राजस्थान के भौतिक प्रदेश

राजस्थान के भौतिक प्रदेश

संरचना की दृष्टि से राजस्थान के भौतिक स्वरूप भारत के प्रायद्वीपीय पठारी क्षेत्र व उत्तर का विशाल मैदान के अन्तर्गत आते है। राजस्थान को चार भौतिक विभागों में बांटा गया है।

अरावली पर्वतीय प्रदेश :-
राजस्थान के कुल क्षेत्रफल का – 9%
राजस्थान की कुल जनसंख्या का – 10%
अरावली पर्वत श्रृंखला की कुल लंबाई – 692 km
अरावली की राजस्थान में कुल लंबाई – 550 km(लगभग 80%)
अरावली पर्वत श्रृंखला खेडब्रह्मा, पालनपुर (गुजरात) से प्रारंभ होकर पालम (दिल्ली) तक जाती है।
अरावली राजस्थान में सिरोही जिले में प्रवेश करती है तथा यह खेतड़ी(झुंझुनू) से राजस्थान से बाहर निकलती है।
अरावली के गमन की दिशा दक्षिण-पश्चिम से उत्तर-पूर्व
उत्तरी अरावली की सबसे ऊंची चोटी – रघुनाथगढ़ (सीकर) 1055 मीटर
मध्य अरावली की सबसे ऊंची चोटी – तारागढ़ (अजमेर) 873 मीटर
दक्षिणी अरावली की सबसे ऊंची चोटी – गुरु शिखर (सिरोही) 1722 मीटर

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अरावली पर्वत श्रृंखला की 5 ऊंची चोटियां :-
गुरू – गुरु शिखर (सिरोही) 1722 मीटर
से – सेर (सिरोही) 1597 मीटर
जरा – जरगा (उदयपुर) 1431 मीटर
आशा – अचलगढ़ (सिरोही) 1380 मीटर
रखो – रघुनाथगढ़ (सीकर) 1055 मीटर
अरावली पर्वत श्रृंखला विश्व की सबसे प्राचीन वलित पर्वत श्रृंखला है।
विश्व की सबसे नवीन पर्वत श्रृंखला – हिमालय
कर्नल जेम्स टॉड ने गुरु शिखर को संतो का शिखर कहा है।
अरावली पर्वत श्रंखला की औसत ऊंचाई – 930 मीटर
अरावली की सर्वाधिक ऊंची चोटियां सिरोही जिले में स्थित है।
अरावली पर्वत श्रृंखला में सर्वाधिक अंतराल किस जिले में स्थित है – अजमेर
राजस्थान में सर्वाधिक ऊंचाई पर बसा शहर – माउंट आबू(सिरोही)
राजस्थान का घाटी में बसा शहर – अजमेर
तश्तरीनुमा बेसिन में बसा शहर – उदयपुर

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प्रमुख पठार :-
1) उड़िया का पठार (सिरोही) राजस्थान का सबसे ऊंचा पठार
2) आबू का पठार (सिरोही)
3) भोरठ का पठार (गोगुंदा, उदयपुर)
4) मेसा का पठार (चित्तौड़गढ़)
5) लासडिया का पठार (उदयपुर)
भोमट – उदयपुर, सिरोही, डूंगरपुर के पठारी भाग को भोमट का पठार कहा जाता है।
भोरठ – गोगुंदा (उदयपुर) से कुंभलगढ़ (राजसमंद) का पठारी भाग
देशहरो – उदयपुर की जरगा व रागा पहाड़ियों का हरा भरा क्षेत्र
नाल – अरावली के दर्रों को नाल कहा जाता है।
नाली – घग्घर नदी के पाटों(तट) को नाली कहा जाता है।
बग्गी – घग्घर नदी के उत्तरी उपजाऊ क्षेत्र को बग्गी कहा जाता है।
कांठल – माही नदी का तटीय क्षेत्र (विशेषतः प्रतापगढ़)
तोरावाटी – कांतली नदी का तटीय क्षेत्र
मेवल – डूंगरपुर, बांसवाड़ा के मध्य का क्षेत्र
ऊपर माल – भैंसरोडगढ़(चित्तौड़) से बिजोलिया(भीलवाड़ा) तक का पठारी भाग
कूबड़ पट्टी – अजमेर, नागौर के आस-पास का क्षेत्र
पीडमांट मैदान – अरावली श्रेणी में देवगढ़ (राजसमंद) के समीप पृथक निर्जन पहाड़ियां जिनके उच्च भू-भाग टीले नुमा है।
छप्पन का मैदान – प्रतापगढ़, बांसवाड़ा के मध्य का भाग

