आत्माराम पश्चिम

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आत्माराम पश्चिम 

आत्माराम पश्चिम :- वेदों-ग्राम में महादेव सोनार एक सुविख्यात आदमी था। वह अपने सायबान में प्रातः से संध्या तक अँगीठी के सामने बैठा हुआ खटखट किया करता था। यह लगातार ध्वनि सुनने के लोग इतने अभ्यस्त हो गये थे कि जब किसी कारण से वह बंद हो जाती, तो जान पड़ता था, कोई चीज़ गायब हो गयी। वह नित्य-प्रति एक बार प्रातःकाल अपने तोते का पिंजड़ा लिए कोई भजन गाता हुआ तालाब की ओर जाता था। उस धुँधले प्रकाश में उसका जर्जर शरीर, पोपला मुँह और झुकी हुई कमर देख कर किसी अपरिचित मनुष्य को उसके पिशाच होने का भ्रम हो सकता था। ज्यों ही लोगों के कानों में आवाज आती-‘सत्त गुरुदत्त शिवदत्त दाता’, लोग समझ जाते कि भोर हो गयी।
महादेव का पारिवारिक जीवन सुखमय न था। उसके तीन पुत्र थे, तीन बहुएँ थीं, दर्जनों नाती-पोते थे, लेकिन उसके बोझ को हलका करनेवाला कोई न था। लड़के कहते-‘जब तक दादा जीते हैं, हम जीवन का आनंद भोग लें, फिर तो यह ढोल गले पड़ेगी ही।’ बेचारे महादेव को कभी-कभी निराहार ही रहना पड़ता। भोजन के समय उसके घर में साम्यवाद का ऐसा गगनभेदी निर्घोष होता कि वह भूखा ही उठ जाता, और नारियल का हुक्का पीता हुआ सो जाता। उसका व्यावसायिक जीवन और भी अशांतिकारक था। यद्यपि वह अपने काम में निपुण था, उसकी खटाई औरों से कहीं ज्यादा शुद्धिकारक और उसकी रासायनिक क्रियाएँ कहीं ज्यादा कष्टसाध्य थीं, तथापि उसे आये दिन शक्की और धैर्य-शून्य प्राणियों के अपशब्द सुनने पड़ते थे। पर महादेव अविचलित गाम्भीर्य से सिर झुकाये सब कुछ सुना करता था। ज्यों ही यह कलह शांत होता, वह अपने तोते की ओर देख कर पुकार उठता-‘सत्त गुरुदत्त शिवदत्त दाता।’ इस मंत्र को जपते ही उसके चित्त को पूर्ण शांति प्राप्त हो जाती थी।
एक दिन संयोगवश किसी लड़के ने पिंजड़े का द्वार खोल दिया। तोता उड़ गया। महादेव ने सिर उठाकर जो पिंजड़े की ओर देखा, तो उसका कलेजा सन्न-से हो गया। तोता कहाँ गया। उसने फिर पिंजड़े को देखा, तोता गायब था ! महादेव घबड़ा कर उठा और इधर-उधर खपरैलों पर निगाह दौड़ाने लगा। उसे संसार में कोई वस्तु अगर प्यारी थी, तो वह यही तोता। लड़के-बालों, नाती-पोतों से उसका जी भर गया था। लड़कों की चुलबुल से उसके काम में विघ्न पड़ता था। बेटों से उसे प्रेम न था; इसलिए नहीं कि वे निकम्मे थे, बल्कि इसलिए कि उनके कारण वह अपने आनंददायी कुल्हड़ों की नियमित संख्या से वंचित रह जाता था। पड़ोसियों से उसे चिढ़ थी, इसलिए कि वे अँगीठी से आग निकाल ले जाते थे। इन समस्त विघ्न-बाधाओं से उसके लिए कोई पनाह थी, तो वह यही तोता था। इससे उसे किसी प्रकार का कष्ट न होता था। वह अब उस अवस्था में था जब मनुष्य को शांति भोग के सिवा और कोई इच्छा नहीं रहती।
तोता एक खपरैल पर बैठा था। महादेव ने पिंजरा उतार लिया और उसे दिखा कर कहने लगा-‘आ-आ’ ‘सत्त गुरुदत्त शिवदत्त दाता।’ लेकिन गाँव और घर के लड़के एकत्र हो कर चिल्लाने और तालियाँ बजाने लगे। ऊपर से कौओं ने काँव-काँव की रट लगायी ? तोता उड़ा और गाँव से बाहर निकल कर एक पेड़ पर जा बैठा। महादेव खाली पिंजड़ा लिये उसके पीछे दौड़ा, सो दौड़ा। लोगों को उसकी दु्रतगामिता पर अचम्भा हो रहा था। मोह की इससे सुंदर, इससे सजीव, इससे भावमय कल्पना नहीं की जा सकती।
दोपहर हो गयी थी। किसान लोग खेतों से चले आ रहे थे। उन्हें विनोद का अच्छा अवसर मिला। महादेव को चिढ़ाने में सभी को मजा आता था। किसी ने कंकड़ फेंके, किसी ने तालियाँ बजायीं। तोता फिर उड़ा और वहाँ से दूर आम के बाग में एक पेड़ की फुनगी पर जा बैठा। महादेव फिर खाली पिंजड़ा लिये मेंढक की भाँति उचकता चला। बाग में पहुँचा तो पैर के तलुओं से आग निकल रही थी; सिर चक्कर खा रहा था। जब जरा सावधान हुआ, तो फिर पिंजड़ा उठा कर कहने लगा-‘सत्त गुरुदत्त शिवदत्त दाता।’ तोता फुनगी से उतर कर नीचे की एक डाल पर आ बैठा, किन्तु महादेव की ओर सशंक नेत्रों से ताक रहा था। महादेव ने समझा, डर रहा है। वह पिंजड़े को छोड़ कर आप एक दूसरे पेड़ की आड़ में छिप गया। तोते ने चारों ओर गौर से देखा, निश्शंक हो गया, उतरा और आ कर पिंजड़े के ऊपर बैठ गया। महादेव का हृदय उछलने लगा। ‘सत्त गुरुदत्त शिवदत्त दाता’ का मंत्र जपता हुआ धीरे-धीरे तोते के समीप आया और लपका कि तोते को पकड़ ले; किन्तु तोता हाथ न आया, फिर पेड़ पर जा बैठा।

