना हिमालय के केंद्रीय क्षेत्र में स्थित है। यहाँ आस-पास 6.8 से 8.5 तीव्रता के भूकंप आने का अनुमान लगाया गया है। इस कारण इस बाँध का भारी विरोध भी हो रहा है। पर्यावरणविद मानते है की बाँध के टूटने के कारण ऋषिकेश, हरिद्वार, बिजनौर, मेरठ और बुलंदशहर इसमें जलमग्न हो जाएँगे।
तवा बांध परियोजना :- तवा परियोजना नर्मदा की सहायक तवा नदी पर बनाया गया बांध है। यह मध्यप्रदेश के होशंगाबाद जिले में स्थित है यह बांध 58 मीटर ऊँचा एवं 1815 मीटर लम्बा है । बांध की अधिकतम ऊँचाई नींव की गहनतम सतह से 58 मीटर है । इस बांध एवं नहर का निर्माण कार्य सन् 1978 में पूर्ण हो चुका है, इसकी संचयन क्षमता 1993 मिलियन घन मीटर है । इसकी वार्षिक अनुमानित सिंचाई क्षमता 3,32,720 हेक्टेयर है ।
राजस्थान के प्रमुख बाँध व परियोजना
चूखा बांध परियोजना :- चूखा परियोजना भारत और भूटान के सहयोग से बनायी गई परियोजना है। 84×4=336 मेगावाट की यह परियोजना भूटान में रायडक या वांग-चू नदी पर बनाई गयी है। इस परियोजना का निर्माण सन 1970 में शुरू हुआ था और 1991 में यह परियोजना पूर्ण रूप से कार्य करने लगी थी।
डुलहस्ती जलविद्युत परियोजना :- डुलहस्ती जलविद्युत परियोजना का निर्माण चिनाब नदी की सहायक चन्द्रा नदी पर हुआ है। इस परियोजना का निर्माण सन 1985 में शुरू हुआ था और सन 2007 में यह परियोजना बनकर पूरी हुई। भारत के जम्मू-कश्मीर, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, राजस्थान, दिल्ली और चंडीगढ़ को इस परियोजना से लाभ प्राप्त होता है। डुलहस्ती परियोजना के अंतर्गत 390 मेगावाट की जलविद्युत इकाई की स्थापना की गई है।
कोटा बैराज :- इसका निर्माण 1953 में शुरू व 1960 में पूर्ण हुआ।बांध के दांयी व बांयी ओर नहरों का निर्माण किया गया, बांयी नहर राजस्थान में सिंचाई के काम आती हैं।इसकी कुल लम्बाई 178 कि.मी. हैं, चम्बल कमाण्ड क्षेत्र में राजस्थान कृषि डेªनेज अनुसंधान परियोजना, कनाडा की अन्तर्राष्ट्रीय विकास एजेंसी के सहयोग से चलाई जा रही हैं।
टोरड़ी सागर बांध :- टोरड़ी गांव, टोंक में 1887 में निर्माण किया गया, इसकी प्रमुख विशेषता है कि इसकी सभी मोरिया खोल देने पर एक बूंद पानी भी नहीं रूकता हैं।
जाखम बांध :- इसका निर्माण प्रतापगढ़ जिले के अनुपपुरा के पास जाखम नदी पर 81 मीटर ऊंचाई पर किया गया हैं, इसका निर्माण टी.एस.पी. जनजाति उपयोजयना के अंतर्गत किया गया हैं, जाखम नदी के उपर एक विद्युत ग्रह का निर्माण किया गया हैं।
बिसलपुर बांध :- टोंक जिले में टोडारायसिंह से 13 कि.मी. दुर बीसलपुर गांव में बनास व डाई नदी के संगम पर 1987 में निर्माण, इसका मुख्य उद्देश्य टोंक, बूंदी व अजमेर जिले को पेयजल उपलब्ध करवाना था, एशिया विकास बेंक की सहायता से आर.वी.आई.डी.पी. द्वारा परियोजना के ट्रासमिशन का कार्य प्रारम्भ किया गया, यह राजस्थान की सबसे बड़ी पेयजल परियोजना हैं, बीसलपुर परियोजना के लिए नाबार्ड के ग्रामिण आधार ढ़ांचा विकास कोष से आर्थिक सहायता प्रदान की जाती हैं।
मेजा बांध :- माण्डलगढ़ कस्बे, भीलवाड़ा मे कोठारी नदी पर स्थित हैं, इस बांध पर बनाये गये मेजा पार्क को ग्रीन माण्ऊट के नाम से जाना जाता हैं, राजस्थान में नदियों के किनारे बसे प्रमुख नगर
पांचना बांध :- करौली के गुड़ला गांव के पास पांच नदीयों(भद्रावती, अटा, माची, बरखेड़ा, भैसावर)के संगम पर मिट्टी से बना बांध, राजस्थान में मिट्टी से बना यह सबसे बड़ा बांध हैं।
इस बांध का निर्माण अमेरिका के आर्थिक सहयोग से किया गया हैं, पांचना बांध परियोजना यू.एस.ए. के सहयोग से चलाई जा रही हैं।
औराई बांध :- यह औराई नदी पर चितौड़गढ में स्थित हैं, इसका उद्देश्य चितौड़गढ़ को पेयजल उपलब्ध करवाना हैं।
बांकली बांध :- जालौर में सूकड़ी तथा कुलथाना नदीयों के किनारे बांकली गांव में स्थित हैं।
अडवाण बांध :- यह भीलवाड़ा में मानसी नदी पर स्थित हैं।
नारायण सागर बांध :- यह अजमेर जिले के ब्यावर के पास खारी नदी पर स्थित हैं, इसे अजमेर जिले का समुन्द्र कहा जाता हैं।
हरसौर बांध :- नागौर की डेगाना तहसील मे 1959 में निर्माण, इस बांध से लूणियास व हरसौर नहर विकसीत की गई।
अजान बांध :- भरतपुर में सूरजमल जाट द्वारा निर्माण करवाया गया, इसका निर्माण बांणगंगा व गंभीरी नदी के पानी को भरतपुर में नहीं आने देने के लिए किया गया, राजस्थान की प्रमुख नदियों के उपनाम
मोतीझील बांध :- इस बांध का निर्माण रूपारेल नदी पर सूरजमल जाट द्वारा किया गया हैं।
इसे भरतपुर की लाईफ लाईन कहा जाता हैं, इस बांध के द्वारा रूपारेल व बांणगंगा का पानी यू.पी. की ओर निकाला जाता हैं।
नंदसमंद बांध :- इसे राजसमंद की जीवन रेखा कहा जाता हैं, इस बांध का निर्माण नाथद्वारा (राजसमंद) में बनास नदी के तट पर 1955 में करवाया गया।
सीकरी बांध :- यह बांध भरतपुर मे स्थित हैं, इस बांध द्वारा नगर, कामा, डीग तहसील के अनेक बांधो को भरा जाता है, यह बांध रूपारेल नदी पर स्थित हैं।
लालपुर बांध :- यह भरतपुर में स्थित हैं, इस बांध को बाणगंगा नदी द्वारा भरा जाता हैै।
अजीत सागर बांध :- यह बांध खेतड़ी (झुझुनूं) में स्थित हैं।
पन्नालाल शाह का बांध :- यह बांध खेतड़ी (झुझुनूं) में स्थित हैं।
Rajasthan Geography Notes |