मेवाड़ का इतिहास

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मेवाड़ का इतिहास

मेवाड़ का इतिहास :- उदयपुर Udaipur जिसे मेवाड़ Mewar भी कहते है अंग्रेजो के समय में भारत की एक रियासत थी | मेवाड Mewar की स्थापना 530 ईस्वी के आस पास की गयी और चित्तोडगढ Chittorgarh उनकी पहली राजधानी थी |बाद में अंततः मुख्य रूप से इसे अपनी नई राजधानी उदयपुर Udaipur के नाम से जाना जाने लगा |जब 1949 में उदयपुर प्रदेश Udaipur City भारतीय संघ में शामिल हुआ तब तक यहाँ पर मोरी गहलोत परिवार के क्षत्रिय राजपुत और सिसोदिया वंश में 1400 वर्ष तक राज किया था |
मेवाड़ का इतिहास
उस समय Udaipur की मुख्य जागीरदार प्रदेश छनी, जवास ,ज़ुरा ,मादरी,ओघना, पनारवा ,पारा , पटिया ,सरवन और थाना थी | Udaipur City ने दुसरे अंग्रेज-मराठा युद्ध में ईस्ट इंडिया कंपनी की सहायता की थी लेकिन 1805 सरंक्षित राज्य बनाने की याचिका को अंग्रेजो ने मना कर दिया | 31 जनवरी 1818 उदयपुर प्रदेश Udaipur City एक ब्रिटिश संरंक्षित प्रदेश बना | अंग्रेज अधिकारियों ने Udaipur के शाषक को 19 तोपों की सलामी दी | 1920 के स्वतंत्रता आन्दोलन में उदयपुर प्रदेश केन्द्रित हुआ | उदयपुर प्रदेश Udaipur City का अंतिम शाषक ने 7 April 1949 को परिग्रहण पर हस्ताक्षर किये |

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मेवाड़ का गहलोत वंश :- Gahlot Dynasty History in Hindi :- Rajput Kings ऐसा माना जाता है कि सिसोदिया वंश Sisodiya Dynasty भगवान राम के वंशज है जो सूर्यवंशी थे | दुसरी सदी के कनक सेन Kanak Sen को भगवान राम के पुत्र लव के वंशज माना जाता था जिन्होंने उस समय लाहोर पर शाशन किया था | बाद में उन्होंने कुषाण शाषक रूद्रदमन को हराकर गुजरात पर कब्जा कर लिया और परिवार सहित गुजरात आ गये | कनक सेन Kanak Sen की रानी का नाम वल्लभी था जिसके नाम पर उसने अपनी राजधानी का नाम रखा था |
ऐसा माना जाता है कि जब 6वी सदी में वल्लभी की रानी पुष्पावती जब गर्भवती थी तो ईश्वर से अपने संतान की रक्षा के लिए तीर्थयात्रा पर गयी थी | जब वो अरावली की पहाडियों से सफर कर रही थी तब उसे अपने पति की मृत्यु और वल्लभी के विनाश की खबर सूनी | इसी डर से उसने अरावली की पहाडियों पर एक गुफा में शरण ली जहा पर उसके सन्तान हुयी | उसका नाम उसने गुहिल Guhil मतलब “गुफा में जन्म “रखा | उसने अपने पुत्र को दासियों को सौंपकर अपने पति के अंतिम संस्कार के लिए वल्लभी चली गयी |गुहिल Guhil का पालन पोषण अरावली की पहाडियों में 2000 ईस्वी पूर्व से रह रहे भील जनजाति ने की| 6वी सदी में जब गुहिल केवल पांच वर्ष का था उसे वल्लभी का सिंहासन पर बिठा दिया गया |

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गहलोत वंश :- एक प्रचलित प्रथा के अनुसार गुहिल ने 566 ईस्वी में गहलोत वंश Gahlot/ Guhilot की स्थापना की | गुहिल का वंशज गृहदित्य था जिसने अरावली की पहाडियों में वर्तमान गुजरात में स्थित इदार को अपनी राजधानी बनाया | 7वी सदी में उनके वंशज नागादित्य उत्तर से मेवाड़ Mewar के मैदानों में नागदा नामक कसबे में बस गये | नागदा Nagda उदयपुर से 25 किमी की दूरी पर के कस्बा है जिसका नाम गुहिल वंश के चौथे शाषक नागादित्य के नाम पर रखा गया | नागादित्य ने रावल वंश की स्थापन की और मेवाड़ Mewar की राजधानी नागदा बना दी , नागादित्य Nagaditya का पुत्र सिलादित्य , सिलादित्य का पुत्र अपराजित और अपराजित का पुत्र महेंद्र द्वितीय था | महेंद्र द्वितीय को मालवा के मोरी साम्राज्य के मान सिंह मोरी ने मार दिया | महेंद्र द्वितीय के पुत्र कालभोज जिसे बप्पा रावल Bappa Rawal भी कहते है , चित्तोड़ Chittor पर राज करने वाले मोरी साम्राज्य को हरा दिया और चित्तोड़ को जीत लिया | बप्पा रावल में मेवाड़ की राजधानी चित्तोड बना दी |बप्पा रावल Bappa Rawal के वंशज अल्लत सिंह को परमार वंश के सियाका ने चित्तोड़ Chittor छोड़ने का दबाव डाला और उसने अपनी राजधानी आह्ड बनाई |

