राजस्थान के इतिहास

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राजस्थान के इतिहास :-
राजस्थान की भूमि में कोई ऐसा फूल नहीं है उगा, जो राष्ट्रीय वीरता और त्याग की सुगन्ध से आप्लावित होकर न झूमा हो; वायु का एक भी ऐसा झोका नहीं उठा, जिसकी झंझा के साथ युद्व-देवी के चरणें में साहसी युवकों का प्रयाण न हुआ हो; ऐसी एक भी कुटी नहीं थी, जिसमें मातेश्वरियों की गोद में निःस्वार्थ समर्पण और वीरता की ममत्वभरी लोरियॉ न गाई गई हों; न कोई एक भी घर था, जिसमें ऐसे वीर की सृष्टी न हुई हो, जिसने अपने देश के तूफानों का तत्परता से सामना न किया हो। – कर्नल जेम्स टॉड

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आधुनिक राजस्थान का इतिहास :-
आधुनिक राजस्थान में मराठा प्रभाव का विस्तार, राज्यों द्वारा अंग्रेजी अधीनता स्वीकार करना, राजस्थान में अंग्रेजी नीति का विकास (1818-1868), पारम्परिक संरचना में परिवर्तन, राजस्थान में साम्राज्यवादी आर्थिक शोषण-अफीम और नमक व्यापार, राजस्थान में 1857 का विप्लव, अंग्रेजी सर्वोच्चता की नई व्याख्या (1858-1917), राजस्थान में छद्म आधुनिकरण एवं तथाकथित प्रशासनिक परिवर्तन, राजस्थान का आर्थिक उपनिवेशीकरण, सामाजिक परिवर्तन और गतिशीलता, कृषक असन्तोष और किसान आन्दोलन, राजनीतिक जागरण और स्वतंत्रता संघर्ष का आरम्भ, स्वतंत्रता आन्दोलन और राजस्थान का एकीकरण, साहित्य और कला का विकास।

राजस्थान इतिहास के प्रमुख सोपान :-
प्रागैतिहासिक राजस्थान का मानव –
प्रागैतिहासिक काल, वह ऐतिहासिक कालखंड है जिसमें लेखन कला का विकास नहीं हुआ था। यह इतिहास का ऐसा समय है जिसकी जानकारी के स्रोत के रूप में लिखित सामग्री उपलब्ध नहीं है। 3000 ई. पू. से पहले का समय इसमें सम्मिलित है।
जीवाश्मों पर आधारित प्रमाण से राजस्थान में कम से कम एक लाख पूर्व मानव के अस्तित्व की पुष्टि होती है। राजस्थान में आदि मानव द्वारा प्रयुक्त डेढ़ लाख वर्ष पूर्व तक के पाषाण उपकरण व उत्तरोत्तर अन्य पुरातत्व सामग्री प्राप्त हुई है जिससे राजस्थान ही नहीं वरन भारतीय इतिहास से संबंधित अनेक प्रश्न व समस्याओं का समाधान हुआ है।
7000 से 3000 वर्ष पूर्व का काल सरस्वती-दृषद्वती सभ्यता का युग है। इसी कड़ी में आगे चलकर आहड़, गंभीरी, लूनी, बेड़च, कांतली आदि नदी घाटी सभ्यताओं का विकास हुआ। प्रागैतिहासिक युग की सबसे बड़ी उपलब्धि यह है कि सरस्वती दृषद्वती की घाटी में ऋग्वेद की रचना हुई।

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धार्मिक आंदोलन :-
ईस्वी पूर्व छठवीं से तीसरी शताब्दी तक के कालखंड में पौराणिक काल के ब्राह्मण धर्म तथा पुरोहित वर्ग के प्रभुत्व के विरुद्ध नवजागरण के आंदोलन का प्रादुर्भाव हुआ तथा बौद्ध और जैन धर्म लोकप्रिय होते गए। इस भारतीय आंदोलन के प्रभाव से कुछ सीमा तक राजस्थान आडंबर युक्त संस्कारों से मुक्त होकर व्यवहारिक आचार के मूल्यों को अपनाने में सफल हुआ।

जनपद युगीन राजस्थान :-
ईसवी पूर्व छठी शताब्दी में भारत में अनेक शक्तिशाली राज्यों का विकास हुआ। इस समय राजस्थान में शिवि जनपद राजनीतिक व सांस्कृतिक केंद्र के रूप में विद्यमान था।

