राजस्थान के लोक देवता और देवियाँ

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राजस्थान के लोक देवता और देवियाँ

लोक देवता से तात्पर्य ऐसे महापुरुषों से हैं जो मानव रूप से जन्म लेकर अपने असाधारण व लोक कल्याणकारी कार्यों के कारण स्थानीय जनता द्वारा उनको देव तुल्य माना गया है राजस्थान के सभी लोग देवता अपने समय के महान योद्धा व साधक थे वे अपने आदर्शों और मातृभूमि की रक्षा के लिए बलिदान हो गए थे उनहोंने सामाजिक दोषों का निवारण और हिंदू धर्म की रक्षा का महत्वपूर्ण कार्य किया राजस्थान में लोक देवताओं की पुजा व्यापक तौर पर की जाती है

1) तेजाजी
लोक देवता तेजाजी का जन्म नागौर जिले के खरनाल गांव के जाट परिवार में ईसवी सन 1074 में माघ शुक्ला चतुर्दशी को हुआ था
उनके पिता का नाम ताहर जी तथा माता का नाम रामकुंवरी था।
उनका विवाह पनेर गांव के रायमल जी की पुत्री पेमल दे के साथ हुआ था।
पेमल दे की सहेली लाछा गुजरी की गायों को मीणाओं से मुक्त कराते वक्त अत्यधिक घायल होने के बाद सर्पदंश से उनकी मृत्यु अजमेर के सुरसरा गांव में भाद्रपद शुक्ल दशमी को सन 1103 में हुई थी।
इसीलिए तेजाजी को सांपों का देवता भी कहा जाता है प्रत्येक गांव में तेजाजी का देवरा या स्थान होता है जहां उनकी तलवार धारी अश्वारोही मूर्ति होती है।
तेजाजी की पूजा गुजरात राजस्थान तथा मध्य प्रदेश राज्य में होती है।

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2) गोगाजी
राजस्थान के प्रमुख 6 संतों में से गोगा जी को काल समय के हिसाब से सबसे पुराना माना जाता है।
गोगा जी ऐसे संत हैं जिन्हें हिंदू और मुसलमान दोनों समुदाय द्वारा समान रूप से पूजा जाता है।
गोगाजी का जन्म स्थल ददरेवा चूरू में तथा गोगामेडी हनुमानगढ़ में स्थित है तथा दोनों के बीच 80 किलोमीटर की दूरी है।
इनका जन्म ददरेवा के चौहान शासक जेवर सिंह की पत्नी बाछल के गर्भ से भाद्रपद शुक्ल नवमी को सन 1003 में हुआ था।
गोगाज को जाहर पीर तथा सांपों का देवता भी कहा जाता है।
इनके गुरु का नाम गोरखनाथ था।
भक्त लोग गोगा जी की जीवनी गाते समय डेरु तथा कचौला नामक वाद्य यंत्र बजाते हैं।
इसीलिए गोगाजी की एक प्रसिद्ध कहावत है कि गांव गांव में खेजड़ी गांव गांव में गोगा पीर।

3) पाबूजी
पाबूजी का जन्म 13 वी शताब्दी में जोधपुर के कोलुमड गांव में हुआ था।
इनके पिता का नाम धांधल जी राठौड़ तथा माता का नाम कमला देवी था।
इनका विवाह सूरजमल सोडा की पुत्री सुपियार देवी (फूलमदे) के साथ हुआ था।
अपने विवाह के समय यह देवल चारणी से केसर कालमी घोड़ी लेकर गए थे, विवाह के बीच में ही जींदराव खींची से देवल चारणी की गायों की रक्षा के लिए युद्ध के लिए गए तथा प्राणोत्सर्ग किया।
इनकी जीवनी पर पाबू प्रकाश नामक ग्रंथ आशिया मोड़ जी ने लिखा है।
थोरी जाति के लोग माठ वाद्ययंत्र के साथ पाबूजी की पावडे गाते हैं।
पाबूजी की फड़ को रावणहत्था नामक वाद्ययंत्र के साथ गाया जाता है जो की सबसे छोटी फड़ है।
चैत्र अमावस्या को कोलू मंड में पाबूजी का विशाल मेला लगता है।
इन्हें ऊंटो के देवता भी कहा जाता है।

