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भारत के प्राकृतिक वनस्पति
प्राकृतिक वनस्पति :- प्राकतिक वनस्पति में वे पौधे सम्मिलित किए जाते है, जो मानव की प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष सहायता के बिना उगते हैं और अपने आकार, संरचना तथा अपनी आवश्यकताओं को प्राकृतिक पर्यावरण के अनुसार ढाल लेते हैं। इस दृष्श्टि से कृषि फसलों तथा फलों के बागों को प्राकृतिक वनस्पति के वर्ग में सम्मिलित नहीं किया जा सकता। प्राकतिक वनस्पति का वह भाग जो मानव हस्तक्षेप से रहित है, अक्षत वनस्पति कहलाता है। भारत में अक्षत वनस्पति हिमालय थार मरूस्थल, सुन्दरवन आदि अगम्य क्षेत्रों में पाया जाती है।
वनस्पति और वन में अन्तर :- वनों के प्रकार कई भौगोलिक तत्त्वों पर निर्भर करते हैं जिसमें वश्र्षा, तापमान, आर्द्रता, मिट्टी, समुद्र-तल से उँचाई तथा भूगर्भिक संरचना महत्वपूर्ण हैं। इन तत्त्वों के प्रभावाधीन देश के विभिन्न भागों में भिन्न-भिन्न प्रकार के वन उगते हैं। इस आधार पर वनों का निम्नलिखित वर्गीकरण किया जाता है।
1.) उष्णकटिबन्धीय सदापर्णी वन
2.) उष्णकटिबन्धीय पर्णपाती अथवा मानसूनी
3.) उष्णकटिबन्धीय
4.) मरूस्थलीय
5.) डेल्टाई वन
6.) पर्वतीय वन
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पर्वतों की रचना
1.) उष्णकटिबन्धीय सदापर्णी वन (Tropical Evergreen Forests) :- ये वन भारत के अत्यधिक आद्र्र्र तथा उष्ण भागों में मिलते हैं। इन क्षेत्रों में औसत वार्षिक वश्र्षा 200 से.मी. से अधिक तथा सापेक्ष आर्द्रता 70% से अधिक होती है। औसत तापमान 20 से. के आस-पास रहता है। उच्च आर्द्रता तथा तापमान के कारण ये वन बड़े सघन तथा उँचे होते हैं। विभिन्न जाति के वृक्षों के पत्तों के गिरने का समय भिन्न होता है जिस कारण सम्पूर्ण वन दृश्य सदापर्णी रहता है। ये वृक्ष 45 से 60 मीटर ऊँचे होते हैं, महत्वपूर्ण वृक्ष रबड़, महोगनी, एबोनी, नारियल, बाँस, बेंत तथा आइरन वुड हैं। ये वन मुख्यतः अण्डमान निकोबार द्वीप-समूह, असम, मेघालय, नागालैण्ड, मणिपुर, मिजोरम, त्रिपुरा एंव पश्चिमी बंगाल तथा पश्चिमी घाट की पश्चिमी ढालों एंव पष्श्चिमी तटीय मैदान पर पाए जाते हैं। इस प्रकार इन वनों का क्षेत्राफल लगभग 46 लाख हेक्टेयर है। ये वन आर्थिक दृष्श्टि से अधिक उपयोगी नहीं है।
2.) उष्णकटिबन्धीय पर्णपाती अथवा मानसूनी वन (Tropical Deciduous or Monsoon Forests) :- ये वन 100 से 200 सेटीमीटर वार्षिक वश्र्षा वाले क्षेत्रों में पाए जाते हैं। इन वनों का विस्तार गंगा की मध्य एंव निचली घाटी अर्थात् भाबर एवं तराई प्रदेश, पूर्वी मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ का उत्तरी भाग, झारखण्ड, पष्श्चिमी बंगाल, उड़ीसा, आन्ध्र प्रदेष्श, महाराश्ष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु तथा केरल के कुछ भागों में मिलता है। प्रमुख पेड़ साल, सागवान, ष्शीशम, चन्दन, आम आदि हैं। ये पेड़ ग्रीश्म ऋतु के आरम्भ में अपनी पत्तियां गिरा देते हैं। इसलिए ये पतझड़ के वन कहलाते हैं। इनकी ऊँचाई 30 से 45 मीटर होती है। ये इमारती लकड़ी प्रदान करते हैं जिससे इनका आर्थिक महत्व अधिक है। ये वन हमारे 25% वन-क्षेत्रा पर फैले हुए है।
