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बिजौलिया किसान आन्दोलन
विजय सिंह पथिक :- बिजोलिया किसान आन्दोलन भारतीय इतिहास में हुए कई किसान आन्दोलनों में से महत्त्वपूर्ण था। यह ‘किसान आन्दोलन’ भारत भर में प्रसिद्ध रहा, जो मशहूर क्रांतिकारी विजय सिंह पथिक के नेतृत्व में चला था। बिजोलिया किसान आन्दोलन सन 1847 से प्रारम्भ होकर क़रीब अर्द्ध शताब्दी तक चलता रहा। जिस प्रकार इस आन्दोलन में किसानों ने त्याग और बलिदान की भावना प्रस्तुत की, इसके उदाहरण अपवादस्वरूप ही प्राप्त हैं। किसानों ने जिस प्रकार निरंकुश नौकरशाही एवं स्वेच्छाचारी सामंतों का संगठित होकर मुक़ाबला किया, वह इतिहास बन गया।
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विजय सिंह पथिक का नेतृत्व :- जब ‘लाहौर षड़यंत्र केस’ में विजय सिंह पथिक का नाम उभरा और उन्हें लाहौर ले जाने के आदेश हुए तो किसी तरह यह खबर पथिक जी को मिल गई। वे टाडगढ़ के क़िले से फरार हो गए। गिरफ्तारी से बचने के लिए पथिक जी ने अपना वेश राजस्थानी राजपूतों जैसा बना लिया और चित्तौडगढ़ क्षेत्र में रहने लगे। बिजोलिया से आये एक साधु सीताराम दास उनसे बहुत प्रभावित हुए और उन्होंने पथिक जी को बिजोलिया आन्दोलन का नेतृत्व सम्भालने को आमंत्रित किया। बिजोलिया उदयपुर रियासत में एक ठिकाना था। जहाँ पर किसानों से भारी मात्रा में मालगुज़ारी वसूली जाती थी और किसानों की दशा अति शोचनीय थी। विजय सिंह पथिक 1916 में बिजोलिया पहुँच गए औरउन्होंने आन्दोलन की कमान अपने हाथों में सम्भाल ली।
पंचायत का निर्णय :- प्रत्येक गाँव में किसान पंचायत की शाखाएँ खोली गईं। किसानों की मुख्य माँगें भूमि कर, अधिभारों एवं बेगार से सम्बन्धित थीं। किसानों से 84 प्रकार के कर वसूले जाते थे। इसके अतिरिक्त युद्ध कोष कर भी एक अहम मुद्दा था। एक अन्य मुद्दा साहूकारों से सम्बन्धित भी था, जो ज़मींदारों के सहयोग और संरक्षण से किसानों को निरन्तर लूट रहे थे। पंचायत ने भूमि कर न देने का निर्णय लिया।
आन्दोलन का प्रचार :- किसान वास्तव में 1917 की रूसी क्रान्ति की सफलता से उत्साहित थे, पथिक जी ने उनके बीच रूस में श्रमिकों और किसानों का शासन स्थापित होने के समाचार को खूब प्रचारित किया था। विजय सिंह पथिक ने कानपुर से प्रकाशित गणेश शंकर विद्यार्थी द्वारा सम्पादित पत्र ‘प्रताप’ के माध्यम से बिजोलिया के किसान आन्दोलन को समूचे देश में चर्चा का विषय बना दिया, आन्दोलन के अन्त में माणिक्यलाल वर्मा, हरिभाऊ उपाध्याय तथा जमनालाल बजाज ने बिजौलिया किसान आन्दोलन का नेतृत्व किया। 1941 ई. में मेवाड़ के प्रधानमंत्री सर टी विजय राघवाचार्य ने राजस्व विभाग के मंत्री डॉक्टर मोहन सिंह मेहता को बिजोलिया भेजा उन्होंने माणिक्य लाल वर्मा के नेतृत्व में किसानों की सभी मांगे मान मान कर उनकी जमीने वापस दिलवा दी
