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बीकानेर का राठौड़ वंश
राव बीका :- राव बीका जोकि राव जोधा का पांचवां पुत्र था, ने 1488 ई. में बीकानेर नगर बसाया। 1465 ई. में जोधपुर के संस्थापक राव जोधा के पांचवे पुत्र बीका ने बीकानेर के राठौड़ वंश की नीव रखी। 1488 ई. में राती घाटी नामक स्थान पर बीकानेर की स्थापना कर उसे अपनी राजधानी बनाया।
राव लूणकरण (1505 -1525 ई.) :- राव बीका के पश्चात् लूणकरण शासक बना अत्यधिक दानी प्रवृति का होने के कारण उसे कलियुग का कर्ण भी कहा जाता है। इसने लूण-करणसर की स्थापना की, बीठू सूजा ने राव जैतसी रो छंद नमक ग्रन्थ में लूणकरण को कलयुग का कर्ण बताया।
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राव जैतसी (1526 -1542 ई.) :- लूणकरण के पश्चात् राव जैतसी बीकानेर का शासक था, बाबर के पुत्र कामरान ने 1534 में बीकानेर पर कब्ज़ा कर लिया किसे राव जैतसी ने पुनः जीता, खानवा के युद्ध में राणा सांगा की सहायता के लिए राव जैतसी ने अपने पुत्र कल्याणमल को भेजा, जैतसी की पाहोबा के युद्ध में राव मालदेव से हार हुई एवं मृत्यु हो गयी।
राव कल्याणमल (1544 – 1574 ई.) :- जैतसी के पुत्र कल्याणमल ने पहले शेरशाह सूरी की अधिनता स्वीकार की और उसके बाद 1570 ई. में राव कल्याणमल एवं उसके पुत्र रायसिंह ने स्वयं नागौर के दरबार में अकबर की अधीनता स्वीकार कर ली। राव कल्याणमल दो पुत्र थे।
रायसिंह राठौड़ (1574-1612 ई.) :- पृथ्वीसिंह राठौड़ अकबर का दरबारी कवि पृथ्वीसिंह राठौड़ को अकबर ने गागरोन (झालावाड़) का दुर्ग उपहारस्वरूप दिया। पृथ्वीराज राठौड ने “डिंगल शैली में बैली किशन रूकमणी री” ग्रन्थ की रचना की। इसका विवाह राणा प्रताप की भतीजी किरण देवी से हुआ, सम्राट अकबर ने रायसिंह के नेतृत्व में 1574 ई. में सिवाणा गढ़ पर अधिकार करने हेतु भेजा। अकबर ने रायसिंह 4000 का मनसबदार बनाया। जहांगीर के शासनकाल में रायसिंह को 5000 की मनसबदारी मिली, अकबर व जहांगीर की तरफ से जूनागढ़ सोरठ,नागौर, श्शमशाबाद, आदि जागीरें रायसिंह को मिली रायसिंह की वतन जागीर में 47 परगने थे। जहांगीर का रायसिंह में अत्यधिक विश्वास था।1606 ई. में जहांगीर युद्ध के लिए राजधानी आगरा से बाहर गया तब आगरा की रक्षा के लिए रायसिंह को वहां नियुक्त किया।
कर्णसिंह (1631 – 1669 ई.) :- 1631 ई. में कर्णसिंह बीकानेर का राजा बना। इसी के समय एक मतीरे को लेकर भयंकर युद्ध हुआ जो आज भी मतीरे की राड़ के नाम से जाना जाता है।
मतीरे की राड़ 1644 ई :– यह कहानी है 1644 ईस्वी की है जब बीकानेर रियासत का सीलवा गांव ओैर नागौर रियासत का जाखणियां गांव जो की एक दूसरे के समानांतर स्थित थे। यह दोनों गांव नागौर रियासत और बीकानेर रियासत की अंतिम सीमा थी।
बीकानेर और नागौर रियासतों के बीच एक अजब लडाई लड़ी गयी थी। एक मतीरे की बेल बीकानेर रियासत की सीमा में उगी किन्तु नागौर की सीमा में फ़ैल गयी। उस पर एक मतीरा यानि तरबूज लग गया। एक पक्ष का दावा था कि बेल हमारे इधर लगी है, दूसरे का दावा था कि फ़ल तो हमारी ज़मीन पर पड़ा है। उस मतीरे के हक़ को लेकर युद्ध हुआ जिसे इतिहास में “मतीरे की राड़” के नाम से जाना जाता है।
