आवृतबीजी का वर्गीकरण

आवृतबीजी का आर्थिक महत्व , अनावृतबीजी और angiosperm के बीच का अंतर , आवृत्तबीजी की उत्पत्ति , आवृतबीजी पौधों के सामान्य लक्षण , आवृतबीजी पादपों में जनन , जिम्नोस्पर्म के वर्गीकरण , साइकस का वर्गीकरण , आवृतबीजी पौधे का जीवन चक्र ,

आवृतबीजी का वर्गीकरण

अनावृतबीजी सूची अनावृतबीजी :- एक कोणधारी का शंकु – कोणधारी अनावृतबीजी वृक्षों की सबसे विस्तृत श्रेणी है अनावृतबीजी या विवृतबीज (gymnosperm, जिम्नोस्पर्म, अर्थ नग्न बीज) ऐसे पौधों और वृक्षों को कहा जाता है जिनके बीज फूलों में पनपने और फलों में बंद होने की बजाए छोटी टहनियों या शंकुओं में खुली (‘नग्न’) अवस्था में होते हैं। यह दशा ‘आवृतबीजी’ (angiosperm, ऐंजियोस्पर्म) वनस्पतियों से विपरीत होती है जिनपर फूल आते हैं (जिस कारणवश उन्हें ‘फूलदार’ या ‘सपुष्पक’ भी कहा जाता है) और जिनके बीज अक्सर फलों के अन्दर सुरक्षित होकर पनपते हैं। अनावृतबीजी वृक्षों का सबसे बड़ा उदाहरण कोणधारी हैं

चीड़ :- चीड़ (अंग्रेजी:Pine), एक सपुष्पक किन्तु अनावृतबीजी पौधा है। यह पौधा सीधा पृथ्वी पर खड़ा रहता है। इसमें शाखाएँ तथा प्रशाखाएँ निकलकर शंक्वाकार शरीर की रचना करती हैं। इसकी 115 प्रजातियाँ हैं। ये 3 से 80 मीटर तक लम्बे हो सकते हैं। चीड़ के वृक्ष पृथ्वी के उत्तरी गोलार्ध में पाए जाते हैं। इनकी 90 जातियाँ उत्तर में वृक्ष रेखा से लेकर दक्षिण में शीतोष्ण कटिबंध तथा उष्ण कटिबंध के ठंडे पहाड़ों पर फैली हुई हैं। इनके विस्तार के मुख्य स्थान उत्तरी यूरोप, उत्तरी अमेरिका, उत्तरी अफ्रीका के शीतोष्ण भाग तथा एशिया में भारत, बर्मा, जावा, सुमात्रा, बोर्नियो और फिलीपींस द्वीपसमूह हैं।

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नीलगिरी (यूकलिप्टस) :- नीलगिरी मर्टल परिवार, मर्टसिया प्रजाति के पुष्पित पेड़ों (और कुछ झाडि़यां) की एक भिन्न प्रजाति है। इस प्रजाति के सदस्य ऑस्ट्रेलिया के फूलदार वृक्षों में प्रमुख हैं। नीलगिरी की 700 से अधिक प्रजातियों में से ज्यादातर ऑस्ट्रेलिया मूल की हैं और इनमें से कुछ बहुत ही अल्प संख्या में न्यू गिनी और इंडोनेशिया के संलग्न हिस्से और सुदूर उत्तर में फिलपिंस द्वीप-समूहों में पाये जाते हैं। इसकी केवल 15 प्रजातियां ऑस्ट्रेलिया के बाहर पायी जाती हैं और केवल 9 प्रजातियां ऑस्ट्रेलिया में नहीं होतीं |

