राजस्थान का परिचय एवं आकृति

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राजस्थान का परिचय एवं आकृति

राजस्थान का सामान्य परिचय :- राजस्थान का कुल क्षेत्रफल 3,42,239 कि.वर्गमीटर है। जो कि देश का 10.41प्रतिशत है और क्षेत्रफल की दृष्टि से राजस्थान का देश में प्रथम स्थानहै, 1 नवम्बर 2000 को मध्यप्रदेश से छत्तीसगढ़ का गठन हुआ और उसी दिन से राजस्थान देश का प्रथम राज्य बना, 2011 में राजस्थान की कुल जनसंख्या 6,86,21,012 थी जो की देश की जनसंख्या का 5.67 प्रतिशत है।

राजस्थान की स्थिति, विस्तार, आकृति, एवं भौतिक स्वरूप :- भुमध्य रेखा के सापेक्ष राजस्थान उतरी गोलाद्र्व में स्थित है, ग्रीन वीच रेखा के सापेक्ष राजस्थान पुर्वी गोलाद्र्व में स्थित है, ग्रीन वीच व भुमध्य रेखा दोनों के सापेक्ष राजस्थान उतरी पूर्वी गोलाद्र्व में स्थित है, राजस्थान राज्य भारत के उत्तरी-पश्चिमी भाग में 23० 3′ से 30० 12′ उत्तरी अक्षांश (विस्तार 7० 9′) तथा 69० 30′ से 78० 17′ पूर्वी देशान्तर (विस्तार 8० 47?) के मध्य स्थित है। राजस्थान का क्षेत्रीय विस्तार 342239 वर्ग किलोमीटर है जो भारत के कुल क्षेत्र का 10.41 प्रतिशत है। क्षेत्रफल की दृष्टि से यह भारत का सबसे बड़ा राज्य (1 नवम्बर, 2000 को मध्यप्रदेश से छत्तीसगढ़ के अलग होने के बाद) है, कर्क रेखा अर्थात 23 ० 30′ अक्षांश राज्य के दक्षिण में बांसवाड़ा-डुंगरपुर जिलों से गुजरती है। बांसवाड़ा शहर कर्क रेखा से राज्य का सर्वाधिक नजदीक शहर है।

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विस्तार :- उत्तर से दक्षिण तक लम्बाई 826 कि. मी. व विस्तार उत्तर में कोणा गाँव (गंगानगर) से दक्षिण में बोरकुण्ड गाँव(कुशलगढ़, बांसवाड़ा) तक है, पुर्व से पश्चिम तक चैड़ाई 869 कि. मी. व विस्तार पुर्व में सिलाना गाँव(राजाखेड़ा, धौलपुर) से पश्चिम में कटरा(फतेहगढ़,सम, जैसलमेर) तक है, राजस्थान का अक्षांशीय

