जलमंडल क्या किया है , जलमंडल का निर्माण कैसे हुआ

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जलमंडल से सबंधित :- पूरे सौरमंडल में पृथ्वी ही एकमात्र ऐसा ग्रह है जिस पर भारी मात्रा में जल उपस्थित है। यह एक ऐसा तथ्य है जो पृथ्वी को अन्य ग्रहों से विशिष्ट बनाता है। पृथ्वी के समस्त जीव मिलकर जैवमंडल का निर्माण करते हैं। ऐसा विश्वास किया जाता है कि बायोमंडल का विकास लगभग 3.5 अरब वर्ष पूर्व शुरू हुआ था।
जलमंडल क्या किया है
जलमंडल क्या किया है :- पूरे सौरमंडल में पृथ्वी ही एकमात्र ऐसा ग्रह है जिस पर भारी मात्रा में जल उपस्थित है। यह एक ऐसा तथ्य है जो पृथ्वी को अन्य ग्रहों से विशिष्ट बनाता है। पृथ्वी के धरातल के लगभग 70 फीसदी भाग को घेरे हुई जल राशियों को जलमंडल कहा जाता है। जल मंडल में मुख्य रूप से महासागर शामिल हैं लेकिन तकनीकी रूप से इसमें पृथ्वी की संपूर्ण जलराशि शामिल है जिसमें आंतरिक समुद्र, झील, नदियां और 2 किमी. की गहराई तक पाया जाने वाला भूमिजल शामिल हैं। महासागरों की औसत गहराई 4 किमी. है। विश्व के महासागरों का कुल आयतन लगभग 1.4 बिलियन घन किमी. है। पृथ्वी पर उपस्थित कुल जल राशि का 97.5 फीसदी महासागरों के अंतर्गत आता है। जबकि बाकी 2.5 फीसदी ताजे जल के रूप में है। ताजे जल में भी लगभग 68.7 फीसदी जल बर्फ के रूप में है।समुद्री जल में औसत लवणता लगभग 34.5 प्रति हजार होती है अर्थात 1 किग्रा. जल में 34.5 ग्राम लवण उपस्थित होता है। महासागर घुली हुई वातावरणीय गैसौं के भी बहुत बड़े भंडार होते हैं। यह गैसें समुद्री जीवों के जीवन के लिए अत्यन्त महत्वपूर्ण हैं। समुद्री जल का विश्व के मौसम पर बहुत ही महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। महासागर विशाल ऊष्मा भंडार के रूप में कार्य करते हैं। महासागरीय तापमान वितरण में परिवर्तन से जलवायु पर बहुत बड़ा असर पड़ता है। उदाहरणस्वरूप, अल-नीनो।
जलमंडल क्या किया है
जलमंडल में चुम्बकीय क्षेत्र :- पृथ्वी का चुम्बकीय क्षेत्र एक चुम्बकीय द्विध्रुव के आकार का है और वर्तमान में यह लगभग ग्रह के भौगोलिक धु्रवों पर ही स्थित है। डायनमो सिद्धांत के अनुसार, चुम्बकीय क्षेत्र का उद्भव पिघले हुए बाहरी क्रोड के अंदर ही होता है, जहां ऊष्मा संवहन धाराएं पैदा करती है जिससे विद्युत धारा पैदा होती है। इसी