राजस्थान की प्रमुख पहाड़िया :-
छप्पन की पहाड़ियां – बाड़मेर
माला खेत की पहाड़ियां – सीकर
हर्ष की पहाड़ी – सीकर
सुण्डा की पहाड़ियां – जालौर
बीजासन की पहाड़ी – मांडलगढ़(भीलवाड़ा)
मेरवाड़ा की पहाड़ियां – टॉडगढ़(अजमेर) मारवाड़ के मैदान को मेवाड़ के उच्च पठार से पृथक करता हैं।
मुकुंदरा की पहाड़ियां – कोटा, झालावाड़
राजस्थान में प्रथम रोप वे स्थापित किया गया – सुण्डा पर्वत (जालोर)
सुण्डा पर्वत जालोर पर सुण्डा माता का मंदिर स्थित है।

राजस्थान के प्रमुख दर्रे –
1) केवड़ा की नाल – उदयपुर
2) सोमेश्वर नाल – उदयपुर
3) देसूरी नाल – राजसमंद
4) हाथी नाल – उदयपुर
5) पगल्या की नाल – उदयपुर
कचवारी, पीपली, उदावरी, स्वरूप घाट क्या है – अरावली पर्वतमाला के दर्रों के नाम जो कि अजमेर को जोधपुर से जोड़ते हैं।

पूर्वी पठारी प्रदेश क्षेत्रफल :-
राजस्थान के कुल क्षेत्रफल का – 7%
राजस्थान की कुल जनसंख्या का – 11%
राजस्थान के दक्षिणी-पूर्वी पठारी प्रदेश को भारत के मालवा के पठार का भाग माना जाता है।
मालवा के पठार को हाडोती के पठार के नाम से भी जाना जाता है।
हाडोती प्रदेश – कोटा, बूंदी, बारां, झालावाड़
दक्षिण-पूर्वी पठारी प्रदेश – कोटा, बूंदी, बारां, झालावाड़, चित्तौड़गढ़, प्रतापगढ़, बांसवाड़ा
दक्षिण-पूर्वी पठारी प्रदेश राज्य का सर्वाधिक वर्षा वाला भौतिक प्रदेश है।
सर्वाधिक वर्षा वाला जिला – झालावाड़
सबसे कम वर्षा वाला जिला – जैसलमेर
सर्वाधिक वर्षा वाला स्थान – माउंट आबू (सिरोही)
राज्य का सबसे शुष्क स्थान – फलोदी (जोधपुर)
दक्षिणी-पूर्वी पठारी प्रदेश को गोंडवाना लैंड का अवशेष माना जाता है।
इस भौतिक प्रदेश में लगभग 90 – 95 cm
वर्षा होती है।
राज्य में सर्वाधिक वनस्पति हाडोती के पठार में पाई जाती है।
राज्य के पठारी प्रदेश को दो भागों में बांटा गया है।
1) दक्कन का लावा पठारी भाग – दक्षिण-पूर्वी भाग
2) विंध्या कगार भूमि – करौली, सवाई माधोपुर, धौलपुर