अंतराल – 7०9,राजस्थान का देशान्तरीय अंतराल – 8०47′

आकृति :- विषम कोणीय चतुर्भुज या पतंग के समान।

स्थलीय सीमा :- 5920 कि.मी.(1070 अन्तराष्ट्रीय व 4850 अन्तराज्जीय)।

रेडक्लिफ रेखा :- रेडक्लिफ रेखा भारत और पाकिस्तान के मध्य स्थित है। इसके संस्थापक सर सिरिल एम रेडक्लिफ को माना जाता है। इसकी स्थापना 14/15 अगस्त, 1947 को की गयी। इसकी भारत के साथ कुल सीमा 3310 कि.मी. है।
रेडक्लिफ रेखा पर भारत के चार राज्य स्थित है।
1)जम्मू-कश्मीर(1216 कि.मी.)
2)पंजाब(547 कि.मी.)
3)राजस्थान(1070 कि.मी.)
4)गुजरात(512 कि.मी.)
रेडक्लिफ रेखा के साथ सर्वाधिक सीमा- राजस्थान(1070 कि.मी.)
रेडक्लिफ रेखा के साथ सबसे कम सीमा- गुजरात(512 कि.मी.)
रेडक्लिफ रेखा के सर्वाधिक नजदीक राजधानी मुख्यालय- श्री नगर
रेडक्लिफ रेखा के सर्वाधिक दुर राजधानी मुख्यालय- जयपुर
रेडक्लिफ रेखा पर क्षेत्र में बड़ा राज्य- राजस्थान
रेडक्लिफ रेखा पर क्षेत्र में सबसे छोटा राज्य- पंजाब
रेडक्लिफ रेखा के साथ राजस्थान की कुल सीमा 1070 कि.मी. है। जो राजस्थान के चार जिलों से लगती है।
1) श्री गंगानगर- 210 कि.मी.
2)बीकानेर- 168 कि.मी.
3)जैसलमेर- 464 कि.मी.
4)बाड़मेर- 228 कि.मी.
रेडक्लिफ रेखा राज्य में उत्तर में गंगानगर के हिंदुमल कोट से लेकर दक्षिण में बाड़मेर के शाहगढ़ बाखासर गाँव तक विस्तृत है, रेडक्लिफ रेखा पर पाकिस्तान के 3 जिले पंजाब प्रांत का बहावलपुर जिला, राजस्थान की अन्य राज्य से सीमा –
पंजाब(89 कि.मी) :- राजस्थान के दो जिलो की सीमा पंजाब से लगती है।तथा पंजाब के दो जिले फाजिल्का व मुक्तसर की सीमा राजस्थान से लगती है।पंजाब के साथ सर्वाधिक सीमा श्री गंगानगर व न्यूनतम सीमा हनुमानगढ़ की लगती है। पंजाब सीमा के नजदीक जिला मुख्यालय श्री गंगानगर तथा दुर जिला मुख्यालय हनुमानगढ़ हैं।
पंजाब सीमा पर क्षेत्रफल में बड़ा जिला श्री गंगानगर व छोटा जिला हनुमानगढ़ है।
हरियाणा(1262 कि.मी.) :- राजस्थान के 7 जिलों की सीमा हरियाणा के 8 जिलों(सिरसा, फतेहबाद, हिसार, भिवाणी, महेन्द्रगढ़, रेवाडी, गुडगाँव, मेवात) से लगती है।
हरियाणा के साथ सर्वाधिक सीमा हनुमानगढ़ व न्युनतम सीमा जयपुर की लगती है।तथा सीमा के नजदीक जिला मुख्यालय हनुमानगढ़ व दुर मुख्यालय जयपुर का हैं।
हरियाणा सीमा पर क्षेत्रफल में बड़ा जिला चुरू व छोटा जिला झुंझुनू है।
मेवात(नुह) नवनिर्मित जिला है।जो राजस्थान के अलवर जिले को छुता है।
उत्तरप्रदेश (877 कि.मी.) :- राजस्थान के दो जिलों की सीमा उत्तरप्रदेश के दो जिलों(मथुरा व आगरा) से जगती है। उत्तरप्रदेश के साथ सर्वाधिक सीमा भरतपुर व न्युनतम धौलपुर कि लगती है।उत्तरप्रदेश की सीमा के नजदीक जिला मुख्यालय भरतपुर व दुर जिला मुख्यालय धौलपुर है। उत्तरप्रदेश की सीमा पर क्षेत्रफल में बड़ा जिला भरतपुर व छोटा जिला धौलपुर है।
मध्यप्रदेश(1600 कि.मी.) :- राजस्थान के 10 जिलों की सीमा मध्यप्रदेश के 10 जिलों की सीमा से लगती है।(झाबुआ, रतलाम, मंदसौर, निमच, शाजापुर, राजगढ़, गुना, शिवपुरी, श्यौपुर, मुरैना) मध्यप्रदेश के साथ सर्वाधिक सीमा झालावाड़ व न्यूनतम भीलवाड़ा की लगती है।तथा सीमा के नजदीक मुख्यालय धौलपुर व दुर जिला मुख्यालय भीलवाड़ा है।मध्यप्रदेश की सीमा पर क्षेत्रफल में बड़ा जिला भीलवाड़ा व छोटा जिला धौलपुर है।
गुजरात(1022 कि.मी.) :- राजस्थान के 6 जिलों की सीमा गुजरात के 6 जिलों से लगती है।
(कच्छ, बनासकांठा, साबरकांठा, अरावली, माहीसागर, दाहोद)
गुजरात के साथ सर्वाधिक सीमा उदयपुर व न्युनतम सीमा बाड़मेर की लगती है।तथा सीमा के नजदीक जिला मुख्यालय डुंगरपुर व दुर मुख्यालय बाड़मेर है।
गुजरात सीमा पर क्षेत्रफल में बड़ा जिला बाडमेर व छोटा जिला डंुगरपुर है।
राजस्थान के पांच पडौसी राज्य है।- पंजाब, हरियाणा, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, गुजरात।
सबसे कम अन्तराज्जीय सीमा बनाने वाला जिला बाडमेर व अधिक झालावाड़ बनाता है।
सन् 1800 में जाॅर्ज थामसन ने सर्वप्रथम इस भू-प्रदेश को राजपुताना नाम दिया सन् 1829 में कर्नल जेम्सटाॅड ने अपनी पुस्तक द एनाल्स एण्ड एन्टीक्यूटीज आॅफ राजस्थान में हमारे इस राज्य के लिए राजस्थान, रायथान, रजवाडा नाम दिया था।

तथ्य :- 26 जनवरी 1950 को संविधानिक रूप से हमारे राज्य का नाम राजस्थान पडा।
राजस्थान अपने वर्तमान स्वरूप में 1 नवंम्बर 1956 को आया, इस समय राजस्थान में कुल 26 जिले थे, 26 वां जिला-अजमेर-1 नवंम्बर, 1956, 27 वां जिला-धौलपुर-15 अप्रैल, 1982
यह भरतपुर से अलग होकर नया जिला बना, 28 वां जिला- बांरा-10 अप्रैल, 1991, यह कोटा से अलग होकर नया जिला बना, 29 वां जिला-दौसा-10 अप्रैल,1991, यह जयपुर से अलग होकर नया जिला बना, 30 वां जिला- राजसंमद-10 अप्रैल, 1991, यह उदयपुर से अलग होकर नया जिला बना, 31 वां जिला-हनुमानगढ़-12 जुलाई, 1994, यह श्री गंगानगर से अलग होकर नया जिला बना, 32 वां जिला -करौली 19 जुलाई, 1997, यह सवाई माधोपुर से अलग होकर नया जिला बना, 33 वां जिला-प्रतापगढ़-26 जनवरी,2008
यह तीन जिलों से अलग होकर नया जिला बना –
1) चित्तौडगढ़- छोटी सादडी, आरनोद,प्रतापगढ़ तहसील
2) उदयपुर-धारियाबाद तहसील
3) बांसवाडा- पीपलखुट तहसील
प्रतापगढ जिला परमेशचन्द कमेटी की सिफारिश पर बनाया गया।प्रतापगढ जिले ने अपना कार्य 1 अप्रैल, 2008 से शुरू किया। प्रतापगढ़ को प्राचीन काल में कांठल व देवला/देवलीया के नाम से जाना जाता था, राजस्थान का गंगानगर शहर पहले एक बड़ा गांव हुआ करता था रामगनगर, राजस्थान का क्षेत्रफल की दृष्टि से सबसे बड़ा जिला जैसलमेर(38401 वर्ग कि.मी.) है जो भारत का तीसरा बड़ा जिला है( प्रथम- कच्छ, द्वितीय- लदाख या लेह )।
राजस्थान के जैसलमेर जिले को सात दिशाओं वाले बहुभुज की संज्ञा दि है।
राजस्थान के सीकर जिले की आकृति अर्द्धचन्द्र या प्याले के समान है।
राजस्थान के टोंक जिले की आकृति पतंगाकार मानी गई है।
राजस्थान के अजमेर जिले की आकृति त्रिभुजाकार मानी गई है।
राजस्थान के चित्तौड़गढ़ जिले की आकृति घोड़े के नाल के समान है।
राजस्थान के दो जिले खंण्डित जिले हैं-1) अजमेर – टाॅडगढ़
2) चित्तौड़गढ़ – रावतभाटा