फल :- फल और सब्ज़ियाँ निषेचित, परिवर्तित एवं परिपक्व अंडाशय को फल कहते हैं। साधारणतः फल का निर्माण फूल के द्वारा होता है। फूल का स्त्री जननकोष अंडाशय निषेचन की प्रक्रिया द्वारा रूपान्तरित होकर फल का निर्माण करता है। कई पादप प्रजातियों में, फल के अंतर्गत पक्व अंडाशय के अतिरिक्त आसपास के ऊतक भी आते है। फल वह माध्यम है जिसके द्वारा पुष्पीय पादप अपने बीजों का प्रसार करते हैं, हालांकि सभी बीज फलों से नहीं आते। किसी एक परिभाषा द्वारा पादपों के फलों के बीच में पायी जाने वाली भारी विविधता की व्याख्या नहीं की जा सकती है। छद्मफल (झूठा फल, सहायक फल) जैसा शब्द, अंजीर जैसे फलों या उन पादप संरचनाओं के लिए प्रयुक्त होता है जो फल जैसे दिखते तो है पर मूलत: उनकी उत्पप्ति किसी पुष्प या पुष्पों से नहीं होती। कुछ अनावृतबीजी, जैसे कि यूउ के मांसल बीजचोल फल सदृश होते है जबकि कुछ जुनिपरों के मांसल शंकु बेरी जैसे दिखते है। फल शब्द गलत रूप से कई शंकुधारी वृक्षों के बीज-युक्त मादा शंकुओं के लिए भी होता है।

बीजपत्र :- अंकुरण के बाद एक डायकॉट (द्विबीजपत्री) पौधे के दो बीजपत्र उसके पहले पत्तों के रूप में उभर आये हैं बीजपत्र (cotyledon, अर्थ: बीज-पत्ता) बहुत से पौधों के बीज का एक महत्वपूर्ण भाग होता है। बीज के अंकुरण होने पर यही बीजपत्र विकसित होकर पौधे के पहले पत्तों का रूप धारण कर सकते हैं। वनस्पति शास्त्र में फूलदार (सपुष्पक या आवृतबीजी) पौधों का वर्गीकरण बीज में मौजूद बीजपत्रों की संख्या के आधार पर ही किया जाता है। एक बीजपत्र वाली जातियों को ‘मोनोकॉट​’ (monocot या monocotylenonous, एकबीजपत्री) और दो बीजपत्र वाली जातियों को ‘डायकॉट’ (dicot या dicotylenonous, द्विबीजपत्री) कहा जाता है। इनके अलवा बिना फूल वाले ‘अनावृतबीजी’ (gymnosperm, अर्थ: नग्न बीज) कहलाए जाने वाले पौधों के बीजों में (जिनमें चीड़ जैसे कोणधारी शामिल हैं) २ से लेकर २४ बीजपत्र हो सकते हैं। आवृतबीजी वृक्षों व पौधों में मोनोकॉट​ और डायकॉट का अंतर उन पौधों के रूप में बहुत दिखाई देता है |

संयंत्र सेल :- संयंत्र सेल संरचना वनस्पति कोशिकाएं सुकेन्द्रिक कोशिकाएं हैं जो अन्य यूकार्योटिक जीवों की कोशिकाओं से कई महत्वपूर्ण तरीकों से भिन्न होती हैं। उनके विशिष्ट गुण निम्न प्रकार हैं |

जिन्को बाइलोबा :- जिन्को (जिन्को बाइलोबा; चीनी और जापानी में पिनयिन रोमनकृत: यिन जिंग हेपबर्न रोमनकृत ichō या जिन्नान), जिसकी अंग्रेज़ी वर्तनी gingko भी है, इसे एडिअंटम के आधार पर मेडेनहेयर ट्री के रूप में भी जाना जाता है, पेड़ की एक अनोखी प्रजाति है जिसका कोई नज़दीकी जीवित सम्बन्धी नहीं है। जिन्को को अपने स्वयं के ही वर्ग में वर्गीकृत किया गया है, जिसमें एकल वर्ग जिन्कोप्सिडा, जिन्कोएल्स, जिन्कोएशिया, जीनस जिन्को शामिल हैं और यह इस समूह के अन्दर एकमात्र विद्यमान प्रजाति है। यह जीवित जीवाश्म का एक सबसे अच्छा ज्ञात उदाहरण है |