नागौर और बीकानेर की रियासतों के मध्य ‘मतीरे’ को लेकर झगड़ा हो गया और यह झगड़ा युद्ध में तब्दील हो गया। इस युद्ध में नागौर की सेना का नेतृत्व सिंघवी सुखमल ने किया जबकि बीकानेर की सेना का नेतृत्व रामचंद्र मुखिया ने किया था। उस समय बीकानेर के शासक राजा करणसिंह थे और वह मुगलो के लिए दक्षिण अभियान पर गये हुए थे। जबकि नागौर के शासक राव अमरसिंह थे। राव अमरसिंह भी मुग़ल साम्राज्य की सेवा में थे। यह दोनों रियासते मुग़ल साम्राज्य की अधीनता स्वीकार कर चुकी थी, इसलिए राव अमरसिंह ने आगरा लौटते ही बादशाह को इसकी शिकायत की तो राजा करणसिंह ने सलावतखां बख्शी को पत्र लिखा और बीकानेर की पैरवी करने को कहा था। लेकिन यह मामला मुग़ल दरबार में चलता उससे पहले ही युद्ध हो गया। इस युद्ध में नागौर की हार हुई । बीकानेर की सेना जीत गयी और उन्हें यह तरबूज हजारो लोगो की शहादत के बाद खाने को मिला, कर्णसिंह ने बीकानेर से 25 कि.मी. दूर देश्नोक नामक स्थान पर करणीमाता का मंदिर बनवाया, बीकानेर के राठौडो की कुल देवी -करणी माता।
अनूपसिंह (1669 – 1698 ई.) :- इसी के समय आनन्दराव ने गीता का राजस्थानी भाषा में अनुवाद किया। बीकानेर के शासक सूरतसिंह ने सूरतगढ़ की स्थापना करवाई। इन्होंने 19 वीं सदी आरम्भ में भटनेर दुर्ग पर अधिकार किया। उस दिन मंगलवार का दिन था परिणामस्वरूप भटनेर का नाम हनुमानजी के नाम पर हनुमानगढ़ कर दिया, बीकानेर के शासक अनूपसिंह के समय बीकानेर की चित्रकला व साहित्य का सर्वाधिक विकास हुआ।
गंगासिंह राठौड़ – (1887-1943 ई.) :- 56 वर्ष का शासन, पिता का नाम – लाल सिंह गंगासिंह ने प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान अपनी ऊंटो की सेना गंगा रिसाला चीन भेजी। इन्हे चीनी पदक से सम्मानित किया गया, 26 अक्टूबर 1927 को गंगानहर का उद्घाटन वायसराय इरविन द्वारा किया गया। इसी दिन से गंगानगर की स्थापना मानी जाती है। गंगासिंह को आधुनिक भारत का भागीरथ माना जाता है। इन्होने लंदन में आयोजित तीनों गोलमेज सम्मेलनों में भाग लिया। 1921 में नरेन्द्र मण्डल (चेम्बर आॅफ प्रिंसेज) के प्रथम चासलर गंगासिंह बनाये गये, गंगासिंह के प्रतिरोध के कारण बीकानेर प्रजामण्डल की स्थापना कोलकत्ता में हुई। वर्ष1943 में इनकी मृत्यु हो गयी। राजस्थान के एकीकरण के समय बीकानेर के शासक सार्दुलसिंह थे।
दाव दलपत (1612-13) :- महाराजा रायसिंह की मृत्यु के बाद दलपत सिह बीकानेर का शासक बना। राव दलपत का सम्राट जहांगीर से मनमुटाव हो गया। जहांगीर ने दलपत को गद्दी से हटाकर उसके भाई सूरसिह को शासक बना दिया।
करण सिंह (1631-1669) :- सूर सिंह की मृत्यु के बाद उसका पुत्र करणसिंह शासक बना। औरगजेब ने इसे जांगलधर बादशाह की उपाधि दी।
स्वरूप सिंह :- 1690 में अनुपसिंह की मृत्यु के बाद उसका नाबालिग पुत्र स्वरूप सिंह बीकानेर का शासक बना उसकी 1702 में मृत्यु हो गई व उसके बाद सुजानसिंह शासक बना।
सूरतसिंह :- बीकानेर के शासक सूरतसिंह ने 1818 में ईस्ट इण्डिया कम्पनी से सन्धि कर ली।
किशनगढ़ रियासत :- इसकी स्थापना मोटा राजा उदयसिंह के पुत्र किशन सिंह ने 1609 में की थी, जहाँगीर ने यहाँ के शासक को महाराज का खिताब दिया, यहाँ के राजा सावंतसिंह प्रसिद्ध राजा हुए, जो कृष्ण-भक्ति में राज-पाट छोड़कर वृन्दावन चले गये एवं नागरीदास के नाम से प्रसिद्ध हुए।
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