राजस्थान के संभाग :-
1) जयपुर संभाग- जयपुर, दौसा, सीकर, अलवर, झुंझुनू
2) जोधपुर संभाग- जोधपुर, जालौर, पाली, बाड़मेर, सिरोही, जैसलमेर
3) भरतपुर संभाग- भरतपुर, धौलपुर, करौली, सवाईमाधोपुर
4) अजमेर संभाग- अजमेर, भीलवाड़ा, टोंक, नागौर
5) कोटा संभाग- कोटा, बुंदी, बांरा, झालावाड़
6) बीकानेर संभाग- बीकानेर, गंगानगर, हनुमानगढ़, चुरू
7) उदयपुर संभाग- उदयपुर, राजसंमद, डूंगरपुर, बांसवाड़ा,चित्तौड़गढ़, प्रतापगढ़

अन्तराष्ट्रीय सीमा बनाने वाले संभाग :-
अन्तराष्ट्रीय सीमा बनाने वाले संभाग- बीकानेर व जोधपुर
सर्वाधिक अन्तराष्ट्रीय सीमा बनाने वाला संभाग- जोधपुर
न्युनतम अन्तराष्ट्रीय सीमा बनाने वाला संभाग-बीकानेर
अन्तराष्ट्रीय सीमा के नजदीक संम्भागीय मुख्यालय-बीकानेर
अन्तराष्ट्रीय सीमा से दुर सम्भागीय मुख्यालय -जोधपुर
अन्तराष्ट्रीय सीमा पर क्षेत्रफल में बड़ा संभाग- जोधपुर
अन्तराष्ट्रीय सीमा पर क्षेत्रफल में छोटा संभाग- बीकानेर

अन्तराज्जीय सीमा बनाने वाले संभाग-सात :-
सर्वाधिक अन्तराज्जीय सीमा बनाने वाला सम्भाग- उदयपुर
न्युनतम अन्तराज्जीय सीमा सीमा बनाने वाला संभाग- अजमेर
अन्तराज्जीय सीमा के नजदीक संभागीय मुख्यालय- भरतपुर
अन्तराज्जीय सीमा से दुर संभागीय मुख्यालय- जोधपुर
अन्तराज्जीय सीमा पर क्षेत्रफल में बड़ा संभाग -जोधपुर
अन्तराज्जीय सीमा पर क्षेत्रफल में छोटा संभाग- भरतपुर
दो बार अन्तराज्जीय सीमा बनाने वाला संभाग- उदयपुर(चित्तौड़गढ़ के दो भाग)
राजस्थान का मध्यवर्ती संभाग- अजमेर
सभी 6 संभागों की सीमा से लगने वाला संभाग-अजमेर
सर्वाधिक नदियों वाला संभाग-कोटा(नदियांे वाला जिला- चित्तौड़गढ़)
सबसे कम नदियों संभाग- बीकानेर(बीकानेर व चुरू जिले में कोई नदी नहीं बहती है)
राजस्थान में संभागीय व्यवस्था की शुरूआत 1949 में हीरालाल शास्त्री सरकार द्वारा की गई।अप्रैल, 1962 में मोहनलाल सुखाडि़या सरकार के द्वारा संभागीय व्यवस्था को समाप्त कर दिया गया। 15 जनवरी, 1987 में हरि देव जोशी सरकार के द्वारा संभागीय व्यवस्था की शुरूआत दुबारा की गई।
1987 में राजस्थान का छठा संभाग अजमेर को बनाया गया।यह जयपुर संभाग से अलग होकर नया संभाग बना, 4 जुन, 2005 को राजस्थान का 7 वां संभाग भरतपुर को बनाया गया।
भरतपुर संभाग दो संभागों से अलग होकर बना जो निम्न है।
जयपुर संभाग से भरतपुर व धौलपुर लिये गये तथा कोटा संभाग से सवाई माधोपुर व करौली लिये गये, राजस्थान अपने वर्तमान स्वरूप 1 नवम्बर 1956 को आया। वर्तमान में राजस्थान में 6 जिलों वाले 2संभाग(जोधपुर व उदयपुर) है तथा 5 जिलों वाला संभाग एक जयपुर है।तथा 4 जिलों वाले संभाग(बीकानेर, कोटा, भरतपुर, अजमेर)4है, 4 जुन, 2005 से पुर्व 7 जिलों वाला संभाग- जयपुर, 6जिलों वाला संभाग- जोधपुर व कोटा,5 जिलों वाला संभाग उदयपुर, 4जिलों वाला संभाग 2(बीकानेर व अजमेर) थे।