3.) उष्णकटिबन्धीय शुष्क वन (Tropical Dry Forests) :- ये वन उन क्षेत्रों में पाए जाते हैं जहाँ वार्षिक वर्षा 50 से 100 सेंटीमीटर होती है। इसमें महाराश्ष्ट्र, आन्ध्र प्रदेश, कर्नाटक तथा तमिलनाडु के अधिकांष्श भाग, पष्श्चिमी तथा उत्तरी मध्य प्रदेष्श, पूर्वी राजस्थान, उत्तर प्रदेष्श का दक्षिण-पष्श्चिमी भाग तथा हरियाणा सम्मिलित हैं। इन वनों के मुख्य वृक्ष ष्शीशम, बबूल, कीकर, चन्दन, सिरस, आम तथा महुआ हैं। ये वृक्ष ग्रीश्म ऋतु के आरम्भ में अपने पत्ते गिरा देते हैं।वर्षा अपेक्षाकृत कम होने के कारण ये वृक्ष मानसूनी वनों के वृक्षों से छोटे होते हैं। इन वृक्षों की लम्बाई 6 से 9 मीटर होती है। अधिकांष्श वृक्षों की जड़ें लम्बी तथा मोटी होती है जिससे ये जल को अपने अन्दर समाए रखते हैं। इनकी लकड़ी आर्थिक दृष्टि से मूल्यवान होती है। इस वर्ग के अधिकांष्श वनों को काटकर कृश्षि ष्शुरू की गई है। अब ये वन केवल 52 लाख हेक्टयेर भूमि पर ही पाए जाते हैं।
4.) मरूस्थलीय वन (Arid Forests) :- ये वन उन क्षेत्रों में पाए जाते हैं जहाँ वार्षिक वश्र्षा 50 सेंटीमीटर से कम होती है। इनका विस्तार राजस्थान, दक्षिण-पश्चिमी पंजाब तथा दक्षिण-पष्श्चिमी हरियाणा में है। इनमें बबूल, कीकर तथा फ्राष्श जैसे छोटे आकार वाले वृक्ष एवं झाड़ियाँ होती है। ष्शुष्श्क जलवायु के कारण इनके पत्ते छोटे, खाल मोटी तथा जड़ें गहरी होती है।
5.) डेल्टाई वन (Delta Forests) :- इन्हें मेनग्रुव (Mangrove), दलदली (Swampy) अथवा ज्वारीय (Tidal) वन भी कहते हैं। ये वन गंगा-व्रह्मपुत्रा, महानदी, गोदावरी, कृष्णा, कावेरी आदि नदियों के डेल्टाओं में उगते हैं, इस कारण इन्हें डेल्टाई वन कहते हैं। सबसे महत्वपूर्ण गंगा-ब्रह्मपुत्रा डेल्टा का सुन्दरवन है। इसमें सुन्दरी नामक वृक्ष की बहुलता है जिस कारण इसे सुन्दर वन कहते हैं। ये वन बड़ें गहन होते है तथा ईधन और इमारती लकड़ी प्रदान करते हैं।
6.) पर्वतीय वन (Montane Forests) :- जैसा कि इनके नाम से ही विदित है, ये वन भारत के पर्वतीय प्रदेष्शों में पाए जाते हैं। भौगोलिक दृष्श्टि से इन्हें उत्तरी या हिमालय वन तथा दक्षिणी या प्रायद्वीपीय वनों में बाँटा जा सकता है, वास्तविक वनावरण के प्रतिशत के आधार पर भारत के राज्यों को चार प्रदेशों में विभाजित किया गया है।
1.) अधिक वनावरण वाले प्रदेश
2.) मध्यम वनावरण वाले प्रदेश
3.) कम वनावरण वाले प्रदेश
4.) बहुत कम वनावरण वाले प्रदेश
