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केंद्रीय ग्रामीण मंत्रालय के निगरानी दल , बहिर्जात सड़क प्रावधान , प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना में सूचनापरक उपकरणों का बेमिसाल उपयोग , आंकड़े ,
केंद्रीय ग्रामीण मंत्रालय के निगरानी दल
केंद्रीय ग्रामीण मंत्रालय के निगरानी दल :-
केंद्रीय ग्रामीण मंत्रालय के भारतीय विकास संस्थान के मनोज दीक्षित के नेतृत्व में निगरानी दल द्वारा शिवपुरी जिले की तीन जनपद पंचायतों पोहरी, करैरा व नरवर की 10 ग्राम पंचायतों का भ्रमण कर योजनाओं के क्रियान्वयन की ग्रामीणों से जानकारी ली। यह दल संचालित योजनाओं के क्रियान्वयन के संबंध में केंद्रीय ग्रामीण मंत्रालय को अवगत कराएंगे। केंद्रीय निगरानी दल द्वारा जिले के तीन जनपद पंचायतों के भ्रमण के दौरान मनरेगा, आजीविका, प्रधानमंत्री आवास, सड़क, पेंशन आदि योजनाओं की जानकारी ग्रामीण क्षेत्रों में भ्रमण कर ग्रामीणों से चर्चा कर जानकारी ली। केंद्रीय ग्रामीण मंत्रालय द्वारा योजनाओं के क्रियान्वयन के संबंध में निगरानी दल का गठन किया गया है।
भारत में 2001 में जिन गांवों में पक्की सड़क नहीं थी, ऐसे दो-तिहाई से भी अधिक गांवों को एक बड़े पैमाने के ग्रामीण सड़क कार्यक्रम के तहत सड़कें उपलब्ध कराई गई हैं। क्या कनेक्टिविटी और कल्याण में इन सुधारों के लिए नागरिक चुनावों में सत्ताधारी सरकारों को पुरस्कृत करते हैं? चुनावों और सड़कों के प्रावधान के 2000 से 2017 तक के आंकड़ों का उपयोग करके इस लेख में बताया गया है कि नीति के प्रावधान के बारे में अच्छी जानकारी होने के बाद भी नागरिक नीति के आधार पर मतदान नहीं करते हैं।
विगत 20 वर्षों में भारत की नीतियों का रूपांतरण हुआ है। देश ने शिक्षाधिकार अधिनियम (निःशुल्क एवं अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार अधिनियम), प्रधान मंत्री ग्राम सड़क योजना, और उज्ज्वला योजना जैसी योजनाओं की शुरुआत देखी है जो ग्रामीण गरीबों की बुनियादी सेवाओं में सुधार पर पूरी तरह केंद्रित रही हैं। लेकिन क्या भारत के ग्रामीण मतदाताओं ने चुनावों में इन नीतियों के प्रति प्रतिक्रिया व्यक्त की है? इस प्रश्न का सकारात्मक उत्तर भारत के लोकतांत्रिक भविष्य के लिए ही नहीं, इसके लिए भी आशाजनक है कि पूरी दुनिया में लोकतंत्र को कैसे देखा जाता है। आश्चर्य की बात है कि इस पर तो काफी रिसर्च हुए हैं जिनमें प्रमाण प्रस्तुत किए गए हैं कि भारतीय नागरिक सजातीय या अनुयायी होने के आधार पर मतदान करते हैं (जैसे, देखें चंद्रा 2004), लेकिन जो इसका उल्टा प्रश्न है उसकी अनुभवजन्य जांच नहीं की गई है, अर्थात वो आनुभविक प्रश्न कि भारतीय संदर्भ में नागरिक नीतिगत प्रावधानों के लिए मतदान करेंगे या नहीं। मैंने यह दर्शाते हुए इस कमी को दूर करने पर काम किया है कि भारतीय नागरिक नीति के आधार पर मतदान नहीं करते हैं और नीति के प्रावधानों की अच्छी जानकारी उपलब्ध होने पर भी वे वैसा नहीं करते हैं।
भारत में चुनावी प्रभावों का निरीक्षण करने के लिए सड़कों का प्रावधान सबसे अधिक संभावित मामला है
ग्रामीण सड़कों का अध्ययन सैद्धांतिक आधार पर इस बात की जांच के लिए उपयुक्त है कि नागरिक नीति के लिए मतदान करेंगे या नहीं। इसलिए कि ढेर सारे शोध के साहित्य बताते हैं कि सड़कें नीति के आधार पर मतदान का सबसे उपयुक्त मामला हैं जिसका अर्थ हुआ कि अन्य विकासमूलक नीतियों के लिए भी इसका सामान्यीकरण करने की काफी अधिक संभावना है। अर्थात, अगर हम सड़कों के लिए जवाबदेही नहीं देखते हैं, तो इसकी भी संभावना नहीं है कि हम अन्य नीतियों के प्रति जवाबदेही देखें।
