ऊर्जा से संबंधित

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ऊर्जा से संबंधित

ऊर्जा संरक्षण :- सन 1970 में तेल संकट व ऊर्जाक्षय को रोकना ऊर्जा से संबंधित प्रमुख विवादास्पद विषय थे। उस समय तक ऊर्जा के उत्पाद व उपभोग से संबंधित पर्यावरणीय विषयों के बृहद स्तर पर लोगों का ध्यान आकर्षित नहीं किया था। आजकल व्यक्तिगत, सार्वजनिक व सरकारी, सभी क्षेत्रों में पर्यावरणीय समस्याएँ एक प्रमुख विषय हैं। ऊर्जा के अतिशय उपभोग व प्राकृतिक संसाधनों के अतिदोहन ने हमारे पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है। ऊर्जा के अत्यधिक उपभोग से पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रतिकूल प्रभाव को कम करने हेतु हमें ऊर्जा का उपभोग कुशलतापूर्वक करना होगा व पर्यावरण के अनुकूल ऊर्जा संसाधनों का उपयोग करना प्रारम्भ करना होगा। संशोधित ऊर्जा क्षमता व ऊर्जा का कुशल प्रबंधन पर्यावरण को होने वाली हानि को कम करने व वित्तीय बचत में सहायक सिद्ध होगा। ऊर्जा से संबंधित ,

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ऊर्जा का दैनिक जीवन में महत्त्व :- एक औसत घर में लगभग सभी प्रकार की क्रियाकलापों जैसे रोशनी, शीतलन व घर के ऊष्मण के लिये, भोजन पकाने के लिये, टी-वी-, कम्प्यूटर व अन्य वैद्युत यंत्रों को चलाने के लिये ऊर्जा की आवश्यकता पड़ती है, ऊर्जा ने सुबह उठने से लेकर रात के सोने तक आपके जीवन को प्रभावित किया है। इसके बिना जीवनयापन व कहीं आना-जाना लोगों के लिये कठिन होगा। ऊर्जा, चाहे वह सौर ऊर्जा हो, नाभिकीय ऊर्जा हो या वह ऊर्जा जो हमारे शरीर में बनाती है; जिससे हम बात करते हैं और चलते हैं, आवश्यक है। ये साधारण कार्य हैं, जिन्हें हम ऊर्जा की सहायता से संपन्न करते हैं और उसके अभाव में नहीं कर सकते, आप सम्भवतः अपने विद्यालय जाते समय रास्ते में ट्रैफिक लाइट देखते होंगे, जो विद्युत से चलती है। बिना ट्रैफिक लाइट के कारें अव्यवस्थित रूप से चलती हैं और दुर्घटना हो सकती है। जब आप पैदल विद्यालय जाते हो तो शरीर भोजन से जो ऊर्जा प्राप्त करता है, उसका उपयोग करते हो। आप अंधेरा होने पर अवश्य ही घर में लाइट जलाते होंगे। विद्युत के द्वारा आप अपने कमरे में रोशनी करके उसे चमकदार बनाते हों, यातायात के क्षेत्र में बस, ट्रक, रेलगाड़ियाँ, पानी के जहाज, मोटरें इत्यादि कोयले, गैसोलीन, डीजल व गैस इत्यादि से चलती हैं। ये सभी जीवाश्म ईंधन हैं और इनके अतिदोहन के कारण इनका अभाव हो रहा है, कृषि के क्षेत्र में सिंचाई वाले पम्प, डीजल (एक जीवाश्म ईंधन) या विद्युत से चलते हैं। ट्रैक्टर, थ्रैसर व संयुक्त हारवेस्टर (फसल काटने वाला) सभी ईंधन से चलते हैं। ऊर्जा से संबंधित ,