साम्राज्य युग :-
500 ईस्वी पूर्व से 200 ईस्वी पूर्व तक राजनीतिक दृष्टि से भारत एक छत्र के अंतर्गत साम्राज्य युग में प्रवेश कर गया। इस युग में राजस्थान उस समय के विभिन्न वंशों के सम्राटों के अधीन उनके प्रभाव क्षेत्र में आया जिनमें मौर्य, गुप्त व वर्धन प्रख्यात है। साम्राज्य युग से ही ऐतिहासिक काल का प्रारंभ होता है, जिसके अंतर्गत इतिहास की जानकारी के स्रोत के रूप में लिखित साधन उपलब्ध होते हैं।

राजस्थान के इतिहास को जानने के स्त्रोत :-
1) पुरातात्विक स्त्रोत पुरालेखागारिय स्त्रोंत साहित्यिक स्त्रोत
2) सिक्के हकीकत बही राजस्थानी साहित्य
3) शिलालेख हुकूमत बही संस्कृत साहित्य
4) ताम्रपत्र कमठाना बही फारसी साहित्य
5) खरीता बही
6) सिक्के

राजस्थान की भाषा :-
हिंदी राज्य की सर्वाधिक बोली जाने वाली और अधिकारिक भाषा है। और साथ ही लोग उर्दु/ सिन्धी, पंजाबी, संस्कृत और गुजराती भाषा का भी उपयोग करते हैं।

राजस्थान की संस्कृति :-
राजस्थान सांस्कृतिक रूप से समृद्ध है और इसके प्राचीन इतिहास का प्रभाव इसकी कलात्मक और सांस्कृतिक परंपरा पर दिखाई देता है। यहाँ अलग-अलग प्रकार की समृद्ध लोक संस्कृति है, जिसे अक्सर राज्य का प्रतिक भी माना जाता है।
खेती और शास्त्रीय संगीत के विविध प्रकार राजस्थान की सांस्कृतिक परंपरा के भाग है। यहाँ के संगीत में वह गीत है जो दैनिक संबंध और काम को चित्रित करते है, यहाँ के गीतों में अक्सर कुओ और तालाब से जल निकालने की क्रिया पर ध्यान केन्द्रित किया जाता है।

राजस्थान का नृत्य :-
जोधपुर मारवाड़ के घूमर नृत्य और जैसलमेर के कालबेलिया नृत्य ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बना रखी है। लोक संगीत राजस्थान की संस्कृति का विशाल भाग है। कठपुतली, भोपा, चांग, तेराताली, घिंद्र, कच्छी घोरी और तेजाजी पारंपरिक राजस्थानी संस्कृति के उदाहरण है। लोक गीतों में सामान्यतः बलाड शामिल है, जो वीर विलेख और प्रेम कथाओ से सम्बंधित है और धार्मिक और भक्तिगीतो को भजन और बाणी के नाम से जाना जाता है, जिन्हें अक्सर ढोलक, सितार और सारंगी का उपयोग कर गाया जाता है।

राजस्थान की कला :-
राजस्थान अपनी पारंपरिक और रंगीन कला के लिए जाना जाता है। ब्लॉक प्रिंट, टाई और डाई प्रिंट, बगरू प्रिंट, संगनेर प्रिंट और ज़री कढाई राजस्थान से निर्यात किये जाने वाले मुख्य उत्पादों में से एक है। हस्तशिल्प वस्तुए जैसे लकड़ी के फर्नीचर और शिल्प, कारपेट और मिट्टी के बर्तन हमें यहाँ देखने मिलते है। खरीददारी यहाँ की रंगीन संस्कृति को दर्शाती है। राजस्थानी कपड़ो में बहुत सारा दर्पण काम और कढाई की हुई होती है। यहाँ के लहेंगा और चनिया चोली काफी प्रसिद्ध है। सिर को ढकने के लिए कपडे के टुकड़े का उपयोग किया जाता है। राजस्थान पोशाख ज्यादातर गहरे रंग जैसे नीले, पीले और केसरियां रंग में बने होते है।
राजस्थान के मुख्य धार्मिक महोत्सव – Rajasthan’s main religious festival
राजस्थान के मुख्य धार्मिक महोत्सवो में दीपावली, गणगौर, तीज, गोगाजी,होली, श्री देवनारायण जयंती, मकर संक्रांति और जन्माष्टमी शामिल है। राजस्थान रेगिस्तान महोत्सव का आयोजन हर साल ठंड के मौसम में किया जाता है। पारंपरिक वेशभूषा में लोग रेगिस्तान नृत्य करते है बलाड गीत गाते है। साथ ही यहाँ मेले का भी आयोजन किया जाता है। इन महोत्सव में ऊँट मुख्य भूमिका निभाते है।