प्रधान मंत्री ग्राम सड़क योजना की सड़कें भारत के पूरे उत्तर-औपनिवेशिक इतिहास में ग्रामीण सड़कों के मामले में सबसे अधिक दिखने वाली बदलाव हैं जिनकी तुलना रेलवे के प्रावधान से ही की जा सकती है। इनका निर्माण जिस पैमाने पर हुआ है उसे नजरअंदाज करना असंभव है। औसत भारतीय गांव का व्यास 2.1 किमी होता है, और इस कार्यक्रम के जरिए बनी सड़कों की औसत लंबाई 4.4 किमी रही है। नीचे दी गयी आकृति 1 में ग्रामीण सड़कों के मामले में प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के पहले और बाद में हुए बदलावों को दर्शाया गया है। साथ ही, इस बात के करणीय साक्ष्य मौजूद हैं कि इस योजना की सड़कों से गरीब आर्थिक रूप से ही नहीं लाभान्वित होते हैं, स्वास्थ्य, शिक्षा और कृषि के मामले में सरकारी सेवाओं से भी लाभान्वित होते हैं।2 योजना की सड़कें उत्तरदायित्व में सुधार लाने वाले पहलुओं का प्रतिनिधित्व करती हैं।
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बहिर्जात सड़क प्रावधान :-
सड़कें ऐसी नीति होती हैं जो उत्तरदायित्व को दिखाने का एक मज़बूत पक्ष प्रस्तुत करती हैं। वहीं उनके ये फीचर उन्हें राजनीतिक रूप से लक्षित किए जा सकने लायक आकर्षक चुनावी संसाधन और अध्ययन के लिए चुनौतीपूर्ण भी बनाते हैं। सौभाग्यवश, इस स्थायी आनुभविक चुनौती से निपटने के लिए प्रधान मंत्री ग्राम सड़क योजना बहिर्जातता (बाहरी अंतर) का विरल स्रोत उपलब्ध कराती है। इस तथ्य के बावजूद कि राजनीतिक प्रभाव इस कार्यक्रम में हर कहीं मौजूद है, पूर्व-निर्धारित और मनमानी जनसंख्या आधारित सीमाएं सड़कों के प्रावधान पर कम से कम आंशिक रूप से तो असर डालती ही हैं। मैंने सड़कों के प्रावधान के प्रभाव को अलग करने के लिए एक इंस्ट्रूमेंट तैयार किया है जो आबंटन में राजनीतिक लक्ष्यीकरण के लिए बहिर्जात है, और प्रशासनिक स्तर पर, जहां सड़क की योजनाएं बनती हैं, सत्ताधारियों के मतों के हिस्से में बदलाव को फोकस करने पर बेहतर अनुमान उपलब्ध कराता है।
प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना में सूचनापरक उपकरणों का बेमिसाल उपयोग :-
नीतिगत प्रावधान में इस बहिर्जातता के अलावा, कार्यक्रम में पारदर्शिता और नागरिकों के लिए सूचना में ऐसा सुधार हुआ जैसा पूरी दुनिया में ऐसे किसी मामले में पहले कभी नहीं किया गया था। आकृति 2 में देखा जा सकता है कि कार्यक्रम में हर सड़क के मामले में सत्यापन किया जाता है कि उस पर विशेष लोगो (प्रतीक चिन्ह) वाला बोर्ड, साइनेज और सूचना-पट लगाए गए हैं या नहीं। राष्ट्रीय ग्रामीण पथ विकास अभिकरण (NRRDA) से संग्रहित किए गए गुणवत्ता संबंधी आंतरिक आंकड़ों का विश्लेषण दर्शाता है कि सभी सड़कों में से लगभग 90 प्रतिशत पर उच्च गुणवत्ता वाला लोगो और/या सूचना-पट लगा होने की पुष्टि की गई है।
इसके अलावा, सड़कों के प्रावधान और स्थानीय राजनेताओं के बीच प्रत्यक्ष संपर्क स्थापित करने के लिए कोई भी कसर नहीं बाकी रखी गई है। गांवों में राजनीतिक आयोजनों को आधिकारिक रूप से प्रायोजित किया गया जिनमें राजनेताओं ने आरंभ में प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना की सड़क का शिलान्यास किया और बन जाने पर उसका उद्घाटन किया। एक सिटिजन मॉनीटरिंग रिपोर्ट में पाया गया कि बड़ी संख्या में नागरिक सूचना-पटों को प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के बारे में जानकारी पाने के प्रधान स्रोत के रूप में देखते हैं और वे योजना की सड़कों को अलग से ही पहचान सकते हैं। पॉलिटिकल अफेयर्स सेंटर द्वारा 2011 में संकलित एक सिटिजन मॉनीटरिंग रिपोर्ट के अनुसार, लोग इन सड़कों से होने वाले लाभों के अनुभव, ऊंची जागरूकता, और दैनिक उपयोग की भी जानकारी देते हैं (पॉलिटिकल अफेयर्स सेंटर
