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राजस्थान का अपवाह तंत्र
राजस्थान का अपवाह तंत्र, अपवाह तन्त्र या प्रवाह प्रणाली किसी नदी तथा उसकी सहायक धाराओं द्वारा निर्मित जल प्रवाह की विशेष व्यवस्था है यह एक तरह का जालतन्त्र या नेटवर्क है जिसमें नदियाँ एक दूसरे से मिलकर जल के एक दिशीय प्रवाह का मार्ग बनती हैं किसी नदी में मिलने वाली सारी सहायक नदियाँ और उस नदी बेसिन के अन्य लक्षण मिलकर उस नदी का अपवाह तन्त्र बनाते हैं।
अपवाह तन्त्र के प्रतिरुप :- अपवाह तन्त्र में नदियों का ज्यामितीय विन्यास और उससे निर्मित पैटर्न या प्रतिरूप को अपवाह प्रतिरूप कहा जाता है|
1) द्रुमाकृतिक प्रतिरुप या वृक्षाकार
2) आयताकार प्रतिरुप
3) जालीदार प्रतिरुप
4) वलयाकार प्रतिरुप
5) कंटकीय या हुकनुमा प्रतिरुप
6) अपकेन्द्रिय प्रतिरुप
7) अभिकेन्द्री अरीय प्रतिरुप
8) समान्तर प्रतिरुप
9) अनिश्चित प्रतिरुप
10) भूमिगत प्रतिरुप
11) पूर्ववर्ती प्रतिरुप
12) पूर्णरोपित प्रतिरुप या अध्यारोपित
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हिमालय से निकलने वाली नदियाँ का अपवाह प्रतिरूप :- भौतिक दृष्टि से देश में प्रायद्धीपेत्तर तथा प्रायद्धीपीय नदी प्रणालियों का विकास हुआ है, जिन्हे क्रमशः हिमालय की नदियाँ एवं दक्षिण के पठार की नदियाँ के नाम से भी सम्बोधित किया जाता है। हिमालय अथवा उत्तर भारत की नदियों द्वारा निम्नलिखित प्रकार के अपवाह प्रतिरूप विकसित किये गये हैं।
पूर्वीवर्ती अपवाह :- इस प्रकार का अपवाह तब विकसित होता है, जब कोई नदी अपने मार्ग में आने वाली भौतिक बाधाओं को काटते हुए अपनी पुरानी घाटी में ही प्रवाहित होती है। इस अपवाह प्रतिरूप की नदियों द्वारा सरित अपहरण का भी उदाहरण प्रस्तुत किया जाता है। हिमालय से निकलने वाली सिन्धु, सतलुज, ब्रह्मपुत्र, भागीरथी, तिस्ता आदि नदियाँ पूर्ववर्ती अपवाह प्रतिरूप का निर्माण करती हैं।
क्रमहीन अपवाह :- जब कोई नदी अपनी प्रमुख शाखा से विपरीत दिशा से आकर मिलती है तब क्रमहीन या अक्रमवर्ती अपवाह प्रतिरूप का विकास हो जाता है। ब्रह्मपुत्र में मिलने वाली सहायक नदियाँ – दिहांग, दिवांग तथा लोहित इसी प्रकार का अपवाह बनाती है।
खण्डित अपवाह :- उत्तर भारत के विशाल मैदान में पहुंचने के पूर्व भाबर क्षेत्र में विलीन हो जाने वाली नदियाँ खण्डित या विलुप्त अपवाह का निर्माण करती हैं।
मालाकार अपवाह :- देश की अधिकांश नदियाँ समुद्र में मिलने के पूर्व अनेक शाखाओं में विभाजित होकर डेल्टा बनाती हैं, जिससे गुम्फित या मालाकार अपवाह का निर्माण होता है।
समानान्तर अपवाह :– उत्तर के विशाल मैदान में पहुंचने वाली पर्वतीय नदियों द्वारा समानान्तर अपवाह प्रतिरूप विकसित किया गया है।
