राजस्थान के प्रमुख शिलालेख

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राजस्थान के प्रमुख शिलालेख

बरली का शिलालेख :- 443 इसा पूर्व का शिलालेख वीर सम्वत 84 और विक्रम सम्वत 368 का है यह अशोक से भी पहले ब्राह्मी लिपि का है स्थानीय आख्यानो के अनुसार पद्मसेन बरली का समृद्ध राजा था जिसने अजमेर की तलहटी में 443 बीद्मावती नगरी इन्दरकोट बसाया था, अजमेर जिले में 27km दूर बरली गाँव में भिलोत माता मंदिर से स्तंभ के टुकडो से राजस्थान का सबसे प्राचीन शिलालेख, ब्राह्मी लिपि का सबसे प्राचीन शिलालेख अजमेर के साथ मद्यामिका में जैन धर्म के प्रसार – वर्तमान में अजमेर संघ्रालय में सुरक्षित राजस्थान के प्रमुख शिलालेख ,

घोसुण्डी का शिलालेख :- इस समय तक राजस्थान मैं भागवत धर्म लोकप्रिय ह चुका था, राजस्थान में भागवत धर्म के प्रचलन की जानकारी देने वाला सबसे प्राचीन प्रमाण शिलालेख को माना जाता है, इस लेख का महत्व प्रथम शताब्दी ईसा पूर्व में भागवत धर्म का प्रचार संकृषण तथा वासुदेव की मान्यता और अश्वमेघ यज्ञ के प्रचलन आदि में है, इसकी 3 प्रतियां प्राप्त होती हैंयह शिलालेख कई टूटे शिलाखंडों में प्राप्त हुआ है, इनमें से सबसे बड़ा खंड उदयपुर के संग्रहालय में वर्तमान में है, यह शिलालेख चित्तौड़ के घोसुंडी गांव में पाया गया जो चित्तौड़ से 7 मील दूरी पर, द्वितिय शताब्दी इसा पूर्व का शिलालेख, देवनागरी एंव ब्राहमी लिपि का प्रयोग, वैष्णव धर्म का सबसे प्राचीन शिलालेख, शिलालेख के अनुसार गज वंश के सर्वतात द्वारा अश्वमेघ यग करने का उल्लेख एव, विष्णु मंदिर की चारदीवारी बनवाने का उल्लेख है |

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बडवा स्तंभ लेख :- 238-39 ई मौखरी राजाओं का यह सबसे पुराना और पहला अभिलेख है यह एक यूप पर खुदा है, यूप एक प्रकार का स्तम्भ है, इस अभिलेख में कृत सम्वत का उल्लेख किया गया इससे मौखरियों की एक नई शाखा का पता लगता है, बडवा यूप मौखरी वन्श से सम्बन्धित है, मौखरी राजाओं की कई शाखायें थी. बडवा यूप का प्रमुख व्यक्ति बल था, जो अन्य शाखाओं से अधिक पुरानी शाखा से सम्बन्ध रखता है, उसकी उपाधी महासेनापति होने से अर्थ निकलता है कि वह बहुत बलशाली था. यह प्रतीत होता है कि ये शक-क्षत्रपों के अधीन रहे इस अभिलेख में बलवर्धन ,सोमदेव और बलसिंह नामक तीन भाइयो द्वारा सम्पादित त्रिरात्र यघ का उल्लेख मिलता है |

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नगरी का शिलालेख :- चित्तोरगढ़ में स्थित यह शिलालेख 424 ई. का है, डी आर भंडारकर ने नगरी का उत्खंनन करवाया, अजमेर के म्यूजियम में रखा हुआ है, इसकी लिपि देवनागरी और भाषा संस्कृत है , इस शिलालेख से विष्णु पूजा के साक्ष्य मिलते है |