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महादेव ने कहा-महाराज, आज मेरे यहाँ सत्यनारायण की कथा है :-
पुरोहित जी विस्मित हो गये। कानों पर विश्वास न हुआ। महादेव के घर कथा का होना उतनी ही असाधारण घटना थी, जितनी अपने घर से किसी भिखारी के लिए भीख निकालना। पूछा-आज क्या है महादेव बोला-कुछ नहीं, ऐसी इच्छा हुई कि आज भगवान् की कथा सुन लूँ।
प्रभात ही से तैयारी होने लगी। वेदों के निकटवर्ती गाँवों में सुपारी फिरी। कथा के उपरांत भोज का भी नेवता था। जो सुनता आश्चर्य करता। आज रेत में दूब कैसे जमी।
संध्या समय जब सब लोग जमा हुए, और पंडित जी अपने सिंहासन पर विराजमान हुए, तो महादेव खड़ा होकर उच्च स्वर में बोला-भाइयो, मेरी सारी उम्र छल-कपट में कट गयी। मैंने न जाने कितने आदमियों को दगा दी, कितने खरे को खोटा किया; पर अब भगवान् ने मुझ पर दया की है, वह मेरे मुँह की कालिख को मिटाना चाहते हैं। मैं आप सब भाइयों से ललकार कर कहता हूँ कि जिसका मेरे जिम्मे जो कुछ निकलता हो, जिसकी जमा मैंने मार ली हो, जिसके चोखे माल को खोटा कर दिया हो, वह आ कर अपनी एक-एक कौड़ी चुका ले, अगर कोई यहाँ न आ सका हो, तो आप लोग उससे जा कर कह दीजिए, कल से एक महीने तक, जब जी चाहे, आये और अपना हिसाब चुकता कर ले। गवाही-साखी का काम नहीं।
सब लोग सन्नाटे में आ गये। कोई मार्मिक भाव से सिर हिला कर बोला-हम कहते न थे। किसी ने अविश्वास से कहा-क्या खा कर भरेगा, हजारों का टोटल हो जायेगा।
एक ठाकुर ने ठठोली की-और जो लोग सुरधाम चले गये।

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महादेव ने उत्तर दिया-उसके घर वाले तो होंगे :-
किन्तु इस समय लोगों को वसूली की इतनी इच्छा न थी, जितनी यह जानने की कि इसे इतना धन मिल कहाँ से गया। किसी को महादेव के पास आने का साहस न हुआ। देहात के आदमी थे, गड़े मुर्दे उखाड़ना क्या जानें। फिर प्रायः लोगों को याद भी न था कि उन्हें महादेव से क्या पाना है, और ऐसे पवित्र अवसर पर भूल-चूक हो जाने का भय उनका मुँह बन्द किये हुए था। सबसे बड़ी बात यह थी कि महादेव की साधुता ने उन्हें वशीभूत कर लिया था, अचानक पुरोहित जी बोले-तुम्हें याद है, मैंने एक कंठा बनाने के लिए सोना दिया था, तुमने कई माशे तौल में उड़ा दिये थे।

