महापंडित राहुल सांकृत्यायन पुरस्कार

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महापंडित राहुल सांकृत्यायन पुरस्कार

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महापंडित राहुल सांकृत्यायन उपाधि क्या है :-
महापंडित राहुल सांकृत्यायन पुरस्कार एक भारतीय साहित्यिक सम्मान है, जो केन्द्रीय हिंदी संस्थान और मानव संसाधन विकास मंत्रालय की तरफ से हर साल खोज और अनुसंधान करने तथा यात्रा-विवरण विधा आदि के लिए दिया दो लेखकोंको दिया जाता है। इस पुरस्कार को यात्रा वृत्तांत और विश्वदर्शन के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान देने वाले हिंदी लेखक राहुल सांकृत्यायन की स्मृति में दिया जाता है।

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महापंडित राहुल सांकृत्यायन पुरस्कार की उपाधि :-
राहुल सांकृत्यायन जिन्हें महापंडित की उपाधि दी जाती है हिन्दी के एक प्रमुख साहित्यकार थे। वे एक प्रतिष्ठित बहुभाषाविद् थे और बीसवीं सदी के पूर्वार्ध में उन्होंने यात्रा वृतांत/यात्रा साहित्य तथा विश्व-दर्शन के क्षेत्र में साहित्यिक योगदान किए। वह हिंदी यात्रासहित्य के पितामह कहे जाते हैं। बौद्ध धर्म पर उनका शोध हिन्दी साहित्य में युगान्तरकारी माना जाता है, जिसके लिए उन्होंने तिब्बत से लेकर श्रीलंका तक भ्रमण किया था। इसके अलावा उन्होंने मध्य-एशिया तथा कॉकेशस भ्रमण पर भी यात्रा वृतांत लिखे जो साहित्यिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण हैं।
२१वीं सदी के इस दौर में जब संचार-क्रान्ति के साधनों ने समग्र विश्व को एक ‘ग्लोबल विलेज’ में परिवर्तित कर दिया हो एवं इण्टरनेट द्वारा ज्ञान का समूचा संसार क्षण भर में एक क्लिक पर सामने उपलब्ध हो, ऐसे में यह अनुमान लगाना कि कोई व्यक्ति दुर्लभ ग्रन्थों की खोज में हजारों मील दूर पहाड़ों व नदियों के बीच भटकने के बाद, उन ग्रन्थों को खच्चरों पर लादकर अपने देश में लाए, रोमांचक लगता है। पर ऐसे ही थे भारतीय मनीषा के अग्रणी विचारक, साम्यवादी चिन्तक, सामाजिक क्रान्ति के अग्रदूत, सार्वदेशिक दृष्टि एवं घुमक्कड़ी प्रवृत्ति के महान पुरूष राहुल सांकृत्यायन।
राहुल सांकृत्यायन के जीवन का मूलमंत्र ही घुमक्कड़ी यानी गतिशीलता रही है। घुमक्कड़ी उनके लिए वृत्ति नहीं वरन् धर्म था। आधुनिक हिन्दी साहित्य में राहुल सांकृत्यायन एक यात्राकार, इतिहासविद्, तत्वान्वेषी, युगपरिवर्तनकार साहित्यकार के रूप में जाने जाते है।

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महापंडित राहुल सांकृत्यायन पुरस्कार का आरंभिक जीवन :-
राहुल सांकृत्यायन का जन्म उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिले के पंदहा गाँव में 9 अप्रैल 1893 को हुआ था। उनके बाल्यकाल का नाम केदारनाथ पाण्डेय था। उनके पिता गोवर्धन पाण्डेय एक धार्मिक विचारों वाले किसान थे। उनकी माता कुलवंती अपने माता-पिता की अकेली पुत्री थीं। दीप चंद पाठक कुलवंती के छोटे भाई थे। वह अपने माता-पिता के साथ रहती थीं। बचपन में ही इनकी माता का देहांत हो जाने के कारण इनका पालन-पोषण इनके नाना श्री राम शरण पाठक और नानी ने किया था। 1898 में इन्हे प्राथमिक शिक्षा के लिए गाँव के ही एक मदरसे में भेजा गया। राहुल जी का विवाह बचपन में कर दिया गया। यह विवाह राहुल जी के जीवन की एक संक्रान्तिक घटना थी। जिसकी प्रतिक्रिया में राहुल जी ने किशोरावस्था में ही घर छोड़ दिया। घर से भाग कर ये एक मठ में साधु हो गए। लेकिन अपनी यायावरी स्वभाव के कारण ये वहा भी टिक नही पाये। चौदह वर्ष की अवस्था में ये कलकत्ता भाग आए। इनके मन में ज्ञान प्राप्त करने के लिए गहरा असंतोष था। इसीलिए यहाँ से वहा तक सारे भारत का भ्रमण करते रहे।