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ऊर्जा के उपयोग का पर्यावरण पर प्रभाव :- ऊर्जा का उपयोग व आपूर्ति समाज की मूलभूत आवश्यकताएँ हैं, जिन्होंने मनुष्य की किसी भी गतिविधि के द्वारा पर्यावरण को सर्वाधिक प्रभावित किया है। यद्यपि ऊर्जा और पर्यावरण की समस्याएँ मूलरूप से स्थानीय थीं- जैसे- निष्कर्षण से संबंधित समस्याएँ, उसे लाने-ले जाने की समस्या और उससे निकलने वाली हानिकारक गैसों की समस्याएँ। आज इन समस्याओं ने स्थानीय व वैश्विक रूप धारण कर लिया है जैसे- अम्ल वर्षा व ग्रीन हाउस प्रभाव। ऐसी समस्याएँ आज प्रमुख राजैनितक मुद्दों व अन्तरराष्ट्रीय वाद-विवाद और नियमन का विषय बन गई हैं, ऊर्जा संसाधनों के अपक्षय के अतिरिक्त ऊर्जा का उपभोग मुख्यतः जीवाश्म ईंधन का जलना पर्यावरण को प्रदूषित करता है। जीवाश्म ईंधन के जलने से ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन होता है जो वैश्विक ऊष्मण के कारण मौसम में परिवर्तन आज एक वास्तविकता है। वैश्विक ऊष्मण ने पहले ही एक भयावह स्थिति उत्पन्न कर दी है और जल्द ही सम्पूर्ण पृथ्वी के साथ-साथ सजीव प्राणियों, जिन्होंने इस पृथ्वी को अपना निवास बनाया है, के लिये हानिकारक बन जाएँगे। अपने ग्रह पृथ्वी की सुरक्षा हेतु हमारा सतर्क व जागरूक रहना अधिक उचित होगा। सारांश में, ऊर्जा का प्रयोग पर्यावरण को दो प्रकार से प्रभावित करता है |
1.) ऊर्जा संसाधनों का अपक्षय
2.) जीवाश्म ईंधन के ज्वलन से उत्सर्जित होने वाली ग्रीन हाउस गैसों द्वारा पर्यावरण प्रदूषण।

ऊर्जा संरक्षण – प्राकृतिक वाटर कूलर :- जैसे कि आप पहले जान चुके हो कि औद्योगिक विकास व यातायात के आधुनिक साधनों और विभिन्न प्रकार के यंत्रों हेतु ऊर्जा की अधिक मात्रा में आवश्यकता होती है। जीवाश्म ईंधन सार्वभौमिक ऊर्जा का मुख्य स्रोत है, जो सीमित और अनवीकरणीय भी हैं। इसीलिये यह आवश्यक है कि हम ऊर्जा के दुरुपयोग को रोकें और ऊर्जा संरक्षण के लिये प्रयास करें। प्रतिदीप्ति प्रकाश बल्बों, ऊर्जा कुशल उपकरणों और कम उत्सर्जक काँचों का प्रयोग, ऊर्जा उपभोग को कम करने में महत्त्वपूर्ण है। अगर ऊर्जा के स्रोत समाप्त हो गए तो हम अपने कर्तव्य में विफल हो जाएँगे। यह हमारी अगली पीढ़ी के प्रति हमारा उत्तरदायित्व है। ऊर्जा का संरक्षण प्रत्येक मनुष्य के दैनिक जीवन का कर्त्तव्य होना चाहिए। ऊर्जा संरक्षण हेतु व्यक्तिगत, सामुदायिक व सरकारी स्तर पर गंभीर प्रयासों की आवश्यकता है।