महादेव ने कमर से दो मोहरें निकालीं और पुरोहित जी के सामने रख दीं :- पुरोहित जी की लोलुपता पर टीकाएँ होने लगीं। यह बेईमानी है, बहुत हो, तो दो-चार रुपये का नुकसान हुआ होगा। बेचारे से पचास रुपये ऐंठ लिये। नारायण का भी डर नहीं। बनने को पंडित, पर नीयत ऐसी खराब लोगों को महादेव पर एक श्रद्धा-सी हो गयी। एक घंटा बीत गया पर उन सह मनुष्यों में से एक भी खड़ा न हुआ। तब महादेव ने फिर कहा-मालूम होता है, आप लेाग अपना-अपना हिसाब भूल गये हैं, इसलिए आज कथा होने दीजिए। मैं एक महीने तक आपकी राह देखूँगा। इसके पीछे तीर्थ-यात्रा करने चला जाऊँगा। आप सब भाइयों से मेरी विनती है कि आप मेरा उद्धार करें , एक महीने तक महादेव लेनदारों की राह देखता रहा। रात को चोरों के भय से नींद न आती। अब वह कोई काम न करता। शराब का चसका भी छूटा। साधु-अभ्यागत जो द्वार पर आ जाते, उनका यथायोग्य सत्कार करता। दूर-दूर उसका सुयश फैल गया। यहाँ तक कि महीना पूरा हो गया, और एक आदमी भी हिसाब लेने न आया। अब महादेव को ज्ञान हुआ कि संसार में कितना धर्म, कितना सद्व्यवहार है। अब उसे मालूम हुआ कि संसार बुरों के लिए बुरा है और अच्छों के लिए अच्छा।
इस घटना को हुए पचास वर्ष बीत चुके हैं। आप वेदों जाइये, तो दूर ही से एक सुनहला कलश दिखायी देता है। वह ठाकुरद्वारे का कलश है। उससे मिला हुआ एक पक्का तालाब है, जिसमें खूब कमल खिले रहते हैं। उसकी मछलियाँ कोई नहीं पकड़ता, तालाब के किनारे एक विशाल समाधि है। यही आत्माराम का स्मृति-चिह्न है, उसके सम्बन्ध में विभिन्न किंवदंतियाँ प्रचलित हैं। कोई कहता है, वह रत्नजड़ित पिंजड़ा स्वर्ग को चला गया, कोई कहता, वह ‘सत्त गुरुदत्त’ कहता हुआ अंतर्धान हो गया, पर यथार्थ यह है कि उस पक्षी-रूपी चंद्र को किसी बिल्ली-रूपी राहु ने ग्रस लिया। लोग कहते हैं, आधी रात को अभी तक तालाब के किनारे आवाज़ आती है
सात भाई और पांच बहनों में सबसे बड़े आत्माराम पश्चिम महाराष्ट्र के अटि गांव में पैदा हुए 1962 में नागपुर मेडिकल कॉलेज से ग्रेजुएशन के बाद वे न्यूयॉर्क सर्जरी सीखने चले गए। वहीं उनकी भेंट अहमदाबाद से आईं डॉ. सुशीला से हुई जो शिशुरोग विशेषज्ञ थीं। दोनों में प्रेम हुआ दोनों ने शादी कर ली। 1973 में अतुल का जन्म हुआ और इसके बाद एक बेटी मीता हुई।
दोनों पति ओहियो के एथेंस में रहने गए, वहां डॉक्टरों की जरूरत थीं। आत्माराम ने वहां पैसा कमाकर यहां यवतमाल जिले में गोपिका सिताराम गावंडे कॉलेज खोला। बेटी मीता ने कानून की पढ़ाई की तो अतुल ने डॉक्टरी और राजनीति दोनों की पढ़ाई की। कुछ समय अतुल बिल क्लिंटन के साथ प्रचार में भी रहे। अतुल को लेखन का भी शौक रहा तो न्यूयॉर्कर में स्टाफ राइटर के रूप में शामिल हो गए। वे मेडिकल और हेल्थकेअर की स्टोरी लिखते रहे।
जब अतुल 18 वर्ष के थे, तभी पढ़ाई के दौरान उनकी मुलाकात कैथलीन हूब्स से हुई। दोनों ने राष्ट्रपति पद के प्रत्याशी रहे अल गोर के लिए भी काम किया था। उन्हीं दिनों की बात है, अतुल से मां ने कहा कि तुम किस दिशा में अपना कॅरिअर बनाना चाहते हो। यह अब तक तय हो जाना चाहिए था। तब अतुल ने पढ़ाई को गंभीरता से लेना शुरू किया। तब हार्वर्ड मेडिकल स्कूल से डॉक्टर ऑफ मेडिसिन की डिग्री ली। इसके बाद अतुल ने कैथलीन से शादी की, दोनों के तीन बच्चे हैं। इन्हीं दिनों मन में विचार आया कि राजनीति उनके लिए नहीं है। तब मेडिकल के कॅरिअर को ही अपना मार्ग बनाया। पर लिखने का शौक खत्म नहीं हुआ। अपनी पहली पुस्तक 45 मिनट में लिखी। यह ‘टर्नअराउंड टाइम’ के नाम से है, जिसमें वह किस्से हैं, जब सर्जरी का केस हो और ऑपरेशन थिएटर साफ हो रहा हो।
सर्जरी के मामले में अतुल के बारे में कहा जाता है कि उनके 99.5 फीसदी सर्जरी सफल रही है, मात्र 0.5 प्रतिशत विफल रही है। उसी विफलता पर उन्होंने पुस्तक लिखी है। पिता की मृत्यु कैंसर से हुई, उन्हें मस्तिष्क और रीढ़ की हड्‌डी का कैंसर था, इसका गहरा प्रभाव अतुल पर हुआ और पिता की स्मृति में उन्होंने एक पुस्तक लिखी।

Rajasthan History Notes

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