महापंडित राहुल सांकृत्यायन पुरस्कार बौद्ध -धर्म की ओर झुकाव :-
1916 तक आते-आते इनका झुकाव बौद्ध -धर्म की ओर होता गया। बौद्ध धर्म में दीक्षा लेकर, वे राहुल सांकृत्यायन बने। बौद्ध धर्म में लगाव के कारण ही ये पाली, प्राकृत, अपभ्रंश, आदि भाषाओ के सीखने की ओर झुके। 1917 की रुसी क्रांति ने राहुल जी के मन को गहरे में प्रभावित किया। वे अखिल भारतीय किसान सभा के महासचिव भी रहे। उन्होंने तिब्बत की चार बार यात्रा की और वहा से विपुल साहित्य ले कर आए। 1932 को राहुल जी यूरोप की यात्रा पर गए। 1935 में जापान, कोरिया, मंचूरिया की यात्रा की। 1937 में मास्को में यात्रा के समय भारतीय-तिब्बत विभाग की सचिव लोला येलेना से इनका प्रेम हो गया। और वे वही विवाह कर के रूस में ही रहने लगे। लेकिन किसी कारण से वे 1948 में भारत लौट आए।
राहुल जी को हिन्दी और हिमालय से बड़ा प्रेम था। वे 1950 में नैनीताल में अपना आवास बना कर रहने लगे। यहाँ पर उनका विवाह कमला सांकृत्यायन से हुआ। इसके कुछ बर्षो बाद वे दार्जिलिंग (पश्चिम बंगाल) में जाकर रहने लगे, लेकिन बाद में उन्हें मधुमेह से पीड़ित होने के कारण रूस में इलाज कराने के लिए भेजा गया। 1963 में सोवियत रूस में लगभग सात महीनो के इलाज के बाद भी उनका स्वास्थ्य ठीक नही हुआ। 14 अप्रैल 1963को उनका दार्जिलिंग (पश्चिम बंगाल) में देहांत हो गया।

महापंडित राहुल सांकृत्यायन पुरस्कार घुमक्कड़ी स्वभाव :-
ग्यारह वर्ष की उम्र में हुए अपने विवाह को नकारकर वे बता चुके थे कि उनके अंतःकरण में कहीं न कहीं विद्रोह के बीजों का वपन हुआ है। यायावरी और विद्रोह ये दोनों ही प्रवृत्तियाँ कालांतर में विकसित हो गईं, जिसके कारण पंदहा गाँव, आजमगढ़ में जन्मा यह केदारनाथ पांडेय नामक बालक देशभर में महापंडित राहुल सांकृत्यायन के नाम से प्रख्यात हो गया।
राहुल सांकृत्यायन सदैव घुमक्कड़ ही रहे। सन्‌ 1923 से उनकी विदेश यात्राओं का सिलसिला शुरू हुआ तो फिर इसका अंत उनके जीवन के साथ ही हुआ। ज्ञानार्जन के उद्देश्य से प्रेरित उनकी इन यात्राओं में श्रीलंका, तिब्बत, जापान और रूस की यात्राएँ विशेष उल्लेखनीय हैं। वे चार बार तिब्बत पहुँचे। वहाँ लम्बे समय तक रहे और भारत की उस विरासत का उद्धार किया, जो हमारे लिए अज्ञात, अलभ्य और विस्मृत हो चुकी थी।
अध्ययन-अनुसंधान की विभा के साथ वे वहाँ से प्रभूत सामग्री लेकर लौटे, जिसके कारण हिन्दी भाषा एवं साहित्य की इतिहास संबंधी कई पूर्व निर्धारित मान्यताओं एवं निष्कर्षों में परिवर्तन होना अनिवार्य हो गया। साथ ही शोध एवं अध्ययन के नए क्षितिज खुले।