राजस्थान के आकर्षक करने वाले स्थल :-
राजस्थान भारत के प्रसिद्ध पर्यटन स्थलों में से एक है। यदि आप भारतीय विरासत और शाही ठाठ के दर्शन पास से करना चाहते है तो राजस्थान आपके लिए सर्वोतम गंतव्य है। यहाँ बहुत से प्राकृतिक और मानव निर्मित पर्यटन स्थल है। जिनमे मुख्यतः निम्न शामिल है

राजस्थान के इतिहास की प्रमुख घटनाएं – प्रारंभ से चौदहवीं शताब्दी तक
वर्ष महत्तवपूर्ण घटना
5000 ई.पू – कालीबंगा सभ्यता
3500 ई.पू – आहड़ सभ्यता
1000-600 ई.पू – आर्य सभ्यता
300-600 ई.पू. – जनपद युग
350-600 ई.पू. – गुप्त वंश का हस्तक्षेप
551 ई. – वासुदेव चौहान द्वारा सांभर (सपादलक्ष) में चौहान राज्य की स्थापना
728 ई. – बप्पा रावल द्वारा चित्तौड़ में मेवाड़ राज्य की स्थापना
967 ई. – कछवाहा वंशी धोलाराय द्वारा आमेर राज्य की स्थापना
1018 ई. – महमूद गजनवी द्वारा प्रतिहार राज्य पर चढाई एवं विजय
1031 ई. – दिलवाड़ में आदिनाथ मंदिर का निर्माण विमलशाह ने करवाया
1113 ई. – अजयराज द्वारा अजमर (अजयमेरु) की स्थापना
1137 ई. – कछवाह वंश के दुलहराय ने ढूंढार राज्य की स्थापना
1156 ई. – राव जैसलसिंह द्वारा जैसलमेर की स्थापना
1191 ई. – तराईन का द्वितीय युद्ध – पृथ्वीराज व मुहम्मद गौरी के मध्य, पृथ्वीराज विजयी
1192 ई. – तराईन का तृतीय युद्ध – पृथ्वीराज व मुहम्मद गौरी के मध्य, मुहम्मद गौरी की विजय
1195 ई. – मुहम्मद गौरी द्वारा बयाना पर आक्रमण
1213 ई. – जैत्रसिंह मेवाड़ में गद्दीनसीन
1230 ई. – दिलवाड़ में तेजपाल व वास्तुपाल द्वारा नेमिनाथ मंदिर का निर्माण
1234 ई. – रावत जैत्रसिंह द्वारा इल्तुतमिश पर विजय
1237 ई. – रावत जैत्रसिंह द्वारा सुल्तान बलबन पर विजय
1242 ई. – राजा हाड़ा देशराज द्वारा बूंदी राज्य की स्थापना
1291 ई. – हम्मीर द्वारा जलालुद्दीन का आक्रमण विफल करना
1301 ई. – हमीर द्वारा अलाउद्दीन खिलजी के आक्रमण को विफल करना, षड्यंत्र द्वारा पराजित, रणथम्भौर के किले पर 11 जुलाई को तुर्की अधिकार स्थापित
1302 ई. – रत्नसिंह गुहिलों के सिंहासन पर बैठा
1303 ई. – राणा रतनसिंह अलाउद्दीन खिलजी के हाथों परास्त, चित्तौड़ पर खिलजी का अधिकार, चित्तौड़ का नाम परिवर्तीत कर खिज्राबाद
1308 ई. – कान्हड़देव चौहान खिलजी से परास्त, जालौर पर खिलजी का अधिपत्य
1326 ई. – राणा हमीर द्वारा चित्तौड़ पर पुनः शासन स्थापित

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