1) अधिक वनावरण वाले प्रदेश :- इस प्रदेश में 40 प्रतिशत से अधिक वनावरण वाले राज्य सम्मिलित हैं। असम के अलावा सभी पूर्वी राज्य इस वर्ग में शामिल हैं। जलवायु की अनुकूल दशाएँ मुख्य रूप से वर्षा और तापमान अधिक वनावरण में होने का मुख्य कारण हैं। इस प्रदेश में भी वनावरण भिन्नताएँ पायी जाती हैं। अंडमान और निकोबार द्वीप समूह और मिजोरम, नागालैंड और अरुणाचल प्रदेश के राज्यों में कुल भौगोलिक क्षेत्रा के 80 प्रतिशत भाग पर वन पाए जाते हैं। मणिपुर, मेघालय, त्रिपुरा, सिक्किम और दादर और नगर हवेली में वनों का प्रतिशत 40 से 80 प्रतिशत के बीच है।
2) मध्यम वनावरण वाले प्रदेश :- इसमें मध्य प्रदेश, उड़ीसा, गोवा, केरल, असम और हिमाचल प्रदेश सम्मिलित हैं। गोवा में वास्तविक वन क्षेत्रा 33.79 प्रतिशत है, जो कि इस प्रदेश में सबसे अधिक है। इसके बाद असम और उड़ीसा का स्थान है। अन्य राज्यों में कुल क्षेत्रा के 30 प्रतिशत भाग पर वन हैं।
3) कम वनावरण वाले प्रदेश :- यह प्रदेश लगातार नहीं है। इसमें दो उप-प्रदेश हैं: एक प्रायद्वीप भारत में स्थित है। इसमें महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, और तमिलनाडु शामिल हैं। दूसरा उप-प्रदेश भारत में है। इसमें उत्तर प्रदेश और बिहार राज्य शामिल हैं।
4) बहुत कम वनावरण वाले प्रदेश :- भारत के उत्तर-पश्चिमी भाग को इस वर्ग में रखा जाता है। इस वर्ग में शामिल राज्य हैं: राजस्थान, पंजाब, हरियाणा और गुजरात। इसमें चंडीगढ़ और दिल्ली दो केंद्र शासित प्रदेश भी हैं। इनके अलावा पश्चिम बंगाल का राज्य भी इसी वर्ग में है। भौतिक और मानवीय कारणों से इस प्रदेश में बहुत कम वन हैं।
प्रमुख वनस्पतियॉं और उनका वर्गीकरण :- लिथोफाइट– इसके अंतर्गत कडी चट्टानों पर उगने वाली वनस्पतियों को शामिल किया जाता है, हैलोफाइटा-इसके अंतर्गत नमकीन क्षेत्रों में मिलने वाली वनस्पतियों को शामिल किया जाता है, जैसे – मैंग्रोव, गोल्डमोहर, आदि, क्रायोफाइट- ये टुंड्रा अथवा शीत प्रधान क्षेत्रों की वनस्पति है , जैसे – मास, लाइकेन आदि
मेसोफाइट– यह शीतोष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में मिलने वाली वनस्पतियॉं हैं जैसे- साइबेरिया की टैगा वनस्पति, जेरोफाइट– उष्णकटिबंधीय मरुस्थलीय क्षेत्रों की वनस्पति जैसे – कैक्टस, खजूर, बबूल, एकेसिया, कीकर, सेजव्रश आदि, हाइड्रोफाइट या मैक्रोफाइट– इसके अंतर्गत पानी में होने वाली वनस्पतियॉं आती हैं, जैसे – कमल, ट्रोपोफाइट- उष्णकटिबंधीय जलवायु वाली वनस्पति तथा घास को इसके अंतर्गत रखा जाता है, हाइग्रोफाइट- इसके अंतर्गत अधिक आद्रता वाले क्षेत्रों जैसे भूमध्य रेखीय उष्णार्द्र क्षेत्रों की वनस्पतियॉं या दलदली क्षेत्रों की वनस्पतियों को शामिल किया जाता है
उष्णकटिबंधीय सदाबहार एवं अर्द्ध-सदाबहार वन :- पश्चिमी घाट के पश्चिमी ढाल, उत्तर-पूर्वी क्षेत्र की पहाड़ियों एवं अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में ये वन पाए जाते हैं, उष्ण एवं आर्द्र प्रदेशों में, जहाँ वार्षिक वर्षा 200 सेंटीमीटर से अधिक और औसत तापमान 22° सेल्सियस से अधिक हो, ये वन सघन होते हैं, जहाँ भूमि के नज़दीक झाड़ियाँ और लताएँ, इनके ऊपर अधिपादप और सबसे ऊपर लंबे और विशाल वृक्ष होते हैं, इन वनों में पत्तों के झड़ने, फूल आने और फल लगने का समय अलग-अलग होता है, इसलिये ये वर्ष भर हरे-भरे दिखाई पड़ते हैं, मुख्य वृक्ष प्रजातियाँ – रोजवुड, महाेंगनी, ऐनी और एबनी, अर्द्ध-सदाबहार वन सदाबहार और पर्णपाती वनों के मिश्रित रूप हैं जिनकी मुख्य वृक्ष प्रजातियाँ साइडर, होलक और कैल हैं।