ऊर्जा और आर्थिक विकास :- ऊर्जा विकास, आर्थिक विकास का एक अभिन्न अंग है। विकासशील देशों की तुलना में आर्थिक रूप से विकसित देशों के आर्थिक उत्पादन में प्रति इकाई अधिक ऊर्जा का उपयोग होता है और प्रति व्यक्ति ऊर्जा की खपत भी अधिक है। ऊर्जा को सार्वभौमिक व मानव विकास के लिये सबसे महत्त्वपूर्ण निवेश माना जाता है। अर्थव्यवस्था की वृद्धि के लिये वैश्विक प्रतिस्पर्धा का खड़े होकर सामना तभी कर सकेंगे। जब यह लागत प्रभावी व सस्ती और पारिहितैषी ऊर्जा स्रोतों पर निर्भर होगी, ऊर्जा खपत इस बात का संकेत करती है कि अर्थव्यवस्था में ऊर्जा को किस कुशलता से प्रयोग किया गया है। भारत की ऊर्जा खपत अन्य उभरते एशियाई देशों की खपत से अधिक है, भारत में ऊर्जा क्षेत्र को नियोजन प्रक्रिया में उच्च प्राथमिकता प्राप्त है। भारत सरकार ने इस तथ्य को स्वीकार किया है कि ऊर्जा क्षेत्र, एक उच्च विकास दर प्राप्त करने का सकल घरेलू उत्पाद (Gross Domestic Product GDP) की उपलब्धि में एक प्रमुख बाधा बन सकता है। अत सुधार प्रक्रिया में तेजी लाने और एकीकृत ऊर्जा नीति अपनाने की आवश्यकता है।

विभिन्न स्तरों पर ऊर्जा का संरक्षण – घर के स्तर पर ऊर्जा का संरक्षण :- प्रत्येक देश के निवासियों की मांग, उस देश में प्रयोग की जाने वाली ऊर्जा का एक प्रमुख भाग होती है। एक आम घर की ऊर्जा-हितैषी घरों से तुलना करने पर, वार्षिक ऊर्जा बिल को 40 प्रतिशत तक कम किया जा सकता है। हमें अपने घरों के लिये एक ऊर्जा संरक्षण योजना विकसित करनी चाहिए। यह पर्यावरण के अनुकूल होने के साथ-साथ एक आर्थिक रूप से सफल प्रक्रिया है, अपने घरों हेतु ऊर्जा संरक्षण योजना बनाने के प्रमुख क्रम हैं (1) उन समस्या क्षेत्रों को पहचानना जहाँ ऊर्जा नष्ट होती है या उसका कुशलतापूर्वक उपयोग नहीं किया जाता। (2) समस्या क्षेत्रों को इस प्राथमिकता के अनुसार रखना कि वहाँ कितनी ऊर्जा नष्ट होती है या उसका कुशलतापूर्वक उपयोग नहीं किया जाता। (3) अपने घर के ऊर्जा सुधार बजट के अनुसार प्राथमिकता के आधार पर योजनाबद्ध तरीके से समस्याओं का निराकरण करना।
1.) प्रमुख घरेलू उपकरणों के प्रयोग हेतु :- बड़े घरेलू उपकरणों में प्रमुख रूप से अधिक ऊर्जा व्यय होती और ऐसे घरेलू उपकरणों की कार्यक्षमता को विकसित करके विद्युत के सकल घरेलू उपभोग को उल्लेखनीय रूप से कम किया जा सकता है।
अ) फ्रिज (Refrigerator) :- क्या आप जानते हो कि फ्रिज ऊर्जा के एक बहुत बड़े भाग का उपभोग करता है? संघनित्र (Condenser) या तो फ्रिज के नीचे पाया जाता है या उसके पीछे और उसके निम्न तापमान को नियंत्रित करने में सहायक होता है। हम फ्रिज का प्रयोग करते समय निम्न प्रकार से ऊर्जा का संरक्षण कर सकते हैं:-
1. इसे 37°F – 400°F पर रखना चाहिए और फ्रीजर को 50°F और इसमें स्वचालित आर्द्रता नियंत्रित होनी चाहिए।
2. हमें फ्रिज को पूर्णतः भरा रखना चाहिए और इसकी स्थिति ऐसी होनी चाहिए कि इसकी बाह्यसतह पर सीधे सूर्य का प्रकाश न पड़े।
3. अगर फ्रिज का दरवाजा ठीक से बंद नहीं होगा तो यह अधिक ऊर्जा का उपभोग करेगा। खुले तरल पदार्थ फ्रिज में नहीं रखने चाहिए क्योंकि यह कंप्रेशर पर अतिरिक्त बोझ डालेगा।
4. फ्रिज में भोजन रखने से पहले उसे कमरे के तापमान तक ठण्डा करना चाहिए।
5. फ्रिज का दरवाजा बार-बार नहीं खोलना चाहिए।