राजस्थान के प्रतीक चिन्ह :- राज्य वृक्ष:- खेजड़ी
राजस्थान का सागवान रेगिस्तान का गौरव अथवा थार का कल्पवृक्ष जिसका वैज्ञानिक नाम प्रोसेसिप-सिनेरेरिया है। इसको 1983 में राज्य वृक्ष घोषित किया गया, खेजड़ी के वृक्ष सर्वाधिक शेखावटी क्षेत्र में देखे जा सकते है तथा नागौर जिले सर्वाधिक है। इस वृक्ष की पुजा,विजयाशमी/दशहरे पर की जाती है। खेजड़ी के वृक्ष के निचे गोगाजी व झुंझार बाबा का मंदिर/थान बना होता है। खेजड़ी को पंजाबी व हरियाणावी में जांटी व तमिल भाषा में पेयमेय कन्नड़ भाषा में बन्ना-बन्नी, सिंधी भाषा में – धोकड़ा व बिश्नोई सम्प्रदाय के लोग ‘शमी’ के नाम से जानते है। स्थानीय भाषा में सीमलो कहते हैं, खेजडी की हरी फली-सांगरी, सुखी फली- खोखा, व पत्तियों से बना चारा लुंग/लुम कहलाता है, खेजड़ी के वृक्ष को सेलेस्ट्रेना(कीड़ा) व ग्लाइकोट्रमा(कवक) नामक दो किड़े नुकसान पहुँचाते है, वैज्ञानिकों ने खेजड़ी के वृक्ष की कुल आयु 5000 वर्ष मानी है। राजस्थान में खेजड़ी के 1000 वर्ष पुराने 2 वृक्ष मिले है।(मांगलियावास गाँव, अजमेर में)
पाण्डुओं ने अज्ञातवास के समय अपने अस्त्र-शस्त्र खेजड़ी के वृक्ष पर छिपाये थे।खेजड़ी के लिए राज्य में सर्वप्रथम बलिदान अमृतादेवी के द्वारा 1730 में दिया गया।अमृता देवी द्वारा यह बलिदान भाद्रपद शुक्ल दशमी को जोधुपर के खेजड़ली गाँव 363 लोगों के साथ दिया गया।इस बलिदान के समय जोधपुर का शासक अभयसिंग था।अभयसिंग के आदेश पर गिरधरदास के द्वारा 363 लोगों की हत्या कर दी गई।अमता देवी रामो जी बिश्नोई की पत्नि थी, बिश्नोई सम्प्रदाय द्वारा दिया गया यह बलिदान साका/खडाना कहलाता है। 12 सितम्बर को प्रत्येक वर्ष खेजड़ली दिवस के रूप में मनाया जाता है। प्रथम खेजड़ली दिवस 12 सितम्बर 1978 को मनाया गया था। वन्य जीव सरंक्षण के लिए दिया जाने वाला सर्वक्षेष्ठ पुरस्कार अमृता देवी वन्य जीव पुरस्कार है। इस पुरस्कार की शुरूआत 1994 में की गई, इस पुरस्कार के तहत संस्था को 50,000 रूपये व व्यक्ति को 25,000 रूपये दिये जाते है। प्रथम अमृता देवी वन्यजीव पुरस्कार पाली के गंगाराम बिश्नोई को दिया गया, आपरेशन खेजड़ा की शुरूआत 1991 में हुई।

वैज्ञानिक नाम के जनक :- वर्गीकरण के जन्मदाता: केरोलस लीनीयस थे, उन्होने सभी जीवों व वनस्पतियों का दो भागो में विभाजन किया। मनुष्य/मानव का वैज्ञानिक नाम: “होमो-सेपियन्स” रखा होमो सेपियन्स या बुद्धिमान मानव का उदय 30-40 हजार वर्ष पूर्व हुआ।

राज्य पुष्प :- रोहिडा का फुल – रोहिडा के फुल को 1983 में राज्य पुष्प घोषित किया गया। इसे “मरूशोभा” या “रेगिस्थान का सागवान” भी कहते है। इसका वैज्ञानिक नाम- “टिको-मेला अंडुलेटा” है रोहिड़ा सर्वाधिक राजस्थान के पष्चिमी क्षेत्र में देखा जा सकता है।रोहिडे़ के पुष्प मार्च-अप्रैल के महिने मे खिलते है।इन पुष्पों का रंग गहरा केसरिया-हीरमीच पीला होता है।
जोधपुर में रोहिड़े को मारवाड़ टीक के नाम से जाना जाता है।