दक्षिण-पूर्वी पठारी प्रदेश की विशेषताएं –
1) सर्वाधिक वनस्पति वाला भाग
2) सर्वाधिक वर्षा वाला भाग
3) सर्वाधिक नदियों वाला प्रदेश
4) काली मिट्टी का प्रदेश

4. पूर्वी मैदानी भाग –
राजस्थान के कुल क्षेत्रफल का – 23%
राजस्थान की कुल जनसंख्या का – 39%

विशेषताएं –
1) सर्वाधिक उपजाऊ प्रदेश
2) सर्वाधिक जनसंख्या घनत्व
3) उत्तर के विशाल मैदान का भाग
4) बीहड़ों का सर्वाधिक निर्माण
इस भौतिक प्रदेश में लगभग 50 सेंटीमीटर वर्षा होती है।
पूर्वी मैदानी भाग में किस नदी द्वारा बीहड़ों का निर्माण होता है – चंबल नदी
सर्वाधिक बीहड़ों वाला जिला – सवाई माधोपुर
पूर्वी मैदानी भाग में चंबल नदी द्वारा मृदा अपरदन होता है।

उत्तर-पश्चिमी मरुस्थलीय भाग :-
उत्तर-पश्चिमी मरुस्थलीय भाग में कुल 12 जिले आते हैं
जैसलमेर, बाड़मेर, जोधपुर, बीकानेर,गंगानगर,हनुमानगढ़ नागौर, जालौर,चुरू, सीकर,झंझनँ तथा पाली जिले का कुछ भाग
राज्य के कुल क्षेत्रफल का लगभग 61% भाग उत्तर-पश्चिमी मरुस्थलीय भाग में आता है
यह प्रदेश उत्तर-पश्चिम से दक्षिण-पूर्व में 640 किमी. लम्बा एवं पूर्व से पश्चिम में 300 किमी. चौड़ा है।
राज्य की कुल जनसंख्या का लगभग – 40% भाग इसमें निवास करता है
वर्षा : 20 सेमी से 50 सेमी
न्यून वर्षा के कारण इसे शुष्क बालू का मैदान भी कहते हैं।
तापमान : गर्मियों में उच्चतम 49° से.ग्रे. तक तथा सर्दियों में -3° से.ग्रे. तक।
जलवायु : शुष्क व अत्यधिक विषम।
मिट्टी : रेतीली बलुई।
यह भू-भाग अरावली पर्वतमाला के उत्तर-पश्चिम एवं पश्चिम में विस्तृत है।
अरावली का वृष्टि छाया प्रदेश होने के कारण दक्षिणी-पश्चिमी मानसून या अरब सागर व बंगाल की खाड़ी का मानसून सामान्यतः यहाँ वर्षा बहुत कम करता है।
वर्षा का वार्षिक औसत 20-50 सेमी. है।
यह मरुस्थल ग्रेट पेलियोआर्कटिक अफ्रीका मरुस्थल का ही एक भाग है जो पश्चिमी एशिया के फिलीस्तीन, अरब एवं ईरान होता हुआ भारत तक विस्तृत हो गया है।
प्रदेश का सामान्य ढाल पूर्व से पश्चिम तथा उत्तर से दक्षिण की ओर है या उत्तर-पूर्व से दक्षिण पश्चिम की ओर
इसकी समुद्र तल से सामान्य ऊँचाई 200 से 300 मीटर है।
रेत के विशाल बालुका स्तूप इस भू-भाग की प्रमुख विशेषता है।
इस प्रदेश में लिग्राइट, खनिज तेल, प्राकृतिक गैस व लाइम स्टोन के विशाल भण्डार मौजूद हैं।
यह टेथिस सागर का अवशेष।
प्रमुख नमक स्त्रोत हैं – पचपदरा, डीडवाना व लूणकरणसर।
यह क्षेत्र दो भागों में बाँटा जा सकता है। 25 सेमी सम वर्षा रेखा इन दोनों क्षेत्रों को अलग करती है
पश्चिमी विशाल मरुस्थल या रेतीला शुष्क मैदान (Great Indian Desert)