ब) ओवन/माइक्रोवेव ओवन :- ओवन का प्रयोग करते समय ऊर्जा संरक्षण हेतु हमें निम्नलिखित बातें ध्यान में रखनी चाहिए-
1. हमें माइक्रोवेव ओवन का प्रयोग करना चाहिए क्योंकि यह परम्परागत ओवन से 50% कम ऊर्जा का प्रयोग करते हैं।
2. ओवन के दरवाजे में कोई दरार या टूटा नहीं होनी चाहिए।
3. तापमान को अधिक प्रभावी बनाने हेतु हमें भोजन ‘ढक्कन खोलकर’ बनाना चाहिए।
4. हमें प्रतिक्षेपक पैन (Reflector pan) को स्टॉव टॉप के चमकदार व स्पष्ट हीटिंग एलीमेन्ट के नीचे रखना चाहिए।
5. ऊर्जा के उपभोग को कम करने हेतु हमें पानी का सावधानी से प्रयोग करना चाहिए।
6. खाना पकाते समय, तरल पदार्थ के उबलने तक अधिक ऊर्जा का प्रयोग करना चाहिए। उसके पश्चात खाने को धीमी आँच पर पकाना चाहिए।
7. एक समय में अधिक से अधिक सम्भावित भोजन ओवन में पकाना चाहिए।
8. ओवन की शेल्फ को ओवन चालू करने से पहले पुनर्व्यवस्थित करना चाहिए और ओवन में बार-बार नहीं झांकना चाहिए, क्योंकि प्रत्येक बार ओवन के खुलने पर उसका तापमान 4-5°C कम हो जाता है।
9. खाना पकाने से पहले ओवन को कुछ मिनट के लिये गर्म करना पर्याप्त होगा।
10. मुख्यतः गैस पर बनी वस्तुओं के लिये स्टोवटॉप परन्तु खाना पकाना उचित है।

स) इस्त्री करना :- प्रतिदिन हम अपने कपड़ों को इस्त्री करते हैं। यह लगभग 1000 वॉट ऊर्जा का उपभोग करते हैं, जो कि एक बड़ी मात्रा है। लेकिन हम एक या दो कपड़े एक बार में इस्त्री करने के स्थान पर थोक में कपड़ों को इस्त्री करके ऊर्जा को बचा सकते हैं। यह सुनिश्चित करें कि इस्त्री का तापस्थायी (Thermostat) काम कर रहा है और कपड़ा इस्त्री करने हेतु सही तापमान निश्चित करें।

द) खाना पकाना :- खाना पकाने में ऊर्जा के बड़े भाग का उपभोग किया जाता है। खाना बनाते समय इन सावधानियों के द्वारा ऊर्जा बचाई जा सकती है। खाना पकाने हेतु खाना पकाने के बरतन कुकर प्लेट, कॉयल (Coil) या बर्नर से थोड़ा बड़ा होना चाहिए। सॉसपैन का ढक्कन खुला होना चाहिए। एक बार भोजन उबलने के पश्चात आँच धीमी कर देनी चाहिए।

न) धुलाई की मशीन :- धुलाई की मशीन 20% विद्युत का उपभोग करती है। धुलाई की मशीन का प्रयोग करते समय निम्न प्रकार से ऊर्जा बचायी जा सकती है-
1. हमें काम करते समय व कपड़े धोते समय ठण्डे पानी का प्रयोग करना चाहिए क्योंकि 90% ऊर्जा धुलाई की मशीन द्वारा पानी को गर्म करने में प्रयोग होती है।
2. डिटरजेन्ट प्रयोग करने के निर्देशों का सावधानी से पालन करना चाहिए। अच्छे परिणाम हेतु अधिक डिटरजेन्ट का प्रयोग करने से अधिक ऊर्जा का उपभोग होता है।
3. मशीन को कपड़ों के पूर्णभार के साथ होना चाहिए लेकिन मशीन पर अतिरिक्त भार नहीं डालना चाहिए।
4. ऊर्जा खपत को कम करने के लिये कपड़ों को पहले भिगोकर धोना चाहिए।

