ऊष्मीकरण क्या है , ऊष्मीकरण से संबधित Notes

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ऊष्मीकरण क्या है :- पिछले कुछ वर्षों में हम सब ने यह महसूस किया है कि मौसम का मिजाज काफी बदल गया है | जिन स्थानों पर पहले बहुत अधिक वर्षा होती थी, वहाँ अब पहले जैसी वर्षा नहीं हो रही है | जिन स्थानों पर कभी वर्षा नहीं होती थी वहाँ इतनी बारिश हो रही है कि बाढ़ आ जाती है | गर्मी के मौसम में बहुत ज्यादा गर्मी पड़ने लगी है, तो ठंड के मौसम में बहुत ज्यादा ठंड | वर्षा ऋतु में ठीक से वर्षा नहीं होती, तो कभी बेमौसम खूब पानी बरसता है | कई सदियों का जो मनुष्य जाति का अनुभव रहा है कि एक विशेष स्थान का मौसम विशेष तरह का होगा, वो अनुभव अब गलत साबित होने लगा है | वैज्ञानिकों ने लंबे परिक्षण के बाद यह निष्कर्ष निकाला है कि जलवायु में आई हुई इस अनिश्चितता का कारण भूमंडलीय ऊष्मीकरण है |
भूमंडलीय ऊष्मीकरण की संकल्पना पृथ्वी के बढ़ते हुए तापमान से जुडी हुई है | औद्यगिक क्रान्ति के बाद पृथ्वी के वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड और ग्रीनहाउस गैसों की तेजी से वृद्धि हुई है | सूर्य की जो अनंत किरणें धरती तक पहुँचती है उनमें से ज्यादातर धरती से टकराकर परावर्तित हो जाती है | उन किरणों के साथ सूर्य से मिली हुई ज्यादातर ऊष्मा भी अंतरिक्ष में लौट जाती है | कार्बन डाइऑक्साइड और ग्रीनहाउस गैसों में यह खासियत होती है कि वो इस ऊष्मा को पूरी तरह लौटने नहीं देती | उसके थोडे से हिस्से को पृथ्वी के वातावरण में ही रोक लेती हैं | इसके कारण पृथ्वी का तापमान बढ़ता है | पृथ्वी में जीवन संभव होने के लिए यह होना जरुरी है, नहीं तो पूरी पृथ्वी बर्फ से ढँक जाएगी | लेकिन यही गैसें जब आवश्यकता से अधिक ऊष्मा रोक लेती है तो पृथ्वी का औसत तापमान बढ़ने लगता है और भूमंडलीय ऊष्मीकरण की समस्या पैदा होती है | पिछले सौ वर्षों में औद्योगिक क्रांति के कारण कार्बन डाइऑक्साइड और ग्रीनहाउस गैसों का अनुपात वातावरण में बढ़ा है | तेजी से पेड़ों की कटाई, कारखानों और वाहनों की बढ़ती संख्या, जीवाश्म इंधनों का उपयोग, मनुष्य की बढ़ती आबादी ने इन गैसों की मात्रा बढाने में मुख्य योगदान दिया है | जैसे-जैसे इन गैसों की मात्रा बढ़ी, इनके द्वारा रोकी जानेवाली सूर्य की ऊष्मा की मात्रा भी बढ़ी और हमें आज भूमंडलीय ऊष्मीकरण का सामना करना पड़ रहा है |
इसके अलावा आजकल लोकप्रिय होती काँच की इमारतें भी औसत तापमान बढाने का काम कर रही हैं | ये इमारतें सूर्य किरणों का अवशोषण करके आसपास के तापमान को बढ़ा देती है | ऐसे में इन इमारतों के अंदर बने कार्यालयों को ज्यादा वातानुकूलन का प्रयोग करना पड़ता है जिससे बिजली की खपत बढ़ती है | बिजली की खपत बढ़ने का सीधा अर्थ है वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा बढ़ेगी और भूमंडलीय ऊष्मीकरण में वृद्धि होगी | वातानुकूलन के बढे हुए प्रयोग से पैदा हुई क्लोरोफ्लोरो कार्बन गैसें ओजोन लेयर को भी क्षति पहुँचाती है |
