पारिस्थितिक तंत्र की परिभाषा

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पारिस्थितिकी तंत्र का अर्थ, परिभाषा एवं प्रकार :- वह इकाई जिसमें सभी जैविक तत्व पाये जाते है अर्थात् क्षेत्र के सामुदायिक जीव परस्पर अन्तक्रिया करते है अपने भौतिक वातावरण से भी अन्त: क्रिया करते हैं जिससे ऊर्जा का प्रवाह निरन्तर चलता रहता है इससे जैव जगत व भौतिक जगत में ऊर्जा का आदान – प्रदान होता है इसे ही पारिस्थितिक तंत्र कहते है।
पारिस्थितिक तंत्र की परिभाषा
पारिस्थितिक तंत्र की परिभाषा :- लिण्डमेन के अनुसार – “किसी भी आकार की किसी भी क्षेत्रीय इकाई में भौतिक – जैविक क्रियाओं द्वारा निर्मित व्यवस्था पारिस्थितिक तंत्र (ecosystem) कहलाती है, ओडम के अनुसार – “पारिस्थितिक तंत्र पारिस्थितिक की एक आधारभूत इकाई है जिसमें जैविक एवं अजैविक पर्यावरण परस्पर प्रभाव डालते हुए पारस्परिक अनुक्रिया से ऊर्जा और रासायनिक पदार्थों के संचार से पारस्थितिक तंत्र की कार्यात्मक गतिशीलता को बनाए रखते है।
पारिस्थितिक तंत्र की परिभाषा
पारिस्थितिक तंत्र के प्रकार :- प्राकृतिक पारिस्थितिक तंत्र – वे तंत्र जो कि स्वयं प्राकृतिक रूप से संतुलित रहते है, इन पर मनुष्य का अधिक हस्तक्षेप नहीं रहता है, स्थलीय पारिस्थितिक तंत्र – वे पारिस्थितिकी तंत्र जो कि थल में पाये जाते है वे स्थलीय पारिस्थितिक तंत्र कहलाते है जैसे वन पारिस्थितिकी तंत्र, मरूस्थलीय एवं घास के मैदान का पारिस्थितिक तंत्र, मरूस्थलीय पारिस्थितिक तंत्र – पृथ्वी के लगभग 17% भाग पर उष्ण मरूस्थल है। यहाँ का पर्यावरण अल्प वर्षा व उच्च ताप के कारण विशेष होता है। यहाँ पर जल की कमी होती है जिससे यहाँ की वनस्पति भी विशेष प्रकार की होती है तथा शुण्कता के कारण बालू के स्तूपों का सर्वत्र विस्तार होता है। मरूस्थल क्षेत्र की प्राकृतिक वनस्पति कंटीली झाड़ियाँ छोटी घास व कुछ शुण्कता सहन करने वाले वृक्ष होते हैं। मरूस्थलीय क्षेत्र में रेंगने वाले व अन्य जीवों के साथ ऊँट, भेड़, बकरी की संख्या अधिकाधिक होती है जो कम वर्षा तथा अल्प भोजन पर जीवन व्यतीत कर सकें। इन क्षेत्रों में अपघटक क्रिया अपेक्षाकृत कम होती है। इन प्रदेशों में पशु पालन के साथ जहाँ जल उपलब्ध हो जाता है मोटे अनाज की खेती भी की जाती है। ऐसा अनुमान है कि मरूस्थलीय क्षेत्र में जल उपलब्ध हो जाए तो वहाँ भी उत्तम कृषि हो सकती है जैसा कि नील नदी की घाटी में थार के इन्दिरा गाँधी नगर क्षेत्र में आदि। इन क्षेत्रों के पारिस्थितिक तंत्र में फिर परिवर्तनआ जाता है और खेती भी आसानी से की जा सकती है।