से पृथ्वी का चुम्बकीय क्षेत्र पैदा होता है। करोड़ों साल के अंतर में इस चुम्बकीय क्षेत्र में दिशा परिवर्तन होता है। चुम्बकीय क्षेत्र की वजह से चुम्बकीय मंडल पैदा होता है जो सौर तूफान के उत्पन्न होने पर कॉस्मिक किरणों को पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश नहीं करने देता है। इसी वजह से चुम्बकीय क्षेत्र व सौर पवन मिलकर वान एलेन पट्टिका का निर्माण करते हैं। जब सौर पवन के कण जिन्हें प्लाज्मा भी कहते हैं, चुम्बकीय ध्रुवों में पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करते हैं तो इससे ध्रुवीय ज्योति का निर्माण होता है, जैवमण्डल पृथ्वी के चारों तरफ व्याप्त ३0 किमी मोटी वायु, जल, स्थल, मृदा, तथा शैल युक्त एक जीवनदायी परत होती है, जिसके अंतर्गत पादपों एवं जन्तुओं का जीवन सम्भव होता है। सामान्यतः जैवमण्डल में पृथ्वी के हर उस अंग का समावेश है जहाँ जीवन पनपता है, यह लेख एक आधार है। जानकारी जोड़कर इसे बढ़ाने में विकिपीडिया की मदद करें, जैव मंडल पृथ्वी के उस परिवेश को कहा जाता है जहां पर जीवन के पाए जाने की संभावना हो । अर्थात पृथ्वी के धरातल से लेकर बहिर्मण्डल वातावरण को जैवमंडल कहा जाता हैं। जैवमण्डल में मुख्य रूप से 3 मण्डल सम्मलित होते है। स्थलमण्डल, वायुमण्डल और
जलमंडल क्या किया है
जलमंडल के तत्व :- भूगोल पृथ्वी तत्व का विज्ञान है। भूगोल तथ्यों के अंतर संबंधों का वगज्ञान है। भूगोल प्रादर्शिक विशिष्टता का निरूपण है, जैवमंडल के अन्तर्गत समस्त प्राणीजगत (जन्तु और पोधे) जन्म लेता है और विकसित होता है
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पृथ्वी के धरातल के लगभग 70 फीसदी भाग को घेरे हुई जल राशियों को जलमंडल कहा जाता है। पूरे सौरमंडल में पृथ्वी ही एकमात्र ऐसा ग्रह है जिस पर बहुत मात्रा में जल उपस्थित है। यह एक ऐसा तथ्य है जो पृथ्वी को अन्य ग्रहों से विशिष्ट बनाता है। पर्यावरणीय संघटको में जल का महत्त्वपूर्ण स्थान है क्योंकि इसके बिना किसी भी जीव का अस्तित्व संभव नहीं है। जलमण्डल से तात्पर्य जल की उस परत से है जो पृथ्वी की सतह पर महासागरों, झीलों, नदियों तथा अन्य जलाशयों के रूप में फैली है। पृथ्वी की सतह के सम्पूर्ण क्षेत्रफल के 71 प्रतिशत भाग में जल का विस्तार है, इसलिए पृथ्वी को जलीय ग्रह भी कहते हैं।