पश्चिमी विशाल मरुस्थल या रेतीला शुष्क मैदान :-
इसमें वर्षा का वार्षिक औसत 20 सेमी तक रहता है।
शुष्क बालूका मैदान भी कहते हैं।
शुष्क बालूका मैदान कहते हैं – बाड़मेर, जैसलमेर, बीकानेर, गंगानगर आदि को, क्योंकि इस क्षेत्र में वर्षा अत्यधिक कम होती है व इसका अधिकांश भाग बालुका स्तूपों से आच्छादित है।
यह बालुका स्तूपों से ढका भू-भाग पाकिस्तान की सीमा के सहारे-सहारे गुजरात से पंजाब तक विस्तृत है।
पश्चिमी रेतीले शुष्क मैदान के दो उपविभाग हैं
बालुकास्तूप युक्त मरुस्थलीय प्रदेश।
बालुकास्तूप मुक्त ( रहित) क्षेत्र।
बालुकास्तूप युक्त क्षेत्र में बालू रेत के विशाल टीले पाये जाते हैं जो तेज हवाओं के साथ अपना स्थान बदलते रहते हैं। ये बालुकास्तूप वायू अपरदन एवं निक्षेपण का परिणाम हैं।
इनका स्थानान्तरण मार्च से जुलाई माह के मध्य में सर्वाधिक होता है।
इस रेतीले शुष्क मैदान के बालुकास्तूप युक्त क्षेत्र में निम्न प्रकार के बालूका स्तूपों का बाहुल्य पाया जाता है

पवनानुवर्ती (रेखीय) बालुकास्तूप :-
ये बालुका स्तूप इस रेगिस्तानी भू-भाग के पश्चिम तथा दक्षिण भाग में मुख्यत: जैसलमेर, जोधपुर एवं बाड़मेर में पाये जाते हैं।
इन पर वनस्पति पाई जाती है।
इन स्तूपों में लम्बी धुरी वायु की दिशा के समनान्तर होती है।

बरखान या अर्द्धचन्द्राकार बालुकास्तूप :-
चुरू, जैसलमेर, सीकर, लूणकरणसर, सूरतगढ़, बाड़मेर, जोधपुर आदि में।
ये गतिशील, रंध्रयुक्त व नवीन बालुयूक्त होते हैं, जो शृंखलाबद्ध रूप में पाये जाते हैं।
मरु भूमि के उत्तरी भाग में इनकी बहुलता है।

अनुप्रस्थ बालुकास्तूप :-
बीकानेर, दक्षिण गंगानगर, हनुमानगढ़, चुरू, सूरतगढ़, झुंझुनूं आदि क्षेत्रों में।
ये बालुकास्तूप पवन की दिशा के समकोण पर बनते हैं।
ये स्तूप अर्द्ध शुष्क भागों में अधिक स्थिर रहते हैं तथा मरु भूमि के पूर्वी एवं उत्तरी भागों में अधिक पाये जाते हैं।

पेराबोलिक बालुकास्तूप :-
ये सभी मरुस्थली जिलों में विद्यमान हैं।
इनका निर्माण वनस्पति एवं समतल मैदानी भाग के बीच उत्पाटन (deflation) से होता एवं आकृति महिलाओं के हेयरपिन की तरह होती है।

ताराबालुका स्तूप :-
मोहनगढ़, पोकरण (जैसलमेर), सूरतगढ़ (गंगानगर)।
इन बालुकास्तूपों का निर्माण मुख्य रूप से अनियतवादी एवं संश्लिष्ट पवनों के क्षेत्र में ही होता है।