राज्य पशु :- चिंकारा, ऊँट – चिंकारा- चिंकारा को 1981 में राज्य पशु घोषित किया गया।यह “एन्टीलोप” प्रजाती का एक मुख्य जीव है। इसका वैज्ञानिक नाम गजैला-गजैला है। चिंकारे को छोटा हरिण के उपनाम से भी जाना जाता है।चिकारों के लिए नाहरगढ़ अभ्यारण्य जयपुर प्रसिद्ध है।राजस्थान का राज्य पशु ‘चिंकारा’ सर्वाधिक ‘मरू भाग’ में पाया जाता है।
“चिकारा” नाम से राजस्थान में एक तत् वाद्य यंत्र भी है, ऊँट- राजस्थान का राज्यपशु(2014 में घोषित) ऊँट डोमेस्टिक एनिमल के रूप में संरक्षित श्रेणी में और चिंकारा नाॅन डोमेस्टिक एनिमल के रूप में संरक्षित श्रेणी में रखा जाएगा।
राजस्थान का परिचय एवं आकृति
राज्य पक्षी :- गोेडावण – 1981 में इसे राज्य पक्षी के तौर पर घोषित किया गया। इसे ग्रेट इंडियन बस्टर्ड भी कहा जाता है। यह शर्मिला पक्षी है और इसे पाल-मोरडी व सौन-चिडिया भी कहा जाता है। इसका वैज्ञानिक नाम “क्रोरियोंटिस-नाइग्रीसेप्स” है, गोडावण को सारंग, कुकना, तुकदर, बडा तिलोर के नाम से भी जाना जाता है। गोडावण को हाडौती क्षेत्र(सोरसेन) में माल गोरड़ी के नाम से जाना जाता है, गोडावण पक्षी राजस्थान में 3 जिलों में सर्वाधिक देखा जा सकता है, मरूउधान- जैसलमेर, बाड़मेर, सोरसन- बांरा, सोकंलिया- अजमेर, गोडावण के प्रजनन के लिए जोधपुर जंतुआलय प्रसिद्ध है, गोडावण का प्रजनन काल अक्टूबर-नवम्बर का महिना माना जाता है।यह मुलतः अफ्रीका का पक्षी है।इसका ऊपरी भाग का रंग नीला होता है व इसकी ऊँचाई 4 फुट होती है।इनका प्रिय भोजन मूगंफली व तारामीरा है।गोडावण को राजस्थान के अलावा गुजरात में भी सर्वाधिक देखा जा सकता

राज्य गीत :- केसरिया बालम आओ नी पधारो म्हारे देष – इस गीत को सर्वप्रथम उदयपुर की मांगी बाई के द्वारा गया।इस गीत को अन्तराष्ट्रीय स्तर पर बीकानेर की अल्ला जिल्ला बाई के द्वारा गाया गया। अल्ला जिल्ला बाई को राज्य की मरूकोकिला कहते है। इस गीत को मांड गायिकी में गाया जाता है।

राजस्थान का राज्य नृत्य :- घुमर – धूमर (केवल महिलाओं द्वारा किया जाने वाला नृत्य) इस राज्य नृत्यों का सिरमौर (मुकुट) राजस्थानी नृत्यों की आत्मा कहा जाता है।

राज्य शास्त्रीय नृत्य :- कत्थक – कत्थक उत्तरी भारत का प्रमुख नृत्य है। इनका मुख्य घराना भारत में लखनऊ है तथा राजस्थान में जयपुर है, कत्थक के जन्मदाता भानू जी महाराज को माना जाता है।

राजस्थान का राज्य खेल :- बास्केटबाॅल – बास्केटबाॅंल को राज्य खेल का दर्जा 1948 में दिया गया।

राजस्थान की जलवायु :- जलवायु – किसी क्षेत्र विषेष में एक लम्बी अवधि के दौरान मौसम की औसत अवस्था जलवायु कहलाती है।

मौसम :- किसी क्षेत्र विषेष में छोटी अवधि के दौरान वातावरण की औरत दषा को मौसम कहा जाता है।
जलवायु को प्रभावित करने वाले तत्व :-
1) वायु की गति
2) वायु में नमी/आर्द्रता
3) तापमान
4) वर्षा

राजस्थान की जलवायु की विषेषताए :-
1) राजस्थान की जलवायु गर्म (उष्ण) षुल्क प्रकार की है।
2) राजस्थान के द.पूर्व में अधिक वर्षा व उतर पष्चिम में कम वर्षा होती है।
3) राजस्थान के द.पूर्व में अधिक वर्षा उतर पूर्व की ओर क्रमषः घटती जाती है।
4) राजस्थान में वर्षा की अनियमितता व अनिष्चितता के कारण अधिकाषतः सुखे की स्थिति बनी रहती है।

राजस्थान में जलवायु का अध्ययन करने पर तीन प्रकार की ऋतुएं पाई जाती है :-
1) ग्रीष्म ऋतु: (मार्च से मध्य जून तक)
2) वर्षा ऋतु : (मध्य जून से सितम्बर तक)
3) शीत ऋतु : (नवम्बर से फरवरी तक)

ग्रीष्म ऋतु :- राजस्थान में मार्च से मध्य जून तक ग्रीष्म ऋतु होती है। इसमें मई व जून के महीने में सर्वाधिक गर्मी पड़ती है। इस समय राजस्थान का औरत तापमान 440C होता है किन्तु गंगानगर, चुरू व बीकानेर का तापमान 500C तक हो जाता है। अधिक गर्मी के वायु मे नमी समाप्त हो जाती है। परिणाम स्वरूप वायु हल्की होकर उपर चली जाती है। अतः राजस्थान में निम्न वायुदाब का क्षेत्र बनता है परिणामस्वरूप उच्च वायुदाब से वायु निम्न वायुदाब की और तेजगति से आती है इससे गर्मियों में आंधियों का प्रवाह बना रहता है, राजस्थान में 35 दिनों तक आंधियां आती है, सर्वाधिक आंधियां गंगानगर जिले में आती है (28 दिनों तक) इस समय पश्चिमी राजस्थान में गर्म व षुष्क हवाये चलती है। जिन्हे “लू” कहा जाता है। पश्चिमी राजस्थान में जोधपुर जिले का “फलौदी क्षेत्र” सर्वाधिक षुष्क क्षेत्र है।

