भारतीय संसद

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भारतीय संसद

भारतीय संसद क्या है :-
संसद (पार्लियामेंट) भारत का सर्वोच्च विधायी निकाय है। यह द्विसदनीय व्यवस्था है। भारतीय संसद में राष्ट्रपति तथा दो सदन- लोकसभा (लोगों का सदन) एवं राज्यसभा (राज्यों की परिषद) होते हैं। राष्ट्रपति के पास संसद के दोनों में से किसी भी सदन को बुलाने या स्थगित करने अथवा लोकसभा को भंग करने की शक्ति है। भारतीय संसद का संचालन ‘संसद भवन’ में होता है। जो कि नई दिल्ली में स्थित है। राज्यसभा को उच्च सदन एवं लोकसभा को निम्न सदन कहा जाता है। परंतु यह केवल व्यवहार मे कहा जाता है। क्योंकि भारतीय संविधान मं कही भी लोकसभा के लिए निम्न सदन एवं राज्य सभा के लिए उच्च सदन शब्द का प्रयोग नही किया गया है।
लोक सभा में राष्ट्र की जनता द्वारा चुने हुए प्रतिनिधि होते हैं जिनकी अधिकतम संख्या ५५२ है। राज्य सभा एक स्थायी सदन है जिसमें सदस्य संख्या २५० है। राज्य सभा के सदस्यों का निर्वाचन / मनोनयन ६ वर्ष के लिए होता है। जिसके १/३ सदस्य प्रत्येक २ वर्ष में सेवानिवृत्त होते है। वर्तमान मे लोकसभा के सदस्यो की संख्या 545 है तथा राज्यसभा के सदस्यो की संख्या 245 है।

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भारतीय संसद की भूमिका :-
भारतीय लोकतंत्र में संसद जनता की सर्वोच्च प्रतिनिधि संस्था है। इसी माध्यम से आम लोगों की संप्रभुता को अभिव्यक्ति मिलती है। संसद ही इस बात का प्रमाण है कि हमारी राजनीतिक व्यवस्था में जनता सबसे ऊपर है, जनमत सर्वोपरि है।
संसदीय’ शब्द का अर्थ ही ऐसी लोकतंत्रात्मक राजनीतिक व्यवस्था है जहाँ सर्वोच्च शक्ति लोगों के प्रतिनिधियों के उस निकाय में निहित है जिसे ‘संसद’ कहते हैं। भारत के संविधान के अधीन संघीय विधानमंडल को ‘संसद’ कहा जाता है। यह वह धुरी है, जो देश के शासन की नींव है। भारतीय संसद राष्ट्रपति और दो सदनों—राज्यसभा और लोकसभा—से मिलकर बनती है।

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भारतीय संसद सदस्यों का चुनाव :-
भारत जैसे बड़े और भारी जनसंख्या वाले देश में चुनाव कराना एक बहुत बड़ा काम है। संसद के दोनों सदनों- लोकसभा और राज्यसभा- के लिए चुनाव बेरोकटोक और निष्पक्ष हों, इसके लिए एक स्वतंत्र चुनाव (निर्वाचन) आयोग बनाया गया है।
लोक सभा के लिए सामान्य चुनाव जब उसकी कार्यवधि समाप्त होने वाली हो या उसके भंग किए जाने पर कराए जाते हैं। भारत का प्रत्येक नागरिक जो 18 वर्ष का या उससे अधिक हो मतदान का अधिकारी है। लोकसभा का चुनाव लड़ने के लिए कम से कम आयु 25 वर्ष है और राज्यसभा के लिए 30 वर्ष।

भारतीय संसद के सत्र और बैठकें :-
लोक सभा प्रत्येक आम चुनाव के बाद चुनाव आयोग द्वारा अधिसूचना जारी किए जाने पर गठित होती है। लोक सभा की पहली बैठक शपथ विधि के साथ शुरू होती है। इसके नव निर्वाचित सदस्य ‘भारत के संविधान के प्रति श्रद्धा और निष्ठा रखने के लिए’, ‘भारत की प्रभुता और अखंडता अक्षुण्ण रखने के लिए’ और ‘संसद सदस्य के कर्तव्यों का श्रद्धापूर्वक निर्वहन करने के लिए’ शपथ लेते हैं।