वनीय पारिस्थितिक तंत्र – पृथ्वी सौर मण्डल का ऐसा बहुत बड़ा गृह है जिस पर कि जीवन सम्भव है। इसके विस्तृत क्षेत्रों में वनों का विस्तार है। एक ओर सदाबहार उष्ण कटिबन्धीय वन हैं तो दूसरी ओर शीतोष्ण के पतझड़ वाले एवं शीत-शीतोष्ण के सीमावर्ती प्रदेशों के कोणधारी वन हैं। वन या प्राकृतिक वनस्पति जहाँ एक ओर पर्यावरण के विभिन्न तत्वों जैसे ताप दाब वर्षा, आदर््रता, मृदा आदि को नियंत्रित करते हैं वही उनका अपना पारिस्थितिक तंत्र होता है। वनीय क्षेत्रों की मृदा में मिश्रित कई खनिज लवण व वायु मण्डल के तत्व इस प्रदेश के अजैविक तत्वों उत्पादक, उपभोक्ता व अपघटक के रूप में विभिन्न पौधे और जीव शामिल होते हैं। उत्पादक के रूप में वनीय प्रदेशों में विभिन्न प्रकार के वृक्ष होते हैं जो उष्ण शीतोष्ण व शीत दशाओं के साथ-साथ परिवर्तित होते हैं। इन सबके साथ-साथ विषुवतीय प्रदेशों में झाड़ियाँ, लताऐं आदि की अधिक संख्या में पाई जाती हैं। प्राथमिक उपभोक्ताओं में विभिन्न प्रकार के जानवर जो वनस्पति का प्रयोग करते हैं कीट, वृक्षों पर रहने वाले पक्षी द्वितीय उपभोक्ता में माँसाहारी जीव-जन्तु पक्षी शामिल है।मनुष्य भी एक हद तक भक्षक का कार्य करता है। वनस्पति लगातार गिरती रहती है और सड़ जाती है व मृदा में मिल जाती हैं। इस प्रकार जीव-जन्तु भी मृत्यु के बाद जीवाणुओं द्वारा सड़ा दिए जाते हैं और उनका शरीर अपघटित हो जाता है और अंत में वे मृदा में मिल जाते है। विश्व के उष्ण कटिबन्धीय वनों की ओर वर्तमान में पर्याप्त ध्यान आकृष्ट है क्योंकि इनका तेजी से हो रहा विनाश विश्व पारिस्थितिक तंत्रके लिए खतरा है, जलीय पारिस्थितिक तंत्र – जलीय स्त्रोतो के पारिस्थितिकी तंत्रो को जलीय पारिस्थितिक तंत्र कहते है, अवलणीय जलीय पारिस्थितकी तंत्र – ये अलवणीय जलीय स्थान का पारिस्थितिक तंत्र होता है इसे दो भागों में बांटा गया है :- 1. बहते जल का पारिस्थितिकी तंत्र (Lotic Ecosystem)- झरना, नदियाँ आदि का पारिस्थितिक तंत्र। 2. रूके हुए जल का पारिस्थितिक तंत्र (Lantic Ecosystem)- झील तालाब पोखर, गंदा दलदल आदि का
पारिस्थितिक तंत्र की परिभाषा
पारिस्थितिक तंत्र :- लवणीय पारिस्थितिक तंत्र – समुद्र महासागर, खाड़ी आदि का पारिस्थितिक तंत्र, कृत्रिम पारिस्थितिक तंत्र – वह पारिस्थितिक तंत्र जो मनुष्य द्वारा निर्मित किया जाता है वह कृत्रिम पारिस्थितिक तंत्र कहलाता है। इस तंत्र में ऊर्जा प्रवाह नियोजन एवं प्राकृतिक संतुलन में व्यवधान रहते है। जैसे खेत की फसल का पारिस्थितिक तंत्र, बाग का पारिस्थितिक तंत्र, कृषि क्षेत्र पारिस्थितिक तंत्र- प्राकृतिक तंत्र के अलावा मनुष्य द्वारा भी पारिस्थितिक तंत्र निर्मित किए जाते हैं। मनुष्य के तकनीकी व वैज्ञानिक ज्ञान के कारण प्राकृतिक पर्यावरण के साथ सांमजस्य स्थापित कर नए पारिस्थितिक तंत्र का विकास किया गया है जैसे कृषि क्षेत्र का पारिस्थितिक तंत्र। इसमें मनुष्य अधिक से अधिक उत्पादन प्राप्तकरने के लिए विभिन्न प्रकार के रासायनिक तत्वों का प्रयोग करता है। मृदा में कृत्रिम उर्वरक डालकर उसमें खनिज लवणों की पूर्ति करता है। विशेष प्रकार के बीज सिंचाई व्यवस्था व तकनीकी प्रयोग से न