वर्षा ऋतु :- राजस्थान में मध्य जून से सितम्बर तक वर्षा ऋतु होती है। इस समय दक्षिणी पश्चिमी मानसून से राजस्थान में वर्षा होती है। दक्षिण पश्चिम मानसून की दो षाखाएं होती है
1) अरब सागर शाखा
2) बंगाल की खाड़ी की शाखा
अरब सागर की शाखा राजस्थान के समीप है किन्तु अरब सागर से आने वाला मानसून अरावली पर्वत के समान्तर होने के कारण राजस्थान से आगे निकल जाता है। इससे पश्चिमी राजस्थान में नामात्र की वर्षा होती है जबकि बंगाल की खाड़ी से आने वाला मानसून हजारों किमी. की दूरी तय करके राजस्थान के दक्षिणी-पूर्वी भाग पर पहंुचता है। बंगाल की खाड़ी के मानसून से राजस्थान के दक्षिणी-पूर्वी भाग में वर्षा होती है, राजस्थान में वर्षा का औरत 53.5 से.मी. वार्षिक है, राजस्थान में सर्वाधिक वर्षा वाला स्थान माऊंट आबू (150 से.मी.वार्षिक) है, सर्वाधिक वर्षा प्राप्त करने वाला जिला झालावाड़ (100 से.मी वार्षिक ) है, न्यूनतम वर्षा प्राप्त करने वाला जिला जैसलमेर (10 से.मी.वार्षिक) |

शीत ऋतु :- राजस्थान में नम्बर से फरवरी तक शीत ऋतु होती है। इन चार महीनों में जनवरी माह में सर्वाधिक सर्दी पड़ती है। इस समय राज्य का औरत तापमान 120C जाता है। गंगानगर, बीकानेर, चुरू में यह तापमान 00C जाता है। राजस्थान में सर्वाधिक ठण्डा स्थान माऊंट आबू है जहां तापमान 00C भी नीचे चला जाता है।शीत ऋतु में भूमध्यसागर में उठने वाले चक्रवातों के कारण राजस्थान के उतरी पश्चिमी भाग में वर्षा होती है। जिसे “मावट/मावठ” कहा जाता है। यह वर्षा माघ महीने में होती है। शीतकालीन वर्षा मावट को – गोल्डन ड्रोप (अमृत बूदे) भी कहा जाता है। यह रवि की फसल के लिए लाभदायक है, राज्य में हवाएं प्राय पश्चिम और उतर-पश्चिम की ओर चलती है।

राजस्थान के भौतिक विभाग :- पृथ्वी अपने निर्माण के प्रराम्भिक काल में एक विशाल भू-खण्ड पैंजिया तथा एक विशाल महासागर पैंथालासा के रूप में विभक्त था कलांन्तर में पैंजिया के दो टुकडे़ हुए उत्तरी भाग अंगारालैण्ड तथा दक्षिणी भाग गोडवानालैण्ड के नाम जाना जाने लगा। तथा इन दोनों भू-खण्डों के मध्य का सागरीय क्षेत्र टेथिस सागर कहलाता है। राजस्थान का पश्चिमी रेगिस्तानी क्षेत्र तथा उसमें स्थित खारे पानी की झीलें टेथिस सागर का अवशेष है। जबकि राजस्थान का मध्य पर्वतीय प्रदेश तथा दक्षिणी पठारी क्षेत्र गोडवानालैण्ड का अवशेष है।

भौतिक विभाग :- राजस्थान को समान्यतः चार भौतिक विभागो में बांटा जाता है –
1) पश्चिमी मरूस्थली प्रदेश
2) अरावली पर्वतीय प्रदेश
3) पूर्वी मैदानी प्रदेश
4) दक्षिणी पूर्वी पठारी भाग

1) पश्चिमी मरूस्थली प्रदेश :- राजस्थान का अरावली श्रेणीयों के पश्चिम का क्षेत्र शुष्क एवं अर्द्धशुष्क मरूस्थली प्रदेश है। यह एक विशिष्ठ भौगोलिक प्रदेश है। जिसे भारत का विशाल मरूस्थल अथवा थार का मरूस्थल के नाम से जाना जाता है। थार का मरूस्थल विश्व का सर्वाधिक आबाद तथा वन वनस्पति वाला मरूस्थल है। ईश्वरी सिंह ने थार के मरूस्थल को रूक्ष क्षेत्र कहा है। राज्य के कुल क्षेत्रफल का 61 प्रतिशत है। इस क्षेत्र में राज्य की 40 प्रतिशत जनसंख्या निवास करती है, प्राचिन काल में इस क्षेत्र से होकर सरस्वती नदि बहती थी। सरस्वती नदी के प्रवाह क्षेत्र के जैसलमेर जिले के चांदन गांव में चांदन नलकुप की स्थापना कि गई है। जिसे थार का घडा कहा जाता है, इसका विस्तार बाड़मेर, जैसलमेर, बिकानेर, जोधपुर, पाली, जालोर, नागौर,सीकर, चुरू झूझूनु, हनुमानगढ़ व गंगानगर 12 जिलों में है।संपुर्ण पश्चिमी मरूस्थलिय क्षेत्र समान उच्चावच नहीं रखता अपीतु इसमें भिन्नता है। इसी भिन्नता के कारण इसको 4 उपप्रदेशों में विभक्त किया जाता है-
2) शुष्क रेतिला अथवा मरूस्थलि प्रदेश
3) लूनी- जवाई बेसीन
4) शेखावाटी प्रदेश
5) घग्घर का मैदान