4) रामदेव जी
रामदेव जी का जन्म तवर वंश के अजमल जी के यहां रानी मीणा देकर गर्व से भाद्रपद शुक्ल द्वितीया को सन 1405 में हुआ।
इनका जन्म स्थल उडू कश्मीर बाड़मेर जिले में स्थित है।
इन्हें अवतारी पुरुष के रूप में माना जाता है तथा मुस्लिम लोग रामसापीर के रूप में पूजते हैं।
यह बालीनाथ के शिष्य थे तथा इन्होंने भैरव नामक राक्षस से जनता को मुक्ति दिलाई थी।
14वी शताब्दी में व्याप्त कुरीतियों के बीच इन्होंने जाति प्रथा तथा मूर्ति पूजा आदि का पुरजोर विरोध किया।
इन्होंने जैसलमेर में रुणिचा धाम की स्थापना की जहां भाद्रपद शुक्ल एकादशी को सन 1458 में जीवित समाधि ले ली।
कामडीया पंथ इनके द्वारा शुरू किया गया था जिनके लोगों द्वारा तेरहताली नृत्य किया जाता है जो विश्व प्रसिद्ध है।
इनकी फड भी रावणहत्था नामक वाद्ययंत्र के साथ ही गाई जाती है।
इनके द्वारा किए गए चमत्कारों को पर्चा तथा ध्वजा को नेजा कहा जाता है।

5) हरबू जी
जन्म स्थान – भुंडेल नागौर में
पिता – मेहता जी सांखला
गुरु – बालीनाथ जी
हरबू जी की गिनती मारवाड़ के पंच पीरों में की जाती थी
हरबू जी मारवाड़ के राव जोधा के समकालीन थे
हरबू जी लोकदेवता रामदेव जी के मौसेरे भाई थे
हरबू जी रामदेव जी के प्रेरणा से शास्त्र त्याग कर बाली नाथ जी से दीक्षा लेकर योगी बने
हरबू जी के आशीर्वाद से ही मारवाड़ के राव जोधा ने कुंभा से मारवाड़ जीता
हरबू जी का मुख्य पूजा स्थल बेंगटी (फलौदी) जोधपुर में है
हरबू जी के पुजारी सांखला राजपूत होते है
हरबू जी के मंदिर में उनकी गाड़ी की पूजा होती है जिसमे वो अपंग गायों के लिए चारा लाते थे
हरबू जी अपने शकुनशास्त्र के लिए जाने जाते थे

6) मेहा जी मांगलिया जैसलमेर 
मेहा जी मांगलिया मारवाड़ के पंच पीरों में एक है
मेहा जी मांगलिया का जन्म पंवार क्षत्रिय परिवार में हुआ था
मेहा जी मांगलिया का लालन पालन ननिहाल में मांगलिया गोत्र में हुआ इसलिए मेहा जी मंगलिया के नाम से प्रसिद्ध हुए
मेहा जी मांगलिया शकुन शस्त्र के अच्छे जानकर थे
मेहा जी मांगलिया का बापणी में मंदिर है
मेहा जी मांगलिया का मेला बापणी में भाद्रपद कृष्णा अष्टमी को भरता है
मेहा जी मांगलिया का प्रिय घोड़ा किरड़ काबरा था
मेहा जी मांगलिया जैसलमेर के राव राणगदेव भाटी से युद्ध करते हुए वीरगति को प्राप्त हो

7) देवनारायण जी 
जन्म – 1243ई. में
जन्म स्थान – आसींद भीलवाड़ा
पिता – सवाई भोज
माता – सेढू
पत्नी – पिपलदे
बचपन का नाम – उदयसिंह
घोड़ा – लीलागर
देवनारायण जी बगड़ावत कुल के नागवंशीय गुर्जर थे
देवनारायण जी को गुर्जर समाज विष्णु का अवतार मानते है
देवनारायण जी के प्रमुख अनुयायी गुर्जर समाज के है
देवनारायण जी की फड़ का गायन गुर्जर जाति के भोपों के द्वारा जंतर वाद्य यंत्र के साथ किया जाता है
देवनारायण जी के देवरों में उनकी प्रतिमा के स्थान पर बड़ी ईंटों की पूजा की जाती है
राजस्थान में देवमाली(अजमेर) नामक स्थान को बगड़ावतों का गाँव कहा जाता है जहाँ पर देवनारायणजी का देहांत हुआ
देवनारायण जी का मेला प्रति वर्ष भाद्रपद शुक्ल सप्तमी को लगता है
देवनारायण जी का प्रमुख पूज्य स्थल आसींद (भीलवाडा) है
अन्य पूज्य स्थल :- गोठ (भीलवाड़ा), देवमाली(अजमेर), देवधाम जोधपुरिया (टोंक), देवडूंगरी पहाड़ी (चितौड़गढ़)
देवनारायणजी औषधिशास्त्र के ज्ञाता थे
देवनारायणजी प्रथम लोकदेवता है जिन पर 2011 में केंट्रीय संचार मंत्रालय ने डाक टिकट जारी की है |