मान मोरी का शिलालेख :- यह लेख मानसरोवर झील (चित्तौड़)के तट पर एक स्तंभ पर उत्कीर्ण हुआ कर्नल टॉड को मिला था, जिसमें चित्तौड़ की प्राचीन स्थिति और मौर्य वंश के इतिहास की जानकारी प्राप्त होती है, इस लेख को कर्नल टॉड द्वारा भारी होने के कारण इंग्लैंड जाते समय समुद्र में फेंक दिया था
इस शिलालेख की प्रतिलिपि कर्नल जेम्स टॉड के ग्रंथ एनल्स एंड एंटिक्विटीज के प्रथम भाग में प्रकाशित है
यह शिलालेख 713ई.का है, इस लेख में अमृत मंथन का उल्लेख मिलता है, जनता पर लगाए जाने वाले कर,उस समय युद्ध में हाथियों का प्रयोग के पता चलता है, इस लेख पर चार मोर्य राजाओं महेश्वर,मान,भीम व भोज नामक राजाओं का उल्लेख है, इस अभिलेख का लेखक पुष्य और उत्कीर्णक शिवादित्य था |

चिरवा का शिलालेख :- 1273ई.का यह शिलालेख उदयपुर जिले के चिरवा गांव के मंदिर के बाहरी द्वार पर लगा हुआ मिला है, चिरवा शिलालेख की तिथि कार्तिक शुक्ला पड़वा विक्रमी संवत 1330 है, यह लेख बागेश्वर और बागेश्वरी की आराधना से आरंभ होता है, देवनागरी लिपि में और संस्कृत भाषा में लिपिबद्ध 51 श्लोकों का (संस्कृत भाषा) शिलालेख मेवाड़ के गुहिल वंशीय (बप्पा से लेकर) राणाओं की समरसिह के काल तक की जानकारी प्रदान करता है, इस शिलालेख मे मेवाड़ के पड़ोसी राज्य (गुजरात ,मालवा, मरू और जंगल प्रदेश) का भी राजनीतिक वर्णन उपलब्ध है, इस शिलालेख से तत्कालीन ग्रामीण धार्मिक और सामाजिक जीवन पर भी अच्छा प्रकाश पड़ता है, इसके वर्णन से स्पष्ट होता है कि मेवाड़ का इन शासकों के काल में काफी विस्तार हो गया था और पड़ोसी शत्रु दबा दिए गए थे, इसके साथ ही विष्णु और शिव मंदिर की स्थापना और मंदिरों के लिए दी गई भूमि का उल्लेख है, उस काल की प्रशासनिक व्यवस्था में तलारक्षों का कार्य, धार्मिक और सामाजिक प्रथाओं (जैसे सती प्रथा के प्रचलन)के बारे में जानकारी देता है
इस लेख में एकलिंग जी के अधिष्ठाता पाशुपात योगियों और मंदिर की व्यवस्था का भी उल्लेख है, भुवनसिंहसूरि के शिष्य रत्नप्रभसूरि ने चित्तौड़ में रहते हुए चिरवा शिलालेख की रचना की थी, इन के मुख्य शिष्य पार्श्वचंद ने जो बड़े विद्वान थे उसको सुंदर लिपि में लिखा, पदम सिंह के पुत्र केलिसिह ने उसे खुदा और शिल्पी देल्हण ने उसे दीवार में लगाने का कार्य संपादन किया, इस शिलालेख में परमार वंशी राजाओं की उपलब्धि के साथ साथ वास्तु पाल और तेजपाल के वंशो का उल्लेख भी मिलता है |