केवल कृषि क्षेत्र में विस्तार करता है वरन उत्पादन में वृद्धि उन्नमता में विकास नई-नई फसलों के उत्पादन द्वारा अधिक विकास करता है। जब हम फसल लगाते हैं तो इन फसलों के साथ कई प्रकार के पौधें स्वत: ही उग आते हैं ये पौधें उपभोक्ता द्वारा उपभोग कर लिए जाते है इन फसलों से पत्ते-फल अनाज हम तथा पालतू जानवर भी खा जाते है, जब फसल पक जाती है तो विभिन्न कार्बनिक पदार्थ मृदा मे मिल जाते है।
इस प्रकार प्राकृतिक पर्यावरण में परिवर्तन के साथ-साथ पारिस्थतिक तंत्र में परिवर्तन आ जाता है मानवीय प्रयास उसमें और अधिक समानुकूलन पैदा करते है जिससे कई नवीन पारिस्थितिक तंत्र का विकास हो जाता है।
पारिस्थितिक तंत्र की परिभाषा
पारिस्थितिकी तंत्र एवं पर्यावरण प्रदूषण :- विविध प्रकार के वातावरण में भिन्न-भिन्न प्रकार के जीव पाए जाते हैं। सभी जीव, अपने चारों ओर के वातावरण से प्रभावित होते हैं। सभी जीव अपने वातावरण के साथ एक विशिष्ट तंत्र का निर्माण करते हैं, जिसे पारिस्थितिकी तंत्र कहते हैं। जीवों और वातावरण के इस संबंध को पारिस्थितिकी कहा जाता है, सन् 1965 में ओड़म ने पारिस्थितिकी के लिए प्रकृति की संरचना तथा कार्यों का अध्ययन नाम नई परिभाषा दी। विभिन्न वैज्ञानिकों ने पारिस्थितिकी तंत्र की भिन्न-भिन्न परिभाषाएं दी हैं। सबसे सरल परिभाषा है, ‘प्राणियों एवं वनस्पतियों के परस्पर संबंधों और इनके पर्यावरण से संबंधों का अध्ययन, इको-सिस्टम या पारिस्थितिक तंत्र क्या है? इसे समझने के लिए हम कल्पना करें एक तालाब की, जहां मछलियां, मेंढ़क, शैवाल, जलीय पुष्प और अन्य कई जलीय जीव रहते हैं। ये सभी न केवल एक-दूसरे पर आश्रित हैं, अपितु जल, वायु, भूमि जैसे अजैविक घटकों के साथ भी पारस्परिक रूप से जुड़े हुए हैं। समुदाय का यह पूर्ण तंत्र, जिसमें अजैविक घटकों तथा जैविक घटकों का पारस्परिक संबंध ही पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण करता है।

पारिस्थितिकी तंत्र की विशेषताएं :- 1.) पारिस्थितिकी तंत्र एक कार्यशील क्षेत्रीय इकाई होता है, जो क्षेत्र विशेष के सभी जीवधारियों एवं उनके भौतिक पर्यावरण के सकल योग का प्रतिनिधित्व करता है।
2.) इसकी संरचना तीन मूलभूत संघटकों से होती है- (क) ऊर्जा संघटक, (ख) जैविक (बायोम) संघटक, (ग) अजैविक या भौतिक (निवास्य) संघटक (स्थल, जल तथा वायु)।
3.) पारिस्थितिकी तंत्र जीवमंडल में एक सुनिश्चित क्षेत्र धारण करता है।
4.) किसी भी पारिस्थितिकी तंत्र का समय इकाई के संदर्भ में पर्यवेक्षण किया जाता है।
5.) ऊर्जा, जैविक तथा भौतिक संघटकों के मध्य जटिल पारिस्थितिकी अनुक्रियाएं होती हैं, साथ-ही-साथ विभिन्न जीवधारियों में भी पारस्परिक क्रियाएं होती हैं।
6.) पारिस्थितिकी तंत्र एक खुला तंत्र होता है, जिसमें ऊर्जा तथा पदार्थों का सतत् निवेश तथा उससे बहिर्गमन होता रहता है।