8) मल्लिनाथ जी
जन्म – 1358 ई. में
जन्म स्थान – मारवाड़ में
पिता – तीड़ा जी
माता – जाणीदे
चाचा – कान्हड़दे
पत्नी – रूपादे
मल्लिनाथजी अपने पिता के निधन के बाद महेवा में अपने चाचा कान्हडदे के पास चले गए
कान्हड़दे की बाद मल्लिनाथ जी 1374 ई. में महेवा के स्वामी बने
मल्लिनाथ जी ने अपने भतीजे चुंडा को 1394 ई. में मंडोर व 1397 ई. में नागौर जीतने में सहायता की
मल्लिनाथ जी ने 1408ई. में मारवाड़ के सभी संतों को सम्मिलित करके बड़ा हरी कीर्तन किया
मल्लिनाथ जी ने 1378 ई. में मालवा के सूबेदार निजामुद्दीन की सेना को पराजित किया
मल्लिनाथ जी का मंदिर तिलवाडा (बाड़मेर) में है जहाँ प्रति वर्ष चैत्र कृष्ण एकादशी से चैत्र शुक्ल एकादशी तक मेला लगता है
बाड़मेर के मालानी क्षेत्र का नाम मल्लिनाथ जी के नाम पर पड़ा है

9) कल्लाजी
जन्म – 1544ई. को आश्विन शुक्ला अष्टमी
दादा – मेड़ता के दूदाजी
पिता – अचलसिंह
बुआ – मीरा
गुरु – भैरव नाथ
कुल देवी – नागणेची माता
कल्लाजी के अन्य नाम कल्ला, केहर, कल्याण, कमधज है
कल्ला जी को चार हाथों वाला लोकदेवता भी कहा जाता है क्योंकि जब अकबर चितौड़ पर आक्रमण किया तो आकबर की गोली जयमल राठौड़ को लग गयी तब कल्ला जी ने जयमल राठौड़ को आपने कंधे पर बैठकर युद्ध किया जिससे दो हाथ कल्ला जी के और दो हाथ जयमल के होने के कारण कल्ला जी को चतुर्भुज रूप में प्रकट हो कहा गया
कल्लाजी को शेषनाग का अवतार माना जाता है इसलिए इनकी पूजा नाग के रूप में किया जाता है
कल्ला जी की काले पत्थर की मूर्ति डूंगरपुर के सामलिया क्षेत्र में है
कल्लाजी के मूर्ति पर प्रतिदिन केसर व अफीम चढ़ाई जाती है

10) मामा देव
विशिष्ठ लोकदेवता जिनकी मिट्ठी – पत्थर की मूर्ति नहीं होती बल्कि गांव के बाहर प्रतिष्ठित लकड़ी का एक विशिष्ठ तोरण होता है।

11) भौमिया जी
ये राजस्थान के गाँव-गाँव में भूमि के रक्षक देवता के
रूप में पूजे जातें हैं ।

12) रुपनाथ (झारड़ा)
ये पाबूजी के बड़े भाई बूढ़ो जी के पुत्र थे। इन्होंने अपने
पिता व चाचा (पाबूजी) की मृत्यु का बदला जींदराव
खींची को मार कर लिया । कोलूमण्ड (जोधपुर) के
पास पहाडी पर तथा बीकानेर के सिंधूदड़ा ( नोखामंडी)
पर इनके प्रमुख थान (स्थान) हैं । हिमाचल प्रदेश मे इन्हें ‘बालकनाथ’ के रूप में पूजा जाता है ।

13) वीर बिग्गाजी
सम्पूर्ण जीवन गोरक्षा व गौ-संवर्धन में बीता। इनका जन्म जांगल प्रदेश (बीकानेर) के एक कृषक जाट परिवार में हुआ । इनके पिता का नाम राव मोहन तथा माता का नाम सुल्तानी था । बिग्गाजी ने मुस्लिम लुटेरों से गायें छुड़ाते हुए अपना बलिदान दे दिया । राजस्थान में जाखड समाज इन्हें अपना कुल देवता मानता है ।

