ज्वालामुखी द्वारा निर्मित भू-आकृतियाँ

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ज्वालामुखी द्वारा निर्मित भू-आकृतियाँ

ज्वालामुखी द्वारा निर्मित स्थालाकृतियों को दो भागों में बाँटा जाता है :-
1.) वाह्य स्थलाकृतियां
क) शंकु – इसके प्रमुख प्रकार हैं-
i) सिण्डर शंकु – ज्वालामुखी द्वारा उद्गारित राख, धूल, विखंडित पदार्थों से बना शंकु, उदाहरण मैक्सिको का ओरल्लो, फिलीपींस का केमिग्विन ज्वालामुखी का शंकु।
ii) कम्पोजिट शंकु – ये सार्वजनिक ऊँचे और विस्तृत शंकु होते हैं, उदाहरण, सस्ता, रेनिडियर व हुड (यू. एस. ए.), फ्यूजीनामा (जापान)।
iii) बेसिक लावा शंकु – बेसाल्टिक लावा से निर्मित चौड़ा, कम ऊँचा, छिछला शंकु, उदाहरण, हवाई द्वीप के शंकु।
iv) एसिड लावा शंकु – सिलिका प्रधान लावा से निर्मित ऊँचा और तीव्र ढलान वाला शंकु उदाहरण, स्ट्राम्बोली।
v) लावा डाट – उदाहरण, ब्लैक हिल एवं डेविल टावर।
vi) लावा गुंबद, लेसेन ज्वालामुखी (अमेरिका), पेली पर्वत (मार्टिनिक द्वीप)।

ख) ज्वालामुखी द्वारा निर्मित क्रेटर :- ज्वालामुखी छिद्र के ऊपर स्थित कीपाकार गर्त को क्रेटर कहते हैं। एक क्रेटर का औसत विस्तार 1000 फीट और गहराई 1000 फीट तक होती है। अलास्का का एनिया कचक ज्वालामुखी का क्रेटर 6 मील लंबा और 3000 फीट ऊँचा है

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ज्वालामुखी द्वारा निर्मित काल्डेरा :- काल्डेरा क्रेटर का ही आर्थिक विस्तृत रूप है। इसका औसत आकार कढ़ाईनुमा होता है। काल्डेरा के तली का व्यास 6 मील और ऊँचाई 4000 फीट तक होती हैं। कई बार विस्तृत काल्डेरा के अंदर पुन: ज्वालामुखी उद्गार होते हैं एवं अन्य छोटे काल्डेरा के निर्माण से घोसलेदार काल्डेरा बन जाता है, क्रेटर और कालडेरा में जब जल भर जाता है तो झील के रूप में परिवर्तित हो जाते हैं। महाराष्ट्र की लोनार झील तथा राजस्थान की पुष्कर ऐसे ही झीलों के उदाहरण हैं।

ग) दरादी उद्गार से निर्मित आकृति :-
i) लावा पठार और गुंबद – दरारी उद्भेदन के बाद बेसाल्ट लावा विस्तृत मात्रा में क्षैतिज रूप से फैलकर एक के ऊपर दूसरी तहों के रूप में जमकर लावा पठार और लावा गुंबद का निर्माण करते हैं। ब्राजील का पठार, कोलंबिया का पठार इसके प्रमुख उदाहरण हैं।
ii) लावा मैदान – जब लावा का प्रवाह एक चादर के रूप में और कम ऊँचाई में होता है, तो लावा मैदान बनता है।
iii) मेसा एवं बुटी – लावा प्रवाह वाले क्षेत्रों में अपरदनकारी शक्तियों द्वारा निर्मित मेजनुमा ऊपरी सतह वाली आकृति मेसा कहलाती है।

2.) अभ्यांतरित स्थलाकृतियां :- जब ज्वालामुखी उद्गार के समय लावा पृथ्वी के आंतरिक भाग में हीं जम जाता है, तो इस प्रकार की आकृतियों का निर्माण होता है। ये आकृतियां हैं : (i) सिल और सिट (ii) डाइक (iii) बेथोलिक (iv) लैकोलिथ (v) लेपोलिथ (vi) फैकोलिथ आदि का निर्माण होता है।