महापंडित राहुल सांकृत्यायन पुरस्कार साहित्यिक रुझान :-
राहुल जी वास्तव के ज्ञान के लिए गहरे असंतोष में थे, इसी असंतोष को पूरा करने के लिए वे हमेशा तत्पर रहे। उन्होंने हिन्दी साहित्य को विपुल भण्डार दिया। उन्होंने मात्र हिन्दी साहित्य के लिए ही नही बल्कि वे भारत के कई अन्य क्षेत्रों के लिए भी उन्होंने शोध कार्य किया। वे वास्तव में महापंडित थे। राहुल जी की प्रतिभा बहुमुखी थी और वे संपन्न विचारक थे। धर्म, दर्शन, लोकसाहित्य, यात्रासहित्य, इतिहास, राजनीति, जीवनी, कोष, प्राचीन ग्रंथो का संपादन कर उन्होंने विविध क्षेत्रों में महत्वपूर्ण कार्य किया। उनकी रचनाओ में प्राचीन के प्रति आस्था, इतिहास के प्रति गौरव और वर्तमान के प्रति सधी हुई दृष्टि का समन्वय देखने को मिलता है। यह केवल राहुल जी थे, जिन्होंने प्राचीन और वर्तमान भारतीय साहित्य चिंतन को पूर्ण रूप से आत्मसात् कर मौलिक दृष्टि देने का प्रयास किया। उनके उपन्यास और कहानियाँ बिल्कुल नए दृष्टिकोण को हमारे सामने रखते हैं। तिब्बत और चीन के यात्रा काल में उन्होंने हजारों ग्रंथों का उद्धार किया और उनके सम्पादन और प्रकाशन का मार्ग प्रशस्त किया, ये ग्रन्थ पटना संग्रहालय में है। यात्रा साहित्य में महत्वपूर्ण लेखक राहुल जी रहे है। उनके यात्रा वृतांत में यात्रा में आने वाली कठिनाइयों के साथ उस जगह की प्राकृतिक सम्पदा, उसका आर्थिक और सांस्कृतिक जीवन और इतिहास अन्वेषण का तत्व समाहित होता है। “किन्नर देश की ओर”, “कुमाऊ”, “दार्जिलिंग परिचय” तथा “यात्रा के पन्ने” उनके ऐसे ही ग्रन्थ है।

महापंडित राहुल सांकृत्यायन पुरस्कार व्यक्तित्व के आयाम :-
राहुल सांकृत्यायन उन विशिष्ट साहित्य सर्जकों में हैं जिन्होंने जीवन और साहित्य दोनों को एक तरह से जिया। उनके जीवन के जितने मोड आये, वे उनकी तर्क बुद्धि के कारण आये। बचपन की परिस्थिति व अन्य सीमाओं को छोडकर उन्होंने अपने जीवन में जितनी राहों का अनुकरण किया वे सब उनके अंतर्मन की छटपटाहट के द्वारा तलाशी गई थी। जिस राह को राहुलजी ने अपनाया उसे निर्भय होकर अपनाया। वहाँ न द्विविधा थी न ही अनिश्चय का कुहासा। ज्ञान और मन की भीतरी पर्तों के स्पंदन से प्रेरित होकर उन्होंने जीवन को एक विशाल परिधि दी। उनके व्यक्तित्व के अनेक आयाम हैं। उनकी रचनात्मक प्रतिभा का विस्तार भी राहुलजी के गतिशील जीवन का ही प्रमाण है। उनके नाम के साथ जुडे हुए अनेक विशेषण हैं। शायद ही उनका नाम कभी बिना विशेषण के लिया गया हो। उनके नाम के साथ जुडे हुए कुछ शब्द हैं महापंडित, शब्द-शास्त्री, त्रिपिटकाचार्य, अन्वेषक, यायावर, कथाकार, निबंध-लेखक, आलोचक, कोशकार, अथक यात्री….. और भी जाने क्या-क्या। जो यात्रा उन्होंने अपने जीवन में की, वही यात्रा उनकी रचनाधर्मिता की भी यात्रा थी। राहुलजी के कृतियों की सूची बहुत लंबी है। उनके साहित्य को कई वर्गों में बाँटा जा सकता है। कथा साहित्य, जीवनी, पर्यटन, इतिहास दर्शन, भाषा-ज्ञान, भाषाविज्ञान, व्याकरण, कोश-निर्माण, लोकसाहित्य, पुरातत्व आदि। बहिर्जगत् की यात्राएँ और अंतर्मन के आंदोलनों का समन्वित रूप है राहुलजी का रचना-संसार। घुमक्कडी उनके बाल-जीवन से ही प्रारंभ हो गई और जिन काव्य-पंक्तियों से उन्होंने प्रेरणा ली, वे है ’’सैर कर दुनिया की गाफिल, जिंदगानी फिर कहाँ, जंदगानी गर रही तो, नौजवानी फिर कहाँ