बिजली/रोशनी :- विश्व में ऊर्जा की बढ़ती हुई मांग व ऊर्जा के प्रतिदिन बढ़ते मूल्य ने गहन ऊर्जा प्रौद्योगिकियों की ऊर्जा क्षमता को सुधारने हेतु एक तर्कसंगत कारण दिया है। बिजली का प्रयोग करते समय ऊर्जा को बचाने की कुछ विधियाँ निम्नलिखित हैं-
1. बिजली का प्रयोग न होने पर उसे बंद कर देना चाहिए।
2. दिन के समय अधिक से अधिक सौर ऊर्जा का प्रयोग करना चाहिए। बल्ब व ट्यूबलाइट का दिन में प्रयोग नहीं करना चाहिए।
3. सम्पूर्ण क्षेत्र या कमरे में रोशनी करने के स्थान पर सिर्फ काम करने के स्थान पर रोशनी का प्रयोग करना चाहिए।
4. तापदीप्त बल्ब (Incandescent bulbs) के स्थान पर कॉम्पैक्ट फ्लोरसेंट लैम्प (CFL, Compact fluorescent lamps) का प्रयोग करना चाहिए। एक 23 वॉट का सीएफएल, 90 या 100 वाट के बल्ब का स्थान ले सकता है।
5. कम्प्यूटर, टी.वी., टेप रिकार्डर, संगीत प्रणाली इत्यादि को खुला न छोड़ें। क्या तुम जानते हो कि टी.वी. को बंद करके तुम कितनी बिजली बचा सकते हो? तुम 70 किलावॉट/घंटा प्रतिवर्ष बिजली बचा सकते हो।
6. गीजर से सर्वाधिक ऊर्जा की खपत होती है। तापस्थायी (Thermostat) को निम्न तापमान 45° से 50°C पर नियत किया जा सकता है।
7. बल्ब कमरे में ऐसे स्थानों पर रखने चाहिए जिससे वे एक रोशनी सतह के स्थान पर कई कोनों को आलोकित कर सकें।
8. जहाँ तक सम्भव हो, धीमे किए जा सकने वाले बल्बों का प्रयोग करें।

विद्युत संरक्षण :- वैश्विक ऊर्जा संसाधनों के निष्कर्षण तथा ऊर्जा उपभोग के प्रतिकूल पर्यावरणीय प्रभावों के प्रति बढ़ती हुई जागरूकता के कारण, ऊर्जा कुशल यंत्रों व तकनीकों को विकसित करने के प्रयास किए जा रहे हैं। जिससे ऊर्जा व्यय व पर्यावरणीय संकटों को कम किया जा सके। इस प्रकार के कुछ चरण निम्नलिखित हैं –
i. ISI चिन्हित उपकरणों का प्रयोग करना चाहिये।
ii. बल्ब के स्थान पर टंगस्टन फिलामेंट लैम्प (TLP) ट्यूब का प्रयोग कीजिए।
iii. CFLs (कम्पैक्ट फ्लोरोसेंट लैम्प) का प्रयोग करना चाहिए क्योकि इसमें अपेक्षाकृत कम विद्युत खर्च होती है व ये अधिक चलते हैं।
iv. विद्युत बचाने हेतु वैद्युत गीजरों के स्थान पर गैस गीजर का प्रयोग करना चाहिए।

कुछ अन्य विधियाँ, जिनके द्वारा ऊर्जा की बचत की जा सकती है, इस प्रकार हैं:-
1. खाना पकाने हेतु गैस उपकरणों की जाँच समायोजित होनी चाहिए, जिससे आँच लाल या पीली के स्थान पर नीली रहे।
2. जब कम्प्यूटर प्रयोग में न हो तो उसे बंद कर देना चाहिए।
3. ऐसे उपकरणों (जैसे-कर्लिंग इस्त्री, कॉफी पात्र, इस्त्री) का प्रयोग करना चाहिए जो समयानुसार स्वयं बंद हो जाएँ।
4. पुराने टी.वी., वी.सी.आर. इत्यादि उपकरणों को आवश्यकता पड़ने पर ऊर्जा हितैषी नमूनों से बदल देना चाहिए।