इसके बाद 1172 में क्षेम सिंह ने मुस्लिम शाशको के दबाव में मेवाड़ की राजधानी डूंगरपुर बना दी | इसके बाद 1213 में इल्तुतमिश के मालवा पतन के बाद जैत्र सिंह ने चित्तोड पर फिर कब्ज़ा कर लिया | इसके बाद मेवाड़ के शाषक जैत्रसिंह ने 1234 ईस्वी में इल्तुतमिश तथा 1237 ईस्वी में बलबन को हराकर चित्तोड़ को फिर से मेवाड़ की राजधानी बनाया | मेवाड़ का स्वर्ण काल जैत्रसिंह के शाषनकाल को माना जाता है |
सन 1303 में गहलोत वंश के अंतिम शाषक रतन सिंह प्रथम को अलाउदीन खिलजी ने चारो ओर से घेर लिया और चित्तोड़ पर कब्ज़ा कर लिया | इसके बाद गहलोत वंश की जगह Sisodiya Clan सिसोदिया वंश ने 1326 में फिर से चित्तोड़ पर कब्ज़ा कर लिया | आइये आपको गहलोत बंश Gahlot Dynasty के शाशको और शाषनकाल बताते है1

मेवाड़ का सिसोदिया वंश :- Sisodia Dynasty History in Hindi :- Sisodiya Dynastyअलाउदीन खिलजी Alauddin Khilji ने चित्तोड़ पर घेराबंदी कर गहलोत वंश Gahlot Dynasty के अंतिम शाषक रतन सिंह प्रथम को मारकर चित्तोड़ Chittor पर कब्ज़ा कर लिया |सिसोदिया वंश के राणा लक्षा Rana Laksha अपने 10 पुत्रो के साथ चित्तोड़ Chittor की रक्षा में एकजुट हो गये | सरदारों ने निश्चय कर लिया था कि शाही वंश को बचाने का सही समय है | राणा लक्षा Rana Laksha के दो पुत्र अरी सिंह और अजय सिंह थे | अरी सिंह प्रथम के एक पुत्र हम्मीर सिंह प्रथम Hammir Singh I था जिसे उसके चाचा अजय सिंह सुरक्षा की दृष्टि से केलवाडा ले गये | मेवाड़ को हराने के बाद अलाउदीन खिलजी ने राणा लक्षा और उसके पुत्र अरी सिंह प्रथम को मार दिया , अब लोगो ने अजय सिंह के नेतृत्व में एकत्रित होना शुरू कर दिया जिन्होंने 1320 में अपनी मृत्यु तक गोरिल्ला पद्धति से दुश्मन पर हमला किया था | सरदारों ने अब हम्मीर सिंह प्रथम Hammir Singh I को सिसोदिया वंश Sisodiya Clan का वारिस घोषित कर दिया और उसे मेवाड़ का उत्तराधिकारी बना दिया | उन्होंने जालोर के मालदेव की पुत्री से विवाह किया जो दिल्ली सुल्तान के लिए चित्तोड़ Chittor पर शाषित थे | हम्मीर सिंह Hammir Singh I ने अपने ससुर को उखाड़ फेंखा और अपनी मातृभूमि पर फिर से कब्ज़ा कर लिया |