बिजोलिया शिलालेख :- बिजोलिया के पाश्वर्नाथ जैन मंदिर के पास एक चट्टान पर उत्कीर्ण 1170ई. के इस शिलालेख को जैन श्रावक लोलाक द्वारा मंदिर के निर्माण की स्मृति में बनवाया गया था, इस लेख का रचयिता गुणभद्र था, इस लेख में सांभर और अजमेर के चौहानो को वत्सगोत्र के ब्राह्मण बताते हुए उनकी वंशावली के साथ साथ उस समय की भौगोलिक, सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक स्थिति का विवेचन मिलता है, इस लेख के अनुसार चौहानों के आदि पुरुष वासुदेव चहमन ने 551ई. में शाकंभरी में चहमान (चौहान) राज्य की स्थापना की थी और सांभर झील का निर्माण करवाया था, उसने अहीच्छत्रपुर (नागौर)को अपनी राजधानी बनाया, इस लेख में उस समय के क्षेत्रों के प्राचीन नाम भी मिलते हैं-जैसे एक जबालीपुर(जालौर) नड्डूल (नाडोल) शाकंभरी(सांभर)दिल्लिका (दिल्ली) श्रीमाल(भीनमाल) मंडलकर (मांडलगढ़)विंध्यवल्ली(बिजोलिया) नागहृद(नागदा)आदी, इस लेख में उस समय दिए गए भूमि अनुदान का वर्णन डोहली नाम से किया गया है, बिजोलिया के आसपास के पठारी भाग को उत्तमाद्री के नाम से संबोधित किया गया, जिसे वर्तमान में उपरमाल के नाम से जाना जाता है, यह अभिलेख संस्कृत भाषा में है और इसमें 13पद्य है यह लेख दिगंबर लेख है, गोपीनाथ शर्मा के अनुसार 12 वीं सदी के जनजीवन ,धार्मिक अवस्था और भोगोलिक और राजनीति अवस्था जानने हेतु यह लेख बड़े महत्व का है, इस शिलालेख से कुटीला नदी के पास अनेक शैव व जैन तीर्थ स्थलों का पता चलता है |

कुंभलगढ़ का शिलालेख :- यह शिलालेख 1460 का है इसमें मेवाड़ के महाराणा की वंशावली विशुद्ध रूप से दी गई है, यह शिलालेख राजसमंद जिले में कुंभलगढ़ दुर्ग के कुम्भश्याम मंदिर में (वर्तमान में मामा देव मंदिर)उत्कीर्ण है, वर्तमान में यह अभिलेख उदयपुर संग्रहालय में स्थित है, इस अभिलेख में कुंभा की विजय का सविस्तार वर्णन किया गया है, कुंभलगढ़ अभिलेख राजस्थान का एकमात्र अभिलेख है जो महाराणा कुंभा के लेखन पर प्रकाश डालता है, कुंभलगढ़ अभिलेख में हम्मीर को विषम घाटी पंचानन कहा गया है, यह शिलालेख पांच शिलाओं पर अंकित है इसमें कुल 270 श्लोक हैं, यह शिलालेख संस्कृत व नागरी लिपि में वर्णित है, इसमें चित्तौड़ का विशद वर्णन है और मेवाड़ के महाराणा उनकी उपलब्धियों पर प्रकाश डाला गया है, महाराणा कुंभा के द्वारा सपादलक्ष नराणा बसंतपुर और आबू का विजय वर्णन भी प्राप्त है, राणा कुंभा की सेनाएं किन मार्गो से गुजरी उसका विवरण भी इस अभिलेख में दिया गया है, चित्तौड़गढ़ दुर्ग में निर्मित देवालयों,जलाशयो व विभिन्न विद्वानों का भी उल्लेख इसमें है, तत्कालीन समाज का चित्रण भी इन श्लाको में प्राप्त है, सामाजिक जीवन के अलावा शिलालेख तत्कालीन भोगोलिक स्थिति जनजीवन और तीर्थ स्थानों पर भी प्रकाश डालता है, एकलिंग जी के मंदिर और कुटिला नदी का वर्णन स्वाभाविक रूप से इस लेख में किया गया है, गोरीशंकर हीराचंद ओझा ने इसका लेखक महेश को माना है, इस कुंभलगढ़ लेख में बप्पा रावल को विप्र वंशीय ब्राह्मण बताया गया है |

बसंत गढ सिरोही शिलालेख :- 625 ई. का लेख .इस लेख में सामंत प्रथा की जानकारी मिलती है इस समय आर्बुध देश का राजा वार्मालात था इस अभिलेख में वज्राभट के पुत्र राजिल को आर्बुध देश का स्वामी बताया गया है |

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