शीतलन :- शीतलन में ऊर्जा के एक बड़े भाग की खपत होती है। ऊर्जा संरक्षण हेतु निम्नलिखित शीतलन उपाय किए जा सकते हैं
1. ठण्डी हवा के लिये रात में खिड़कियाँ खोल देनी चाहिए।
2. दिन के समय खिड़कियाँ बन्द रखनी चाहिए।
3. पश्चिम की ओर पड़ने वाली खिड़कियों पर पर्दे लगे होने चाहिए। रात की ठण्डी हवा के लिये घर में एक बड़े पंखे का प्रयोग किया जा सकता है।
4. वातानुकूलन का प्रयोग जब आवश्यकता हो तभी करना चाहिए व ऊर्जा हितैषी मॉडल स्थापित किए जाने चाहिए।
5. वातानुकूलित घरों में शीतलन को 25°C पर स्थिर रखना चाहिए।
6. वातानुकूलन प्रणाली के फिल्टरों व संघनित्र (कन्डेन्सर) की नियमित सफाई से ऊर्जा की बचत होती है।

ख) सामुदायिक स्तर पर ऊर्जा का संरक्षण :- सम्पूर्ण विश्व में ऊर्जा संरक्षण एक बहुत ही संवेदनशील विषय है। एक समाज, जहाँ धन व मुख्यत आर्थिक रूप से लाभप्रद विकल्प हमारे लिये उपस्थित हों, ऊर्जा संरक्षण हेतु निम्नलिखित उपाय किए जाने चाहिए
1. अनावश्यक रोशनी को बंद कर देना चाहिए। मुख्यतः जब सम्मेलन कक्ष इत्यादि प्रयोग में न आ रहे हों।
2. सर्वाधिक मांग के घण्टों के समय ऊर्जा का उपभोग कम करना चाहिए।
3. कम्प्यूटर सेट, मॉनिटरों, फोटोकॉपियरों व अन्य व्यापारिक उपकरणों को उनकी ऊर्जा संरक्षण प्रणाली पर रखना चाहिए। लम्बे खाली घण्टों के समय जैसे दोपहर के भोजन के समय इन्हें बंद कर देना चाहिए।
4. गोदामों (Were house) हेतु आकाशीय रोशनी का प्रयोग करना चाहिए।
5. यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वातानुकूलनयुक्त कार्यालयों में उचित खिड़कियाँ हों और वातानुकूलन प्रयोग में हो तब सारे दरवाजे बंद हों।

i) नवीकरणीय ऊर्जा संसाधनों का प्रयोग :- अनवीकरणीय ऊर्जा संसाधनों के स्थान पर वैकल्पिक संसाधनों जैसे नवीकरणीय ऊर्जा संसाधनों, उदाहरण हेतु सौर ऊर्जा, बायो गैस, वायु ऊर्जा इत्यादि का प्रयोग करना चाहिए। नियमित अंतराल पर घरों, भवनों, होटलों व कारखानों में ऊर्जा की जाँच की जानी चाहिए, सामुदायिक स्तर पर ऐसी परियोजनाओं का प्रदर्शन किया जाना चाहिए जो उचित, नवीकरणीय सौर तकनीकों से संबंधित हों जैसे जल-शुद्धिकरण व लॉन की सिंचाई, खेल के मैदानों, बगीचों, सामुदायिक केन्द्रों की सिंचाई के लिये सौर पम्प का प्रयोग करना चाहिए व खाना पकाते और उसे गर्म करने के लिये सौर ऊर्जा को बढ़ावा देना चाहिए। वायुजनित ऊर्जा से संबंधित परियोजनाएँ जो समुदाय और नगरपालिका की आवश्यकता से संबंधित हैं, उन्हें सम्पूर्ण समुदाय के समक्ष प्रदर्शित करना चाहिए। बायोगैस का कुशलतापूर्वक उपयोग लोगों के मध्य उससे संबंधित कार्यक्रमों का प्रदर्शन आवश्यक है। सस्ते व टिकाऊ ऊर्जा संसाधनों के विकास हेतु शैक्षिक शोध व विकास कार्यक्रमों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।