हम्मीर सिंह Hammir Singh :- मेवाड़ के महाराणा Maharana की उपाधि पाने वाले पहले शाषक थे | महाराणा खेता Maharana Kheta ने अजमेर और मांडलगढ़ को मेवाड़ में मिला लिया | महाराणा लाखा Maharana Lakha ने दिल्ली द्वारा छीने गये दुसरे प्रदेशो को भी फिर से मेवाड़ में मिलाया था और रणभूमि में मारे गये | 1433 में मेवाड़ Mewar पर मारवाड़ ने हमला कर दिया और इस बात का फायदा उठाकर 46वे महाराणा मोकाल सिंह को उसके ही चाचाओ ने मार दिया | महाराणा मोकाल Mahrana Mokal की मुत्यु के समय उनके पुत्र राणा कुम्भा Rana Kumbha की आयु मात्र 13 वर्ष थी लेकिन एक इतिहास के महत्वपूर्ण मोड़ ने उसे मेवाड Mewar के इतिहास का सबसे कम उम्र का महाराणा Maharana बना दिया |
Popular Rulers of Mewarदिल्ली के सुल्तान के लगातार आक्रमणों के बावजूद राणा कुम्भा Rana Kumbha ने हार नही मानी और मेवाड़ को बाहरी आक्रमणों से बचाए रखा | उनकी विजयी पताका को उन्होने चित्तोड़गढ़ Chittorgadh में 9 मंजिला और 37 मीटर उचे विजय स्तम्भ को बनाकर दर्शाया | जब राणा कुम्भा एकलिंग जी में शिव की आराधना कर रहे थे तब राणा कुम्भा Rana Kumbha को उनके ही पुत्र उदय सिंह प्रथम Udai Singh I ने मार दिया और खुद सिंहासन पर बैठ गया |उदय सिंह प्रथम Udai Singh I एक क्रूर शाषक था जिसे बाद में उसके भाई रायमल ने मार दिया और 1473 में रायमल सिंहासन पर बैठ गया |रायमल ने एकलिंग जी के मंदिर की मरम्मत करवाई |

राजा रायमल :- राजा रायमल Maharana Raimal के पुत्र राणा सांगा Rana Sanga और अन्य पुत्रो के बीच मतभेद हो गया और राणा सांगा Rana Sanga चित्तोड़ छोडकर चले गये | आंतरिक तनाव के चलते राजा रायमल के अन्य पुत्रो पृथ्वीराज और जयमल को मार दिया गया | ऐसे कठिन समय पर रायमल को जानकारी हुयी की राणा सांगा Rana Sanga जीवित है और छिप रहा है | राणा रायमल ने राणा सांगा Rana Sanga को बुलावा भेजा और उन्हें सिंहासन का उत्तराधिकारी बनाकर मर गये | राणा सांगा Rana Sanga ने 1527 में खानवा के युद्ध में बाबर को हराया था

राणा सांगा :- राणा सांगा Rana Sanga के बाद रतन सिंह द्वितीय Ratan Singh II महाराणा बने जो 1531 में युद्द में मारे गये जिनके स्थान पर उनके भाई विक्रमादित्य सिंह में मेवाड़ की गद्दी संभाली | विक्रमादित्य सिंह के सिंहासन पर बैठने के 6 वर्ष बाद मृत्यु हो गयी और उनके छोटे भाई महाराणा उदय सिंह द्वितीय Maharana Udai Singh II ने मेवाड़ Mewar की बागडोर संभाली | उदय सिंह द्वितीय Maharana Udai Singh II ने उदयपुर Udaipur की स्थापना की और उनके 22 पत्निया , 56 पुत्र और 22 पुत्रिया थी | उदय सिंह द्वितीय Maharana Udai Singh II की 1572 में मृत्यु हो गयी और महाराणा प्रताप Maharana Pratap ने मेवाड Mewar की गद्दी संभाली | महाराणा प्रताप Maharana Pratap ने अकबर से युद्ध करते हुए चित्तोड़ Chittor को खो दिया और मेवाड़ Mewar की राजधानी उदयपुर Udaipur प्रस्तावित कर दी|

महाराणा प्रताप की जीवनी और इतिहास :- महाराणा प्रताप Maharana Pratap की मृत्यु के बाद उनके पुत्र अमर सिंह प्रथम Amar Singh I ने जहांगीर के साथ कई युद्ध लड़े| अमर सिंह ने देवार के युद्ध में वीरता दिखाते हुए मुगल सेनापति सुल्तान खान को मार गिराया | मुगलों के साथ लगातार युद्ध करते हुए उनके काफी गाँव और मंदिर नष्ट हो गये | शाहजहा ने मेवाड़ के कई औरतो और बच्चो को अगुआ कर लिया और उन्हें मारने की धमकी दी | अंततः अमर सिंह Amar Singh I को मुगलों से संधि करनी पडी जिसकी कई शर्तो को अमर सिंह को मानना पड़ा , Rulers Of Mewar1620 में अमर सिंह Amar Singh Iकी मृत्यु के बाद उनके जयेष्ट पुत्र करण सिंह द्वितीय Karan Singh II ने राजपाट संभाला | करण सिंह द्वितीय Karan Singh II के बाद जगत सिंह प्रथम Jagat singh I महाराणा बने और उसके बाद के महाराणाओ और उनके शाषनकाल को सूची में बताया गया है | उदयपुर प्रदेश Udaipur City के अंतिम शाषक महाराणा भगवंत सिंह Maharana Bhagwant Singh थे | महाराणा भगवंत सिंह Maharana Bhagwant Singh के पुत्र महाराणा अरविन्द सिंह मेवाड़ Maharana Arvind Singh Mewar स्वंतंत्र भारत के प्रथम महाराणा बने |