नेटवर्क बालुकास्तूप :-
ये उत्तरी-पूर्वी मरुस्थलीय भाग- हनुमानगढ़ से हिसार-भिवानी (हरियाणा) तक मिलते हैं।
रेतीले शुष्क मैदान के पूर्वी भाग में बालुकास्तूप मुक्त प्रदेश भी है जिसमें बालुकास्तपों का अभाव है।
इस क्षेत्र को जैसलमेर-बाड़मेर का चट्टानी प्रदेश भी कहते हैं।
इस क्षेत्र में जरैसिक काल एवं टरशियरी व प्लीस्टोसीन काल की परतदार चट्टानों (अवसादी चट्टानों) का बाहुल्य है।
इयोसीन काल एवं प्लीस्टोसीन युग में इस क्षेत्र में एक विशाल समुद्र (टेथीस सागर) था, जिसके अवशेष यहाँ पाये जाने वाले चट्टानी समहों में मिलते हैं।
इनमें चूना पत्थर एवं बलुआ पत्थर की चट्टानें मुख्य हैं।
जैसलमेर शहर जुरैसिक काल की बलुआ पत्थर से निर्मितत चट्टानी मैदान पर स्थित है। इन चट्टानों में वनस्पति अवशेष एवं जीवाष्म (Fossis) पाये जाते हैं।
जैसलमेर के राष्ट्रीय मरुउद्यान में स्थित आकल वुड फोसिल पार्क इसका (जीवाश्मों का) अनूठा उदाहरण है।
इस प्रदेश की अवसादी शैलों में भूमिगत जल का भारी भण्डार है।
लाठी सीरीज क्षेत्र इसी भूगर्भीय जल पट्टी का अच्छा उदाहरण है। इन्हीं टीयरीकालीन चट्टानों में प्राकृतिक गैस एवं खनिज तेल के भी व्यापक भण्डार मौजूद हैं।
बाड़मेर (गुड़ामालानी, बायतु आदि) एवं जैसलमेर क्षेत्र में तेल एवं गैस के व्यापक भण्डारों के मिलने का कारण वहाँ टर्शियरी काल की चट्टानों का होना माना जाता है।
बेसर श्रेणी, जैसलमेर श्रेणी व लाठी श्रेणी में मध्यजीवी महाकल्प के जुरासिक कल्प की चट्टाने हैं

राजस्थान बांगर (बांगड़) या अर्द्धशुष्क मैदान :-
राजस्थान बांगर (बांगड़) या अर्द्धशुष्क मैदान- अर्द्धशुष्क मैदान महान् शुष्क रेतीले प्रदेश के पूर्व में व अरावली पहाड़ियों के पश्चिम में लूनी नदी के जल प्रवाह क्षेत्र में अवस्थित है। यह आन्तरिक प्रवाह क्षेत्र है।
इसके उत्तर में – घग्घर का मैदान है
उत्तर पूर्व में – शेखावाटी का आन्तरिक जल प्रवाह क्षेत्र है
दक्षिण-पूर्व में – लूनी नदी बेसिन है
मध्यवर्ती भाग में – नागौरी उच्च भूमि है।
यह संपूर्ण क्षेत्र शुष्क एवं अर्द्धशुष्क जलवायु के मध्य का संक्रमणीय या परिवर्ती (Transitional) जलवायु वाला क्षेत्र है।

इस सम्पूर्ण प्रदेश को निम्न चार भागों में विभाजित करते हैं :-
1) घग्घर का मैदान
2) लूनी बेसिन या गौड़वाड़ क्षेत्र
3) नागौरी उच्च भूमि प्रदेश
4) शेखावाटी आंतरिक प्रवाह क्षेत्र