14) मेहाजी
मेहाजी सभी मांगलियों के इष्टदेव के रूप में पूजे जाते हैं । बापणी में इनका मंदिर है । भाद्रपद पें कृणा जन्माष्टमी को मांगलिया राजपूत मेहाजी क्री अष्टमी मनाते हैं । किरड़ काबरा घोड़ा मेहाजी का प्रिय घोडा था । मेहाजी मांगलिया को मारवाड के पंच पीरों में माना जाता है ।

15) हरीराम बाबा
इनका जन्म विक्रम संवत 1959 में हुआ । हरीराम बाबा के पिता का नाम रामनायण व माता का नाम चन्दणी देवी था । इनके गुरु भूरा थे । इन्होंने सांप काटने के उपाय करने के लिए मंत्र सीखा । इनका मंदिर सुजानगढ़ से नागौर मार्ग पर चाऊ गाँव से 3 किमी. पर कच्चे रेतीले टीले के मीच झौरड़ा गांव में बना है।

16) धनराज जी
इनका जन्म जैसलमेर जिले के नगागॉव के एक क्षत्रिय परिवार में हुआ । गोवंश की रक्षा के लिए हिंदू समाज में जन्मे पनराज जी का नाम अमर है । गायों के बीच इनका बचपन गुजरा । मुस्लिम लुटेरों से काठोडी गॉव के ब्राह्मणों की गाएँ छुड़ाते हुए अपना जीवन बलिदान कर दिया । इनकी स्मृति में जैसलमेर जिले के पनराजसर गॉव में हर वर्ष दो मेले आयोजित होते हैं ।

17) वीर फताजी
इनका जन्म साथूगांव के ही गज्जारणी परिवार में हुआ था। इन्होंने शस्त्र विद्या का ज्ञान प्रात किया । जालोर जिले के साथू गाँव पर लुटेरों के आक्रमण पर उनसे भीषण युद्ध किया । साथू गांव में फताजी का विशाल मंदिर है। प्रतिवर्ष भादवा सुदी नवमी को मेला लगता है ।

18) केसरिया कुंवर जी
केसरिया कुंवर जी चुरू के निवासी थे
केसरिया कुंवर जी गोगाजी के पुत्र थे
केसरिया कुंवरजी के भोपे सर्पदंश के रोगी का जहर मुँह से चूसकर बाहर निकलते है
केसरिया कुंवरजी के थान पर सफ़ेद रंग का ध्वज पहराते है

19) आलमजी बाड़मेर
आलमजी का नाम जैतमल राठौड़ था
आलम जी को बाड़मेर के मालाणी क्षेत्र में लोकदेवता के रूप में पूजा जाता है
आलम जी का मंदिर ढांगी नामक टीले पर है जिसे आलम जी जो धोरा भी कहते है
आलम जी का मेला भाद्रपद शुक्ला द्वितीया को लगता है

20) बाबा तल्लीनाथ
तल्लीनाथ जी का बचपन का नाम गागदेव, पिता का नाम विरमदेव था
तल्लीनाथ जी ने सदेव पेड़ पौधो की रक्षा व सवर्धन पर बल दिया इसलिए तल्लीनाथ पूजा स्थली पंचमुखी पहाड़ पर कोई पेड़ पौधा नहीं काटता है
इनके गुरु का नाम जलन्धर नाथ था

21) अन्नपूर्णा
महाराजा मानसिंह पं. बंगाल के राजा केदार से ही सन् 1604 में मूर्ति लाए थे।

1) जडली माता
इनका मंदिर चितौड़गढ़ जिले में छिपों के अंकोला में
बेड़च नदी के किनारे स्थित है ।
माता की तांती बॉंधने से बीमार व्यक्ति ठीक हो जाता है।
बच्चो को दो तिबरियों से निकालने पर बीमार बच्चा
अच्छा हो जाता हैं ।

2) सचियाय माता
ओसियौ सचियाय माता ओसवालों कुलदेवी है । इसका प्रसिद्ध मंदिर ओसियाँ नामक नगर में एक ऊंची पहाड़ी पर स्थित है।
सचियाय माता अर्थात् कुल देवी के मंदिर का निर्माण परमार राजकुमार ने उपलदेव ने करवाया था।
सचियाय माता की वर्तमान प्रतिमा कसौरी पत्थर की है।
यह प्रतिमा वस्तुत: महिषासुर मर्दिनी देवी की है ।