भूमंडलीय ऊष्मीकरण के कारण पिछले सौ वर्षों में पृथ्वी के औसत तापमान में लगभग ०, 74 अंश सेल्सिअस की वृद्धि हुई है | वैसे साधारण मनुष्य को यह सुनने में बहुत ज्यादा नहीं लगता किंतु इसका प्रभाव बहुत व्यापक है | औसत तापमान में इस थोड़ी सी वृद्धि के कारण ध्रुवों की बर्फों का पिघलना तेज हो गया है, जिससे समुद्र में पानी का स्तर बढ़ रहा है | समुद्र के आसपास के कई देश और शहर डूबने की कगार पर हैं | ग्लेसियरों के पिघलने और सरकने से नदियों के लुप्तप्राय होने का खतरा हो गया है | हमारे देश की गंगा, यमुना, और ब्रह्मपुत्र जैसी नदियाँ जिनका जन्म ग्लेसियरों से होता है उनके लिए खतरे की घंटी बज चुकी है | वर्षा की अनिश्चितता के कारण बाढ़ और सूखे की समस्या पैदा हो रही है | मौसम की तीव्रता (बहुत गर्मी या बहुत ठंडी) बढ़ हो गई है | पेड़ों और पशुओं की कई प्रजातियाँ लुप्त हो गई हैं | नए-नए रोग पैदा हो रहे हैं | खेतों की पैदावार कम हो गई है | पूरे मनुष्य जाति का भविष्य खतरे में पड़ गया है | भूमंडलीय ऊष्मीकरण के कारण होनेवाले पूरे नुकसान का अंदाजा लगाना संभव नहीं है |
भूमंडलीय ऊष्मीकरण के दुष्प्रभावों को रोकने के लिए यह जरुरी है कि हम इसके लिए तत्काल कठोर कदम उठाएँ | हमें वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड और ग्रीनहाउस गैसों का अनुपात कम करना है | इसके लिए यह जरुरी है कि हम जीवाश्म इंधनों का उपयोग कम से कम करे | कारखानों में ऐसी तकनीकों का प्रयोग करे जिससे प्रदूषण कम हो और ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन न हो | वाहनों के द्वारा होनेवाले उत्सर्जन पर नियंत्रण जरुरी है | हमें उर्जा के ऐसे स्रोतों का उपयोग करना है जिसमें कार्बन का प्रयोग सीमित मात्रा में होता हो या न होता हो, जैसे सौर ऊर्जा, परमाणु ऊर्जा और पवन ऊर्जा आदि | पेड़ों को कटने से बचाना होगा व अधिक से अधिक पेड़ लगाने होंगे | भूमंडलीय ऊष्मीकरण की विरुद्ध हमारी जो लड़ाई है उसमें पेड़ हमारे सबसे बड़े सहायक हैं |
भूमंडलीय ऊष्मीकरण की समस्या की भयावहता ने दुनिया के अनेक देशों को एक मंच पर ला दिया है | इस समस्या के समाधान का उपाय खोजा जा रहा है | सन १९९७ में तय हुए क्योटो प्रोटोकॉल के तहत दुनिया के कई देश कार्बन डाइऑक्साइड और अन्य ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में कमी करेंगे | वर्ष २००५ से यह प्रोटोकॉल लागू हुआ किंतु भारत और चीन इसके कई प्रावधानों से असहमत हैं | यह दोनों देश भूमंडलीय ऊष्मीकरण को रोकने के लिए क्योटो प्रोटोकॉल के तहत जो नीतियाँ अपनाई गई हैं उन्हें अपने देश के विकास में बाधक मानते हैं | वर्ष २०१५ की पेरिस की मीटिंग में कई बातों पर सहमती बन पाई है | हम आशा करते हैं कि इतने महत्वपूर्ण मुद्दे पर विभिन्न देश आपस की असहमति भुलाकर एक मंच पर आ जाएँगे और इस भूमंडलीय ऊष्मीकरण रूपी भष्मासुर से मिल के लड़ेंगे |

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