3.) अन्य आकृतियां :-
क) गेसर :- गर्म जल के स्रोत जिनके मुख से निरंतर रूप से समय-समय पर गर्म जल के फुहारे और वाष्प छूटती रहती है, गेसर कहलाते हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका के यलोस्टोन पार्क स्थित ओल्डफेथफुल गेसर एवं एक्सेलियर गेसर प्रसिद्ध हैं |
ख) धुँआरे :- यह ज्वालामुखी आकृति से संबंधित छिद्र होता है जिससे निरंतर गैस तथा वाष्प निकलता है। विश्व के प्रसिद्ध धुँआरों में अलास्का के कटमई ज्वालामुखी क्षेत्र की दस सहस्त्र धूम्र घाटी, ईरान का कोहन्सुलतान, धुंआरा तथा न्यूजीलैंड का ह्वाइट टापू का धुंआरा प्रसिद्ध है। धुंआरे ज्वालामुखी की सक्रियता के अंतिम लक्षण माने जाते हैं |

ज्वालामुखी के महत्त्वपूर्ण तथ्य :- आस्ट्रेलिया महाद्वीप में एक भी ज्वालामुखी नहीं है। ज्वालामुखी उद्गार के समय सर्वप्रथम गैसें और जलवाष्प क्रस्ट तोड़कर बाहर जाती हैं। इनमें जलवाष्प की मात्रा 70-90 होती है।
ज्वालामुखी उद्गार के समय नि:सृत प्रमुख ठोस पदार्थ निम्नवत हैं :
i) बैम्ब- बड़े चट्टानी टुकड़े, (ii) टफ- धूल के कणों और राख के घमी भवन से बने टुकड़े, (iii) प्यूमिस- लावा झान के ठंडे होने पर बने छोटे-छोटे चट्टानी टुकड़े, (iv) ब्रेसिया- कोण वाले अपेक्षाकृत बड़े आकार के टुकड़े, (v) लोपिली एवं स्कोरिया- मटर के दाने से लेकर अखरोट के आकर वाले टुकड़े।
हल्के पीले, लाल अत्यंत गाढ़े द्रव के रूप में अत्यधिक तापमान पर पिघलने वाला लावा अम्ल प्रधान या एसिड लावा के नाम से जाना जाता है। गहरे काले रंग वाला अधिक भार तथा पतले द्रव के रूप में स्थित लावा को बेसिक लावा कहते हैं। यह पतला होने के कारण धरातल पर शीघ्रता से फैलकर बैठता है। जब ज्वालामुखी से राख एवं लावा का निकलना बंद हो जाता है एवं इसके बाद भी निरंतर विभिन्न तरह की वाष्प एवं गैसें निकलती रहती हैं तो उसे ‘सोल्फतारा’ कहते हैं। वास्तव में यह गंधकीय धुंआरा है। स्ट्राम्बोली से सदैव प्रज्वलित गैसें निकलती रहती हैं, अत: इसे भूमध्य सागर का ‘प्रकाश स्तम्भ’ कहते हैं।
सबसे अधिक सक्रिय ज्वालामुखी अमेरिका एवं एशिया महाद्वीपों के तटीय क्षेत्रों में पाये जाते हैं। विश्व में सर्वाधिक ऊँचाई पर स्थित सक्रिय ज्वालामुखी की ‘ओजसडेलसलाडो’ (6,885 मी.) एंडीज पर्वतमाला में अर्जेंटीना एवं चिली की सीमा पर स्थित है। वर्तमान समय में विश्व में सबसे ऊँचा ज्वालामुखी पर्वत माउंट कोटोपैक्सी (19,617 फीट) है। यह इक्वेडोर में है। पश्चिम अफ्रिका का एकमात्र सक्रिय ज्वालामुखी माउंट कैमरून है।
विसुवियत ज्वालामुखी (इटली) के विस्फोट से पोम्फीआई, पाम्फर हरक्यूलेनियन एवं स्टेबी नगर पूर्णत: नष्ट हो गये थे। अंटार्कटिका महाद्वीप का एक मात्र सक्रिय ज्वालामुखी माउंट इरेबस है। परिप्रशांत महासागरीय पेटी के अधिकांश ज्वालामुखी शृंखलाबद्ध रूप में पाये जाते हैं। विश्व के सर्वाधिक ऊँचाई पर स्थित मृत ज्वालामुखी एकांकगुआ है, जो एंडीज पर्वतमाला पर है। इसकी ऊँचाई 6,960 मी. है। दक्षिणी अमेरिका एवं अफ्रिका महाद्वीप में (ओगोर्स के अलावा) गेसर नहीं पाये जाते हैं। ज्वालामुखियों का व्यापक विस्तार विनाशात्मक प्लेट के किनारों के सहारे पाया जाता है।