महापंडित राहुल सांकृत्यायन पुरस्कार हिन्दी प्रेम :-
राहुल सांकृत्यायन द्वारा हिन्दी की बात उनकी अपनी कलम से।
हिन्दी को राहुलजी ने बहुत प्यार दिया। उन्हीं के अपने शब्द है, ’’मैंने नाम बदला, वेशभूषा बदली, खान-पान बदला, संप्रदाय बदला लेकिन हिन्दी के संबंध में मैंने विचारों में कोई परिवर्तन नहीं किया।‘‘ राहुलजी के विचार आज बेहद प्रासंगिक हैं। उनकी उक्तियाँ सूत्र-रूप में हमारा मार्गदर्शन करती हैं। हिन्दी को खड़ी बोली का नाम भी राहुल जी ने ही दिया था।
हिंदी अंग्रेजी के बाद दुनिया के अधिक संख्यावाले लोगों की भाषा है। इसका साहित्य 750 इसवी से शुरू होता है और सरहपा, कन्हापा, गोरखनाथ, चन्द्र, कबीर, जायसी, सूर, तुलसी, बिहारी, हरिश्चंद्र, जैसे कवि और लल्लूलाल, प्रेमचंद जैसे प्रलेखक दिए हैं इसका भविष्य अत्यंत उज्जवल, भूत से भी अधिक प्रशस्त है। हिंदी भाषी लोग भूत से ही नहीं आज भी सब से अधिक प्रवास निरत जाति हैं। गायना (दक्षिण अमेरिका), फिजी, मर्शेस, दक्षिण अफ्रीका, तक लाखों की संख्या में आज भी हिंदी भाषा भाषी फैले हुए हैं।

महापंडित राहुल सांकृत्यायन पुरस्कार व सम्मान :-
राहुल सांकृत्यायन पर जारी डाक टिकट।
राहुल सांकृत्यायन की स्मृति में भारतीय डाकतार विभाग की ओर से 1993 में उनकी जन्मशती के अवसर पर 100पैसे मूल्य का एक डाक टिकट जारी किया गया। पटना में राहुल सांकृत्यायन साहित्य संस्थान की स्थापना की गई है। यहाँ उनसे संबंधित वस्तुओं का एक संग्रहालय भी है। उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिले के पंदहा गाँव में राहुल सांकृत्यायन साहित्य संग्रहालय की स्थापना की गई है, जहाँ उनका जन्म हुआ था। वहाँ उनकी एक वक्षप्रतिमा भी है। साहित्यकार प्रभाकर मावचे ने राहुलजी की जीवनी लिखी है और उनके व्यक्तित्व के उस हिस्से को उजागर किया है, जिससे लोग अनभिज्ञ थे। यह पुस्तक 1978 में पहली बार प्रकाशित हुई थी। इसका अनुवाद अंग्रेज़ी, रूसी आदि अनेक विदेशी भाषाओं में भी प्रकाशित हुआ। राहुलजी की कई पुस्तकों के अंग्रेज़ी रूपांतर तो हुए ही हैं, चीनी, रूसी आदि अनेक विदेशी भाषाओं में भी उनकी कृतियां लोकप्रिय हुई हैं। उन्हें 1958 में साहित्य अकादमी पुरस्कार, तथा 1936 में भारत सरकार के पद्मभूषण अलंकरण से विभूषित किया गया।