3) लटियाला माताजी
यह कल्लो की कुल देवी है ।
लटियाला माताजी का मंदिर फलौदी में है जिसके
आगे खेजड़ा (शमी वृक्ष) स्थित है, इसलिए इन्हें खेजड़बेरी राय भवानी भी कहते हैं।
बीकानेर मेँ एक भव्य मंदिर नया शहर में स्थित है ।

4) स्वांगिया (स्वांगगृहणी)
जैसलमेर के राज्य चिन्ह में स्वांग (भाला) को मुड़ा हुआ देवी हाथ में दिखाया गया है । राजचिन्हों में सबसे ऊपर मालम चिडिया जिसे शकुन चिड़ी भी कहते हैं । यह देवी का प्रतीक हैं । शकुन

5) चारणी देवियाँ
जैसलमेर क्षेत्र में चारणों की देवियां ‘आवडा’ आईनाथ
जोगमाया के रूप मैं मूज्य है । जैसलमेर से 20-25 किमी. दूरी पर भूगोपा के पास एक पहाडी कौ गुफा में तेमड़ेराथ का मदिर स्थित है, जो सात देवियों का मंदिर है। चारण देवियों की स्तुति ‘चरजा’ कहलाती है, जो दो प्रकार की होती है- सिंघाऊ और घाडाऊ ।
सात देवियों की सम्मिलित प्रतिमा को ढाला कहा जाता है।

6) आवक माता
इनका मरुस्थल में आगमन वि.सं. 888 के आसपास माना जाता है ।

7) आशापुरा माता
राजस्थान में बिस्सा जाति के लोग कुलदेवी, आशापुरा माता के उपासक हैं । मनोकामना पूर्ण करने के कारण आशापुरा कहलाई । इनका विशाल मंदिर पोकरण से डेढ किलोमीटर दूर स्थित हैं ।
वि. सं. 1200 के लगभग बिस्सा कुलदीपक श्री लूण भाणजी के साथ कच्छ भुज से पधारी थी। दो बारर इनके महोत्सव होते हैं , भाद्रपद शुक्ला दशमी व
माघ शुक्ला दशमी को । बिस्सा जाति मे विवाहित वधू मेहदी नहीं लगा सकती है ।

8) घेवर माता
घेवर माता का मंदिर सती मंदिर है जो राजसमंद झील
की माल पर स्थित है ।

9) आमजा (केलवाड़ा)
उदयपुर से 80 किलोमीटर दूर केलवाड़ा के सास गांव
रीछड़े में भीलों की देवी आमजा देवी का भव्य मंदिर है।
पूजा के लिए एक भील भोपा तथा दूसरा ब्राह्मण पुजारी है । प्रतिवर्ष ज्येष्ठ मास में शुक्ल पक्ष की अष्टमी को मंदिर
के अहाते में मेला लगता है ।

10) राणी दादी जी माता
इनका नाम नारायणी बाई था और इनका विवाह तनधनदास से हुआ था लेकिन तनधनदास को हिसार नवाब के सैनिकों ने धोखे से आक्रमण कर मार दिया । तब नारायणी उग्र चंडिका बनी । इसके बाद वह 1652 में अपने पति के साथ सती हो गई । झुंझुनू राणी दादी सती का विशाल संगमरमरी मंदिर है ।
लोक भाषा में दादीजी के नाम से प्रसिद्ध राणी सती का प्रतिवर्ष भाद्रपद की कृष्ण अमावस्या को मेला लगने की परम्परा है ।
रानी सती के परिवार में 13 स्त्रियां सती हुईं । उनकी पूजा भाद्रपद कृष्णा अमावस्या को की जाती है ।

11) सकराय माता
इनका आस्था तथा भक्ति केंद्र शेखावटी अंचल में उदयपुर वाटी (झुझुनूँ) के समीप सुरम्य घाटियों में स्थित है जो
सीकर जिले में आता है ।
अकाल-पीडितों को बचाने के लिए इन्होंने फल, सब्जियां, कंदमूल उत्पन्न किए जिनके कारण ये शाकम्भरी कहलाती है।
शाकम्भरी का एक अन्य मंदिर सांभर में तथा दूसरा उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जिले में है । सकराय माता खंडेलवालो की कुलदेवी के रूप में विख्यात है । चैत्र और अश्चिन माह में नवरात्रि पूजा के समय मेले जैसा माहौल होता है।