ज्वालामुखी के लाभ :- ज्वालामुखी विध्वंशक होने के साथ-साथ लाभकारी भी होते हैं। जैसे-
1.) ज्वालामुखी के उद्गार के समय झीलों का निर्माण होता है। जो जलस्रोत संचय करती है। फलस्वरुप आर्थिक लाभ होता है।
2.) ज्वालामुखी के चारों ओर काफी बड़े क्षेत्र में राख के जमा होने से मिट्टी काफी उपजाऊ हो जाती है। फलस्वरूप, फसलें काफी अच्छी होती हैं।
3.) ज्वालामुखी से पठारों की शृंखला का निर्माण होता है जिसके पत्थर से मकान, पुल, सड़कें आदि का निर्माण होता है।
4.) ज्वालामुखी से पर्वत समूहों का निर्माण होता है। फलस्वरूप, पेड़-पौधे अपने आप हरियाली बनाते हैं। वातावरण को साफ करते हैं। औषधीय एवं फर्नीचर आदि बनाने में उपयोगी होते हैं।
5.) ज्वालामुखी द्वारा कुछ भू-आकृतियां इतनी अच्छी बनती हैं जिसे पिकनिक स्थल बनाकर काफी आर्थिक लाभ होता है।
6.) ज्वालामुखी से सभी प्रकार के धातुओं का निर्माण होता है।
7.) दक्षिणी अफ्रिका का किम्बरलाइट चट्टान जिसमें विश्व का अधिकतम हीरा पाया जाता है वह भी ज्वालामुखी से ही बना है।
8.) ज्वालामुखी द्वारा उत्पन्न सैडल-रीफ में सोना अत्यधिक मात्रा में मिलता है।
9.) ज्वालामुखी द्वारा उत्पन्न डाईक चट्टान द्वारा आज बड़े-बड़े लोगों के महल बन रहे हैं जो काफी महँगा होता है।
10.) गेजर एवं धुंआरे द्वारा हमेशा गर्म जल से काफी देशों में बिजली निर्माण होती है। तरण-तारण का निर्माण होता है तथा मछली पालन होता है। धुंआरे से भी बिजली एवं कई देशों में भवन गर्म करने के काम आता है।

ज्वालामुखी के कुप्रभाव :-
1.) जन, धन आदि की अत्यधिक हानि होती है।
2.) ज्वालामुखी द्वारा निकले धुएँ से चारों तरफ वातावरण प्रदूषित होता है। आवागमन के साधन अस्त-व्यस्त हो जाते हैं। मकान, जंगल जलकर नष्ट हो जाते हैं।
3.) भूकम्प की तरह ही ज्वालामुखी की भविष्यवाणी नहीं हो पाती है। पर ज्वालामुखी प्राय: ऑफ फायर में ही ज्यादा आते हैं एवं अपने पहले स्थान पर ही पुन: आते रहते हैं।

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