गृह समूहों हेतु सामुदायिक स्तर पर ऊर्जा संरक्षण :- हमें प्रत्येक कार्य हेतु ऊर्जा की आवश्यकता होती है जैसे- खाना पकाना, रोशनी, शीतलन, यातायात इत्यादि। ऊर्जा की वह मात्रा जो क्षय होती है, उससे ऊर्जा की वह मात्रा जो प्रयोग की जाती है, अपेक्षाकृत अधिक होती है। ऊर्जा की बचत आवश्यक है क्योंकि ऊर्जा संसाधन तेजी से समाप्त होते जा रहे हैं। इसके लिये सामुदायिक स्तर पर निम्नलिखित उपाए किए जा सकते हैं

उद्योगों व अन्य स्थानों पर ऊर्जा संरक्षण :- ऊर्जा संरक्षण, उपभोग की जाने वाली ऊर्जा की मात्रा को कम करने का अभ्यास है। यह ऊर्जा सेवाओं की कम खपत से या ऊर्जा के कुशल प्रयोग द्वारा संरक्षित की जा सकती है। ऊर्जा के उपभोग को कम करके भी समान परिणाम प्राप्त किए जा सकते हैं। विभिन्न स्थानों जैसे- कारखानों, व्यापारिक केन्द्रों, यातायात क्षेत्रों व निर्माण क्रियाओं में ऊर्जा को निम्न प्रकार से संरक्षित किया जा सकता है

ऊर्जा हानि में कमी :- प्रतिदिन एक बड़ी मात्रा में ऊर्जा की क्षति होती है। हम ऊर्जा क्षय को निम्न उपायों द्वारा कम कर सकते हैं जैसे ईंधन टैंक का तापीय ऊष्मारोधन (थर्मल इन्सुलेशन) किया जा सकता है। चीनी मिट्टी भट्ठियों के सीलिंग रेशों, पारंपरिक भाप ऊष्मण करने के स्थान पर तरल ईंधन लाइनों की अनुरेखण विद्युत ट्रेसिंग द्वारा।

बिजली के लोड में कमी :- बिजली का उपयोग कम करके उल्लेखनीय मात्रा में ऊर्जा की बचत की जा सकती है। बल्बों को ट्यूब लाइट से प्रतिस्थापित कर दिया गया है। आजकल रोशनी हेतु ऊर्जा की खपत को कम करने में सीएफएल का प्रयोग काफी महत्त्वपूर्ण सिद्ध हुआ है।

यातायात क्षेत्र में ऊर्जा संरक्षण :- परिवहन का अर्थ उन सभी वाहनों से है जो व्यक्तिगत या माल ढोने हेतु प्रयोग किए जाते हैं। क्या आप जानते हो कि इस क्षेत्र में लगभग 65 % ऊर्जा मुख्यतः गैसोलीन द्वारा चलने वाले व्यक्तिगत वाहनों द्वारा प्रयोग की जाती है। डीजल से चलने वाले वाहन (रेलगाड़ियाँ, व्यापारिक जहाज, भारी ट्रक इत्यादि) लगभग 20 % और हवाई यातायात शेष का अधिकतम 15 % प्रयोग करते हैं। परिवहन क्षेत्र में ऊर्जा को निम्नलिखित प्रकार से संरक्षित किया जा सकता है |