7.) जब तक पारिस्थितिकी तंत्र के एक या अधिक नियंत्रक कारकों में अव्यवस्था नहीं होती, पारिस्थितिकी तंत्र अपेक्षाकृत स्थिर समस्थिति में होता है।
8.) पारिस्थितिकी तंत्र प्राकृतिक संसाधन होते हैं (अर्थात् यह प्राकृतिक संसाधनों का प्रतिनिधित्व करता है)
9.) पारिस्थितिकी तंत्र संरचित तथा सुसंगठित तंत्र होता है।
10.) प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र में अंतर्निमित नियंत्रण की व्यवस्था होती है। अर्थात् यदि पारिस्थितिकी तंत्र के किसी एक संघटक में प्राकृतिक कारणों से कोई परिवर्तन होता है तो तंत्र के दूसरे संघटक में परिवर्तन द्वारा उसकी भरपाई हो जाती है, परंतु यह परिवर्तन यदि प्रौद्योगिकी मानव के आर्थिक क्रियाकलापों द्वारा इतना अधिक हो जाता है कि वह पारिस्थितिकी तंत्र के अंतर्निर्मित नियंत्रण की व्यवस्था की सहनशक्ति से अधिक होता है तो उक्त परिवर्तन की भरपाई नहीं हो पाती है और पारिस्थितिकी तंत्र अव्यवस्थित तथा असंतुलित हो जाता है एवं पर्यावरण अवनयन तथा प्रदूषण प्रारंभ हो जाता है।

पारिस्थितिकी तंत्र के प्रकार :- 1) निवास्य क्षेत्र के आधार पर वर्गीकरण – निवास्य क्षेत्र, जीव मंडल के खास क्षेत्रीय इकाई के भौतिक पर्यावरण की दशाएं, जैविक समुदायों की प्रकृति तथा विशेषताओं को निर्धारित करता है। चूंकि भौतिक दशाओं में क्षेत्रीय विभिन्नताएं होती हैं, अतः जैविक समुदायों में भी स्थानीय विभिन्नताएं होती हैं। इस अवधारणा के आधार पर पारिस्थितिकी तंत्रों को दो प्रमुख श्रेणियों में विभाजित किया जाता है –
क) पार्थिव पारिस्थितिकी तंत्र – भौतिक दशाओं तथा उनके जैविक समुदायों पर प्रभाव के अनुसार पार्थिव या स्थलीय पारिस्थितिकी तंत्रों में विभिन्नताएं होती हैं। अतः पार्थिव पारिस्थितिकी तंत्रों को पुनः कई उपभागों में विभाजित किया जाता है यथा (अ) उच्चस्थलीय या पर्वत पारिस्थितिकी तंत्र (ब) निम्न स्थलीय पारिस्थितिकी तंत्र, (स) उष्ण रेगिस्तानी पारिस्थितिकी तंत्र तथा (द) शीत रेगिस्तानी पारिस्थितिकी तंत्र। विशिष्ट अध्ययन एवं निश्चित उद्देश्यों के आधार पर इस पारिस्थितिकी तंत्र को कई छोटे भागों में विभाजित किया जाता है।
ख) जलीय पारिस्थितिकी तंत्र – जलीय पारिस्थितिकी तंत्र को दो प्रमुख उपभागों में विभाजित किया जाता है – (अ) ताजे जल वाले-ताजे जल वाले पारिस्थितिकी तंत्रों को पुनः कई भागों में विभाजित किया जाता है-सरिता पारिस्थितिक तंत्र, झील पारिस्थितिकी तंत्र, जलाशय पारिस्थितिकी तंत्र, दलदल पारिस्थितिकी तंत्र, आदि। (ब) सागरीय पारिस्थितिकी तंत्र-सागरीय पारिस्थितिकी तंत्रों को खुले सागरीय पारिस्थितिकी तंत्र, तटीय ज्वानद मुखी पारिस्थितिकी तंत्र, कोरलरिफ पारिस्थितिकी तंत्र आदि उप-प्रकारों में विभाजित किया जाता है। सागरीय पारिस्थितिकी तंत्रों को दूसरे रूप में भी विभाजित किया जा सकता है। यथा-सागरीय पारिस्थितिकी तंत्र तथा सागर-नितल पारिस्थितिकी तंत्र।