जलमंडल के अनुसार :- एक अनुमान के अनुसार पृथ्वी पर लगभग 1360 मिलियन क्यूबिक कि.मी. जल है। इसका 97 प्रतिशत अर्थात् 1320 क्यूबिक कि.मी. जल अकेले महासागरों में है। लगभग 30 मिलियन क्यूबिक कि.मी. अंटार्कटिका एवं ग्रीनलैंड में है। लगभग 9 मिलियन क्यूबिक कि.मी. अर्थात् सम्पूर्ण जल का एक प्रतिशत भाग भूमिगत जल के रूप में है। शेष जल नदियों, झीलों तथा अन्तर्देशीय समुद्र में और जल वाष्प के रूप में है।

महासागर का जल :-
1.) सागरीय जल का संगठन
2.) लवण के प्रकार लवण की मात्रा (ग्राम प्रति किलोग्राम) प्रतिशत
3.) सोडियम क्लोराइड 27.213 77.8
4.) मैग्नीशियम क्लोराइड 38.7 10.9
5.) मैग्नीशियम सल्फेट 1.658 4.7
6.) कैल्शियम सल्फेट 1.260 3.6
7.) पोटेशियम सल्फेट 0.863 2.5
8.) कैल्शियम कार्बोनेट 0.123 0.3
9.) मैग्नीशियम ब्रोमाइड 0.076 0.2
जल मंडल में मुख्य रूप से महासागर शामिल है लेकिन तकनीकी रूप से इसमें पृथ्वी की संपूर्ण जलराशि शामिल है जिसमें आंतरिक समुद्र, झील, नदियां और 2 कि.मी. की गहराई तक पाया जाने वाला भूमितल शामिल है। महासागरों की औसत गहराई 4 कि.मी. है। विश्व के महासागरों का कुल आयतन लगभग 1.4 बिलियन घन कि.मी. है। पृथ्वी पर उपस्थित कुल जल राशि का 97.5 फीसदी महासागरों के अंतर्गत आता है। जबकि बाकी 2.5 फीसदी ताजे जल के रूप में है। ताजे जल में भी लगभग 68.7 फीसदी जल बर्फ के रूप में है। महासागरों के जल में लवण की मात्रा भू-पृष्ठीय जल तथा भूमिगत जल की अपेक्षा अधिक होती है। जल की लवणता से तात्पर्य लवण की मात्रा से है जो जल में घुली होती है।

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समुद्र का जल :- समुद्री जल में औसत लवणता लगभग 34.5 प्रति हज़ार होती है अर्थात् 1 कि.ग्रा. जल में 34.5 ग्राम लवण उपस्थित होता है। महासागर घुली हुई वातावरणीय गैसों के भी बहुत बड़े भंडार होते हैं। यह गैसें समुद्री जीवों के जीवन के लिए अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। समुद्री जल का विश्व के मौसम पर बहुत ही महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। महासागर विशाल ऊष्मा भंडार के रूप में कार्य करते हैं। महासागरीय तापमान वितरण में परिवर्तन से जलवायु पर बहुत बड़ा असर पड़ता है। समुद्री जल की औसतन लवणता 35 ग्राम प्रति घन मीटर होती है। उष्ण कटिबंधीय प्रदेशों में लवणता औसत से अधिक होती है। विभिन्न प्रकार के जीवों की उत्पत्ति के लिए महासागरों के खारे पानी में आदर्श दशाएं रही हैं ऐसा माना जाता है कि जीवों की उत्पत्ति सबसे पहले सागरों में हुई।

वाष्पीकरण :- जल गर्म होकर वाष्प में परिवर्तित हो जाता है। वाष्पीकरण की यह प्रक्रिया निरंतर नहीं चल सकती क्योंकि वायुमण्डल जलवाष्प की एक निश्चित मात्रा को ही अवशोषित कर सकता है। वायु की जलवाष्प ग्रहण करने की सीमा को संतृप्त अवस्था कहते है। गर्म वायु शीतल वायु की अपेक्षा अधिक जलवाष्प ग्रहण कर सकती है। वायुमण्डल में विद्यमान जलवाष्प की मात्रा की माप आर्द्रता से की जाती है। वायु के इकाई आयतन में मौजूद जल वाष्प की मात्रा निरपेक्ष आर्द्रता कहलाती है, जो ग्राम घन मीटर में व्यक्त की जाती है। व्यवहार में आपेक्षित आर्द्रता की माप उपयोगी है। आपेक्षित आर्द्रता वह अनुपात है जो वायुमण्डल को संतृप्त करने के लिए आवश्यक जलवाष्प की मात्रा के बीच होता है। इसे प्रतिशत में व्यक्त किया जाता है। 20 डिग्री सेल्सियस ताप पर एक घन मीटर वायु अधिक से अधिक 17 ग्राम जलवाष्प ग्रहण कर सकती है। यदि जलवाष्प की मात्रा साढ़े आठ ग्राम है तो आपेक्षित आर्द्रता 50 प्रतिशत होगी। जलवाष्प की मात्रा बढ़ जाने अथवा तापमान घटने से आपेक्षित आर्द्रता बढ़ जाती है। जिस तापमान पर वायु संतृप्त होती है, उसे ओसांक कहते हैं।

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