यह आंदोलन कुल 3 चरणों में संपन्न हुआ :- प्रथम चरण (1897 से 1916), बिजोलिया ठिकाना मेवाड़ रियासत के अंतर्गत आता था, इसकी स्थापना अशोक परमार द्वारा की गई थी, इसका प्राचीन नाम विजयवल्ली था, बिजोलिया के राव कृष्ण सिंह ने किसानों पर पांच रुपए की दर से चवंरी कर लगा दिया था जिसके अंतर्गत किसानों को अपनी पुत्री की शादी पर ठिकाने को कर देना पड़ता था, बिजोलिया ठिकाने में अधिकतर धाकड़ जाति के लोग थे, बिजोलिया के किसानों ने गिरधारीपुरा नामक गांव में मृत्यु भोज के अवसर पर एक सभा रखी जिसमें कर बढ़ोतरी की शिकायत मेवाड़ के महाराजा से करने का प्रस्ताव रखा गया, इस हेतु से नानजी पटेल एवं ठाकरी पटेल को उदयपुर भेजा गया लेकिन वे महाराणा से मिलने में सफल न हो सकें, कृष्ण सिंह की मृत्यु के बाद नये ठिकानेदार पृथ्वी सिंह ने जनता पर तलवार बधाई अर्थात उत्तराधिकार शुल्क लगा दिया, 1915 में साधु सीताराम दास व उनके सहयोगियों को बिजोलिया से निष्कासित कर दिया गया।
द्वित्तीय चरण (1916 से 1923) :- यह चरण विजय सिंह पथिक के नेतृत्व में आगे बढ़ा, 1917 में ऊपरमाल पंच बोर्ड की स्थापना की गई जिसका अध्यक्ष मुन्नालाल को बनाया गया, इस किसान आंदोलन की जांच के लिए 1919 में बिंदु लाल भट्टाचार्य आयोग का गठन किया गया लेकिन मेवाड़ के महाराणा ने आयोग की सिफ़ारिशें मानने से इन्कार कर दिया, राजपूताना के ए जी जी हॉलेंड ने 1922 में किसानों तथा ठिकाने के मध्य एक समझौता करवाया लेकिन यह असफल साबित हुआ, 1923 में विजय सिंह पथिक को गिरफ्तार कर छह साल के लिए जेल भेज दिया गया।
तृतीय चरण (1923 से 1941) :- इस चरण में माणिक्य लाल वर्मा, हरिभाऊ उपाध्याय तथा जमनालाल बजाज जैसे लोगों ने सहयोग दिया, 1941 में मेवाड़ के प्रधानमंत्री राघवाचार्य ने अपने राजस्व मंत्री को भेजकर किसानों की अधिकतर मांगो को मान लिया, आंदोलन के दौरान माणिक्य लाल वर्मा का लिखा पंछीडा़ गीत बहुत लोकप्रिय था, इस आंदोलन से जुड़े समाचार पत्रों में प्रताप तथा ऊपरमाल डंका प्रमुख थे, जिन महिलाओं ने इस आंदोलन में भाग लिया उनमें अंजना देवी चौधरी, नारायणी देवी वर्मा, रानी देवी तथा ऊदी मालन प्रमुख थी।
किसानों की विजय :- दूसरी ओर कांग्रेस के असहयोग आन्दोलन शुरू करने से भी सरकार को स्थिति और बिगड़ने की भी आशंका होने लगी। अंतत: सरकार ने राजस्थान के ए.जी.जी. हालैण्ड को ‘बिजोलिया किसान पंचायत बोर्ड’ और ‘राजस्थान सेवा संघ’ से बातचीत करने के लिए नियुक्त किया। शीघ्र ही दोनों पक्षों में समझौता हो गया। किसानों की अनेक माँगें मान ली गईं। चौरासी में से पैंतीस लागतें माफ कर दी गईं। जुल्मी कारिन्दे बर्खास्त कर दिए गए और किसानों की अभूतपूर्व विजय हुई।
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