* शुष्क रेतीला अथवा मरूस्थलि प्रदेश :- यह वार्षिक वर्षा का औसत 25 सेमी. से कम है। इसमें जैसलमेर, बाड़मेर, बीकानेर एवं जोधपुर और चुरू जिलों के पश्चिमी भाग सम्मलित है। इन प्रदेश में सर्वत्र बालुका – स्तुपों का विस्तार है, पश्चिमी रेगीस्तान क्षेत्र के जैसलमेर जिले में सेवण घास के मैदान पाए जाते है। जो कि भूगर्भिय जल पट्टी के रूप में प्रसिद्ध है। जिसे लाठी सीरिज कहलाते है, पश्चिमी रेगिस्तानी क्षेत्र के जैसलमेर जिले में लगभग 18 करोड़ वर्ष पुराने वृक्षों के अवशेष एवं जीवाश्म मिले है। जिन्हें अकाल वुड फाॅसिल्स पार्क? नाम दिया है। पश्चिमी रेगिस्तान क्षेत्र के जैसलमेर, बाड़मेर, बीकानेर जिलों में पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैसों के भंडार मिले है।

* लुनी – जवाई बेसीन :- यह एक अर्द्धशुष्क प्रदेश है। जिसमें लुनी व इसकी प्रमुख नदी जवाई एवं अन्य सहायक नदियां प्रवाहित होती है। इसका विस्तार पालि, जालौर, जौधपुर व नागौर जिले के दक्षिणी भाग में है। यह एक नदि निर्मीत मैदान है। जिसे लुनी बेसिन के नाम से जाना जाता है।

* शेखावाटी प्रदेश :- इसे बांगर प्रदेश के नाम से जाना जाता है। शेखावटी प्रदेश का विस्तार झुझुनू, सीकर, चुरू तथा नागौर जिले के उतरी भाग में है। इस प्रदेश में अनेक नमकीन पानी के गर्त(रन) हैं जिसमें डीडवाना, डेगाना, सुजानगढ़, तालछापर, परीहारा, कुचामन आदि प्रमुख है।

* घग्घर का मैदान :- गंगानगर हनुमानगढ़ जिलों का मैदानी क्षेत्र का निर्माण घग्घर के प्रवाह क्षेत्र के बाढ़ से हुआ है, तथ्य भारत का सबसे गर्म प्रदेश राजस्थान का पश्चिमी शुष्क प्रदेश है।
टीलों के बीच की निम्न भूमी में वर्षा का जल भरने से बनी अस्थाई झीलों को स्थानीय भाषा में टाट या रन कहा जाता है |

2) अरावली पर्वतीय प्रदेश :- राज्य के मध्य अरावली पर्वत माला स्थित है। यह विश्व की प्राचीनतम वलित पर्वत माला है। यह पर्वत श्रृंखला श्री केम्ब्रियन (पोलियोजोइक) युग की है। यह पर्वत श्रृखला दंक्षण-पश्चिम से उतर-पूर्व की ओर है। इस पर्वत श्रृंखला की चैडाई व ऊंचाई दक्षिण -पश्चिम में अधिक है। जो धीरे -धीरे उत्तर-पूर्व में कम होती जाती है। यह दक्षिण -पश्चिम में गुजरात के पालनपुर से प्रारम्भ होकर उत्तर-पूर्व में दिल्ली तक लम्बी है। जबकि राजस्थान में यह श्रंखला खेडब्रहमा (सिरोही) से खेतड़ी (झुनझुनू) तक 550 कि.मी. लम्बी है जो कुल पर्वत श्रृंखला का 80 प्रतिशत है, अरावली पर्वत श्रंखला राजस्थान को दो असमान भागों में बांटती है। अरावली पर्वतीय प्रदेश का विस्तार राज्य के सात जिलों सिरोही, उदयपुर, राजसमंद, अजमेर, जयपूर, दौसा और अलवर में। अरावली पर्वतमाला की औसत ऊँचाई समुद्र तल से 930 मीटर है, राज्य के कुल क्षेत्रफल का 9.3 प्रतिशत है। इस क्षेत्र में राज्य की 10 प्रतिशत जनसंख्या निवास करती है, अरावली पर्वतमाला को ऊँचाई के आधार पर तीन प्रमुख उप प्रदेशों में विभक्त किया गया है।
* दक्षिणी अरावली प्रदेश
* मध्यवर्ती अरावली प्रदेश
* उतरी – पूर्वी अरावली प्रदेश

* दक्षिणी अरावली प्रदेश :- इसमें सिरोही उदयपुर और राजसमंद सम्मिलित है। यह पुर्णतया पर्वतीय प्रदेश है इस प्रदेश में गुरूशिखर(1722 मी.) सिरोही जिले में मांउट आबु क्षेत्र में स्थित है जो राजस्थान का सर्वोच्च पर्वत शिखर है, प्रमुख दर्रे(नाल) – जीलवा कि नाल(पगल्या नाल)- यह मारवाड से मेवाड़ जाने का रास्ता है, सोमेश्वर की नाल विकट तंग दर्रा,हाथी गढ़ा की नाल कुम्भलगढ़ दुर्ग इसी के पास बना है, सरूपघाट, देसुरी की नाल(पाली) दिवेर एवं हल्दी घाटी दर्रा(राजसमंद) आदि प्रमुख है, आबू पर्वत से सटा हुआ उडि़या पठार आबू से लगभग 160 मी. ऊँचा है। और गुरूशिखर खुख्य चोटी के नीचे स्थित है। जेम्स टाॅड ने गुरूशिखर को सन्तों का शिखर कहा जाता है। यह हिमालय और नीलगिरी के बीच सबसे ऊँची चोटी है।