आयताकार अपवाह :- उत्तर भारत के कोसी तथा उसकी सहायक नदियों द्वारा आयताकार अपवाह प्रतिरूप का विकास किया गया है।
राजस्थान की नदियां – अरब सागर का अपवाह तंत्र :- लूनी नदी – पश्चिम राजस्थान की एकमात्र नदी लूनी नदी का उद्गम अजमेर जिले के नाग की पहाडियों से होता है। आरम्भ में इस नदी को सागरमति या सरस्वती कहते है। यह नदी अजमेर से नागौर, जोधपुर, पाली, बाडमेर, जालौर जिलों से होकर बहती हुई गुजरात के कच्छ जिले में प्रवेश करती है और कच्छ के रण में विलुप्त हो जाती है, यह नदी बालोतरा (बाड़मेर) के पश्चात् खारी हो जाती है क्योंकि रेगिस्तान क्षेत्र से गुजरने पर रेत में सम्मिलित नमक के कण पानी में विलीन हो जाती है, इससे इसका पानी खारा हो जाता है।
उपनाम:- लवणवती, सागरमती/मरूआशा/साक्री :-
कुल लम्बाई:- 495 कि.मी, राजस्थान में लम्बाई:- 330 कि.मी, पश्चिम राजस्थान की गंगा, रेगिस्तान की गंगा, आधी मीठी आधी खारी, बहाव:- अजमेर, नागौर, जोधपुर, पाली, बाड़मेर, जालौर, लुनी नदी पर जोधपुर में जसवन्त सागर बांध बना है, सहायक नदियां – बंकडा, सूकली, मीठडी, जवाई, सागी, लीलडी पूर्व की ओर से और, एकमात्र नदी जोजड़ी पश्चिम से जोधपुर से आकर मिलती है।
जवाई नदी :- यह नदी लुनी की मुख्य सहायक नदी है।यह नदी पाली जिले के बाली तहसील के गोरीया गांव से निकलती है।पाली व जालौर में बहती हुई बाडमेर के गुढा में लुनी में मिल जाती है, पाली के सुमेरपुर कस्बे में जवाई बांध बना है, जो मारवाड का अमृत सरोवर कहलाता है।
सहायक नदियां – बांडी , सूकड़ी, खारी |
जोजडी नदी :- यह नागौर के पौडलु गांव से निकलती है। जोधपुर में बहती हुई जोधपुर के ददिया गांव में लूनी में मिल जाती है। जोजडी नदी लुनी की एकमात्र ऐसी सहायक नदी है, जो अरावली से नहीं निकलती और लुनी में दांयी दिशा से आकर मिलती है।
सुकडी नदी :- यह पाली के देसुरी से निकलती है।पाली व जालौर में बहती हुई बाडमेर के समदडी गांव में लुनी में मिल जाती है, इस नदी पर जालौर के बांकली गांव में बांकली बांध बना है।
माही नदी :- आदिवासियों की जीवन रेखा, दक्षिणी राजस्थान की स्वर्ण रेखा कहे जाने वाली माही नदी दूसरी नित्यवाही नदी है। माही नदी का उद्गम मध्य प्रदेश में अमरोरू जिले में मेहद झील से होता है। इसका आकर अंग्रेजी के उल्टे यू (∩) की तरह है। इस नदी का राजस्थान में प्रवेश स्थान बांसवाडा जिले का खादू गाँव है, यह नदी प्रतापगढ़ जिले के सीमावर्ती भाग में बहती है और तत् पश्चात् र्दिक्षण की ओर मुड़ जाती है और गुजरात के पंचमहल जिले से होती हुई अन्त में खम्भात की खाड़ी में जाकर समाप्त हो जाती है, माही नदी की कुल लम्बई 576 कि.मी. है जबकि राजस्थान में यह नदी 171 कि.मी बहती है। माही नदी कर्क रेखा को दो बार काटती है।