भारतीय कार्यक्रम और प्रक्रिया :-
संसदीय कार्य दो मुख्य शीर्षों में बांटा जा सकता है। सरकारी कार्य और गैर-सरकारी कार्य। सरकारी कार्य को फिर दो श्रेणियों में बांटा जा सकता है,
ऐसे कार्य जिनकी शुरूआत सरकार द्वारा की जाती है, और
ऐसे कार्य जिनकी शुरूआत गैर-सरकारी सदस्यों द्वारा की जाती है परंतु जिन्हें सरकारी कार्य के समय में लिया जाता है जैसे प्रश्न, स्थगन प्रस्ताव, अविलंबनीय लोक महत्व के मामलों की ओर ध्यान दिलाना, विशेषाधिकार के प्रश्न, अविलंबनीय लोक महत्व के मामलों पर चर्चा, मंत्रिपरिषद में अविश्वास का प्रस्ताव, प्रश्नों के उत्तरों से उत्पन्न होने वाले मामलों पर आधे घंटे की चर्चाएं इत्यादि।
गैर-सरकारी सदस्यों के कार्य, अर्थात विधेयकों और संकल्पों पर प्रत्येक शुक्रवार के दिन या किसी ऐसे दिन जो अध्यक्ष निर्धारित करे ढाई घंटे तक चर्चा की जाती है। सदन में किए जाने वाले विभिन्न कार्यों के लिए समय की सिफारिश सामान्यतः कार्य मंत्रणा समिति द्वारा की जाती है। प्राय हर सप्ताह एक बैठक होती है।
संसद के दोनों सदनों की कार्यवाही की छपी हुई प्रतियां सामान्यत बैठक के बाद एक मास के अंदर उपलब्ध करा दी जाती हैं। कार्यवाही को टेप रिकार्ड किया जाता है। वाद विवाद के अधिवेशनवार छपे हुए खंड हिंदी तथा अंग्रेजी भाषा में उपलब्ध होते हैं।
संसद के कार्य का संचालन करने की भाषाएं हिंदी तथा अंग्रेजी हैं। किंतु पीठासीन अधिकारी ऐसे सदस्य को, जो हिंदी या अंग्रेजी में अपनी पर्याप्त अभिव्यक्ति नहीं कर सकता हो, अपनी मातृ-भाषा में संसद को संबोधित करने की अनुमति दे सकते हैं। दोनों सदनों में 12 भाषाओं को हिंदी तथा अंग्रेजी में साथ साथ भाषांतर करने की सुविधाएं उपलब्ध हैं।

भारतीय संसद में जनहित के मामले :-
संसद के दोनों सदनों के नियमों में लोक महत्व के मामले बिना देरी के और कई प्रकार से उठाने की व्यवस्था है। जो विभिन्न प्रक्रियाएं प्रत्येक सदस्य को उपलब्ध रहती हैं वे इस प्रकार हैं:

भारतीय संसद का स्थगन प्रस्ताव :-
इसके द्वारा लोक सभा के नियमित काम-काज को रोककर तत्काल महत्वूपर्ण मामले पर चर्चा कराई जा सकती है।

भारतीय संसद का ध्यानाकर्षण :-
इसके द्वारा कोई भी सदस्य सरकार का ध्यान तत्काल महत्व के मामले की और दिला सकता है। मंत्री को उस मामले में बयान देना होता है। ध्यानाकर्षण करने वाले प्रत्येक सदस्य को एक प्रश्न पूछने का अधिकार होता है।

भारतीय संसद का आपातकालीन चर्चाएं :-
इनके द्वारा तत्काल महत्व के प्रश्नों पर एक घंटे की चर्चा की जा सकती है। हालाँकि इस पर मतदान नहीं होता।