महापंडित राहुल सांकृत्यायन पुरस्कार राहुल का संघर्ष (पुस्तक) :-
महापंडित राहुल सांकृत्यायन को लेकर समय-समय पर काफी लिखा जाता रहा है। फलस्वरूप पढ़ने की दृष्टि से उन पर पर्याप्त सामग्री उपलब्ध है, किंतु श्रीनिवास शर्मा की पुस्तक ‘राहुल का संघर्ष’ एक पृथक कोण पर केंद्रित है। यह कोण है राहुलजी के जीवन एवं कार्यों में अविच्छिन्न संघर्ष की धारा का प्रवाहमान रहना।
पुस्तक में लेखक के अठारह (उपसंहार सहित) निबंध संकलित हैं। इनमें प्रथम चार का संबंध राहुलजी की कुल परंपरा, उनके माता-पिता, उनके प्रथम विवाह एवं उनके किशोर मन में मौजूद अस्वीकार एवं विद्रोह की मुद्रा से है। आगे आने वाले निबंधों में उनके घुमक्कड़ स्वभाव, भाषा, साहित्य तथा ज्ञान के अन्य क्षेत्रों में उनकी खोजों एवं उपलब्धियों, बौद्ध धर्म तथा दर्शन के प्रति उनके झुकाव तथा दीक्षा, मार्क्सवाद, किसान आंदोलन आदि को लेकर व्यापक चर्चा हुई है।

महापंडित राहुल सांकृत्यायन पुरस्कार विवाह और अंतिम समय :-
राहुल सांकृत्यायन ने अपने जीवन में तीन शादियां की थी। पहली शादी बचपन में हो गई। उनकी पत्नी का नाम संतोषी देवी था, जिनसे वे अपने जीवन काल में एक बार मिले थें |
जब वे रूस में 1937-38 ई. में लेनिनग्राद यूनिवर्सिटी में पढ़ाने के लिए गये थे, उस दौरान उनकी मुलाकात लोला येलेना से हुई। दोनों में प्रेम हुआ और शादी हुई। वहीं उनके बड़े बेटे इगोर का जन्म हुआ।
जब वो भारत लौटे, तो उनकी पत्नी और बेटा वहीं रह गए।
जीवन के आखिरी दौर में उनकी शादी डॉ. कमला से हुई। उनसे तीन संतान हुईं। एक बेटी और दो बेटे।
अपने जीवन काल में कम शिक्षित होने के बाद भी उस मुकाम पर पहुंच गये की वे एक मील का पत्थर बन गए। ऐसे मानुष का 70 साल की अवस्था में 14 अप्रैल, 1963 को दार्जिलिंग में निधन हो गया।

महापंडित राहुल सांकृत्यायन पुरस्कार उनकी कुछ और किताबे :-
मानसिक गुलामी
ऋग्वेदिक आर्य
घुमक्कड़ शास्त्र
किन्नर देश में
दर्शन दिग्दर्शन
दक्खिनी हिंदी का व्याकरण
पुरातत्व निबंधावली
मानव समाज
मध्य एशिया का इतिहास
साम्यवाद ही क्यों

महापंडित राहुल सांकृत्यायन पुरस्कार कहानियाँ :-
सतमी के बच्चे
वोल्गा से गंगा
बहुरंगी मधुपुरी
कनैला की कथा

महापंडित राहुल सांकृत्यायन पुरस्कार उपन्यास :-
बाईसवीं सदी
जीने के लिए
सिंह सेनापति
जय यौधेय
भागो नहीं, दुनिया को बदलो
मधुर स्वप्न
राजस्थान निवास
विस्मृत यात्री
दिवोदास

महापंडित राहुल सांकृत्यायन पुरस्कार आत्मकथा :-
मेरी जीवन यात्रा
जीवनियाँ
सरदार पृथ्वीसिंह
नए भारत के नए नेता
बचपन की स्मृतियाँ
अतीत से वर्तमान
स्तालिन
लेनिन
कार्ल मार्क्स
माओ-त्से-तुंग
घुमक्कड़ स्वामी
मेरे असहयोग के साथी
जिनका मैं कृतज्ञ
वीर चन्द्रसिंह गढ़वाली
सिंहल घुमक्कड़ जयवर्धन
कप्तान लाल
सिंहल के वीर पुरुष
महामानव बुद्ध

महापंडित राहुल सांकृत्यायन पुरस्कार यात्रा साहित्य :-
लंका
जापान
इरान
किन्नर देश की ओर
चीन में क्या देखा
मेरी लद्दाख यात्रा
मेरी तिब्बत यात्रा
तिब्बत में सवा वर्ष
रूस में पच्चीस मास
विश्व की रूपरेखा