घग्घर का मैदान –
अर्द्धशुष्क प्रदेश के उत्तरी भाग में स्थित इस मैदानी भाग का निर्माण मुख्यतः घग्घर वैदिक सरस्वती, सतलज एवं चौतांग नदियों की जलोढ़ मिट्टी से हुआ है।
यह मुख्यतः हनुमानगढ़ एंव गंगानगर जिलों में विस्तृत है।
इस क्षेत्र में वर्तमान में घग्घर नदी प्रवाहित होती है, जो मृत नदी (Dead River) के नाम से भी जानी जाती है। वर्षा ऋतु में इसमें कई बार बाढ़ आ जाती है, जो हनुमानगढ़ जिले को जलमग्न कर देती है। यह नदी भटनेर के पास रेगिस्तान में लगभग विलुप्त हो जाती है।

लूनी बेसिन या गौड़वाड़ क्षेत्र :-
लूनी एवं उसकी सहायक नदियों के इस अपवाह क्षेत्र को गौड़वाड़ प्रदेश कहते हैं।
इसमें जोधपुर, जालौर, पाली एवं सिरोही के क्षेत्र शामिल हैं।
इस क्षेत्र में जालौर-सिवाना की पहाड़ियाँ स्थित हैं जो ग्रेनाइट के लिए प्रसिद्ध हैं।
इसके अलावा मालाणी पहाड़ियाँ एवं चूने के पत्थर की चट्टानें भी इस क्षेत्र में पाई जाती हैं । इस प्रदेश में बालोतरा के बाद लूनी नदी का पानी नमकयुक्त चट्टानों, नमक के कणों एवं मरुस्थली प्रदेश के अपवाह तंत्र के कारण खारा हो जाता है।
इस क्षेत्र में जसवंतसागर (पिचियाक बाँध), सरदारसमन्द, हेमावास बाँध एवं नयागाँव आदि बाँध हैं|

नागौरी उच्च भूमि प्रदेश :-
राजस्थान बांगड़ प्रदेश के मध्यवर्ती भाग को नागौर उच्च भूमि कहते हैं ।
इस क्षेत्र में नमकयुक्त झीलें, अन्तर्प्रवाह जलक्रम, प्राचीन चट्टानें एवं ऊँचानीचा धरातल मौजूद है।
इस क्षेत्र में डीडवाना, कुचामन, सांभर, नावां आदि खारे पानी की झीलें हैं जहाँ नमक उत्पादित होता है।
इस प्रदेश में गहराई में माइकाशिष्ट नमकीन चट्टानें हैं, जिनसे केशिकात्व के कारण नमक सतह पर आता रहता है। साथ ही नदियों द्वारा पानी के साथ नमक के कण बहाकर लाने आदि के कारण इनमें वर्ष-प्रतिवर्ष नमक उत्पादित होता रहता है।

शेखावाटी आंतरिक प्रवाह क्षेत्र :-
बांगड़ प्रदेश के इस भू-भाग में चुरू, सीकर, झुंझुनूं व नागौर का कुछ भाग आता है।
इसके उत्तर में घग्घर का मैदान तथा पूर्व में अरावली पर्वत श्रृंखला है तथा पश्चिम में 25 सेमी सम वर्षा रेखा है।
इस प्रदेश में बरखान प्रकार के बालुकास्तूपों का बाहुल्य है।
इस प्रदेश की सभी नदियाँ काँतली, मेंथा, रूपनगढ़, खारी आदि आंतरिक जल प्रवाह की नदियाँ हैं, जो वर्षा ऋतु में इस भाग में बहकर या तो किसी झील में मिल जाती है या मैदानी भाग में विलुप्त हो जाती हैं।
25 सेमी. की सम वर्षा रेखा इस प्रदेश को महान शुष्क मरुस्थल से अलग करती है।
मुख्य फसलें : बाजरा, मोठ व ग्वार
वनस्पति : बबूल, फोग, खेजड़ा, कैर, बेर व सेवण घास आदि।
इंदिरा गाँधी नहर : इस क्षेत्र की मुख्य नहर व जीवन रेखा। नहर आने के बाद इस क्षेत्र में अन्य फसलें भी होने लगी हैं।

Rajasthan History Notes

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