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2) क्षेत्रीय मापक के आधार पर वर्गीकरण – क्षेत्रीय मापक या विस्तार के आधार पर विभिन्न उद्देश्यों के लिए पारिस्थितिकी तंत्रों को अनेक प्रकारों में विभाजित किया जाता है। समस्त जीवमंडल वृहत्तम पारिस्थितिकी तंत्र होता है। इसे दो प्रमुख प्रकारों में विभाजित किया जाता है – (अ) महाद्वीपीय पारिस्थितिकी तंत्र, (ब) महासागरीय या सागरीय पारिस्थिकी-तंत्र। आवश्यकता के अनुसार क्षेत्रीय मापक को घटाकर एकाकी जीव (पादप या जंतु) तक लाया जा सकता है। उदाहरण के लिए जीवमंडलीय पारिस्थितिकी तंत्र, महाद्वीपीय पारिस्थितिकी तंत्र, पर्वत, पठार, मैदान पारिस्थितिकी तंत्र, सरिता, झील, जलाशय पारिस्थितिकी तंत्र, फसल क्षेत्र पारिस्थितिकी तंत्र, गोशाला पारिस्थितिक तंत्र, एकाकी पादप पारिस्थितिकी तंत्र, पेड़ की जड़ या ऊपरी वितान का पारिस्थितिकी तंत्र।

3) उपयोग के आधार पर वर्गीकरण- विभिन्न उपयोगों के आधार पर पारिस्थितिकी तंत्रों को कई प्रकारों में विभाजित किया जा सकता है। उदाहरण के लिए ई.पी. ओड्म (1959) ने नेट प्राथमिक उत्पादन तथा कृषि विधियों के उपयोग के आधार पर पारिस्थितिकी तंत्रों को दो प्रमुख श्रेणियों में विभाजित किया है-
अ) कृषित पारिस्थितिकी तंत्र- कृषित पारिस्थितिकी तंत्रों को प्रमुख फसलों के आधार पर कई उप-प्रकारों में विभाजित किया जा सकता है। यथा-गेहूं क्षेत्र पारिस्थितिकी-तंत्र, चारा क्षेत्र पारिस्थितिकी तंत्र आदि।
ब) अकृषित पारिस्थितिकी तंत्र- अकृषित पारिस्थितिकी तंत्रों को वन पारिस्थितिकी तंत्र, ऊंची, घास पारिस्थितिक तंत्र, बंजर-भूमि पारिस्थितिकी तंत्र, दलदल क्षेत्र पारिस्थितिकी तंत्र आदि।

पारिस्थितिकी तंत्र के कामकाज को प्रभावित करता है तापमान: स्टडी :- पारिस्थितिक तंत्र पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव जांचने के लिए शोधकर्ता जंगलों में पौधों और सूक्ष्म जीवों पर तापमान के असर का अध्ययन किया है। इसके लिए अलग-अलग प्रजातियों के लक्षणों को मापा गया और उनकी तुलना करके यह समझने की कोशिश की गई कि वातावरण में तापमान की एक सीमा तक ये कैसे कार्य करते हैं। उन्होंने पाया कि तापमान पौधों और सूक्ष्म जीवों के कार्य करने के तरीके और उनकी क्षमता को प्रभावित करता है, जिससे पूरा पारिस्थितिकी तंत्र प्रभावित होता है, यह अध्ययन नेचर इकोलॉजी एंड इवोल्यूशन में प्रकाशित किया गया है। शोधकर्ता ने बताया कि यह परियोजना 2011 में शुरू हुई थी, इसके अंतर्गत गर्म उष्णकटिबंधीय जंगलों से लेकर ठंडे बोरियल जंगलों तक मिट्टी और जंगलों की निगरानी की गई और यह समझने का प्रयास किया गया कि हमारी खाद्य श्रृंखला के विभिन्न स्तरों पर जीव तापमान के साथ कैसे जुडे़ हैं। इन कामों में मिट्टी के माइक्रोबियल डीएनए और बड़े डेटासेट का उपयोग करके कंप्यूटर विश्लेषण किया गया, टीम ने बैक्टीरिया के पोषक चक्रण से बंधे जीन में एक बदलाव देखा, यह बदलाव तापमान के कारण आया था।