ईंधन की खपत को निम्नलिखित प्रकार से कम किया जा सकता है :-
1. स्ववाहनों के स्थान पर अधिक से अधिक सार्वजनिक वाहनों का प्रयोग करें।
2. कार की गति जहाँ तक सम्भव हो 50 से 60 किमी/घंटा नियत होनी चाहिए।
3. जब तक आवश्यक न हो, चोक का प्रयोग न करें। जब चोक का प्रयोग करें, इंजन गर्म होते ही इसे बंद कर दें। यदि वाहन चलाने में अवरोध हो तो इंजन के संचालन हेतु क्लच दबाएँ।
4. ईंधन की खपत कम करने के लिये अनावश्यक संचालन व रुकने से बचें। क्लच पैडल को धीरे-धीरे छोड़ें और साथ ही साथ एक्सीलेटर को गाड़ी दौड़ाने या झटके हेतु दबाएँ।
5. डीक्लच (declutch) इंजन को कभी न दौड़ाएँ। गीयर बदलते समय क्लच पैडल पर क्लच को पूरी तरह से छोड़ें क्योंकि यह क्लच वेयर और ईंधन उपभोग को बढ़ाता है।
6. हैण्ड ब्रेक लगा होने पर गाड़ी कभी न चलाएँ। गर्मी देने वाले प्रकाश उपकरण लगाएँ। जहाँ तक सम्भव हो ब्रेक धीरे-धीरे लगाएँ। आवश्यक होने पर ही ब्रेक लगाएँ। ढाल (नीचे/ऊपर) पर सही समय पर निचले गियर बदलें। ये सभी ऊर्जा की खपत को कम करने में सहायक होंगे।
7. यदि सम्भव हो तो निवास कार्य स्थल के समीप होना अधिक उचित होगा।

ईंधन अर्थव्यवस्था-अधिकतम करने हेतु व्यवहार :- ईंधन अर्थव्यवस्था अधिकतम करने हेतु व्यवहार उस तकनीक को वर्णित करता है जिससे चालक अपने वाहन की ईंधन अर्थव्यवस्था को नियंत्रित कर सकते हैं। वाहन चलाते समय ईंधन के उपभोग से विभिन्न विधियों द्वारा ऊर्जा क्षय होता है, जैसे- अकुशल इंजन, वायुगतिक बाधा, झुकाव का घर्षण और ब्रेक द्वारा होने वाली गतिज ऊर्जा की हानि। इस हेतु निम्नलिखित उपाय किए जा सकते हैं
i. संयमित चालन
ii. कम गति पर चालन
iii. क्रूज नियंत्रण का प्रयोग (गति नियंत्रक या स्व-क्रूज गति को नियंत्रित करते हैं और ड्राइवर द्वारा स्थिर गति बनाए रखने में सहयोगी होते हैं)।
iv. स्टॉप पर वाहनों के इंजनों को बेकार चालू रखने के स्थान पर उसे बंद कर देना चाहिए।
v. हाइवे गति सामान्यतः 55 मील/घंटा (वाहनों की संख्या के साथ बदलती है) से ऊपर होने पर वाहन का गैस लाभ तीव्रता से घटता है।

ऊर्जा कुशल नए शहरों की संकल्पना :- किसी भी व्यापक भूमि उपयोग योजना प्रक्रिया में ऊर्जा संरक्षण पर विचार किया जाना चाहिए। विभिन्न प्रकार के ताप स्रोतों जैसे ईंधन, तेल, गैस, लकड़ी, विद्युतधारा, सूर्य तथा कोयले इत्यादि का घरों व व्यापारिक भवनों का प्रयोग किया जाता है। इस ऊर्जा उपभोग व ऊर्जा संसाधनों का संरक्षण इन दिनों एक ज्वलन्त विषय है। ऊर्जा संरक्षण के द्वारा पर्याप्त आर्थिक बचत की जा सकती है, भूमि का प्रभावी प्रयोग ऊर्जा संरक्षण का एक अच्छा साधन सिद्ध हो सकता है। शहर की संरचना इस प्रकार की होनी चाहिए कि विकासीय घनत्व शहर के केन्द्र की ओर अधिक हो, जहाँ नगर निगम द्वारा पानी और सीवर की सुविधा हो। दूरस्थ क्षेत्रों में बहुत कम निर्माण करना चाहिए।

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