उष्णकटिबंधीय पर्णपाती वन :- ये वन प्रायद्वीप में अधिक वर्षा वाले भागों और उत्तर प्रदेश व बिहार के मैदानी भागों में पाए जाते हैं, भारत में ये वन बहुतायत में पाए जाते हैं। इन्हें मानसून वन भी कहा जाता है, ये वन 70 से 200 सेंटीमीटर वार्षिक वर्षा वाले क्षेत्र में पाए जाते हैं।
जल उपलब्धता के आधार पर इन वनों को आर्र्द और शुष्क पर्णपाती वनों में बाँटा जाता है।आर्द्र पर्णपाती वन : जहाँ वर्षा 1000 से 200 सेंटीमीटर हो, ये वन उत्तर-पूर्वी राज्यों और हिमालय के गिरिपद, पश्चिमी घाट के पूर्वी ढालों और ओडिशा में पाए जाते हैं, मुख्य वृक्ष : सागवान, साल, शीशम, महुआ, आँवला, कुसुम, शुष्क पर्णपाती वन : जहाँ वर्षा 70 से 100 सेंटीमीटर होती है, ये वन उत्तर प्रदेश व बिहार के मैदानी भागों में पाए जाते हैं, मुख्य वृक्ष : पलास, अमलतास, बेल, खैर और अक्साइड।
उष्णकटिबंधीय कांटेदार वन :- ये वन दक्षिण-पश्चिमी पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में पाए जाते हैं, 50 सेंटीमीटर से कम वर्षा वाले क्षेत्र में ये वन पाए जाते हैं, इनमें कई प्रकार की घास और झाड़ियाँ शामिल हैं, यथा- बबूल, बेर, खजूर, खैर, नीम, खेजड़ी और पलास।
पर्वतीय वन :- इन वनों को 2 भागों में बाँटा गया है- उत्तरी पर्वतीय वन और दक्षिणी पर्वतीय वन, पर्वतीय क्षेत्रों में ऊँचाई के साथ तापमान घटने के साथ-साथ प्राकृतिक वनस्पति में भी बदलाव आता है।
उत्तरी पर्वतीय वन :- हिमालय के गिरिपद पर पर्णपाती वन पाए जाते हैं एवं 1,000 से 2,000 मीटर की ऊँचाई पर आर्द्र्र शीतोष्ण कटिबंधीय वन पाए जाते हैं, ब्ल्यूपाइन और स्प्रूस 2,225 से 3,048 मीटर की ऊँचाई पर पाए जाते हैं। इससे अधिक ऊँचाई पर एल्पाइन वन और चरागाह पाए जाते हैं, 3,000 से 4,000 मीटर की ऊँचाई पर सिल्वर फर, जूनिपर, पाइन, बर्च और रोडोडेन्ड्रॉन वृक्ष मिलते हैं, अधिक ऊँचाई वाले भागों में टुण्ड्रा वनस्पति जैसे- मॉस व लाइकेन आदि पाई जाती है।
दक्षिणी पर्वतीय वन :- ये वन मुख्यत: प्रायद्वीप के तीन भागों यथा- पश्चिमी घाट, विंध्याचल और नीलगिरि पर्वत शृंखलाओं पर पाए जाते हैं।
वेलांचली व अनूप वन :- भारत में विभिन्न प्रकार के आर्द्र व अनूप आवास पाए जाते हैं।
भारत में आर्र्द भूमि को आठ वर्गों में रखा गया है। मैंग्रोव वन अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह व पश्चिम बंगाल के सुंदर वन डेल्टा के अलावा महानदी, गोदावरी और कृष्णा नदियों के डेल्टाई भाग में पाए जाते हैं।
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