महाराणा प्रताप :- महाराणा प्रताप सिंह (ज्येष्ठ शुक्ल तृतीया रविवार विक्रम संवत 1497 तदानुसार उदयपुर, मेवाड में सिसोदिया राजवंश के राजा थे। उनका नाम इतिहास में वीरता और दृढ प्रण के लिये अमर है। उन्होंने कई सालों तक मुगल सम्राट अकबर के साथ संघर्ष किया। महाराणा प्रताप सिंह ने मुगलों को कईं बार युद्ध में भी हराया। उनका जन्म राजस्थान के कुम्भलगढ़ में महाराणा उदयसिंह एवं माता राणी जयवंत कँवर के घर हुआ था। 1476 के हल्दीघाटी युद्ध में 20.000 राजपूतों को साथ लेकर राणा प्रताप ने मुगल सरदार राजा मानसिंह के 80.000 की सेना का सामना किया। शत्रु सेना से घिर चुके महाराणा प्रताप को झाला मानसिंह ने आपने प्राण दे कर बचाया ओर महाराणा को युद्ध भूमि छोड़ने के लिए बोला। शक्ति सिंह ने आपना अश्व दे कर महाराणा को बचाया। प्रिय अश्व चेतक की भी मृत्यु हुई। यह युद्ध तो केवल एक दिन चला परन्तु इसमें १७,००० लोग मारे गए। मेवाड़ को जीतने के लिये अकबर ने सभी प्रयास किये। महाराणा की हालत दिन-प्रतिदिन चिंताजनक होती चली गई । २५,००० राजपूतों को १२ साल तक चले उतना अनुदान देकर भामा शाह भी अमर हुआ।

महाराणा सांगा :- चित्तौड़गढ का दुर्ग महाराणा संग्राम सिंह या राणा सांगा मेवाड़ के राजपूत शासक थे। उन्होने २४ मई १५०९ से १५२७ तक राज्य किया। संग्राम सिंह, राणा रायमल के पुत्र थे। वे शिशोदिया वंश के राजपूत थे। मुगलों के साथ उनकी खानवा के युद्ध में पराजय हुई। उसके थोड़े दिनों के बाद उनकी मृत्यु हो गयी।

महाराणा कुम्भा :- महाराणा कुम्भा महल महराणा कुम्भा या महाराणा कुम्भकर्ण सन १४३३ से १४६८ तक मेवाड़ के राजा थे। महाराणा कुंभकर्ण का भारत के राजाओं में बहुत ऊँचा स्थान है। उनसे पूर्व राजपूत केवल अपनी स्वतंत्रता की जहाँ-तहाँ रक्षा कर सके थे। कुंभकर्ण ने मुसलमानों को अपने-अपने स्थानों पर हराकर राजपूती राजनीति को एक नया रूप दिया। इतिहास में ये ‘राणा कुंभा’ के नाम से अधिक प्रसिद्ध हैं। महाराणा कुंभा राजस्थान के शासकों में सर्वश्रेष्ठ थे। मेवाड़ के आसपास जो उद्धत राज्य थे, उन पर उन्होंने अपना आधिपत्य स्थापित किया। 35 वर्ष की अल्पायु में उनके द्वारा बनवाए गए बत्तीस दुर्गों में चित्तौड़गढ़, कुंभलगढ़, अचलगढ़ जहां सशक्त स्थापत्य में शीर्षस्थ हैं, वहीं इन पर्वत-दुर्गों में चमत्कृत करने वाले देवालय भी हैं। उनकी विजयों का गुणगान करता विश्वविख्यात विजय स्तंभ भारत की अमूल्य धरोहर है। कुंभा का इतिहास केवल युद्धों में विजय तक सीमित नहीं थी बल्कि उनकी शक्ति और संगठन क्षमता के साथ-साथ उनकी रचनात्मकता भी आश्चर्यजनक थी। ‘संगीत राज’ उनकी महान रचना है जिसे साहित्य का कीर्ति स्तंभ माना जाता है। .

जवान सिंह :- मेवाड, राजस्थान के शिशोदिया राजवंश के शासक थे।

अमर सिंह द्वितीय :- मेवाड, राजस्थान के शिशोदिया राजवंश के शासक थे।

उदयपुर :- उदयपुर राजस्थान का एक नगर एवं पर्यटन स्थल है जो अपने इतिहास, संस्कृति एवम् अपने अकर्षक स्थलों के लिये प्रसिद्ध है। इसे सन् 1559 में महाराणा उदय सिंह ने स्थापित किया था। अपनी झीलों के कारण यह शहर ‘झीलों की नगरी के नाम से भी जाना जाता है। उदयपुर शहर सिसोदिया राजवंश द्वारा ‌शासित मेवाड़ की राजधानी रहा है।

उदयपुर के सरदार सिंह :- मेवाड, राजस्थान के शिशोदिया राजवंश के शासक थे।

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