वन :- National Park एक क्षेत्र जहाँ वृक्षों का घनत्व अत्यधिक रहता है उसे वन कहते हैं। पेड़ जंगल के कई परिभाषाएँ, है जो कि विभिन्न मानदंडों पर आधारित हैं। वनों ने पृथ्वी के लगभग 9.4 % भाग को घेर रखा है और कुल भूमि क्षेत्र का लगभग 30% भाग घेर रखा है। कभी वन कुल भूमि क्षेत्र के 50% भाग में फैल हुए थे। वन जीव जन्तुओं के लिए आवास स्थल, जल-चक्र को प्रभावित करते हैं और मृदा संरक्षण के काम आते हैं इसी कारण यह पृथ्वी के जैवमण्डल का अहम हिस्सा कहलाते हैं। इतिहास बताता है, कि “वन” एक बीहड़ क्षेत्र जिसका मतलब कानूनी तौर पर बाजू के लिए निर्धारित शिकार के द्वारा सामंती कुलीनता है और इन शिकार जंगलों जरूरी ज्यादा अगर में सभी (देखें जंगली नहीं थे रॉयल वन। हालांकि, शिकार के जंगलों अक्सर वुडलैंड के महत्वपूर्ण क्षेत्रों को शामिल किया जबकि, शब्द वन अंततः जंगली भूमि अधिक सामान्यतः मतलब करने के लिए आया था। एक वुडलैंड जो की एक जंगल से भिन्न है।

आवृतबीजी पौधे के लक्षण/गुण :- इन पौधों में फल नहीं बनते हैं। ये पौधे का काष्ठीय तथा बहु वर्षीय होते हैं, पुष्पक्रम के स्थान पर शंकु(cones) होते हैं। जिनमें विशेष पत्तियां (बीजाणुपर्ण) समूह में लगी होती हैं, मादा एवं नर शंकु अलग-अलग होते हैं।इनमें परागण सदैव वायु द्वारा होता है, बीज नग्न अवस्था में बीजाणुपर्णपर पर लगे होते हैं इसीलिए इन्हें नग्नबीजी अथवा अनावृतबीजी पौधे कहते हैं।

अनावृतबीजी / नग्नबीजी पौधों के नाम/plants of gymnosperm :-
1) साइकस (Cycas)
2) पाइनस (pinus)
3)देवदार (cedrus)
4) जिंगो (zingo)

आवृतबीजी पौधे के सामान्य लक्षण :- वर्तमान में आवृत्तबीजी पौधे की सबसे अधिक जातियां पाई जाती हैं, यह पौधे पादप जगत में सबसे अधिक विकसित हैं, ये एकवर्षीय द्विवर्षीय बहुवर्षीय तथा शाकीय अथवा काष्ठीय सभी प्रकार के होते हैं, इनमें पुष्प एकलिंगी अथवा द्विलिंगी स्पष्ट होते है, इन पौधों में बीज सदैव फल के अंदर बनते हैं,इसीलिए यह आवृतबीजी पौधे कहलाते हैं।

इनको दो उपवर्गों में बांटा गया है–
1) एकबीजपत्री
2) 2) द्विबीजपत्री
आवृतबीजी पौधों के नाम/plants of angiosperm
1)मक्का,गेहूँ,गन्ना
2)घास,अंगूर
3)सेब,सरसों,आम
4)मटर,सेम,चना,
5)पीपल,अमरूद

आवृतबीजी तथा अनावृतबीजी में अंतर :-
अनावृतबीजी पौधे –
1) बाह्यदल तथा दल नहीं होते
2) एकल निषेचन होता है।
3) इनमें बीज नग्न होते है,अतः इन्हें नग्नबीजी भी कहते है।
4) इनमें भ्रूणपोष का विकास निषेचन से पहले होता है। भ्रूणपोष अगुणित होता है।
5) पाइनस,जिंगो,साइकस आदि अनावृतबीजी पौधे है।

आवृतबीजी पौधे –
1) इनके पुष्प में बाह्यदल तथा दल पाए जाते हैं पौधे पुष्पधारी कहलाते है
2) इनमें निषेचन दोहरा होता है।
3) बीज फलावरण के अंदर बनते हैं अतः यह आवृतबीजी कहलाते हैं
4) भ्रूणपोष दोहरे निषेचन के बाद विकसित होता है। भ्रूणपोष त्रिगुणित होता है।
5) सूर्यमुखी, सरसों, गुड़हल, मटर, गेहूँ, गन्ना आदि आवृतबीजी पौधे है।

General Science Notes

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