गलियाकोट उर्स :- राजस्थान में डूंगरपुर जिले मे माही नदी के तट पर गलियाकोट का उर्स लगता है।
बेणेश्वर मेला :- राजस्थान के डूंगरपुर जिले की आसपुर तहसील के नवाटपुरा गांव में जहां तीनो नदियों माही-सोम-जाखम का त्रिवेणी संगम होता है बेणेश्वर मेला भरता है। माघ माह की पूर्णिमा के दिन भरने वाला यह मेला आदिवासियों का कुम्भ व सबसे बड़ा मेला भी है।
माही नदी पर राजस्थान व गुजरात के मध्य माही नदी घाटी परियोजना बनाई गयी है। इस परियोजना में माही नदी पर दो बांध बनाए गए है –
अ) माही बजाजसागर बांध (बोरवास गांव, बांसवाडा)
ब) कडाना बांध (पंचमहल,गुजरात)
सोम नदी :- यह नदी उदयपुर में ऋषभदेव के पास बिछामेडा पहाडीयों से निकलती है, उदयपुर व डुंगरपुर में बहती हुई डुंगरपुर के बेणेश्वर में माही में मिलती है, इस नदी की सहायक नदियां जाखम, गोमती, सारनी, टिंण्डी हैं, उदयपुर में इस पर सोम-कागदर और डुंगरपुर में इस पर सोम-कमला- अम्बा परियोजना बनी है, सहायक नदियां – जाखम, झामरी, गोमी, सामरी।
जाखम नदी :- यह प्रतापगढ़ जिले के छोटी सादडी तहसिल में स्थित भंवरमाता की पहाडीयों से निकलती है। प्रतापगढ, उदयपुर, डुगरपुर में बहती हुई डुंगरपुर के नौरावल भीलुरा गांव में यह सोम मे मिल जाती है।
बेणेश्वर धाम :- डुंगरपुर नवाटापरा गांव में स्थित है।यहां सोम, माही, जाखम का त्रिवेणी संगम है। इस संगम पर माघ पुर्णिमा को आदिवासीयों का मेला लगता है। इसे आदिवासीयों/भीलों का कुंभ कहते है। बेणेश्वर धाम की स्थापन संत मावजी ने की थी। पूरे भारत में यही एक मात्र ऐसी जगह है जहां खंण्डित शिवलिंग की पूजा की जाती है, सहायक नदियां – करमाइ, सुकली
साबरमती नदी :- साबरमती नदी का उद्गम उदयपुर जिलें के पादरला गाँव स्थित अरावली की पहाडीयों से होता है। 45 कि.मी. राजस्थान में बहने के पश्चात् खम्भात की खाडी में जाकर समाप्त हो जाती है।, इस नदी की कुल लम्बााई 416 कि.मी है। गुजरात में इसकी लम्बाई 371 कि.मी. है, उदयपुर जिले में झीलों को जलापूर्ति के लिए साबरमती नदी में उदयपुर के देवास नामक स्थान पर 11.5 किमी. लम्बी सुरंग निकाली गई है जो राज्य की सबसे लम्बी सुरंग है। गुजरात की राजधानी गांधीनगर साबरमती नदी के तट पर स्थित है। 1915 में गांधाी जी ने अहम्दाबाद में साबरमती के तट पर साबरमती आश्रम की स्थापना की, सहायक नदीयां – बाकल, हथमती, बेतरक, माजम, सेई।
पश्चिमी बनास नदी :-यह नदी अरावली के पश्चिमी ढाल सिरोही के नया सानवाडा गांव से निकलती है, और गुजरात के बनास कांठा जिले में प्रवेश करती है। गुजरात मेे बहती हुई अन्त में कच्छ की खाड़ी में विलीन हो जाती है। गुजरात का प्रसिद्ध शहर डीसा नदी के किनारे स्थित है।
Rajasthan Art And Culture Notes |
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