आंकड़े :-
सड़कों के प्रावधान की चुनावी प्रतिक्रिया की जांच करते हुए, मैंने भारत में 2001 से 2017 के बीच पहली बार बनवाए गए लगभग 1,80,000 बारहमासी सड़कों पर सड़क स्तर के समृद्ध आंकड़े एकत्र किए। मैंने भारत की 2001 और 2011 की जनगणना से मिले 6,00,000 गांवों के आकड़ों के साथ सड़क स्तर के इन आंकड़ों की जियो-कोडिंग (एक स्थान के अनुरूप भौगोलिक निर्देशांक) के लिए ‘फ़जी नेम मैचिंग’ का उपयोग किया। उसके बाद मैंने इन आंकड़ों को 14 भारतीय राज्यों में 1998 से 2017 के बीच हुए चुनावों के लिए राष्ट्रीय और राज्य स्तर के निर्वाचन क्षेत्रों के साथ स्थानीय आधार पर जोड़ा।[3] इस डेटासेट में भारत की कुल आबादी का 90 प्रतिशत से भी अधिक हिस्सा, 11,000 चुनावी प्रतिस्पर्धाएं, और सड़क संबंधी कार्यक्रम की लगभग पूरी अवधि कवर हो जाती है। निर्वाचन क्षेत्र आधारित विश्लेषण का एक लाभ यह है कि ऑब्जर्वेशंस की पूलिंग करके मैंने सड़कों की दृश्यता (विजिबिलिटी) के सकारात्मक स्पिलओवर (बाहरी) प्रभावों का हिसाब किया। चूंकि ये सड़कें गांवों को बाजारों से जोड़ती हैं इसलिए नागरिकों का अपने गांव के बाहर की सड़कों के साथ सकारात्मक रूप से प्रभावित होना संभावित है।
नीचे दाईं ओर दी गई आकृति समय के साथ पूरे भारत में सड़क संपर्क में हुआ भारी बदलाव दर्शाती है। वहीं, बाईं ओर दी गई आकृति राज्य विधान सभा चुनावों में राज्यस्तरीय सत्ताधारियों को प्राप्त मतों के हिस्से में हुए बदलाव को दर्शाती है। दोनो ही नक्शे परिसीमन-पूर्व की अवधि के लिए हैं। दोनो नक्शों में सहसंबंध की कमी स्पष्ट है।
फिर भी वैकल्पिक संभावना यह है कि नागरिक सिर्फ अपने बिल्कुल नजदीकी क्षेत्रों में हुई सड़कों की व्यवस्था को ध्यान में रखते हैं। इसके अलावा, नागरिकों के लिए आसपास के व्यापक क्षेत्र में सड़कों के उपलब्ध हो जाने के कारण सड़कों से वंचित रह गए लोग अगर सत्ताधारी दल को दंडित करते हैं, तो उसके चलते जिन स्थानीय क्षेत्रों में नागरिकों के लिए सड़कों की कमी है, वहां सड़कों के प्रावधान का नकारात्मक स्पिलओवर प्रभाव होगा और दोनो के संयुक्त प्रभाव से ये माइक्रो-डायनामिक्स संतुलन में आ सकते हैं। इन चिंताओं के निराकरण के लिए मैंने ‘ट्रीटमेंट’ (सड़कों का प्रावधान) के स्तर पर, अर्थात बूथ-गांव के स्तर पर उत्तरदायित्व की जांच की। मैंने ऐसा देश के सबसे खराब सड़क संपर्क वाले और सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में किया। औसतन 980 मतदाता वाले 1,00,000 से अधिक बूथों के लिए इन जियो-कोडेड सड़कों के डेटासेट को मोटे तौर पर बूथ स्तर के जियो-कोडेड चुनावी डेटासेट के साथ जोड़कर मैंने राजनेताओं के निर्वाचन क्षेत्र में बिल्कुल बूथ स्तर पर मतों के हिस्से में बदलाव पर सड़कों के प्रावधान के प्रभाव का अनुमान किया। नीचे दी गई आकृति 5 में उत्तर प्रदेश में ग्राम स्तर पर सड़कों के प्रावधान की तुलना में बूथ स्तर पर समाजवादी पार्टी के मतों के हिस्से में बदलाव दर्शाया गया है। दोनो नक्शों में सहसंबंध का अभाव है जबकि बाएं नक्शे में इस तथ्य को प्रस्तुत किया गया है कि चुनाव में सत्ताधारी होने का सशक्त नुकसान बूथ स्तर तक चला जाता है।
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