उष्णकटिबंधीय जंगलों में, पेड़ जल्दी से बढ़ते हैं और उनकी पत्तियां भी बड़ी-बड़ी और चौड़ी होती हैं। इसका मतलब है कि ये पत्तियां लगातार जमीन पर गिरती रहती है और सूक्ष्म जीव इनका उपभोग करते हैं। शोध टीम ने बताया कि स्थानीय सूक्ष्म जीवों के जीन में कार्बन के प्रसंस्करण (प्रोसेसिंग) की बहुत कमी थी। देवदार के घने जंगलों में पेड़ों की पत्तियां छोटी होती है, जिनसे अंकुरित बीज गिरते रहते हैं, वहां स्थानीय बैक्टीरिया में अलग-अलग कार्य करने के लक्षण पाए गए, यहां समशीतोष्ण क्षेत्रों में कार्बन-साइक्लिंग जीन की अधिकता पाई गई।

पारिस्थितिकी तंत्र और जैव विविधता के संरक्षण की जानकारी दी :- भारतीय वन्यजीव संस्थान देहरादून की कार्यशाला में जम्मू कश्मीर, हिमाचल, सिक्किम और उत्तराखंड में चल रही सिक्योर हिमालय योजना के तहत उच्च हिमालयी इलाकों के पारिस्थितिकी तंत्र और हिम तेंदुए की अद्वितीय जैव विविधता के संरक्षण के बारे में जानकारी दी गई। संस्थान ने जीईएफ वित्त पोषित यूएनडीपी एमओईएफ और सीसी परियोजना के तहत खंड विकास, बाल विकास, स्वास्थ्य विभाग, लोनिवि, दारमा व्यास और चौदास के प्रधानों के साथ कार्यशाला आयोजित की, रं म्यूजियम में हुई कार्यशाला में संस्थान के परियोजना अन्वेषक डॉ.एस सत्यकुमार, विषय विशेषज्ञ डॉ ऐश्वर्या माहेश्वरी आदि ने बताया कि इस कार्यशाला का मुख्य उद्देश्य वन विभाग के सहयोग से उच्च हिमालयी क्षेत्रों में रह रहे स्थानीय लोगों की आजीविका के अवसरों को बढ़ावा देना है। साथ ही दारमा व्यास और चौदास घाटियों में चल रही परियोजनाओं की जानकारी सरकार तक पहुंचाई जानी है। बैठक में क्षेत्र के प्रधानों ने उच्च हिमालयी इलाकों में भालू और लंगूरों द्वारा खेती को नुकसान पहुंचाने की बात कही गई।

पारिस्थितिक तंत्र का परिचय, वर्गीकरण और पारिस्थितिकी तंत्र का अध्ययन :- पारितंत्र (ecosystem) या पारिस्थितिक तंत्र (ecological system) एक प्राकृतिक इकाई है जिसमें एक क्षेत्र विशेष के सभी जीवधारी, अर्थात् पौधे, जानवर और अणुजीव शामिल हैं जो कि अपने अजैव पर्यावरण के साथ अंतर्क्रिया करके एक सम्पूर्ण जैविक इकाई बनाते हैं। इस प्रकार पारितंत्र अन्योन्याश्रित अवयवों की एक इकाई है जो एक ही आवास को बांटते हैं। पारितंत्र आमतौर अनेक खाद्य जाल बनाते हैं जो पारिस्थितिकी तंत्र के भीतर इन जीवों के अन्योन्याश्रय और ऊर्जा के प्रवाह को दिखाते हैं, पारितंत्र एक प्राकृतिक इकाई है जिसमें किसी विशेष वातावरण के सभी जीवधारी अर्थात् पौधे, जानवर और अणुजीव आदि अपने अजैव ( निर्जीव) पर्यावरण के साथ अंतर्क्रिया करके एक सम्पूर्ण जैविक इकाई बनाते हैं। जिसमें वे अपने आवास भोजन व अन्य जैविक क्रियाओं के लिए एक दूसरे पर निर्भर रहते हैं |

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