12) शीतला माता
सभी देवियों में ऐसी देवी है, जो खपिडत रूप में पूजी जाती है । शीतला माता का मंदिर सवाई माधोसिंह ने चाकसू में शील की डूंगरी पर बनवाया, जो आज भी प्रसिध्द हैं । इस देवी का वाहन गधा तथा पुजारी कुम्हार होता है । चाकसु में प्रतिवर्ष शीतलाष्टमी को गधों के मेले का आयोजन होता है ।

13) नारायणी माता
नारायणी माता का मंदिर 11वीं शताब्दी में प्रतिहार शैली में निर्मित हुआ है । अलवर जिले की राजगढ तहसील मे बरबा डूंगरी की तलहटी में नारायणी माता का मंदिर स्थित है । नाईं जाति के लोग नारायणी देवी को अपनी कुलदेवी मानते है । मीणा जाति भी इन्हें अपनी आराध्य देवी मानती है ।

14) जिलाणी माता
लोकदेवी जिलाणी माता का प्रसिद्ध मंदिर बहरोड़ (अलवर) कस्बे की प्राचीन चावडी के समीप स्थित है । प्रतिवर्ष दो बार मेला इस मंदिर पर भी आयोजित होता है।

15) भदाणा माता
कोटा से 5 किलोमीटर दूर भदाणा नामक स्थान पर माता का मंदिर है । यहाँ मूठ (मारण का तांत्रिक प्रयोग) की झपट में आए व्यक्ति को मौत के मुँह से बचाया जाता है। भोपा व्यक्ति को चूसकर मूंग , उड़द निकाल देता है ।

16) छींक माता
राज्य मे माघ सुदी सप्तमी को छींकमाता की पूजा होती है । जयपुर के गोपालजी के रास्ते में इसका मंदिर है ।

17) अम्बिका माता
जगत (उदयपुर) मे इनका मंदिर है, जो शक्तिपीठ कहलाता है।

18) पथवारी माता
तीर्थयात्रा की सफलता की कामना हेतु राजस्थान में पथवारी देवी की लोक देवी के रूप में पूजा की जाती है । पथवारी देवी गाँव के जाहर स्थापित की जाती है।

19) आईजी माता
सिरवी जाति के क्षत्रियों की कुलदेवी ।
इनका मंदिर बिलाड़ा(जोधपुर) में हैं।
ये रामदेवजी की शिष्या थी।
इन्हें नवदुर्गा का अवतार माना जाता हैं।

20) राणी सती
वास्तविक नाम ‘नारायणी ‘ ।
‘दादीजी’ के नाम से लोकप्रिय
झुंझनु में रांणी सती के मंदिर में हर वर्ष भाद्रपद अमावस्या को मेला भरता है।

21) सूगाली माता
आऊवा के ठाकुर परिवार की कुलदेवी ।
इस देवी प्रतिमा के दस सिर और चौपन हाथ हैं।

22) केला देवी
केला देवी यदुवंशी राजवंश की कुल देवी है
जो दुर्गा के रूप मे मानी जाती है
प्रतिवर्ष चेत्र मास की शुक्ल अष्टमी को लक्खी मेला लगता है
मंदिर त्रिकुट पर्वत (करोली) राजस्थान मे है

23) शीलादेवी
आमेर राज्य के शासक मानसिंह (प्रथम) ने पूर्वी बंगाल विजय के बाद इसे आमेर के राजभवनो के मध्य मे स्थापित करवाया था
शीलादेवी की स्थापना 16 वी शताब्दी मे हुई थी
शीलादेवी की प्रतिमा अष्टभुजी है

24) करणीमाता
करणी माता बीकानेर के राठौर वंश की कुलदेवी है
करणी माता का मंदिर बीकानेर जिले के देशनोक नामक स्थान पर स्थित है
करणी माता चूहों की देवी के नाम से भी प्रसिद है यहाँ पर सफ़ेद चूहों को काबा कहा जाता है
नवरात्री के दिनों मे देशनोक मे करणीमाता का मेला भरा जाता है

25) जीणमाता
जीणमाता का मंदिर सीकर जिले मे हर्ष की पहाड़ी के ऊपर स्थित है
चौहानों की कुलदेवी है
जीणमाता का मेला प्रतिवर्ष चेत्र व आश्विन माह के नवरात्रों मे आता है

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