* मध्यवर्ती अरावली प्रदेश :- यह मुख्यतयः अजमेर जिले में फेला है। इस क्षेत्र में पर्वत श्रेणीयों के साथ संकरी घाटियाँ और समतल स्थल भी स्थित है। अजमेर के दक्षिणी पश्चिम में तारागढ़(870 मी.) और पश्चिम में सर्पीलाकार पर्वत श्रेणीयां नाग पहाड़(795 मी.) कहलाती है।
प्रमुख दर्रे:- बर, परवेरियां, शिवपुर घाट, सुरा घाट, देबारी, झीलवाडा, कच्छवाली, पीपली, अनरिया आदि।

* उतरी – पुर्वी अरावली प्रदेश :- इस क्षेत्र का विस्तार जयपुर, दौसा तथा अलवर जिले में है। इस क्षेत्र में अरावली की श्रेणीयां अनवरत न हो कर दुर – दुर हो जाती है। इस क्षेत्र में पहाड़ीयों की सामान्य ऊँचाई 450 से 700 मी. है। इस प्रदेश की प्रमुख चोटियां:- रघुनाथगढ़(सीकर)- 1055 मी. ,खोह(जयपुर)-920 मी. , भेराच(अलवर)-792 मी. , बरवाड़ा(जयपुर)-786 मी.।

पूर्वी मैदानी भाग :- अरावली पर्वत के पूर्वी भाग और दक्षिणी-पूर्वी पठारी भाग के दक्षिणी भाग में पूर्व का मैदान स्थित है। यह मैदान राज्य के कुल क्षेत्रफल का 23.3 प्रतिशत है। इस क्षेत्र में राज्य की 39 प्रतिशत जनसंख्या निवास करती है। इस क्षेत्र में – भरतपुर, अलवर, धौलपुर, करौली, सवाईमाधोपुर, जयुपर, दौसा, टोंक, भीलवाडा तथा दक्षिण कि ओर से डुंगरपुर, बांसवाडा ओर प्रतापगढ जिलों के मैदानी भाग सम्मिलित है। यह प्रदेश नदी बेसिन प्रदेश है अर्थात नदियों द्वारा जमा कि गई मिट्टी से इस प्रदेश का निर्माण हुआ है। इस प्रदेश में कुओं द्वारा सिंचाई अधिक होती है। इस मैदानी प्रदेश के तीन उप प्रदेश है।
1) बनास- बांणगंगा बेसीन
2 ) चंम्बल बेसीन
3) मध्य माही बेसीन

* बनास- बांणगंगा बेसीन :- बनास और इसकी सहायक नदियों द्वारा निर्मित यह एक विस्तृत मैदान है यह मैदान बनास और इसकी सहायक बाणगंगा, बेड़च, डेन, मानसी, सोडरा, खारी, भोसी, मोरेल आदि नदियों द्वारा निर्मीत यह एक विस्तृत मैदान है जिसकी ढाल पूर्व की और है।

* चम्बल बेसीन :- इसके अन्तर्गत कोटा, सवाईमाधोपुर, करौली तथा धौलपुर जिलों का क्षेत्र सम्मिलित है। कोटा का क्षेत्र हाड़ौती में सम्मिलित है किंतु यहां चम्बल का मैदानी क्षेत्र स्थित है। इस प्रदेश में सवाईमाधोपुर, करौली एवं धौलपुर में चम्बल के बीहड़ स्थित है। यह अत्यधिक कटा- फटा क्षेत्र है, इनके मध्य समतल क्षेत्र स्थ्ति है।

* मध्य माही बेसीन या छप्पन का मैदान :- इसका विस्तार उदयपुर के दक्षिण पुर्व से डुंगरपुर, बांसवाडा और प्रतापगढ़ जिलों में है। माही मध्य प्रदेश से निकल कर इसी प्रदेश से गुजरती हुई खंभात कि खाडी में गिरती है। यह क्षेत्र वागड़ के नाम से पुकारा जाता है तथा प्रतापगढ़ व बांसवाड़ा के मध्य भाग में छप्पन ग्राम समुह स्थित है। इसलिए यह भू-भाग छप्पन के मैदान के नाम से भी जाना जाता है।

4) दक्षिण-पूर्व का पठारी भाग :- राज्य के कुल क्षेत्रफल का 9.6 प्रतिशत है। इस क्षेत्र में राज्य की 11 प्रतिशत जनसंख्या निवास करती है। राजस्थान के इस क्षेत्र में राज्य के चार जिले कोटा, बूंदी, बांरा, झालावाड़ सम्मिलित है।इस पठारी भग की प्रमुख नदी चम्बल नदी है और इसकी सहायक नदियां पार्वती, कालीसिद्ध, परवन, निवाज, इत्यादि भी है। इस पठारी भाग की नदीयां है। इस क्षेत्र में वर्षा का औसत 80 से 100 से.मी. वार्षिक है। राजस्थान का झालावाड़ जिला राज्य का सर्वाधिक वर्षा प्राप्त करने वाला जिला है और यह राज्य का एकमात्र अति आन्र्द्र जिला है। इस क्षेत्र में मध्यम काली मिट्टी की अधिकता है। जो कपास, मूंगफली के लिए अत्यन्त उपयोगी है। यह पठारी भाग अरावली और विध्यांचल पर्वत के बीच “सक्रान्ति प्रदेष” ( ज्तंदेपजपवदंस इमसज) है।
दक्षिणी-पूर्वी पठारी भाग को दो भागों में बांटा गया है।
1) हाडौती का पठार – कोटा, बंदी, बांरा, झालावाड़
2) विन्ध्यन कगार भूमि – धौलपुर. करौली, सवाईमाधोपुर

Rajasthan Geography Notes

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