भारतीय संसद का विशेष उल्लेख :-
हमारे निर्वाचित प्रतिनिधि किस तरह ऐसे मामले उठाने का प्रयास करते हैं जिनका नियमों एवं विनियमों की व्याख्या से कोई संबंध नहीं होता। लेकिन ये मामले उस समय उन्हें और उनके निर्वाचन क्षेत्र के लोगों को उत्तेजित कर रहे होते हैं। जो मामले व्यवस्था के प्रश्न नहीं होते या जो प्रश्नों, अल्प-सूचना प्रश्नों, ध्यानाकर्षण प्रस्तावों आदि से संबंधित नियमों के अधीन नहीं उठाए जा सकते, वे इसके अधीन उठाए जाते हैं।

भारतीय संसद का प्रस्ताव (मोशन) :-
सदन लोक महत्व के विभिन्न मामलों पर अनेक फैसले करता है और अपनी राय व्यक्त करता है। कोई भी सदस्य एक प्रस्ताव के रूप में कोई सुझाव सदन के समक्ष रख सकता है। जिसमें उसकी राय या इच्छा दी गई हो। यदि सदन उसे स्वीकार कर लेता है तो वह समूचे सदन की राय या इच्छा बन जाती है। अंत: मोटे तौर पर ‘प्रस्ताव’ सदन का फैसला जानने के लिए सदन के सामने लाया जाता है।
प्रस्ताव वास्तव में संसदीय कार्यवाही का आधार होते हैं। लोक महत्व का कोई भी मामला किसी प्रस्ताव का विषय हो सकता है। प्रस्ताव भिन्न भिन्न सदस्यों द्वारा भिन्न भिन्न प्रयोजनों से पेश किए जा सकते हैं। प्रस्ताव मंत्रियों द्वारा पेश किए जा सकते हैं और गैर-सरकारी सदस्यों द्वारा भी। गैर-सरकारी सदस्यों द्वारा पेश किए जाने वाले प्रस्तावों का उद्देश्य सामान्यतः किसी मामले पर सरकार की राय या विचार जानना होता है।

भारतीय संसद का संकल्प :-
संकल्प भी एक प्रक्रियागत उपाय है यह आम लोगों के हित के किसी मामले पर सदन में चर्चा उठाने के लिए सदस्यों और मंत्रियों को उपलब्ध है। सामान्य रूप के प्रस्तावों के समान संकल्प, राय या सिफारिश की घोषणा के रूप में हो सकता है। या किसी ऐसे अन्य रूप में हो सकता है जैसा कि अध्यक्ष उचित समझे।

भारतीय संसद का अविश्वास प्रस्ताव :-
मंत्रिपरिषद तब तक पदासीन रहती है जब तक उसे लोक सभा का विश्वास प्राप्त हो। लोक सभा द्वारा मंत्रिपरिषद में अविश्वास व्यक्त करते ही सरकार को संवैधानिक रूप से पद छोड़ना होता है। नियमों में इस आशय का एक प्रस्ताव पेश करने का उपबंध है जिसे ‘अविश्वास प्रस्ताव’ कहा जाता है। राज्यसभा को अविश्वास प्रस्ताव पर विचार करने की शक्ति प्राप्त नहीं है।

भारतीय संसद का निंदा प्रस्ताव :-
निंदा प्रस्ताव अविश्वास के प्रस्ताव से भिन्न होता है। अविश्वास के प्रस्ताव में उन कारणों का उल्लेख नहीं होता जिन पर वह आधारित हो। परंतु निंदा प्रस्ताव में ऐसे कारणों या आरोपों का उल्लेख करना आवश्यक होता है। यह प्रस्ताव कतिपय नीतियों और कार्यों के लिए सरकार की निंदा करने के इरादे से पेश किया जाता है। निंदा प्रस्ताव मंत्रिपरिषद के विरूद्ध या किसी एक मंत्री के विरूद्ध या कुछ मंत्रियों के विरूद्ध पेश किया जाता है। उसमें किसी मंत्री या मंत्रियों की विफलता पर सदन द्वारा खेद, रोष या आश्चर्य प्रकट किया जाता है।

General Notes

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