महापंडित राहुल सांकृत्यायन पुरस्कार किस क्षेत्र में दिया जाता है :-
महापंडित राहुल सांकृत्यायन पुरस्कार’ केंद्रीय हिंदी संस्थान, मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा यात्रा वृत्तांत और विश्वदर्शन आदि के क्षेत्र में बहुमूल्य योगदान देने वाले और ख्याति प्राप्त ‘राहुल सांकृत्यायन’ की स्मृति में प्रदान किया जाता है। इस पुरस्कार की शुरुआत सन 1993 से की गई थी। यह पुरस्कार हिंदी में खोज और अनुसंधान करने तथा यात्रा-विवरण विधा आदि के लिए दिया जाता है। प्रतिवर्ष दो लोगों को इस पुरस्कार के लिए चुना जाता है। वर्तमान समय तक केंद्रीय हिंदी संस्थान द्वारा प्रदत्त महापण्डित राहुल सांकृत्यायन पुरस्कृत विद्वान सूची निम्नवत है

महापंडित राहुल सांकृत्यायन पुरस्कार तुलसी भवन में :-
सिंहभूम जिला हिन्दी साहित्य सम्मेलन की ओर से रविवार को तुलसी भवन में महापंडित राहुल सांकृत्यायन जयंती मनाई गई।
कथा मंजरी गोष्ठी में सरोज कुमार सिंह ‘मधुप ने राहुल सांकृत्यायन के रचना धर्म और साहित्यिक योगदान की चर्चा की। शकुंतला शर्मा ने साहित्य में विशिष्टता का जिक्र किया। डॉ. नर्मदेश्वर पांडेय की अध्यक्षता में 14 कहानियों का पाठ किया गया। अमित रंजन पांडेय, सुष्मिता पाठक, सुरेश चंद्र झा, अरुणा भूषण, अरुण अलबेला, शकुंतला शर्मा, नीता चौधरी, माधुरी मिश्र, कन्हैया लाल, आनंद पाठक, सरिता सिंह, संध्या सिन्हा एवं मनोकामना सिंह अजय ने कथावाचन किया। संचालन कैलाश गाजीपुरी ने किया।

महापंडित राहुल सांकृत्यायन पुरस्कार से सम्मानित विद्वानों की सूची :-
वर्ष 1993
डॉ. (श्रीमती) कमला सांकृत्यायन डॉ. श्यामसिंह राशि
वर्ष 1994
श्री शंकर दयाल सिंह डॉ. विश्वनाथ अय्यर
वर्ष 1995
श्री विष्णु प्रभाकर डॉ राजेन्द्र अवस्थी
वर्ष 1996
डॉ. सुश्री प्रभा खेतान डॉ. चन्द्रकांत महादेव बांदिवडेकर
वर्ष 1997
डॉ. रामेश्वर दयाल दुबे श्री कटील गणपति शर्मा
वर्ष 1998
डॉ. राजमल बोरा स्व. डॉ. नागेन्द्रनाथ उपाध्याय
वर्ष 1999
स्व. डॉ. शशिप्रभा शास्त्री डॉ. सीतेश आलोक
वर्ष 2000
स्व. श्री शैलेश मटियानी डॉ. वी. गोविन्द शेनाय
वर्ष 2001
डॉ कमल किशोर गोयनका डॉ. विवेकी राय
वर्ष 2002
डॉ रामदरश मिश्र डॉ. एस. तकंमणि अम्मा
वर्ष 2003
श्री कृष्णनाथ मिश्र श्री दिनेश्वर प्रसाद
वर्ष 2004
श्री अमृतलाल बेगड़ श्री वीरेंद्र कुमार बरनवाल
वर्ष 2005
श्री भगवान सिंह डॉ. रमेश चंद्रशाह
वर्ष 2006
डॉ. साधना सक्सैना प्रो. शेखर पाठक
वर्ष 2007
डॉ. पूरनचंद्र जोशी श्री हरिराम मीणा
वर्ष 2008
प्रो. गोपाल राय डॉ. विमलेश कांति वर्मा
वर्ष 2009
प्रो. हरिमोहन डॉ. विक्रम सिंह
वर्ष 2010
डॉ. परमानंद पांचाल प्रो. रघुवीर चौधरी
वर्ष 2011
प्रो. असग़र वज़ाहत श्री वेद राही |

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